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Friday, October 18, 2013

कोजागरा पर सगरो छिड़आयत हँसी

 आसिन मासक पूनिम केर चान अपन मुस्की सगरो बाँटत। धरतीक कण-कणकेँ अपन इजोरियासँ स्नान करा जुड़ा देत। ओ अपन अमृत कलश छिलकेता। लोक मान्यताक अनुसार
आश्विन पूर्णिमाक राति चान अमृत बरसबै छथि। एमहर धरतीक चान फोँका मखान सेहो अपन हँसी छिड़िआयत। ओकरा संग दहीक मटकूर किंवा छाँछी आ बताशा ठहक्का लगायत। ई सभ होयत नव विवाहित वरक लेल मिथिलाक प्रसिद्ध पर्व कोजागरापर। ई पाबनि तँ होइ छनि ओहि नव विवाहित वरक लेल जिनक विवाहित जीवनमे कोजागरा पहिले-पहिल अबैत अछि, मुदा एहिमे समवेत होइत अछि सम्पूर्ण समाज जे पूनिम केर चान, मखान, दही आ बताशाक हँसीक फुहारसँ तितैत ओहिमे अपन उछाह घोरि दैत अछि आ धरतीपर उतरि अबैत अछि स्वर्गक आनन्द।
धर्म प्रधान भारत राष्ट्रे जकाँ मिथिलोमे ओना तँॅ प्रतिदिन कोनो ने कोनो अवसर रहिते अछि जकरा लोक आनन्द-उत्साह आ आस्था-विश्वासक संग मनबै छथि। मिथिलाक अपन विशिष्टता रहल अछि जे ई जन-जीवनक प्राय: सभ पक्षकेँ अपना दृष्टिसँ देखलक अछि आ तदनुकूल अपन स्वतंत्र चिन्तन सेहो रखलक अछि। गीत-संगीत, ज्योतिष सहित विभिन्न क्षेत्रमे एकर बेछप छवि चर्चित रहल अछि। आर तँ आर मिथिला पाबनि-तिहार पर्यन्तमे अपन स्वतंत्र उपस्थिति अंकित केलक। बहुत रास एहन पाबनि अछि जे मिथिलेमे मनायल जाइत अछि। एहिमे दू गोट एहन प्रमुख पाबनि अछि जे नव विवाहित दम्पती लेल होइत अछि जिनका विवाहित जीवनमे ई प्रथमे अबै छनि। पहिल अछि ‘मधुश्रावणी’ जे नव विवाहिता कनिञा लेल होइत अछि आ दोसर ‘कोजागरा’ जे नव विवाहित वर लेल होइत अछि। दुनू पाबनि वर-कनिञा अपना नैहरमे मनबै छथि। दुनू पाबनिमे सासुरसँ पूजन सामग्री आ चुमाओनक डाला सहित घर-घरायन लेल नव वस्त्र तथा मधुर आदिक भार अबैत अछि। मधुश्रावणी महिला लोकनिक बीच आ कोजागरा महिला-पुरुष नेना-भुटका सभक लेल।

सासुरक दूभि-धानसँ होयत चुमाओन

कोजागरामे वरक सासुरसँ चुमाओन लेल दूभि-धान आ मधुर आदिसँ सजल डाला अबै छनि। एहिपर मखान, मखानक माला, घुनेश, चानीक कौड़ी, नारियर, केरा, दहीक छाँछ, पान, गोटा सुपारी, लौङ, इलायची आदिक संग विभिन्न तरहक मधुर फराक-फराक राखल रहैत अछि। पहिने तँ एहिपर सुपारीक गाछ, जनौ केर गाछ आदि सेहो रहैत छल जे एहि मैथिल ललनाक हस्तकलाक प्रतिभाकेँ मुखर करैत छल। आब एहिमे कमी आबि गेल अछि। डालापर लोक अपन साधंस केर हिसाबे आन-आन वस्तु सेहो सजबै छथि। एहि डालाक निरीक्षण सर-समाज करैत अछि। जे डाला जते पैघ आ नीक जकाँ सजाओल तकर तते प्रशंसा। एही डालाक दूभि-धान लऽ वरक घरक महिला लोकनि चुमाओन करै छथि आ पुरहर-पातिलक दीपसँ गाल सेदै छथि। परिवार आ सामजक वरिष्ठ पुरुष लोकनि दूर्वाक्षत मंत्रक संग दीर्घ ओ सुखी जीवनक आशीर्वाद दै छथि।
चुमाओन ओहिना नञि भऽ जायत। एहि लेल आङनमे अष्टदल अरिपन देल जायत जाहिपर डाला राखल जायत। पुरहर-पातिल आ कलशक अरिपन सेहो देल जायत। ओहिपर तरमे धान दऽ आमक पल्लव युक्त कलश प्रतिष्ठित होयत। पातिलमे दीप जरैत रहत। मिथिलाक पाबनि बिनु गीतक कोना भऽ सकैत अछि? से मैथिल ललना सभक मधुर स्वर वातावरणमे घोरायत आ चुमाओनक विधि
पूरा होयत।  

