"अपन भाषाक अखवार " मिथिला आवाज " पढवाक लेल क्लिक करू www.mithilaawaz.org E mail - sonumaithil@gmail.com Mobile-9709069099 & amp; 8010844191

Saturday, December 21, 2013

अयाची छात्रवृत्ति कार्यक्रम 29 दिसम्बरकेँ


समाजिक क्षेत्रक संस्था नव पल्लव वार्षिकोत्सव ‘नवश्रुति-2013’ केर आयोजन 29 दिसम्बर 2013केँ कान्स्टिटूशन क्लब रफ़ी मार्ग  स्पीकर हॉल  दिल्लीमे आयोजित करबाक निर्णय लेलक अछि। एहि अवसरपर ‘अयाची छात्रवृत्ति’ प्रदान कएल जाएत। ई छात्रवृत्ति कार्यक्रम दू श्रेणीमे दू चरणमे आयोजित होएत। पहिल श्रेणीमे दिल्ली एवं एनसीआर केर सरकारी विद्यालय सभमे अध्यनरत कक्षा 9 एवं 10 केर छात्र-छात्रा भाग लऽ सकता। दोसर श्रेणीमे दिल्ली एवं एनसीआर केर सरकारी विद्यालयमे अध्ययनरत कक्षा 11 एवं 12 केर छात्र- छात्रा अपन भागिदारी निश्चित कऽ सकैत छथि। चरण एकमे देल गेल विषयपर छात्र लोकनिकेँ हिन्दीमे एकटा निबन्ध लिखबाक होएत। पहिल श्रेणीमे शब्द सीमा 350-400 आ द्वितीय श्रेणीमे 550-600 शब्द होएत। निबन्ध केर विषय पहिल श्रेणी लेल ‘मेरे सपनों का भारत - मैं करूं भारत निर्माण’ आ द्वितीय श्रेणीमे  ‘भ्रष्टाचार- कारण और निवारण’ अछि। दोसर चरणमे देल गेल विषयपर व्याख्यान निश्चित समय सीमापर देबाक अछि। विषय पहिल श्रेणी लेल ‘यत्र नार्यस्तु पुज्यते, रमन्ते तत्र देवता:’ आ द्वितीय श्रेणी लेल ‘नारी के साथ दुर्यव्यवहार- कैसे हो इसका उपचार’ अछि। एहि चरण लेल समय सीमा प्रथम श्रेणी लेल 3.5 मिनट प्रति प्रतियोगी आ द्वितीय श्रेणी लेल 5 मिनट प्रति प्रतियोगी रहत। दुनू श्रेणीमेसँ सर्वश्रेष्ठ निबन्ध लिखऽ वला 10-10 छात्र/छात्राकेँ व्याख्यान प्रतियोगिता लेल नव श्रुति आयोजन स्थलपर 29 दिसम्बरकेँ बजाएल जाएत। आयोजन सचिव कृष्ण कुमार झा जनौलनि जे एहि प्रतियोगितामे भाग लेबा लेल कोनो फीस नहि लागत। व्याख्यान प्रतियोगितामे भाग लेबऽ वला छात्रमेसँ दू सर्वश्रेष्ठ छात्र/छात्राकेँ 500 प्रति मास एक बरख धरि छात्रवृत्ति देल जाएत। अन्य प्रतियोगीकेँ प्रोत्साहन पुरस्कार देल जाएत। ओ जनौलनि जे  ओ निबन्ध जे डाक, स्पीड पोस्ट, कूरियर अथवा अपने लऽ कऽ 23 दिसम्बर सायं छओ बजेसँ पहिले पहुँचि जाएत ओहि सभ निबन्धकेँ प्रतियोगितामे शामिल कऽ लेल जाएत। आयोजन सचिव विशेष रूपसँ कहलनि जे प्रत्येक प्रतिभागी अपन निबन्ध केर अन्तमे अपन नाम, कक्षा, रोल नम्बर, विद्यालय केर नाम एवं सम्पर्क हेतु मोबाइल वा फोन नम्बर देब नञि बिसरथि, आ निबन्ध विद्यालय केर प्रधानाध्यापक द्वारा सत्यापित हेबाक चाही।

निबन्ध पठेबाक पता  : कृष्ण कुमार झा (आयोजन सचिव), नव पल्लव‘अयाची छात्रवृत्ति योजना- 2013 प्लॉट न. 78-79, पॉकेट-सी 5, सेक्टर-11, रोहिणी, दिल्ली-110085, मोबाइल न. - 9950098757.

Wednesday, December 11, 2013

दिल्ली विधानसभा चुनाव में बाजल मिथिला केर सन्तानक विजयक डंका

  चुनावमे टूटल कतेको मिथक : सञ्जीव झा

भारतमे पहिल लोकतंत्रक ध्वज फहरेनिहार मिथिलाक युवा सपूत देशक राजधानी दिल्लीमे व्याप्त कदाचारक गन्दगीकेँ अपन झाड़ूसँ बहारि देबाक संकल्पक संग ओहि ठामक विधानसभामे प्रवेश केलनि अछि। एहि बेर भेल चुनावमे दिल्लीक बुरारी विधानसभा क्षेत्रसँ ‘आप’ सँ विजयी मधुबनी जिला केर भिट्ठी सुन्दरपुर निवासी सञ्जीव झासँ मैथिल गौरवान्वित भेला अछि। भिट्टी सुंदरपुर केर सुशील झा केर 4 पुत्रमे तेसर 34 वर्र्षीय सञ्जीव पिछला 12 सालसँ दिल्लीमे छथि। एमबीए करबाक बाद ओ बिरला ग्रुप केर शेयर ब्रोकिंग कम्पनीमे बिजनेस डेवलपमेण्ट आॅफिसरक रूपमे काज कऽ रहल छला।  ओ दिल्ली विश्वविद्यालयसँ एखन एलएलबी सेहो कऽ रहल छथि। एही बीच समाजसेवा दिस सेहो डेग बढ़ा देलनि जे हुनका राजनीतिक क्षेत्रमे सक्रिय हेबाक माध्यम बनल आ ओकर परिणति भेल अछि हुनक जनप्रतिनिधि बनब। राजनीतिक क्षेत्रमे सक्रियताक कारण सञ्जीव केर सभसँ पैघ भाइ अरुण झाक अपन गामक मुखिया होयब सेहो बनल। सञ्जीव झा केर रुचि समाजसेवामे छलनिहेँ जे हुनका जनलोकपाल आन्दोलनसँ प्रारम्भिके समयमे जोड़ि देलक। एहिसँ पहिने दिल्लीमे प्रवासी मैथिल लेल काज कऽ रहल संस्था ‘नव पल्लव’ सँ जुड़ला आ अद्यापि ओहि संस्थाक सक्रिय सदस्य छथि। दिल्ली सन महानगरक विधानसभामे प्रवेशक बादो ओ अपन सामाजिक गतिविधिसँ डेग पाछाँ नञि करबा लेल कृत संकल्पित छथि। बुरारी विधानसभा क्षेत्रसँ अपन निकटतम प्रतिद्वंद्वी भारतीय जनता पार्टी केर श्रीकृषणाकेँ 10,351 भोटसँ पराजित केनिहार सञ्जीव झा कहै छथि जे  ई विजय जनताक अछि। जनताक प्रसंग एकटा मिथक छल जे ओहो इमनदार नञि छथि। दिल्लीक जनता एहि मिथककेँ तोड़लक छि। ई प्रमाणित भेल अछि जे जँ जनताकेँ स्वच्छ छविक प्रत्याशी भेटता तँ ओ हुनका चुनता। हम सभ अपन जाहि बातकेँ लऽ कऽ जनता केर बीच गेल रही तकरा मतदाता स्वीकार केलनि।
मिथिला समाज केर सम्बन्धमे सञ्जीव कहलनि जे अपना समाजक प्रसंग सेहो एकटा मिथक छल जे मैथिल समाज कखनो एक नञि भऽ सकैत अछि, मुदा बुरारी केर हजारो प्रवासी मैथिल एहि चुनावमे एहू मिथककेँ तोड़ि देलनि। मिथिला आ मैथिल केर नाम पर मैथिल समाज सदैव एक संग ठाढ़ होइत अछि, एहि तथ्यकेँ दिल्ली केर मैथिल प्रमाणित केलनि अछि। सञ्जीव कहलनि जे हुनक विजयमे अपन मैथिल समाजक भूमिका सेहो अहम रहलअछि।  
सञ्जीव झा केर एहि विजयसँ दिल्लीमे हुण्डइ मोटरमे काज कऽ रहल हुनक भाइ नरेन्द्र सहित अन्य परिजन आ ‘नव पल्लव’ सँ जुड़ल सभ सदस्य गदगद छथि। ‘नव पल्लव’ केर सचिव भवन ठाकुर कहै छथि जे हुनका सभक लेल ई गौरवक विषय अछि जे हुनका सभक बीचसँ एक गोट युवा सदस्य आइ दिल्ली विधानसभामे बुरारी क्षेत्रक प्रतिनिधित्व करबा लेल पहुँचला अछि। हुनक एहि विजयसँ ‘नव पल्लव’ केँ सेहो नव उत्साह भेटल अछि। सञ्जीवजी आरम्भेसँ ‘नव पल्लव’ मे सक्रिय छथि। आब ओ आरो सक्रिय हेता। ‘नव पल्लव’ केर सदस्य नीरज पाठक, कृष्ण कुमार, रामचन्द्र झा, आशुतोष झा, सत्येन्द्र झा आदि सञ्जीवक एहि सफलताकेँ हुनक क्षेत्रक लेल तँ नीक मानिते छथि, दिल्लीमे रहि रहल प्रवासी मैथिल, खास कऽ युवा लेल महत्वपूर्ण मानै छथि।    

