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Sunday, June 30, 2013

मिथिलाक हृदय-मन्दिरमे प्रतिष्ठित मिथिला पेण्टिंग

मिथिला पेण्टिंग नाम भने आधुनिक अछि, मुदा ई परम्परा अदौसँ चलि आबि रहल अछि। सभसँ पहिने कहिया आरम्भ भेल से कहब कठिने नञि असम्भव सन अछि। जहियासँ मिथिला अछि तहिएसँ मैथिलानी एहि चित्रकलाकेँ परम्पराक रूपमे अपनासँ अगिला पीढ़ीकेँ हस्तान्तरित करैत रहली आ नव पीढ़ी एकरा अपनबैत रहल। मानल जाइत अछि जे विदेहराज जनके केर समयसँ अछि। कहल जाइत अछि जे मिथिला पुत्री भगवती सीता आ भगवान श्रीरामक विवाहक अवसरपर विदेहराज जनक नगरकेँ सजेबाक आदेश देने छला। ओहि समय जे लोक अपन घर-दुआरिकेँ सजेलक आ एहि क्रममे चत्रिकारी केलक सैह मिथिला पेण्टिंग थिक। माटिक घर-आङनमे स्थान पाबऽ वला ई मिथिला चित्र आधुनिक कालमे कागत, कपड़ापर स्थान पेलक, मुदा ओ तहिएसँ मिथिलाक हृदय-मन्दिरमे प्रतिष्ठित रहल अछि जहियासँ आरम्भ भेल।
आइ ई कला भूमि आ भित्तिसँ आगू बढ़ि कऽ कागज, कैनवस, कपड़ा, मटिक बासन आ सजावटि अन्य वस्तुकेँ सेहो अपन उपस्थितिसँ सुन्दर बनाबऽ लागल अछि। एहि चित्रकालाक अपन विशिष्टता रहल अछि। परम्परागत रूपसँ मिथिला चित्र विवाहक अवसरपर कोबरमे, उपनयनक अवसरपर मड़बा आ विशेष अवसरपर मुख्यद्वार आ गोसाउनिक घरमे बनाओल जाइत रहल। बादमे जेना-जेना एकरा अपन सुवास पसारबाक अवसर भेटल ई अन्य अवसरपर सेहो अपन उपस्थितिसँ सभकेँ आकर्षित कऽ रहल अछि। पहिने एकर विषय समेटल छल। देवी-देवता एकर आ प्रकृति एकर मुख्य विषय होइ छला। आइयो एहने सन अछि, मुदा आधुनिक कालमे एकर विषय-वस्तु बदलबाक प्रासस सेहो आरम्भ भऽ गेल अछि।

मिथिलासँ बाहरक यात्रा  

बात 1934 केर अछि जखन बिहारमे भीषण भूकम्प आएल छल। मिथिला अंचलक खण्डहरमे छिरियाएल चित्र खण्ड दिस तत्कालीन भारतीय प्रशासनिक सेवाक डब्लू.जी. आर्चरक ध्यान आकर्षित भेल। एहिसँ संबंधित एकटा लेख 1949मे अंतरराष्ट्रिय कला पत्रिकामे प्रकाशित भेल।
प्रबुद्ध कलाकार जगत एहि दिस आकृष्ट भेला, मुदा राष्ट्रिय आ अन्तरराष्ट्रिय स्तरपर मिथिला चित्रकलाक प्रतिष्ठा तखन भेल जखन 1966-68मे अकाल पीड़ित नगरवासीक आजीविकाक रूपमे एहि कलाकेँ सरकारी आ गैरसरकारी संस्थानक संरक्षण आ मार्गदर्शन भेटल। लगभग 1970 मे अमेरिकी मानवशस्त्री रेमण्ड आ जर्मनीक इरेका मोसर एहि चित्रकला सौन्दर्यकेँ परखलनि। कलाक विस्तार भेल आ आइ ई जापानमे चमकि रहल अछि। एकर परिष्कृत, परिमार्जित आ वैविध्यपूर्ण रूप सोझाँ आयल। एतबे निञ उपेक्षित वर्गक कला बेसी प्रचलित भेल। विषयान्तर सेहो भेल आ दैवीय आकारक स्थान दैनादिन जीवन लऽ लेलक। विकास पुरुषक नामे ख्यात ललित नारायण मिश्रक अवदान सेहो एहि चित्रकलाकेँ राष्ट्रिय स्तरपर ख्यात करबामे रहलनि।
कलाकार जमुना देवीक एकटा चित्रमे एकटा दलितकेँ मरल गायकेँ कात लगबैत देखाओल गेल छल, ओ बहुत सम्मानित भेल छल। एहि जाति विशेषक कलाकेँ राष्ट्रिय मान्यता तखन भेटल जखन 1970 मे जितवारपुरक जगदम्बा देवीकेँ हुनक चित्रकलाक लेल राष्ट्रपति द्वारा 1970 मे सम्मानित कयल गेलनि।
मिथिलाक ओ वर्ग जे सामान्य समाजसँ कात छल सेहो आइ एहिसँ जुड़ल आ सम्मानित जीवन बिता रहल अछि। मिथिला पेण्टिंग लेल बुआ देवी, सीता देवी, शान्ति देवी आ महासुन्दरी इत्यादिकेँ राष्ट्रिय आ अन्तरराष्ट्रिय प्रतिष्ठा प्राप्त भेलनि। जितवारपुरक लोककलाक लेल महासुन्दरी देवीकेँ पद्मश्रीसँ सम्मानित कयल गेलनि। आइ बहुत रास कलाकार छथि जे देश-विदेशमे अपन कलाक प्रदर्शन कऽ रहल छथि आ एहिसँ हुनका आर्थिक लाभ  सेहो भऽ रहलनि अछि।