सार महोदय बनता कनिञा

पत्नीक भ्राता अर्थात् ‘सार’ शब्द कानमे पड़िते ठोर विहुँसि पड़ैत अछि। आ जँ हुनका कनिञा बना वरक संग बैसेबाक बात हो तँ मुस्की बदलि जाइत अछि ठहाकामे। से कोजागराक राति नव विवाहित वरक आङन नाँघि मैथिलानीक समवेत हँसी-ठहाका सगरो वातावरणमे पसरैत रहैत अछि। कोजागरा पाबनिक समय धरि कनिञाक दुरागमन नञि भेल रहै छनि। विवाहक चारिमे दिन दुरागमन करेबाक परम्परा आरम्भ हेबाक बादो अधिकांश ठाम ई लगले नञि होइत अछि। से कनिञा रहै छथि अपना नैहरमे। जखन वरक चुमाओन होइ छनि तँ असकर कोना हेतनि, बहुत ठाम कनिञाक स्थानपर कलशकेँ मानि लेल जाइत अछि तँ बहुतो ठाम कनिञाक स्थानपर सार महोदयकेँ बैसाओल जाइ छनि। हँ ई देखल जाइत अछि जे सार कनिञासँ छोट होथि। हुनका संग चौल करैत तौनी ओढ़ा घोघ कऽ देल जाइ  छनि आ सामूहिक हँसी-मजाकसँ घर-आङनक पोर-पोर आनन्दक सागरमे उभचुभ करऽ लगैत अछि।