  रेकार्ड भोटसँ जितला अनिल झा

दिल्ली विधानसभा चुनामे रेकार्ड मतसँ विजयी भेनिहार विधायक मिथिले देलक अछि। किरारी विधानसभा क्षेत्रसँ विजयी अनिल झा मधुबनी जिला केर बेनीपट्टी बरहा गामक थिका। ओ लगातार दोसर बेर भारतीय जनता पार्टी केर प्रत्याशीक रूपमे  रेकॉर्ड मतसँ विजयी भेला अछि। अनिल झा अपन निकटतम प्रतिद्वंद्वी आम आदमी पार्र्टी केर रञ्जन प्रकाश के 48,526 रेकार्ड भोट सँ पछाड़लनि अछि। स्व. आनन्द मोहन झा आ निर्मला देवी केर तीन सन्तानमे सभसँ पैघ अनिल झा छात्र जीवने सँ राजनीतिमे सक्रिय छथि। ओ लगातार पाँच साल धरि अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषदसँ दिल्ली विश्वविद्यालय केर अध्यक्ष सेहो रहल छथि। श्री झा 2008 केर विधानसभा चुनावमे सेहो एहि क्षेत्रसँ अपार बहुमतसँ विजयी रहल छला। श्री झा ‘हमरासँ बात करैत कहलनि जे हुनका जनता केर जे आपार समर्थन भेटलनि अछि तकर पाछाँ एक मात्र कारण अछि विकास। अपना कार्यकालमे ओ बहुत विकासक काज केलनि अछि। लगभग 4000 सँ बेसी सड़क केर निर्माण ओ अपना क्षेत्रमे करेलनि। मिथिला आ मैथिलक प्रसंग हुनक कहब छलनि जे मिथिला केर जनता तँ हुनक रीढ़ छथि। ई जनता सभ खाद-पानि दऽ पोसलनि तखने तँ ओ गाछ बनला अछि। मिथिला आ मैथिल लेल ओ सदिखन सभसँ आगाँ ठाढ़ रहैत एला अछि। आगाँ सेहो एहिना रहत। उल्लेखनीय अछि जे विधायक श्री झाक पिता सेहो मिथिला-मैथिलीक प्रखर-मुखर सेनानी रहला। दिल्लीमे जहिया कहियो मिथिला-मैथिलीक कोनो गतिविधि भेल, आन्दोलन भेल आनन्द मोहन झा एहिमे सक्रिय सहभागिता देलनि। ओ आजीवन एहिमे जुटल रहला। अनिल झा अपन पिताक अभिलाषा मिथिला-मैथिली-मैथिलक उत्थानकेँ पूरा करबाक आकांक्षी छथि।  


  मिथिलाक बेटी वन्दना पछाड़लनि दिग्गजकेँ 

अपना कोखिसँ भगवती सीताकेँ उद्भूत केनिहारि मिथिलाक धरती एकसँ एक सुपुत्रीकेँ जन्म दैत रहली अछि जे देश-विदेशमे क्षेत्रक नाम जगजियार करैत रहली अछि। से सामाजिक, शैक्षिक, राजनैतिक आदि सभ क्षेत्रमे। मिथिलाक एहने बेटी छथि वन्दना कुमारी जे दिल्लीक चुनावमे शालीमार बाग विधानसभा क्षेत्रसँ विजय-केतु फहरेलनि अछि। 
ओ मुजफ्फरपुर जिलाक पारू प्रखण्डक छाप गाम निवासी स्व. ब्रजकिशोर शर्माक पुत्री छथि आ एखन दिल्लीक शालीमार बागमे पति सञ्जीव कुमारक संग रहै छथि। हुनक सासुर मुजफ्फरपुरक बथना गाम छनि। तीन बेर भाजपाक विधायक विधायक रहि चुकल रवीन्द्रनाथकेँ 10,712 भोटसँ पछारनिहारि वन्दनाकेँ राजनीति अपना पितासँ विरासतिमे भेटलनि अछि। हुनक पिता भारतीय जनता पार्टीसँ जुड़ाव रखै छला आ अपना समयमे राजनीतिमे नीक प्रवेश आ प्रभाव छलनि। ओना वन्दनाक रुचि राजनीति दिस नञि छलनि। ओ राजनीतिसँ अपनाकेँ फराक राखि किछु करऽ चाहै छली, मुदा ‘आप’ केर से बिहाड़ि उठल जे ओ अरविन्द केजरीवालक आह्वानपर अपनाकेँ नञि रोकि सकली आ चुनाव मैदानमे उतरि पड़ली। समरमे उतरली तँ फेर देखा देलनि जे मैथिलानी कोना विजयक डंका बजबै छथि, कोना दिग्गज पर्यन्तकेँ माटि धरा दै छथि। 

Saturday, November 30, 2013

अतीत पर गर्व, वर्तमान पर पीड़ा

आंखि स्क्रीन पर टिकल छल। मोन बेर-बेर एकटा गप दोहरा रहल छल- काश! अगर संरक्षण भेल रहिते त आइ हमर पहचान किछु आओर हाइते। दरभंगा क प्रशासनिक व्यवस्था हो वा फेर सुन्दर सरपट सड़क पर दौड़ैत बग्गी वा रोल्स रॉयल क नाचैत पहिया, सपना सन लागि रहल इ हकीकत कोनो सपना स कम नहि अछि। दरभंगा क बेला पैलेस स्थित विशेश्वर सिंह सभागार मे अपन स्वर्णिम अतीत कए देख सब स्तब्ध छल। दरभंगा फिल्म क्लब क तत्वावधान मे आयोजित वाइव्रेन्ट दरभंगा नामक एहि कार्यक्रम मे 1931 स 1941 क बीच बनल किछु फिल्म क 12 गुना 10 क स्क्रीन पर प्रदर्शन भेल त सभागार कई दशक पाछु चल गेल। ब्लैक एंड ह्वाइट क संगहि रंगीन फिल्म सेहो देखबा लेल भेटल। इ जरूर से एतबा पुरान फिल्म आजुक एचडी सन स्पष्ट नहि छल, बावजूद ओ अपन सुहनगर इतिहास कए देखा देलक जे देखि उत्साह स शरीर क एक एक टा अंग मे कंपन भ गेल। समारोहक क पहिल प्रस्तुति 1941 मे बनल फिल्म छल।  इ संभवत: भारत क पहिल रंगीन वीडियो अछि। एहि मे तात्कालिक राजकुमार जीवेश्वर सिंह क उपनयन देखाओल गेल। एहि अवसर पर करीब 130टा राजा दरभंगाक पाहुन बनल छलाह। हुनका सब लेल दरभंगा विशेष विमान क व्यवस्था केने छल, जेकर गवाह दरभंगा क एयरपोर्ट आ इ फिल्म अछि। एहि मे दरभंगाक ओ शान देखबा लेल भेटल जे आब खिस्सा भ चुकल अछि।
दोसर फिल्म ओहि कार्यक्रमक छल जाहि मे शामिल हेबा लेल भारत क वायसराय विटोरी दरभंगा भ्रमण पर आयल छलाह। एहि फिल्म सबहक माध्यम स कईटा नव जानकारी सेहो सभागार मे बैसल लोक सब कए प्राप्त भेल। जेना जखन देश मे केवल दूटा एयरलाईन्स कंपनी होइत छल तखन दरभंगा क अपन एयरलाइन्स कंपनी छल, जेकरा लग दर्जन भरि जहाज छल। समारोह मे देखाउल गेल फिल्म सब मे विदेशी मेहमान सब लेल आयोजित खास पार्र्टी, महमान लेल विशेष अतिथिशाला यूरोपियन गेस्ट हाउस क सुंदरता, मधुबनी स्थित राजनगर किला (जे 1934 क भूकम्प मे खण्डहर भ गेल) सेहो दिखबा लेल भेटल। स्थानीय विधायक संजय सरावगी क कहब छल जे राजनगर क महल क खूबसूरती भारत क कोनो महल क खूबसूरती कए चुनौती द रहल छल। ओ महल कए देख पूरा सभागार वाह आ ओह स्वर उदघोष केलक। समारोह मे सिंहद्वार क खूबसूरती कए देख बहुत लोकक आंखि नोरा गेल। समारोह मे देखाउल गेल अन्य फिल्म मे रेलवे क स्पेशल सैलून दरभंगा क हेरायल धरोहरक टीस जगा देलक। एकटा फिल्म दरभंगाक कारोबारी चेहरा कए उजागर केलक। जाहि कालखंड मे लोक चीनी स अपरिचित छल ओहि समय मे दरभंगाक लोक लोहट मे आधुनिक मशीन युक्त चीनी मिल लगाकए नहि केवल लोक कए चीनी देलक बल्कि लोक कए रोजगार आ किसान कए नकदी फसल देलथि। 1903 मे स्थापित भारत क पहिल अत्याधुनिक चीनी मिल देखबा लेल बिहारक तत्कालीन राज्यपाल क भ्रमण देखबा लेल भेटल। लोहट पर आधारित एहि सिनेमा स दरभंगा क नेतृत्वकर्ता क दूरदर्र्शी व्यावसायिक सोच देखबा लेल भेटल। कार्यक्रम क अंतिम प्रस्तुति एकटा एहन सिनेमा छल ले दरभंगाक बदलल भूगोल कए देखा देलक। एकटा रील मे पोलो क अंतराष्ट्रीय मैच, त दोसर रील मे फुटबाल मैच। पोलो मैदान मे विदेशी खिलाडी आ भारतीय खिलाडी क बीच भ रहल मैच क दौरान दर्शक क भीड़ देख वीरान पड़ल पोलो मैदान सभागार मे खेल प्रेमी लेल उदासी क माहौल बना देलक। भारतीय फुटबाल संघ क नींव सेहो दरभंगा मे राखल गेल छल, जे एकटा फिल्म क प्रदर्शन स बुझबा लेल भेटल। आइ दरभंगा टा नहि पूरा देश इ बिसरि गेल अछि। संघ क पहिल अध्यक्ष विश्वेश्वर सिंह क नाम पर शुरू भेल कप बन्द भ गेल, जखनकि पहिल सचिव क नाम पर शुरू सन्तोष ट्रॉफी आइ तक आयोजित भ रहल अछि। समारोह मे राज परिवारक संग संग दरभंगा कए बनेबा मे जाहि परिवार सबहक योगदान रहल ओहि परिवार क वंशज सब कए विशेष रूप स आमंत्रित कैल गेल छल। मंच स कार्यक्रम क उद्घोषक आ सूत्रधार आशीष झा कहला जे एहि कार्यक्रम क उद्देश्य केवल इतिहास स साक्षात्कार नहि छल बल्कि वर्तमान कए सुंदर बनेबाक कोशिश सेहो अछि। इस अवसर नगर विधायक संजय सरावगी कहला जे अगर हम धरोहर कए निर्माण नहि क सकैत छी त कम स कम एहि धरोहर सब कए नष्ट करबाक काज सेहो नहि करि। ओ धरोहरक संग भ रहल उपेक्षा कए रेखांकित करैत एकरा शीघ्र बंद करबाक मांग केलथि। संस्कृत विश्वविद्यालय क कुलपति डॉ रामचंद्र झा कहला जे इ भूमि ज्ञान क केंद्र रहल अछि आ ओ दिन जरूर आउत जहिया इ भूमि फेर स ज्ञान क केंद्र बनत। एहि मौका पर कईटा गणमान्य लोेक उपस्थित छलथि। कार्यक्रम क आयोजक मिराज सिद्दिकी धन्यवाद ज्ञापन केलथि। दरभंगा लेल सामान्य कार्यक्रम स अलग भेल एहि कार्यक्रम कए देखि सभागार स निकलल एक एक टा दरभंगवी क चेहरा पर गौरवशाली अतीत क गर्व आ वर्तमान क पीड़ा क मिश्रण भाव साफ देखा रहल छल।

साभार : हमर अहि लेख के सम्पादित अंश ई-समाद.कॉम पर प्रकाशित अछि.  

