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Wednesday, March 20, 2013

बुक्स ओ संसद आयोजन पर केन्द्रित स्मारिका क विमोचन भेल

बुक्स  संसद आयोजन पर केन्द्रित स्मारिका  विमोचन आई नव दिल्ली स्थित प्रेस क्लब ऑफ़ इंडिया सभागार में भेल
अहि स्मारिका में सांसद द्वारा लिखल गेल किताब संक्षिप्त विवरण आ हुनक संक्षिप्त परिचय , 40 राजनितिक पार्टीक (जे वर्तमान समय में लोकसभा आ राज्यसभा में प्रतिनिधित्व कय रहल अछि) हुनक पूरा विवरण  भारत में कार्यरत लगभग मिडिया हाउस के पूरा विवरणसांसदक बारे में दिलचस्प तथ्य   संसद में भेल किछ मत्वपूर्ण घटना के समेत  संसद , मीडिया   सिविल सोसायटी दायित्व आ हुनक भूमिका पर विशेषज्ञ द्वारा लिखल गेल आलेख के समेटल गेला
आई दिल्ली स्थित प्रेस क्लब ऑफ़ इण्डिया सभागार में श्री सांता कुमार (सांसद  पूर्व मुख्यमंत्री हिमाचल प्रदेश) , श्री योगानन्द शास्त्री (स्पीकर दिल्ली विधानसभा), श्री प्रकश जावेडकर (सांसद) ,एम बी राजेश (सांसद), डॉ राम प्रकश (सांसद), सुधाकर सिंहराजीव मिश्रा(लोकसभा चैनेल हेड श्री अरविन्द के सिंह (राज्यसभा चैनल हेडअहि स्मारिका विमोचन केलैनी अहि मौका पर श्री योगानंद शास्त्री कहला की " जिस वक्त अभी पुरे देश में सांसद के प्रति लोगो का विश्वास कम हुआ है ऐसे समय में बिहार के यह युवाओ का टीम ने एक सराहनीय काम किया है"। ओतय श्री सांता कुमार कहला की  "यह एक ऐसा वक्त है जहा हम लोगो को आत्मचिंतन करने की जरुरत है"। श्री राजीव मिश्रा  अरविन्द सिंह वर्तमान समय मीडिया भूमिका आ हुनक जबावदेही पर विस्तार  चर्चा केलैनी कार्यक्रम अध्यक्षता दृष्टि क्रिएटिव प्रोडक्शन प्रा. लिमिटेडक एमडी श्री कुंदन झा केलैनी ओतय  धन्यवाद ज्ञापन डॉ सौरभ दास केलैनी।
सांसद द्वारा लिखल आ सम्पादित कायल गेल पुस्तक प्रदर्शन आ ओहि पर परिचर्चा आयोजन दृष्टि क्रियेटिव प्रा लिमिटेड द्वारा वर्ष 2011  2012 में कायल गेल छल जाहिमे  लालकृष्ण आडवानी , कपिल सिब्बल , सलमान खुर्शीद , सतपाल जी महराज ,  सांता कुमार , शशि थरूर समेत करीब 100  बेसी सांसद भाग लेने छलैथ जाही प्रोग्राम लेल संस्था के इंडिया बुक ऑफ़ रिकॉर्ड सेहो भेटल अछि
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अहि कार्यक्रम के सफल बनवाई में संस्थान डायरेक्टर श्री कुंदन झा , डॉ सौरभ दास,  नीरज पाठक , अमिताभ भूषण, रामचंद्र झा आ सोनू मिश्रक महत्वपूर्ण भूमिका छैनी।  

