बलिराजगढ़ के विकास कॆ ल क आमआदमी आ जनप्रतिनिधि द्वारा उठाऒल गॆल आवाज आई धरि महज स्थानीय अखवार आ स्थानीय चर्चा तक सिमित रही गॆल। मुदा मुख्यमंत्री कॆ सेवा यात्रा कॆ ल क किछ क्षण बितावै कॆ संभावना स अहि स्थल के कायाकल्प की संभावना प्रबल भ गॆल अछि।
अहि स्थल कॆ रकबा 225 एकड़ अछि। उत्तर बिहार में एतॆक पैघ भूभाग में कॊनॊ दॊसर पुरातत्व या ऐतिहासिक स्थल अवस्थित नहीं अछि। तत्कालीन रेल मंत्री स्व. ललित नारायण मिश्र के प्रयास स वर्ष 1962-63, 1972७3 आ 73-74 में एकर उत्खनन प्रारंभ भॆल। मुदा हर वॆर खुदाई के दौरान जल आवि जाई के कारण उत्खनन कार्य कॆ बीचॆ में रोक दॆब पङलै। अहि अल्प उत्खनन में 8वीं, 9वीं सदी पाल काल, इसा पूर्व दूसरी-तीसरी सदी सुंगवंश के पूर्व आ मौर्य आ बौद्धकाल के विशेष प्रचुर मात्रा में भॆटल छल। ई अवशेष दरभंगा आ दिल्ली म्यूजियम में रखे गॆल अछि। पूर्व केन्द्रीय मंत्री देवेन्द्र प्रसाद यादव द्वारा संसद में एकर पूर्ण खुदाई कॆ ल क उठाऒल गॆल सवाल के जवाब में तत्कालीन पर्यटन मंत्री जंग मोहन कहनॆ छला कि एकर अल्प उत्खनन मॆ भॆटल अवशेष स तत्कालीन साहित्यिक, सामाजिक आ सांस्कृतिक अनुक्रम स्थापित भ चुकल अछि। अहि लॆल एकर आब खुदाई कॆ जरूरत नहीं अछि। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग वर्ष 1916 में अहि गढ़ कॆ अधिकृत क राष्ट्रीय स्मारक घोषित कॆनॆ छल। वर्ष 1993 में राज्य सरकार अहि स्थल कॆ पर्यटक स्थल कॆ दर्जा दॆलक। मुदा पर्यटक स्थल के रूप में विकसित करै कॆ ल क कॊनॊ प्रयास नहीं कायल गॆला। पुरातत्वव जानकार कॆ इहॊ मानव अछि कि भगवान बुद्ध जहैन तिब्बत कॆ यात्रा पर गॆल छला त तंत्र-मंत्र की विधा के लॆल एतय प्रवास कॆनॆ छला। बिहार रिसर्च सोसायटी पटना के शोध अधिकारी डा. शिव कुमार मिश्र स्थल आ तथ्यों कॆ अवलोकन करैत कहनॆ छला कि " बौद्ध साहित्य में वर्णित असली मिथिला नगरी एतय अछि "। ऒतय, प्रखंड क्षेत्र के बरुआर में बहुमूल्य सूर्य कॆ प्रतिमा, दुदाही में भगवती दुर्गा , तिरहुता में पालकालीन, खोईर में बुद्ध मूर्ति, सर्रा में महादेव त सीमा स सटल देवहार में 6वीं शताब्दी के गणेश, 9वीं शताब्दी कॆ पार्वती आ गुप्तकाल के शिवलिंग मिलल अछि।
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