Thursday, November 28, 2013

मूक रहितो फिल्म बाँचि रहल छल स्वर्णिम अतीत

‘वैवरेण्ट दरभंगा’ केलक अभिभूत

दरभंगा, 28 नवम्बर,  फिल्ममे हवाइ जहाज उड़ि रहल छल आ लोकक मन सिहा रहल छल। तहिया आइ सन संसाधन नञि छल आ दरभंगाक हवाइ अड्डासँ एक-दू नञि कतेको जहाज उड़ि रहल छल, उतरियो रहल छल। जे असलीहत छल से आइ सपना अछि। दरभंगावासी देखि रहल छला लक्ष्मीश्वर विलास, राजनगरक ऐतिहासिक आलीशान भवन, मन्दिर, हाथी आ घोड़ा, पोलो खेलाइत महाराज आ अंग्रेज लोकनिकेँ, फुटबालक राष्ट्रिय मैच आदि। भखरल वर्त्तमान दर्शककेँ हठात् स्वर्णिम अतीतपर विश्वास नञि जमऽ दऽ रहल छल, मुदा छल सत्य। ई सत्य गौरवशाली अतीतसँ सभक आँखिमे चमक भरि रहल छल तँ धरोहरिक उपेक्षा केर वर्त्तमान सभकेँ विषादसँ सेहो भरि रहल छल। फिल्म मूक रहितो बहुत किछु बाजि रहल छल। अवसर छल बृहस्पतिकेँ पीटीसीक ऐतिहासिक विशेश्वर सिंह सभागारमे दरभंगा फिल्म क्लब आ ई समाद दिससँ आयोजित ‘वेवरेण्ट दरभंगा’ केर। आइसँ 72 बरख पूर्वक रंगीन वीडियो केर माध्यमे वैभवशाली अतीत आ एहिमे समाजक सभ वर्गक सहभागितासँ परिचित करबैत वर्त्तमानकेँ सम्हारबा लेल जागरूकताक सनेस देनिहार एहि आयोजनमे फिटिन, बग्गी, लखमाणी परिवारक सहयोगेँ चिमनीसँ बहाराइत धूआँ, लोहट चिन्नी मिलक निरीक्षण, जीबी डेनवीक आगमन, जीवेश्वर सिंहक उपनयन, दरभंगा जंक्शनपर वायसराय लार्ड लेनलीथगो केर आगमन, प्रशासकीय व्यवस्था आदिक चित्र दर्शककेँ भाव-विभोर केलक। ओतहि दरभंगामे गठित इण्डियन फुटबॉल एसोसिएशनक बेला पैलेसमे भेल पहिल मैचसँ सेहो दर्शक परिचित भेला। एहि अवसरपर तेजकर झा आ सञ्चालन करैत ई समादक आशीष झा फिल्मक प्रसंग बहुत रास जनतब देलनि। संगहिँ एहिपर दुख प्रकट केलनि जे फुटबॉल एसोसिएशनक प्रथम अध्यक्ष राजकुमार विशेश्वर सिंहक नामपर शुरू भेल विश्वेश्वर कप बन्न भऽ गेल। ओ स्थानीय लक्ष्मीश्वर सिंह पब्लिक लाइबे्ररीमे पड़ल धूरा फाँकि रहल अछि ओतहि ओही एसोसिएशनक सचिव महाराजा सन्तोष सिंहक नामपर एखनो ट्राफी चलि रहल अछि। उपेक्षाक बादो किछु दिन पूर्व संस्कृत विविक भवनकेँ एक सर्वेमे 15 महलमे 15म स्थान भेटल जँ संरक्षित रहैत तँ कोना स्थान भेटैत?  एहि अवसरपर कासिंद संस्कृत विविक कुलपति डॉ. रामचन्द्र झा, नगर विधायक सञ्जय सरावगी, पूर्व मेयर ओमप्रकाश खेड़िया धरोहरिक सुरक्षा आ दरभंगाक विकास लेल समवेत प्रयासक बात कहलनि। ओतहि विजय बैरोलिया दरभंगामे पहिल बेर इजोत अनबा लेल अपन पूर्वज कृष्णा बैरोलियाक अवदानकेँ सार्वजनिक रूपसँ राखल जेबासँ अभिभूत छला। आयोजनमे मेराज सिद्दीकी, गौतम,  प्रभाकर झा आदिक सक्रिय सहयोग रहल।

Friday, November 15, 2013

दिल्ली में दू दिवसीय मिथिला महोत्सव काल्हिसँ

नई दिल्ली, अखिल भारतीय मिथिला संध केर तत्वाधान में आईसँ  राष्ट्रिय राजधानी दिल्ली के मावलंकर ऑडिटोरियम में  दू दिवसीय मिथिला महोत्सव मनाओल जायत। कार्यक्रम के उद्घाटन दिल्ली के मुख्यमंत्री शीला दीक्षित करती। विशेष अतिथि मैथिली -भोजपुरी अकादमी केर अध्यक्ष  अजित दुबे आ आम्रपाली ग्रुप के एमडी अनिल शर्मा रहता। पहिल दिनक कार्यक्रम केर पहिल सत्र में स्वतंत्रताक आन्दोलन मे मिथिलाक योगदान, मिथिला मे कीर्तन परम्परा, मैथिली पारम्परिक गीत मे सीता, मिथिलाक लोक संस्कृति, ज्योतिरीश्वर एवं विद्यापति कालीन सामाजिक स्थिति सन गंभीर विषय पर चर्चा होयत । जाहि में  गंगेश गुंजन,  महेंद्र मलंगिया, देवशंकर नवीन,  प्रदीप बिहारी आदि भाग लेतथि। साँझ चारि बजे स’ लोकनाट्य आ सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजनक कायल जायत जाहि मे रंगमंच बेगुसराय केर द्वारा नाटक,  जट – जटिन आ मधुबनी सँ आयल टीम केर द्वारा पमरिया नाच देखबाक सू अवसर दिल्ली वासी के भेटतन्हि। संगहि मैथिली केर प्रसिद्द गायक नंद जी, सुनील पवन, रश्मि दत्त, सियाराम झा सरस आदि केर गायन केर प्रस्तुति सेहो होयत।  
अगिला दिन 17 नवम्बर क’ हिन्दी भवन मे 12 बजे दिन स’ शुरु होयत मिथिला फिल्म महोत्सव । जाहि मे लगभग दस टा मैथिली वृत्तचित्र देखाओल जायत । संग संग एहि फिल्म पर विचार विमर्श सेहो चलैत रहत । 

Wednesday, November 13, 2013

उत्तिष्ठ-उत्तिष्ठ गोविन्द देवोत्थान एकादशी आइ

कार्त्तिक मासक शुक्ल पक्षक एकादशी तिथिकेँ देवोत्थान व्रत कयल जाइत अछि। मान्यता अछि जे आषाढ़ शुक्ल एकादशीकेँ भगवान शयन करै छथि आ भाद्र शुक्ल एकादशीकेँ करोट फेरै छथि। ओतहि कार्त्तिक शुक्ल एकादशीकेँ जगै छथि। एहि तीनू एकादशीकेँ फराक-फराक नामसँ सम्बोधित कयल जाइत अछि। जहिया भगवान सुतै छथि से हरिशयन एकादशी, जहिया करोट फेरै छथि से पार्श्व परिवर्त्तिनी-कर्माधर्मा एकादशी आ जहिया जगै छथि ओ देवोत्थान एकादशीक नामसँ प्रसिद्ध अछि। एहि सभ एकादशीमे व्रत कयल जाइत अछि।  
देवोत्थान एकादशीमे व्रत करबा लेल एकादशी द्वादशी युक्त ग्रहण करबाक चाही। जँ एकादशी तिथिमल रूपी हो तँ तथापि सैह ग्राह्य मानल गेल अछि। कहल गेल अछि जे तिथिक मान एक दिन 60 दण्ड हो तथा दोसर दिन उदय समयमे किछु काल हो तँ ओ तिथि मल कहल जाइत अछि जे व्रतमे त्याज्य थिक, मुदा एकादशीक तिथिमलो व्रतमे ग्राह्य थिक। हँ, दशमी विद्धा एकादशी व्रत दोषपूर्ण मानल गेल अछि। एकादशी व्रतक पूर्वक दिन अर्थात् दशमी आ परवर्ती दिवस अर्थात् द्वादशी दिन एकभुक्त करबाक विधान अछि-
दशम्यां नरशार्दूल! द्वादस्यामपि वैष्णव:।
सम्यग् व्रतफलं प्रेप्सुर्नकुर्यान्नशि भोजनम्।। 
देवात्थान एकादशी दिन मिथिलामे घरे-घरे लोक भगवानक पूजा-अर्चना करै छथि। जतऽ भगवानकेँ जगायल जाइ छनि ओतहि भगवतीकेँ घर करबाक पारम्परिक विधान सेहो होइत अछि। आङनमे तुलसी चौड़ा लग पिठारसँ गृहस्थीक यावन्तो वस्तुक अड़िपन दऽ सिन्दुर लगा एक गोट अष्टदल अरिपन देल जाइत अछि। ओहि अरिपनपर एक गोट पीढ़ी राखल जाइत अछि। ओहि पीढ़ीमे सिन्दुर-पिठार लगा ओकरा चारू कात कुशियार आदिसँ मण्डप बनाओल जाइत अछि। साँझमे तुलसीचौड़ा लग पूजाक यावन्तो सामान फूल, चानन, धूप, दीप नैवेद्य तिल, तुलसीक मज्जर, फूल, माला आदि व्यवस्थित कयल जाइत अछि। नैवेद्यमे सामयिक वस्तु अल्हुआ, सुथनी, सिंहार आदि सेहो रहैत अछि। पीढ़ीक चारू कोनपर दीप देल जाइत अछि। तुलसी चौड़ा आ गोसाउनिक घरमे दीप जरायल जाइत अछि। व्रती स्नानादि कऽ आसनपर बैसि पञ्चदेवताक पञ्चोपचार पूजा करै छथि आ विष्णुपूजा कऽ भगवानकेँ उठेबाक मंत्र पढ़ि हुनका जगबै छथि। नक्त व्रत केनिहार साँझमे फलहार करै छथि आ पूर्ण व्रती राति भरि उपासमे रहि प्रात: काल ब्राह्मण भोजन करा पारण करै छथि। ओहि मण्डपमे पूजा-अर्चना कऽ भगवानकेँ मंत्रक संग उठाओल जाइ छनि। 
भगवानकेँ उठेबाक मंत्र :
ऊँ ब्रह्मेन्द्र  रुद्रैरभिवन्द्यमानो  भवान  ऋषिर्वन्दितवन्दनीय:। 
प्राप्तां तवेयं किल कौमुदाख्या जागृष्व-जागृष्व च लोकनाथ।।
मेघागता   निर्मल   पूर्ण   चन्द्र:   शरद्यपुष्पाणि  मानोहराणि। 
अहं   ददानीति   च   पुण्यहेतोर्जागृष्व   च   लोकनाथ।। 
उत्तिष्ठोत्तिष्ठ गोविन्द! त्यज निद्रां जगत्पते। 
त्वया चोत्थीयमानेन उत्थितं भुवनत्रयम्।। 
एमहर साँझमे भगवतीकेँ घर करबाक पारम्परिक विध सेहो होइत अछि। तुलसी चौड़ा लगसँ गोसाउनक चिनुआर धरि पैरक छाप केर अरिपन देल जाइत अछि आ सिन्दुर-पिठार लागल अछिञ्जल भरल लोटासँ भगवतीकेँ घर करबाक विध पूरा कयल जाइत अछि। भगवानकेँ चढ़ाओल गेल प्रसादक वितरण अपना सर-कुटुम आ समाजक बीच कयल जाइत अछि। मिथिलामे कोनो पाबनि हो आ गीत नञि हो ई कोना भऽ सकैत अछि। बहुत ठाम भगवानक गीत-गायनक परम्परा सेहो अछि।