बँटायत पान मखान-बतासा

आङनमे चुमाओनक विधि आ लक्ष्मीक पूजनक बाद दलानपर हबगब तेज भऽ उठत। वरक सासुरसँ आयल मखान, पान आ बतासा समाजक बीच बाँटल जायत। बारिक एकाँएकी सभक बीच ई बँटता। एहिमे नेना-भुटकाक उछाह कने बेसी छिलकैत रहत। एक संग पचासो हाथ बारिक सोझाँ आयत आ ओ सभपर थोड़े मखान आ बतासा राखि देता। पानक बारिक पान राखि देता। एहि लेल साँझे गाम-टोलमे हकार देल जायत। लोक बेराबेरी ओहि सभ दलानपर पहुँचि पान-मखान-बतासा लेता जाहि ठाम कोजागरा मनायल जायत। रोम-रोम झकझक देखार केनिहार इजोरियामे बहुतो मखान-बतासा खायब आरम्भ करता जकर ‘कुरकुर-कुरकुर’ ध्वनि आ हकार पुरनिहारक पानसँ रङल ठोर-दाँत घरवैयाकेँ तृप्त करतनि। बहुतो ठाम-ठामसँ मखान-बतासा लऽ ओकर छोट-छोट पोटरी बनेता। एके बेर कते खेता? पोटरी बनेबाक क्रममे नेना-भुटका केर मखान-बतासा छिटेबो करत जे अगिला भोर धरि मुस्कियाइत ओहि दऽ गेनिहार बटोहीक स्वागत करत।
होयत लक्ष्मी पूजन आ रात्रि जागरणा
ओना तँ दीपावलीक   राति लक्ष्मी-गणेशक पूजा सगरो होइत अछि। मिथिलोमे दीयाबातीक राति लक्ष्मी-गणेश पूजल जाइ छथि, मुदा एहि ठाम कोजागराक राति लक्ष्मी पूजन प्रशस्त अछि। एहि लेल दुआरिसँ भगवती घर धरि अरिपन देल जायत। चिनुआरपर सेहो अरिपन होयत। ओहि ठाम जल भरल लोटामे आमक पल्लव राखल जायत आ भगवतीकेँ घर करबाक विधि परिवारक वरिष्ठ महिला करती। मान्यता अछि जे कोजागराक राति लक्ष्मी घरे-घर बुलै छथि आ देखै छथि जे के जागल अछि-
निशीथे वरदा लक्ष्मी: कोजागर्तीति भाषिणी।
तस्मै वित्तं प्रयच्छामि अक्षै: क्रीड़ां करोति य:।।
एहि मान्यताक अनुरूप बहुतो रास लोक राति भरि जागरण करै छथि। जिनका ओहि ठाम पाबनि रहै छनि हुनक समय तँ हकार पुरनिहार सभक मखान-बतासा-पानसँ स्वागतमे बीति जाइ छनि, आ जिनका ओहि ठाम पाबनि नञि छनि ओहो पचीसी आदि खेलैत जागरण करैत माता लक्ष्मीक स्वागतमे राति बितबै छथि।
देओर-भाउजक
बीच पचीसी
कोजागराक राति देओर-भाउजक बीच पचीसीक खेल चर्चित रहल अछि। एहि खेलमे देओर-भाउज राति
 बितबै छथि।
एहि बीच हुनक हास-परिहाससँ वातावरण सराबोर होइत रहैत अछि, मुदा आब ई अपवादे भेटैत अछि। कारण मिथिलाक गाम-घर आब अपना लोकक बिनु उदास रहैत अछि। भाउज कोनो महानगरमे अपन पति आ बाल-बच्चाक संग बिता रहल छथि तँ देओर कतहु आन ठाम रोजी-रोटी लेल अपस्याँत छथि। यैह कारण अछि जे पहिने कोजागराक राति जतऽ घर-घर देओर-भाउजक बीच पचीसीक खेल होइ छल से समटा कऽ ओहि घरमे रहि गेल अछि जाहिमे ई पाबनि मनायल जाइत अछि। सेहो विधि पुरौअलि मात्र।
कौमुदी महोत्सवोक आयोजन
नव विवाहित केर ओहि ठाम मनाओल जायवला कोजागरा केर अतिरिक्त एहि पाबनिकेँ विभिन्न संस्था आ संगठन कौमुदी महोत्सवक रूपमे सेहो
मनबैत अछि।
अनेको साहित्यिक संस्था एहि अवसरपर कवि-गोष्ठीक आयोजन करैत अछि तँ राष्टÑीय स्वयंसेवक संघ सेहो एहि महोत्सवपर सामूहिक पायस भोजनक ओरियान करैत अछि। कोजागराक राति चन्द्रमाक इजोरियाक संग अमृत बरसबाक मान्यताक अनुरूप खुजल अकासक नीचाँ मखानक खीर बनाओल जाइत अछि। ओकरा बिनु झाँपन देने राखल जाइत अछि आ सभ मिलि-बाँटि खाइ छथि। पाबनिक अवसरपर लोक सभ अपना घरोमे खीर बनबै छथि।
आउ मिथिलाक एहि प्रसिद्ध पाबनिमे हमरो लोकनि सम्मिलित होइ। लक्ष्मीसँ सम्पूर्ण मिथिलापर कृपा दृष्टिक आशीर्वाद माङी। चन्द्रमासँ मिथिलाक धरतीपर अमृत-कलश उझीलि एकर पोर-पोरकेँ रसमय बनेबाक अनुनय करी जाहिसँ लहलहा उठय सभ फसिल। चली नव विवाहितक दलानपर धरतीक चान फोँका मखानक संग बतासा आ पान पाबि ली।

साभार : अमलेन्दु शेखर पाठक के ई लेख मिथिला आवाज में प्रकाशित अछि