मिथिला पेण्टिंग की मधुबनी पेण्टिंग 

मिथिला पेण्टिंगकेँ बहुत रास लोक मधुबनी पेण्टिंग केर नामसँ सेहो अभिहीत करै छथि। ई सत्य जे एकर प्रचार-प्रसार तखने भेल जखन ई सर्वप्रथम मधुबनीमे देखल जेबाक बाद राष्ट्रिय स्तरपर प्रतिष्ठित कयल गेल। आइयो सर्वाधिक अवदान मधुबनीक अछि। तकर कारण ईहो अछि जे सरकारी स्तरपर अथवा गैर सरकारी स्तरोपर जखन कखनो मिथिला पेण्टिंग केर प्रसंग कोनो योजना बनैत अछि अथवा एकरा आगाँ बढ़ेबाक बात उठैत अछि, किंवा आने कोनो तथ्य सोझाँ अबैत अछि सभ मधुबनीपर केन्द्रित होइत रहल अछि, मुदा एहि सत्यपर ध्यान देल जेबाक आवश्यकता  अछि जे ई चित्रकला सगरो मिथिलामे पल्लवित-पुष्पित होइत रहल अछि। चाहे ओ मिथिलाक दरभंगा हो, समस्तीपुर, बेगूसराय, सहरसा, सुपौल, मधेपुरा, पूर्णिया, भागलपुर, बेतिया आदि कोनो क्षेत्र हो सभ तरि कोनो ने कोनो रूपमे ई आइयो विद्यमान अछि। नञि किछु तँ विवाहक अवसरपर कोबर लिखबामे तँ अवश्ये। तेँ एकरा मिथिला पेण्टिंग कहब बेसी श्रेयष्कर अछि। ई नाम एकरा क्षेत्रक विस्तार दैत अछि आ मिथिलाक सांस्कृतिक विरासति हेबाकेँ सेहो पुष्ट करैत अछि। मिथिलाकेँ छोट करबाक षड्यंत्र सभ दिनसँ होइत रहल अछि आ ताहि दिशामे कोनो एक जिला मात्रसँ एहि ऐतिहासिक आ सांस्कृतिक कलाकेँ खुटेसि देब सहयोगे कहल जायत।

पर्यावरणक हितैषी 

मिथिला पेण्टिंग पर्यावरणक बड़ पैघ हितैषी रहल अछि। एहिमे देवी-देवताक अतिरिक्त बाँस, काछु, माछ, सर्प आदि केर चित्रण होइत अछि जे पर्यावरणक अभिन्न अंग रहल अछि। एहि सभक अपन फराक-फराक महत्वो अछि, जेना बाँसकेँ वंश-वृद्धिक प्रतीक मानल जाइत अछि। एहिमे प्रकृतिएसँ रंगक व्यवस्था कयल जाइत रहल अछि। पहिने घास, पात, गोबर आदिसँ रंग तैयार कयल जाइ छल। एमहर आबि कऽ आधुनिक रंगक प्रयोग सेहो आरम्भ भऽ गेल अछि। आधुनिकता एकरा विस्तार देलक अछि अवश्य, मुदा ई अपन मूल प्रकृतिसँ फराक सेहो भेल जा रहल अछि जाहिपर नियंत्रण नञि भेलल तँ धीरे-धीरे ई अपन मूलसँ  पूरापूरी फराक भऽ जायत।

बिचबैयाक चाङुरमे कला आ कलाकार 

मिथिला चित्रकला अर्थात मिथिला पेण्टिंग केर विकास भऽ रहल अछि, बहुत रास कलाकार एहिसँ सभ दृष्टिञे लाभान्वित भऽ रहल छथि, मुदा बहुत रास कलाकार एखनो अपन कलाक उचित मूल्य नञि पाबि रहल छथि। कला आ कलाकार बिचबैयाक चाङुरमे छथि। बहुत रास कलाकार केर कहब छनि जे बिचबैया हुनकासँ उधारी पेण्टिंग लऽ जाइत अछि आ पेमेण्टमे बरखो लगा दैत अछि। बजारक अभावक कारण कालाकार चाहियो कऽ बिचबैयासँ मुक्त नञि भऽ पबै छथि। सराकर दिससँ जे आर्थिक सहयोगक प्रावधान होइत अछि ओहूपर बिचबैयेक नियंत्रण रहै छनि। ओ जकरा चाहै छथि तकरा प्रशिक्षण किंवा प्रदर्शनीमे लऽ जाइ छथि। कहल जाइत अछि जे कलाकारसँ जे चित्र सय-दू सयमे कीनल जाइत अछि ओकरा बाहरमे हजारोमे बेचल जातइ अछि। परिणाम अछि जे कलाकारक समक्ष रोटी-नोनक समस्या रहिए जाइ छनि। किछु अपवादकेँ छोड़ि अधिकांश संस्था अपन कालाकारक शोषण करैत अछि। ओतहि मिथिला पेण्टिंग केर प्रशिक्षणकेँ आजीविकाक साधन बना बहुत गोटे अपन दू कौर केर जोगाड़ सेहो कऽ लै छथि। ओतहि साड़ी, चद्दरि, गेरुआक खोल, रुमाल, पाग, गमछा, सोफा आदिपर मिथिला पेण्टिंगकेँ पहँुचा कऽ सेहो बहुत गोटेक चूल्हि पजरि रहलनि अछि, मुदा आवश्यकता अछि कलाकारक लगपासमे एहन बजारक जे हुनका शोषणसँ बचाबय आ आर्थिक सम्पन्नताक माध्यम बनय।