साभार :  मिथिला आवाज़ मैथिली दैनिक समाचार में प्रकाशित 

Monday, November 11, 2013

आउ संकल्प ली आ बचाबी बहिन सामाकेँ

जँ भ्रूण हत्या करैत रहब, गर्भेमे कन्या-भू्रणकेँ चीन्हि ओकरा नष्ट करैत रहब तखन कोना होयत सामा-चकेवाक ई पर्व? जखन कन्याकेँ उकन्नन करैत रहब तँ भ्रातृ द्वितीया, सामा-चकेवा, रक्षाबन्धन आदि सभक उठाव भऽ जायत। बेटीक अभावमे बेटा सेहो नञि होयत। हमरा लोकनि लेल बहिन कते मंगलकामना करै छथि से रातिमे कने कान पाथि सुनी आ विचार करी, की हमरा लोकनि अपना बहिनक लेल किछु नञि कऽ सकै छी? की हुनक कल्याण-कामना हमरा सभक दायित्व नञि? आउ सामा-चकेवाक एहि पुनीत पर्वपर संकल्प ली जे लिंग परीक्षण कऽ कन्या-भ्रूण हत्यामे हमरा लोकनि रञ्चो मात्र लेल सहभागी नञि होयब। आन भायकेँ सेहो एहि लेल टोकि तँ सकिते छी। जँ एको गोट सामाकेँ धरतीपर एबाक अधिकारसँ वञ्चित करबाक कुत्सित प्रयास हमरा लोकनि रोकि लै छी तँ सत्ते अपन दायित्वक निर्वाह कऽ सकब आ अपना जीवनकेँ धन्य कऽ सकब। 


 रातिक नीरवतामे  बहिन लोकनिक समवेत स्वर पसरब शुरू भऽ गेल अछि। छठिक पारण केर रातिएसँ बहिन लोकनि एकठाम जमा भऽ सामा खेलब आरम्भ कऽ देलनि अछि। भाइ केर दीर्घ जीवन, हुनक सुयश, हुनक समग्र विकास, हुनक गुणक बखान करैत बहिन लोकनिक सामूहिक गीत-स्वर वातावरणमे मिसरी घोरि रहल अछि- ‘गाम के अधिकारी तोँहे बड़का भैया हो...।’
एकरा संगहिँ झरकाओल जा रहल अछि ‘चुगिला’ केर मुँह। बहिन लोकनि ‘साम-चक साम-चक अबिहऽ हे...’ केर संगहिँ माटिक बनाओल कुरूप चुगिला केर मुँह झौँसैत गाबि रहल छथि- ‘इण्डामे गरइ छपपट करै चुगिला केर बहुआ साँझे मरै।’
सगरो मिथिलामे सामा-चकेबा खेलबामे बहिन लोकनि जूटल छथि। से पहिल दिन अबोध बहिन सेहो सामा छूलनि तँ वयोवृद्धा बहिन सेहो। सभ अपन भाइ केर नाम लऽ हुनक कल्याण-कामनामे जुटल छथि। हालेमे जन्म लेनिहार भाइ होथि आ कि एहन वयोवृद्ध भाइ जिनका मुँहमे एगो गोट दाँत नञि बचल होनि सभक नाम गीतमे बहिन लोकनि लऽ रहल छथि। 

पद्मपुराणमे वर्णित अछि कथा 

ओना एकरा लोकपर्व कहि सम्बोधित कयल जाइत अछि, मुदा एकर सम्बन्ध पद्मपुरणाक कथासँ अछि। ओहिमे वर्णित अछि जे भगवान श्रीकृष्णकेँ जाम्वती नामक स्त्रीसँ एक पुत्र आ एक पुत्र छलथिन। पुत्रक नाम छलनि साम्ब आ पुत्री छलथिन सामा। सामा केर विवाह चारुवक्त्रसँ भेल छलनि जे जनकण्ठमे चकबा नामसँ विराजमान छथि। सामाकेँ वृन्दावनसँ अत्यधिक स्नेह छलनि। ओ नित्य वृन्दावन जाथि आ ओहि ठाम सप्तर्षि लोकनिक दर्शन करथि आ कथा-पुराण सुनि घुरि आबथि। एहि बातकेँ चूड़क (चुगिला) नोन-मिर्चाइ लगा श्रीकृष्णकेँ कहलथिन जे सामा चोरा-नुका कऽ वृन्दावन जाइ छथि। चूड़क तेना एहि बातकेँ रखलक जे श्रीकृष्ण क्रोधित भऽ गेला। ओ सामाकेँ श्राप दऽ देलथिन जे अहाँ चोरा-नुका कऽ वृन्दावन जाइ छी तँ पक्षी बनि जाउ आ वृन्दानवनमे वास करू। एहि शापसँ सामा पक्षी भऽ गेली। श्रीकृष्णक एहि श्रापसँ सामाक पति चारुवाक्त्र अत्यन्त दुखी भेला। ओ महादेवक तपस्या आरम्भ केलनि। महादेव प्रसन्न भऽ वरदान मङबा लेल कहलथिन तँ ओ कहलनि जे भगवान श्रीकृष्णक शापसँ हुनक प्रिया सामा पक्षी भऽ गेली अछि तेँ शिव हुनको पक्षी रूप देथि, जाहिसँ ओ वृन्दावनमे हुनका संग रहि सकथि। तखन महादेव हुनका चक्रवाक (चकवा) पक्षी बना देलथिन। ओ सामाक संग वृन्दावनमे रहऽ लगला। एमहर साम्ब ओहि समयमे बाहर छला जखन ई घटना भेल छल। घुमला तँ सभटा जतनब भेलनि जाहिसँ ओ अत्यन्त दुखी भेला। दुखी साम्ब बहिन-बहिनोइ केर उद्धार लेल श्रीकृष्णक आराधना आरम्भ केलनि। पिता श्रीकृष्ण हुनक तपश्चर्यासँ प्रसन्न भेलथिन आ वरदान मङबा लेल कहलथिन। तखन साम्ब अपन बहिन-बहिनोइ केर उद्धार लेल निवेदन केलथिन। एहिपर श्रीकृष्ण कहलथिन ‘कार्त्तिक मास हमर प्रिय अछि। तेँ कार्त्तिक मासक कृष्ण पक्षक पड़िवमे खढ़क वृन्दावन, सप्तर्षि, सामा, चकबा आ अहाँक माटिक मूर्त्ति बना नित्य पूजा करथि। गामक बाहर खेतमे ओकरा घुमावथि। माटिक चुगिला बनाबथि आ ओकर मुँह झरकाबथि। कार्त्तिक पूर्णिमाकेँ मूर्त्ति सभक विसर्जन करथि आ भायकेँ मधुर आदि भोजन कराबथि। तखन सामा शाप मुक्त हेती। ’भगवान श्रीकृष्णक निर्देशक आलोकमे साम्ब अपना देश भरिमे स्त्रीगण लोकनिसँ कार्त्तिक मासमे सामा केर पूजन करेलनि जाहिसँ सामा आ चक्रवाक शाप मुक्त भेला। सामा अपना भाइकेँ आशीर्वाद दैत कहलथिन जे कार्त्तिक मासमे जे कोनो बहिन सप्तर्षिक संग हुनक भाय साम्ब आ हुनक पूजन करती तिनका हुनके सन भाय प्राप्त हेथिन आ ओ सोहाग आ सन्तानसँ भरल-पुरल रहती। पद्मपुरणाक एही कथाक आधारपर सामा-चकेवाक खेल कार्त्तिक मासमे पूर्णिमा धरि बहिन लोकनि पूरा मनोयोगसँ करै छथि। एहि कथानकमे इहो जनश्रुति जुड़ल अछि जे चूड़क वृन्दावनमे आगि लगा सामा आ चक्रवाककेँ डाहबाक प्रयास केलक, मुदा तेहन बरखा भेल जे ओ किछु नञि बिगाड़ि सकल। भाय साम्ब आ बहिन सामाक स्नेहकेँ अपना जीवनमे साकार करबाक अभिलाषासँ बहिन लोकनि आइयो सामा-चकेवाक खेलमे जुटल छथि। बहुत रास बहिन लोकनि अपने हाथे माटिक सामा बनेलनि अछि तँ अधिकांश कुम्भकार द्वारा विभिन्न रंगसँ ढेउरल आकर्षक सामा-चकेबाक मूर्त्ति कीनि हिनक पूजनमे जुटल छथि। सामा-चकेवा संग झाँझी कूकुर, सप्तर्षि, सतभैया चिड़ै, खुरुचि भैया, बाटो बहिन आदि बनाओल गेल अछि। एकरा संगहिँ नव खढ़, सण्ठी आदिसँ वृन्दावन आ पटुआ केर दाढ़ी-मोछक संग चुगिला बनाओल गेल अछि। नित्य रातिमे भोजन-छाजनसँ निश्चिन्त भऽ बहिन लोकनि सामाक डाला माथपर लऽ गामक चौबटिया अथवा कोनो खेतमे जुटै छथि। एकठाम सभ सामा रखै छथि आ एक-दोसराक हाथमे सामा दैत ओरा फेरैत वातावरणमे गीतक मधु-स्वर घोरै छथि- ‘साम फेरलो ने जाय...।’ एहिमे गामक धी-बेटीक सहभागिता तँ अछिए, गामक पुतहु लोकनि सहो जुटल छथि। पुतहु बेसी दूर खेते-खेते नै जेती तेँ घरो लग सामा-चकेवा खेलल जा रहल अछि। एहि लेल बहिन लोकनि नैहर आयल छथि तँ गामक कतेको पुत्रवधू अपना नैहर गेल छथि।