Tuesday, March 19, 2013

अंग्रेजी बनाम भारतीय भाषा

सिविल सेवा परीक्षा में भारतक भाषा के दरकिनार कय अंग्रेजीक वर्चस्व कायम करैक संघ लोक सेवा आयोगक फैसला पर देश में बहुत कड़ा प्रतिक्रिया भेल संसद सेहो अहि पर अपन नाराजगी व्यक्त केलक जाहिमे लगभग सब दलक सांसद शामिल छला आ अंततः राज्यमंत्री वी नारायणसामी  इ कहलैनी कि अहि पर कोनो समाधान निकलइ तक आयोगक नव अधिसूचना लागू नहीं कायल जायत। आ अहि अधिसूचना पर अमल फिलहाल नहीं कायल जायत। मुदा भारतीय भाषा के कात अंग्रेजीक वर्चस्व बढ़ावईक इ कोनो अकेला मामला नहीं अछि। आब सवाल इ अछि कि संघ लोक सेवा आयोगक परीक्षाक नियम में भेल बदलावक फैसला खाली आयोगक  छल, वा अहिक पाछा सरकारक कोनो मंशा सेहो छल? भारतीय प्रशासनिक अन्य केंद्रीय सेवा में भर्तीक खातिर होई वाला परीक्षा संबंधित नव अधिसूचना के  ल क विवाद अहि लेल ठाढ भेल किएक त अहिमें अंग्रेजी के सौ अंक निर्धारित  कय देल गेला आ ई सेहो तय  कय देल गेल  कि अंग्रेजी में भेटई वाला  अंक योग्यताक  निर्धारण में जोड़ल जायत। जहैनी की अखन अंग्रेजीक परीक्षा में मात्र  पास टा करबाक रहैत छई। एतबे  नहीं, कोनो  भारतीय भाषाक दसवीं तक के ज्ञानक अनिवार्यता के नव  अधिसूचना में हटा  देल गेला।
सपष्ट अछि की   बदलाव अगर लागू भ जायत   प्रशासनिक सेवा में भर्तीक लेल अंग्रेजीक अहमियत बहुत बढ़ी जायत, आ ओहो भारतीय भाषाक कीमत पर। संघ लोक सेवा आयोगक परीक्षाक नियम में फेरबदल सुझावईक लेल 2011 में आयोगक पूर्व अध्यक्ष अरुण एस निगावेकरक अध्यक्षता में समिति गठित भेल छल। मुदा निगावेकरक कहब अछि  कि  ओ कोनो भाषा-विशेष के पक्ष में नहीं, सिर्फ एक ऐहेन परीक्षा पद्धतिक सिफारिश केने छला जाहिमे परीक्षार्थीक प्रभावशाली तरीके सं संवाद करईक  क्षमताक आकलन  भय सकय, भले  संवाद कोनो भाषा में हुए। फेर अंग्रेजीक अनावश्यक रूप सं प्राथमिकता दई के फैसला ककरा कहला पर भेल? दू साल पहिले आयोगक प्रारंभिक परीक्षा में एप्टिट्यूड टेस्टक नाम पर अंग्रेजीक ज्ञान अनिवार्य कय देल गेल छल। संसद में अहि पर सेहो  सवाल उठवाक चाहि छल बहरहाल, ई नीक गप्प अछि की आयोगक विवादित अधिसूचना पर संसद में भेल बहस  अंग्रेजी बनाम हिंदीक रूप नहीं लेलक; गैर-हिंदी भाषी राज्य, एतय तक  कि एक समय हिंदी-विरोधक झंडा उठा  चुकल तमिलनाडुक सांसद सेहो जोर-शोर अधिसूचना के वापस लईक मांग केला। जयललिता पहिनहे केंद्र के पत्र लिख विरोध जता चुकल छाईथ।
पर बहस आयोगक परीक्षाओं तक सीमित नहीं रहबाक चाहि। अंग्रेजीक वर्चस्व  बढ़ी रहल अछि आ संगही सब भारतक भाषाक उपेक्षा सेहो बढ़ी रहल अछि। किछ  राज्य के छोड़ उच्च न्यायालय में भारतीय भाषा में बहसक इजाजत नहीं अछि। फैसला अंग्रेजी में लिखल जाईत अछि अंग्रेजीक बोलबाला न्यायपालिका   ल क  प्रशासन  शिक्षा तक, हर तरफ नजर आवैत अछि। प्राथमिक  शिक्षा  तक  के  माध्यम  काफी  पैघ स्तर पर अंग्रेजी भ गेला। की  दुनियाक कोनो और लोकतांत्रिक देश में लोग के भाषाक  मामला में एतेक अधिकार-विहीन कायल गेला? सब पार्टियां सुशासनक बात करैत अछि आ सामाजिक न्यायक  सेहो मुदा ओ शासन-प्रशासनक अंग्रेजीपरस्ती भाषा के लिहाज होई वाला अन्याय पर चुप छाईथ।