हँसीसँ सरावोर होइत अछि राति 

सामा-चकेवाक खेलक क्रममे ननदि-भाउजक परिहासपर राति सेहो मुसुकि उठैत अछि। ओतहि जखन बहिन लोकनि वृन्दावन जरा ओकरा मिझबैत गबै छथि ‘वृन्दावनमे आगि लागल क्यौ ने मिझाबय हे...’ तँ भाय-बहिनक स्नेहसँ अभिभूतो होइत अछि। बहिन लोकनि जखन चुगिलाक मुँह झरकबैत ओकर अकल्याणक   कामना करै छथि ‘धान-धान-धान भैया कोठी धान, भुस्सा-भुस्सा-भुस्सा चुगिला कोठी भुस्सा’, ‘चुगिला करय चुगलपन बिलैया बाजय म्याउँ धऽ ला चुगिलाकेँ फाँसी देउँ’ तँ वातावरण बहिन लोकनिक समवेत हँसीसँ सराबोर भऽ उठैत अछि। आनन्दपूर्ण एहि प्रक्रियाक बाद सामाक डाला लऽ बहिन लोकनि घर घुरि जाइ छथि। सामाक डालाकेँ शीतेमे राखल जाइ छनि। 


पूर्णिमाकेँ डोलीपर बिदा हेती सामा 

सामा-चकेवाक ई खेल पूर्णिमासँ एक दिन पूर्व धरि चलत। पूर्णिमाकेँ भाइ केरा केर थम केर डोली बनेता। ओहिपर सामा राखल जेती। जेना बेटी-धी केर विदागरी होइ छनि तेना हुनक खोँइछ भरल जेतनि। चूड़ा-दहीक भोग लगतनि। भाय डोलीकेँ कान्ह लगा पोखरि किंवा कोनो धारक कात धरि पहुँचेता। ओहि ठाम मूर्त्तिक विजर्सजन होयत। कतेको ठाम मूर्त्तिकेँ भाय तोड़ै छथि आ ओकरा खेत आदिमे माटिक तर गाड़ि देल जाइत अछि। एकर बाद बहिन मुरही, बतासा, लड्डू आदिसँ अपना भाइ केर फाँड़ भरती। एकरा संगहिँ भाय-बहिनक एहि मुधर प्रेमक पर्व सामा-चकेवाक समापन होयत। 

बहिन रहती तखन ने सामा 

हमरा लोकनि भाय-बहिनक एहि स्नेहिल पर्वमे तँ समवेत छीहे। बहिन लोकनिक अपना गीतमे हमरा सभक नामोल्लेख करैत हमरा सभक कल्याण-कामना कैए रहल छथि। हमरा लोकनि सामाक विसर्जनमे तँ सहभागी हेबे करब, मुदा जे वर्त्तमान जा रहल अछि ताहिमे सामा-चकेवाक ई पर्व एहिना चलैत रहत? हमरा लोकनिकेँ जेना बेटी-बहिनसँ अभाँछ भेल जा रहल अछि तेनामे तँ ई पाबनिए समाप्त भऽ जायत। जी हँ, एही तरहेँ जँ भ्रूण हत्या करैत रहब, गर्भेमे कन्या-भू्रणकेँ चीन्हि ओकरा नष्ट करैत रहब तखन कोना होयत सामा-चकेवाक ई पर्व? जखन कन्याकेँ उकन्नन करैत रहब तँ भ्रातृ द्वितीया, सामा-चकेवा, रक्षाबन्धन आदि सभक उठाव भऽ जायत। बेटीक अभावमे बेटा सेहो नञि होयत। हमरा लोकनि लेल बहिन कते मंगलकामना करै छथि से रातिमे कने कान पाथि सुनी आ विचार करी, की हमरा लोकनि अपना बहिनक लेल किछु नञि कऽ सकै छी? की हुनक कल्याण-कामना हमरा सभक दायित्व नञि? आउ सामा-चकेवाक एहि पुनीत पर्वपर संकल्प ली जे लिंग परीक्षण कऽ कन्या-भ्रूण हत्यामे हमरा लोकनि रञ्चो मात्र लेल सहभागी 
नञि होयब। आन भायकेँ सेहो एहि लेल टोकि तँ सकिते छी। जँ एको गोट सामाकेँ धरतीपर एबाक अधिकारसँ वञ्चित करबाक कुत्सित प्रयास हमरा लोकनि रोकि लै छी तँ सत्ते अपन दायित्वक निर्वाह कऽ सकब आ अपना जीवनकेँ धन्य कऽ सकब। एहि प्रयासेक बलपर बहिनक अशेष शुभकामनाक अधिकारी होयब। नञि तँ सामा-चकेवाक ई पावन अवसर इतिहास गाथा बनि जायत। सभ बरख बहिन लोकनि जे हमरा लोकनिक मन-प्राण अपन आशीर्वादसँ जुड़बै छथि ताहि लेल लालायित रहि जायब। आबऽ वला पीढ़ी जखन संकटापन्न होयत आ बेटीक अभावमे बेटा पायब सेहो सम्भव नञि होयत तखन भने हमरा लोकनिक भौतिक काया नञि रहत, मुदा आत्मा सीदित होइत रहत कारण ओहि परिस्थितिकेँ भोगनिहार एहि दोष लेल हमरे सभकेँ दुर्वचन कहत। आउ सामा-चकेवाक पर्वपर अपना भीतर केर पिशुन प्रवृत्ति, किंवा चुगिला सन व्याप्त अधलाह विचारकेँ समाप्त करबाक संगहिँ ली सामाकेँ बचेबाक संकल्प।

साभार : अमलेन्दु शेखर पाठक के ई लेख मिथिला आवाज़ मैथिलि दैनिक समाचार पत्र में प्रकाशित अछि.  

Wednesday, November 6, 2013

इतिहास रचबा लेल बिदा भेल मंगलयान

अन्तरिक्ष विज्ञानक दुनिञामे अपन देश इतिहास रचबा दिस मंगलकेँ ‘मंगलयान’ केर सधल डेग बढ़ेलक अछि। ‘मंगलयान’मंगलकेँ लाल ग्रह लेल विदा भऽ गेल। पीएसएलभी रॉकेटसँ दुपहरियामे ठीक 2 बाजि कऽ 38 मिनटपर श्रीहरिकोटासँ ई उड़ल। नैनो कार सन ई रॉकेट एहि मंगलयानकेँ अंतरिक्षमे छोेड़ि देत जाहिठाम ई कि छु दिन पृथ्वीक चारू भर चक्कर लगेबाक बाद नओ मासक कठिन यात्रापर मंगल ग्रह दिस बढ़ि जायत। सम्पूर्ण देशक नजरि भारतक एहि मिशन मंगलयानपर टिकल अछि। लोकक मंगलमय भविष्य लेल भारतीय मंगलयान 25 करोड़ किलोमीटरक यात्रा पूरा करबा लेल विदा भेल अछि आ अपना लक्ष्य दिस निरन्तर बढ़ल जा रहल अछि। मंगल आ मार्स ग्रीक युद्धक देवताक नामपर एहि ग्रहक नाम राखल अछि। एहि ग्रहकेँ पृथ्वी के र सभसँ लगीचक भाय कहल जाइत अछि। ई ग्रह लाल आ गहींर कत्थी सन देखाइत अछि संगहि रहस्य आ रोमाञ्चसँ परिपूर्ण अछि।
तय करत 25-40 करोड़ किमीटरक यात्रा
मंगल ग्रह लग पहुँचत भारतक मंगलयान। अंतरिक्षक अत्यन्त कठिन, ओझरायल आ खतरनाक यात्रापर लगभग 25 करोड़सँ 40 करोड़ किलोमीटर धरिक यात्रा तय कऽ मंगलयान मंगल ग्रहकेँ लगसँ देखत, सूँघत आ वातावरणक स्वाद लेबाक प्रयास सेहो करत। ओहिठाम ई जीवन देखत, जीवनक अवशेष ताकत आ उजरल-उपटल ओहिठामक वातावरणक गणना करत ई छोट भीम। एहि मंगलयानकेँ छोट भीम नाम देल गेल अछि। टाटा नैनो कार सन आकार आ 1350 किलो ओजनवला एहि यानकेँ किछु वैज्ञानिक छोटका भीमक नामसँ सेहो बजबै छथि। ई मंगलक चारू भरि फेरा लगाओत। पीएसएलभी रॉकेट एखन धरि फराक-फराक उपग्रहकेँ पृथ्वीक कक्षामे स्थापित कऽ चुकल अछि आ एहिमे पारंगत भऽ गेल अछि। पीएसएलभीक ई 25म उड़ान अछि। श्रीहरिकोटाक सतीश धवन स्पेस सेण्टरमे ठाढ़ 15 महल मकान सन 44.4 मीटर ऊँच, लगभग 50 हाथीक ओजन जतबा 320 टन ओजन, पीएसएलभी विश्वस्त आ परखल रॉकेट अछि। मंगल 5 नवम्बर 13 केँ ठीक 2.38 बजे ई रॉके ट छूटल जे लगभग 40 मिनट धरि उड़बाक बाद बेरा-बेरी रॉकेटक चारू चरण फराक होइत गेल। अंतरिक्षमे पहुँचिते अंतिम चरण दू हिस्सामे बँटि जायत आ मंगलयान बाहर निकसि जायत। एकरा बाद 6 बेर मंगलयान अपन रॉकेट दागि ओकरा पृथ्वीक विशेष कक्षामे आनत। लगभग 20-25 दिन धरि मंगलयान पृथ्वीक प्रदक्षिणा कऽ आस्ते-आस्ते पृथ्वीसँ दूर होइत जायत आ एकाएक पृथ्वीक गुरूत्वाकर्षणसँ हटि कऽ डीप स्पेस दिस तीव्र गतीसँ बढ़त जकरा सोझे-सोझ मंगल दिस मोड़ि देल जायत। ई लगभग 25 करोड़ किलोमीटरक दूरी धरि जायत। एहिठाम पृथ्वीपरसँ एहि यानपर नजरि रखबा लेल आ एकरासँ बात करबा लेल, निर्देश देबा लेल विशेष व्यवस्था कयल गेल अछि। अण्डमान निकोबार द्वीप समूहमे पोर्ट ब्लेयरमे अन्तरिक्ष टैÑकिंग स्टेशन बनल अछि। एकरा अतिरिक्त बैंगलुरु लग बायलालूमे इसरो केर विशेष टीसन अछि जाहिठाम लगभग 32 फीटक भीमकाय डिश अछि। एहि यानपर नजरि रखबा लेल प्रशान्त महासागरमे शिपिंग कॉर्पोरेशन आॅफ इण्डियाक दू गोट जहाज एससीआइ नालन्दा आ एससीआइ यमुना समुद्रमे मोस्तैद अछि।

एहि यानक विशेषता
एहि यान लेल अंतरिक्षमे 25 करोड़ कि लोमीटर केर यात्रा सुलभ नञि अछि। एहि क्रममे मंगलयानकेँ सौर विकिरणक खतरा सेहो रहत। एकरा बहुत कम आ बहुत बेसी तापमानसँ जेबा काल अपन उपकरणकेँ बचाबऽ सेहो पड़त। एतबे नञि डीप स्पेसमे कनिञे चूकि गेलापर अन्त-अन्त धरि कोनो यान बौआ सकैत अछि। ओना एहिसँ बचबाक इन्तजाम वैज्ञानिक ओना कऽ चुकल छथि।
1- पूरा मंगलयानकेँ गोल्डेन कलरक कवरसँ लपेटल गेल अछि। ई कवर खास कऽ कम्मलक काज करत जे ओकरा गरमी आ जाड़ दुनूसँ बचाओत।
2- डीप स्पेसमे अबिते सौर विकिरण आ सूर्यक अल्ट्रावायलेट कि रणसँ इलेक्ट्रॉनिक उपकरणकेँ खराब हेबाक खतरा बढ़ि जाइत अछि ई कौभर एहूसँ बचाओत।
3- अपन दिशासँ नञि भटकय एहि लेल एहिमे एक टा नञि दू-दू स्टार सेंसर उपकरण लगाओल गेल अछि। एहिसँ पहिने चन्द्रमा दिस गेल चन्द्रयानमे स्टार सेंसरमे खराबी आबि गेल छल। इसरो द्वारा एहि गलतीकेँ सुधारि लेल गेल अछि।
4- पृथ्वीसँ सम्पर्क सधबा लेल धरतीसँ आबऽवला कमजोर सिग्नल पकड़बा लेल मंगलयानमे पैघ डिश लगाओल गेल अछि।
अगिला बरख 24 सितम्बरकेँ पहुँचत मंगलक कक्षा धरि
एहि यानमे अपन 800 किलोग्राम इन्धन अछि। लगभग 25 किलोमीटरक नम्मा यात्राक क्रममे इन्धन बचायब आ मंगल लग पहुँचबापर लगभग 9 माससँ सूतल ओकर मुख्य इञ्जनके ँ दोबारा चलायब इसरोक वैज्ञानिक लेल सभसँ पैघ चुनौती रहतनि। एहि लेल एहि यानमे 2 विशेष कम्प्यूटर लगाओल गेल अछि। यानमे कोनो असुविधा हेबापर कम्प्यूटर स्वयं निर्णय लेबामे आ मंगलयान केर बाट दुरुस्त करबामे सक्षम अछि। पृथ्वीक कक्षासँ निकसि लगभग 9 मासक यात्राक बाद मंगलयान 24 सितम्बर 2014 केँ मंगल ग्रहक कक्षामे पहुँचि जायत आ रॉकेटमे फायर कऽ एकरा मंगलक ओहि अण्डाकार कक्षा दिस आनल जायत जाहिठाम मंगलक धरतीसँ ओकर कमसँ कम दूरी रहत।
कमसँ कम 365 किलोमीटर आ बेसीसँ बेसी 80,000 किलोमीटरक दूरी रहबाक उमेद अछि। ई अगिला छओ मास धरि एहि ग्रहक रहस्यके ँ सोझरेबाक प्रयास करत। मंगलयानमे अपना देशमे बनाओल गेल पाँच गोट विशेष उपकरण लागल अछि। ई सभ उपकरण सोलर पैनलसँ बनल बिजलीसँ चलत। आखिर   ओहिठाम उतरने बिनु जीवनक संकेत कोना ताकत? मंगलयानपर लागल मीथेन सेंसर पहिल बेर कोनो मार्स मिशन एहन उपकरण लऽ कऽ जा रहल अछि। जे मंगलक वातावरण आ सतहमे मीथेनक उपस्थितिक पता लगाओत। मीथेन माने जीवनक चिह्न। एकर अतिरिक्त एहि यानपर 360 डिग्री धरि फोटो घीचबा लेल विशेष कैमरा लागल अछि। मंगलयानपर थर्मल सेंसर सेहो लागल अछि जे मंगल ग्रहक ठण्ढा हिस्सामे अत्यन्त गर्म हिस्साके ँ चिन्हबाक प्रयास करत जाहिसँ ई बुझल जा सकय जे आखिर एहि ग्रहपर मौसम एतबा तेजीसँ कोना बदलैत अछि।
एहि यानसँ मंगल ग्रहक फोटो, वातावरणसँ जुड़ल आँकड़ा सहित वैज्ञानिक ई उमेद करता जे चन्द्रयान जाहि तरहे ँ चन्द्रमापर पानि ताकि लेलक ठीक ओहिना किनसाइत मंगलयान एहि ग्रहसँ जुड़ल किछु पैघ राज फोलि सकय। प्राय: मीथेनक खोज कऽ सकय जे जीवनक पहिल संकेत मानल जा सकैत अछि, मुदा एहि यानसँ पृथ्वीपर बैसल वैज्ञानिककेँ सम्पर्क साधब सुलभ नञि हेतनि। मंगलक कक्षामे पहुँचबाक बाद मंगलयान धरि पृथ्वीसँ सन्देश पहुँचबामे 20 मिनट लागत आ यानके ँ जबाव देबामे सेहो 20 मिनट लागत। एकर माने मंगलयानक हालचाल बुझबा लेल लगभग 40 मिनट धरिबाट देखऽ पड़त।

साभार : मिथिला आवाज़ मैथिली दैनिक समाचार में प्रकाशित 

Friday, November 1, 2013

आउ आइसँ मनाबी सुखरात्रि


ज्योति पर्व दीयाबाती केर फलक बड़ पैघ अछि। अपना देशमे बहुत रास पाबनि मनाओल जाइत अछि, मुदा सभक फलक राष्ट्रिय स्तरक नञि होइत अछि। बहुत रास पाबनि क्षेत्रीय स्तरपर सेहो मनाओल जाइत अछि, जेना छठि। ई समग्र देशमे नञि मनाओल जाइत अछि, मुदा दीयाबाती तेहन पाबनि अछि जे देशक बहुलांश भागमे तँ लोक मनबिते छथि, विदेशोमे भारतीय लोक एकरा पूर्ण आनन्द आ उल्लासक संग मनबै छथि। ‘दीप’ आ ‘अवली’, संस्कृतक एहि दू शब्दक मेलसँ ‘दीपावली’ शब्द बनल अछि जकरा मिथिलामे अपना सभ दीयाबाती कहि सम्बोधित करै छी। दीप शब्दक संग ‘अवली’ शब्द जोड़ल गेल अछि जकर अर्थ होइत अछि ‘पंक्ति’। माने दीपक पंक्ति किंवा शृंखला भेल दीपावली वा दीयाबाती। ई अन्हारसँ प्रकाश दिस गमनक पर्व अछि। एकर आरम्भ धनतेरससँ भऽ जाइत अछि, जकरा मिथिलामे सुखरात्रि किंवा सुखराति कहल जाइत अछि। सुखरातिक पहिल दिन धनतेरस, दोसर दिन यम दीपावली, तेसर दिन दीपावालीक संग लक्ष्मी-गणेश आ माता कालीक पूजन, चारिम दिन गोवर्द्धन पूजाक संग अन्नकूट आ पाँचम दिन भातृ द्वितीयाक संग भगवान चित्रगुप्तक पूजा होइत अछि।

धन्वन्तरि पूजा आ धनतेरस


सुखरातिक पहिल दिनकेँ धनतेरसक  रूपमे मनाओल जाइत अछि। कार्तिक कृष्ण पक्षक त्रयोदशी तिथिकेँ भगवान धन्वन्तरिक पूजन होइत अछि। मान्यता अछि जे एही दिन भगवान धन्वन्तरिक जन्म भेल छलनि। तेँ एहि तिथिकेँ धनतेरसक नामसँ जानल जाइत अछि। धनतेरस दिन चानी किनबाक परम्परा अछि। एकर कारण मानल जाइत अछि जे चानी चन्द्रमाक प्रतीक होइत अछि जे शीतलता प्रदान करैत अछि। एहि शीतलतासँ मनकेँ सन्तोष रूपी धन प्राप्त होइत अछि। जकरा लग सन्तोष अछि सैह तँ सभसँ बेसी सुखी अछि। तेँ बहुत रास लोक धनतेरस दिन चानीक सिक्का वा कोनो गहना आदि किनै छथि। ईहो मान्यता अछि जे धनतेरस दिन कीनल गेल धातु धन-सम्पदा बढ़बैत अछि। अपना एहि ठाम लोक धनतेरसकेँ कोनो ने कोनो धातु अवश्य किनै छथि। बहुत रास लोक स्वर्णाभूषण सेहो किनै छथि। तँ बहुतो लोक टीवी, फ्रिज आदि इलेक्ट्रॉनिक्सक समान किनै छथि। एहि सभमे बासन बेसी लोक किनै छथि आ दीयाबातीक राति लक्ष्मी-गणेश पूजनक समय एहि नव बासनक उपयोग करैत देवीसँ धन-धान्यसँ परिपूर्ण हेबाक कामना करै छथि। लोग धनतेरसे  दिन दीयाबातीक राति पूजन लेल लक्ष्मी-गणेशक मूर्त्ति सेहो कीनि लै छथि। ओतहि भगवान धन्वन्तरिक पूजन सेहो कयल जाइत अछि।

यम दीपावली 

सुखरातिक दोसर दिन यम दीपावली मनाओल जाइत अछि। पौराणिक कथा अछि जे एही दिन भगवान कृष्ण दैत्य नरकासुर केर संहार केने छला आ सोलह हजार एक सौ कन्याकेँ नरकासुर केर बन्दी गृहसँ मुक्त केने छला। बहुत रास ठाम एहि दिन सूर्योदयसँ पहिने उठि तेल लगा आ पानिमे चिरचिरीक पात दऽ ओहिसँ स्नान करै छथि आ एकर बाद विष्णु मन्दिर वा कृष्ण मन्दिरमे जा भगवानक दर्शन करै छथि। मान्यता अछि जे एहिसँ सभ पाप नष्ट भऽ जाइत अछि। अपना ओहि ठाम मिथिलामे एकरा यम दीपावलीक नामसँ मनाओल जाइत अछि। एहि दिन घरक छोटसँ छोट आ पैघसँ पैघ सभ वस्तुकेँ साफ कयल जाइत अछि। एते धरि जे लालटेन आदिक बाती पर्यन्तकेँ साफ कयल जाइछ। घरक सभ गन्दगी बाहर कऽ देल जाइत अछि आ पहिल साँझ गोआक ढेरीपर गोबरसँ बनल दीप लेसि राखि देल जाइत अछि। एकरा यम दीप कहल जाइत अछि। उल्लेखनीय अछि जे पहिने जहिया माल-जाल बेस संख्यामे पोसल जाइत छल आ खेतमे खादक बदला गोबरसँ तैयार गोआ पटाओल जाइ छल तहिया एकर बड़ महत्त्व छल आ ईहो बढ़ि समृद्धिक प्रतीक बनय तकर आकांक्षा कयल जाइ छल। दोसर जे गोआ सन उपेक्षित ढेरी पर्यन्तकेँ प्रकाशित करबाक भाव एहिमे भरल छल। एखनो माता-बहिन लोकनि प्रतीक रूपमे एकरा मनबै छथि। गोआक ढेरीपर एखनो दीप जरा यम दीपावली मनाओल जाइत अछि। ओना नव चलनसारिमे एकरा छोटका दीपावाली सेहो कहल जाय लागल अछि जे ने शास्त्रीय अछि आ ने पारम्परिक।

दीयाबाती आ काली पूजा 

सुखरातिक तेसर दिन मनाओल जाइत अछि दीपावली। एहि दिन लोक अपना घर-प्रतिष्ठानकेँ दीपसँ सजबै छथि। चारू कात दीपक टेमी मुसुकैत अन्हारकेँ खेहारैत अछि। अपना ओहि ठाम माटिक दीप जरेबाक परम्परा रहल अछि, मुदा आधुनिकताक बिहाड़िमे लोक एकरा स्थानपर बिजली-बत्तीक सजावटि करै छथि। मात्र भगवान लग माटिक दीप जराओल जाइत अछि। बजारमे तँ यैह होइत अछि। आब गामो-घरमे लोक माटिक दीपसँ धीरे-धीरे परहेज करैत जा रहला अछि। तथापि शहरक तुलनामे गाममे एखनो माटिक दीप बहुतायतमे देखबामे अबैत अछि। अधिकांश लोक मटियातेलक डिबिया सेहो जरबै छथि, तँ बहुतो मोमबत्ती जरा पाबनिक खानापूर्त्ति करै छथि। पहिने तँ लोक घी केर दीप जरबै छला। महगीक समयमे आब ई सम्भव नञि अछि। तथापि एकरा स्थानपर करू तेल किंवा तीसी तेलक उपयोग कयल जेबाक चाही जे गोट-पगड़े दृष्टिगोचर होइत अछि। नेना-भुटका आ युवा वर्ग फटक्का फोड़ि आनन्दोल्लास मनबै छथि। पाबनिमे आनन्द मनायब तँ उचिते थिक, मुदा हमरा लोकनिकेँ पर्यावरणक प्रदूषण केर सेहो चिन्ता-चिन्तन करबाक चाही। ईहो ध्यान रखबाक चाही जे हमर प्रसन्नता कोनो पड़ोसिया, बूढ़, अस्वस्थ लोक लेल कष्टक कारण नञि बनय। ककरो कोनो क्षति नञि पहुँचय। दीयाबातीक राति लक्ष्मी-गणेश आ भगवतीक कालीक पूजन सेहो होइत अछि। अपना ओहि ठाम लक्ष्मी पूजा तँ कोजागराक राति करबाक परम्परा रहल अछि, मुदा   दीयाबातीक राति लक्ष्मीक संग गणेशक पूजन सेहो होइ छनि। खास कऽ व्यापारी वर्ग लेल एकर विशेष महत्त्व अछि। एहि दिनसँ व्यापारी वर्ग अपन नव खाता सेहो आरम्भ करै छथि। लोक घरोमे लक्ष्मी-गणेशक मूर्त्ति केर पूजन करै छथि आ बरख भरि ओकरा राखि नित्य पूजन होइ छनि। पछिला बरखक मूर्त्ति दीयाबातीक प्रात विसर्जित कयल जाइत अछि। दीयाबातीक रातिएमे माता कालीक पूजन सेहो होइ छनि। जिनक कुलदेवी माता काली छथिन हुनका ओहि ठाम विशेष पूजन तँ होइते अछि, काली मन्दिर सभमे सेहो विशेष पूजा-अर्चना कयल जाइत छनि। ठाम-ठाम भगवतीक कालीक मूर्त्ति प्रतिष्ठित कऽ सार्वजनिक पूजन सेहो होइत अछि। अगिला दिन हुनक मूर्त्तिकेँ विधि पूर्वक पूजनक उपरान्त विसर्जन कऽ जलमे प्रगवाहित कयल जाइत अछि।

गोवर्द्धन पूजा आ अन्नकूट

सुखरातिक चारिम दिन गोवर्द्धन पूजा होइत अछि। अपना ओहि ठामक परम्परामे माल-जाल पर्यन्तक ध्यान राखल जाइत अछि। एहि दिन अन्नकूट सेहो होइत अछि। अपना ओहि ठाम गायकेँ तँ पूजनीय मानले गेल अछि। शास्त्रक अनुसार गाय गंगा नदीक समान पवित्र होइत अछि। गायकेँ माता लक्ष्मीक रूप सेहो मानल जाइत अछि। तेँ गायक पूजन तँ एहि दिन होइते अछि, बड़द, महीँस, बकरी आदिक पूजन सेहो होइत अछि। एहि दिन सभ माल-जालकेँ पवित्रता पूर्वक स्नान कराओल जाइत अछि। सिंह आ खुरमे तेल लगाओल जाइत अछि। नीक-निकुत भोजन कराओल जाइत अछि। ओकरासँ कोनो काज नञि लेल जाइत अछि। एते धरि जे बड़द आदिक चुमाओन कऽ ओकरा पान सेहो खुआओल जाइत अछि। रस्सी बदलल जाइत अछि। सौँसे देहपर रंग लगाओल जाइत अछि। कते ठाम माल-जालक पाबनिमे हुड़ियाहा केर खेल सेहो होइत अछि। गौशालामे सेहो ई पर्व उमंग आ उल्लासक संग मनाओल जाइत अछि। कहल जाइत अछि जे भगवान श्रीकृष्ण ब्रजवासी लोकनिकेँ इन्द्रक कोपसँ होबऽवला मूसलधार वर्षासँ बचेबा लेल गोवर्द्धन पहाड़केँ अपन कनगुरिया आङुरपर उठा कऽ रखने छला।  ओहि पहाड़क तर सभ गोप आ गोपिका आश्रय लेलनि। एही पौराणिक घटनाक प्रतीक रूपमे ई पाबनि मनाओल जाइत अछि। बहुत ठाम अन्नकूट सेहो मनाओल जाइत अछि। भगवानक आगाँ सैकड़ो प्रकारक पकमान राखि हुनका भोग लगाओल जाइ छनि।

भ्रातृद्वितीया आ चित्रगुप्त पूजा 

सुखरातिक अन्तिम पाँचम दिन भाय-बहिनक पवित्र प्रेमक प्रतीक पर्व भ्रातृद्वितीया मनाओल जाइत अछि। कार्तिक मासक शुक्ल पक्षक द्वितीया तिथिकेँ मनाओल जायवला एहि पाबनिमे बहिन भाइकेँ नोतै छथि। ठाँव-अरिपन कयल स्थानपर अरिपन कयल पीढ़ी राखि ओहिपर भाइकेँ बैसाओल जाइत अछि। आगाँमे मटकूरमे पानि, पान, अँकुरी, द्रव्य, कुम्हरक फूल राखल रहैत अछि। भाइ अपन आँजुर बहिनक आगाँ रखै छथि। बहिन भाइकेँ पिठार आ सिन्दूरक तिलक लगबै छथि। फेर हाथपर पिठार आ सिन्दूर लगा मटकूरसँ पान, अँकुरी आदि बहार कऽ भायक हाथपर राखि ओकरा जलसँ धोइत मटकूरमे खसबैत बहिल हुनक दीर्घ जीवनक कामना करै छथि। ई क्रम तीन बेर होइत अछि। एकर बाद बहिन अँकुरी खोआ भाइकेँ अपना ओहि ठाम भोजन सेहो करबै छथि। बहुत ठाम एहि दिन बहिन लोकनि सामूहिक रूपसँ बजरी कुटबाक परम्पराक निर्वाह करै छथि। ई मिथिलाक परम्परा नञि अछि, मुदा मिथिलोमे एकर नीक चलनसारि भऽ गेल अछि। बहिन सभ बजरी कुटबाक बाद अपना भाइ केर प्रसंग अशुभ बाजि जीहमे रेगुनीक काँट गड़ा पश्चाताप करैत भाइ केर मंगलकामना करै छथि। एमहर एही दिन चित्रगुप्त पूजा सेहो होइत अछि। मिथिलाक कायस्थ समाज एहि दिन भगवान चित्रगुप्तक पूजन करै छथि। एहि दिन ओ सभ कलम-दवात पूजा-स्थलपर रखै छथि आ लिखबा-पढ़बासँ परहेज करै छथि। अनेक ठाम सार्वजनिक रूपसँ भगवान चित्रगुप्तक भव्य प्रतिमा स्थापित कऽ पूजन होइत अछि। एहि अवसरपर सांस्कृतिक कार्यक्रमक संग कायस्थ समाजक प्रतिभावान नेना लोकनिकेँ पुरस्कृत सेहो कयल जाइत अछि। कहबा लेल तँ ई कायस्थ समाजक धार्मिक उत्सव अछि, मुदा एहिमे समग्र समाज समवेत
होइत अछि। भगवानक दर्शन करबाक लेल तँ पहुँचिते छथि, बहुतो ठाम आयोजनमे सक्रिय सहभागिता सेहो रहैत अछि। पूजनक अगिला दिन मूर्त्ति विसर्जनक संग चित्रगुप्त पूजाक समापन होइत अछि।एकरा संगहिँ सम्पन्न होइत अछि मिथिलाक सुखराति किंवा सुखरात्रि। एकरा लगले आरम्भ भऽ जाइत अछि सूर्याेपासनाक महापर्व छठि केर तैयारी। एहि बेर शुक्र 1 नवम्बरसँ आरम्भ भऽ रहल अछि सुखराति। आउ हमरो लोकनि एहिमे समवेत होइ आ समग्र मिथिला धन-धान्यसँ परिपूर्ण हो आ सभ तरि सुखे सुख हो तकर मंगलकामना करी।

साभार : मिथिला आवाज़ मैथिली दैनिक समाचार पत्र में प्रकाशित  

होयत भगवान धन्वन्तरिक पूजन


धनतेरस पाबनिक ओरियान भऽ चुकल अछि। लोक धूप-दीप कीनि घर आनि लेने छथि। धनतेरस पाबनिकेँ ब्रह्माण्डक पहिल चिकित्सक  धन्वन्तरीक स्मरणमे मनायल जाइत अछि, किएक तँ वस्तुत: सभसँ पैघ धन स्वास्थ्य होइत अछि। मुदा प्रश्न इहो उठैत अछि जे जखन शरीरे सभसँ पैघ धन होइत अछि तँ कोनो ने कोनो दबाई खेबक चाही नञि कि धातुक बर्तन खरीदक चाही।
कहल जाइत अछि जे आश्विन मासक तेरहम दिन समुद्र मन्थनक दौरान ब्रह्माण्डक पहिल चिकित्सक भगवान धन्वन्तरी हाथमे अमृत कलश लऽ प्रकट भेल छला। एहन मानल जा रहल अछि जे आजुक दिन धातु घर अनबासँ ओहि संग अमृतक अंश सेहो घर आबि जाइत अछि आ नीक स्वास्थ्यक गारण्टी भेटि जाइत अछि। तेँ  धनतेरस दिन दबाइ नञि बर्तन कीनल जाइत अछि। किएक तँ दबाइसँ रोगक तात्कालिक समाधान होइत अछि जखन कि अमृत घर अनबासँ  रोग भागि जाइत अछि। कतेको लोककेँ  एहि सभ तरहक बातपर विश्वास नञि होइत अछि, मुदा भागलपुर स्थित मन्दार पर्वतपर देखल जा सकैत अछि जे समुद्र मन्थन काल भेल रस्सी चेह्न आइ धरि विद्यमान अछि।
 धनतेरसक सन्दर्भमे एकटा किंवदन्ती कहल जाइत अछि जे  राजा हिमाकेँ एकटा सोलह बरखक पुत्र छल। जे जन्म कुण्डलीक हिसाबेँ अल्पायु छला। जिनक  मृत्यु विवाहक चारिम दिनक बाद साँप कटबासँ  हेबाक छल।
मुदा विवाहक चारिम दिन राजकुमारक पत्नी राजकुमारकेँ कथा- कहानी, गीत सुना भरि राति सुतय नञि देलनि। संगहि राजकुमारक चारू कात दीप प्रज्ज्वलित कऽ देलनि आ शयण कक्षक बाहर सोन-चानीक सिक्काक ढ़ेरी लगा देलनि।
विधिक विधानक मोताबिक नीयत समयपर नागिनक रूपमे यमदूत एला, मुदा सोन-चानीक चमकबा कारणेँ नागिनक आँखि चोन्धिया गेल आ ओ आगाँ नञि बढ़ि ओतहि बैसि गेल। किएक तँ वैज्ञानिक तथ्य अछि जे साँप बहुत बेसी तेज रोशनीमे नञि देखि पबैत अछि। आ एहि तरहेँ राजकुमारक पत्नी अपन चलाकी आ कार्य कुशलतासँ ओहि मनहूस घड़ीकेँ टारि अपन पतिकेँ बचा लेलनि।  तेँ आजुक राति यमदीपदान केर रूपमे मनायल जाइत अछि आ भरि राति दीप जरा बाहर राखि देल जाइत अछि।
कारोबारीक लेल एहि
पाबनिक अछि विशेष महत्त्व
 कातिक मासक कृष्ण पक्षक त्रयोदशीसँ धनतेरसक पूजाक संगहि दियाबाती शुरू भऽ जाइत अछि। कारोबार केनिहारक लेल एहि पाबनिक बहुत बेसी महत्व अछि। लोकक मानब अछि जे एहि दिन लक्ष्मीक पूजासँ सुख-समृद्धि, खुशी आ सफलता भेटैछ। कहल जाइत अछि जे धनक मतलब समृद्धि आ तेरसक मतलब तेरहम होइत अछि। एहि पूजाक संग दियाबाती शुरू भऽ जाइत अछि। घर, कार्यालय, दोकान प्रतिष्ठान सभ ठामक सफाइ कयल जाइत अछि आ इजोत, फूल, रंगोलीसँ सजायल जाइत अछि। कतेको लोक घरक दुआरिपर चावलक चिक्कससँ रंगोली सजबै छथि आ लक्ष्मीक स्वागत ओरियानमे लागि जाइत छथि। एहि अवसरपर रंगोलीसँ घरक भीतर धरि लक्ष्मीक छोट-छोट पैरक चिन्ह बनायल जाइत अछि। सन्ध्याकाल 13 टा दीप जरा लक्ष्मी पूजा कयल जाइत अछि। मानल जाइत अछि जे एहि दिन लक्ष्मी पूजा करबासँ समृद्धि, खुशी आ सफलता भेटैत अछि। कहल जाइत अछि जे कारोबारीक लेल ई दिन खास महत्व रखैत अछि। एहि दिन बेसी लोक वस्तु कीनैत छथि, जाहिसँ साल भरिक कमसँ कम 40 सँ 50 फीसदी व्यवसाय भऽ जाइत अछि। बनिञा-महाजनकेँ एहि दिनक बहुत प्रतीक्षा रहैत अछि। बजारमे भोरहिसँ सोन-चानी, बर्तन कीनबा लेल चहल-पहल शुरू भऽ जाइत अछि। भूमि, कार, निवेश आ नव उद्योगक लेल सेहो आजुक दिनकेँ शुभ मानल जाइत अछि। दक्षिण भारतमे एहि पाबनिक अवसरिपर गायकेँ  खूब सजायल जाइत अछि आ ओकर पूजा कयल जाइत अछि। गायकेँ लक्ष्मीक अवतार मानल जाइत अछि। उत्तर भारतमे बेसी लोग द्रव्य-जात कीनबापर जोर दै छथि। नव बर्तन आ गहनासँ लक्ष्मी पूजा करैत छथि।

साभार : मिथिला आवाज़ मैथिली दैनिक समाचार पत्र में प्रकाशित 

Friday, October 18, 2013

कोजागरा पर सगरो छिड़आयत हँसी

 आसिन मासक पूनिम केर चान अपन मुस्की सगरो बाँटत। धरतीक कण-कणकेँ अपन इजोरियासँ स्नान करा जुड़ा देत। ओ अपन अमृत कलश छिलकेता। लोक मान्यताक अनुसार
आश्विन पूर्णिमाक राति चान अमृत बरसबै छथि। एमहर धरतीक चान फोँका मखान सेहो अपन हँसी छिड़िआयत। ओकरा संग दहीक मटकूर किंवा छाँछी आ बताशा ठहक्का लगायत। ई सभ होयत नव विवाहित वरक लेल मिथिलाक प्रसिद्ध पर्व कोजागरापर। ई पाबनि तँ होइ छनि ओहि नव विवाहित वरक लेल जिनक विवाहित जीवनमे कोजागरा पहिले-पहिल अबैत अछि, मुदा एहिमे समवेत होइत अछि सम्पूर्ण समाज जे पूनिम केर चान, मखान, दही आ बताशाक हँसीक फुहारसँ तितैत ओहिमे अपन उछाह घोरि दैत अछि आ धरतीपर उतरि अबैत अछि स्वर्गक आनन्द।
धर्म प्रधान भारत राष्ट्रे जकाँ मिथिलोमे ओना तँॅ प्रतिदिन कोनो ने कोनो अवसर रहिते अछि जकरा लोक आनन्द-उत्साह आ आस्था-विश्वासक संग मनबै छथि। मिथिलाक अपन विशिष्टता रहल अछि जे ई जन-जीवनक प्राय: सभ पक्षकेँ अपना दृष्टिसँ देखलक अछि आ तदनुकूल अपन स्वतंत्र चिन्तन सेहो रखलक अछि। गीत-संगीत, ज्योतिष सहित विभिन्न क्षेत्रमे एकर बेछप छवि चर्चित रहल अछि। आर तँ आर मिथिला पाबनि-तिहार पर्यन्तमे अपन स्वतंत्र उपस्थिति अंकित केलक। बहुत रास एहन पाबनि अछि जे मिथिलेमे मनायल जाइत अछि। एहिमे दू गोट एहन प्रमुख पाबनि अछि जे नव विवाहित दम्पती लेल होइत अछि जिनका विवाहित जीवनमे ई प्रथमे अबै छनि। पहिल अछि ‘मधुश्रावणी’ जे नव विवाहिता कनिञा लेल होइत अछि आ दोसर ‘कोजागरा’ जे नव विवाहित वर लेल होइत अछि। दुनू पाबनि वर-कनिञा अपना नैहरमे मनबै छथि। दुनू पाबनिमे सासुरसँ पूजन सामग्री आ चुमाओनक डाला सहित घर-घरायन लेल नव वस्त्र तथा मधुर आदिक भार अबैत अछि। मधुश्रावणी महिला लोकनिक बीच आ कोजागरा महिला-पुरुष नेना-भुटका सभक लेल।

सासुरक दूभि-धानसँ होयत चुमाओन

कोजागरामे वरक सासुरसँ चुमाओन लेल दूभि-धान आ मधुर आदिसँ सजल डाला अबै छनि। एहिपर मखान, मखानक माला, घुनेश, चानीक कौड़ी, नारियर, केरा, दहीक छाँछ, पान, गोटा सुपारी, लौङ, इलायची आदिक संग विभिन्न तरहक मधुर फराक-फराक राखल रहैत अछि। पहिने तँ एहिपर सुपारीक गाछ, जनौ केर गाछ आदि सेहो रहैत छल जे एहि मैथिल ललनाक हस्तकलाक प्रतिभाकेँ मुखर करैत छल। आब एहिमे कमी आबि गेल अछि। डालापर लोक अपन साधंस केर हिसाबे आन-आन वस्तु सेहो सजबै छथि। एहि डालाक निरीक्षण सर-समाज करैत अछि। जे डाला जते पैघ आ नीक जकाँ सजाओल तकर तते प्रशंसा। एही डालाक दूभि-धान लऽ वरक घरक महिला लोकनि चुमाओन करै छथि आ पुरहर-पातिलक दीपसँ गाल सेदै छथि। परिवार आ सामजक वरिष्ठ पुरुष लोकनि दूर्वाक्षत मंत्रक संग दीर्घ ओ सुखी जीवनक आशीर्वाद दै छथि।
चुमाओन ओहिना नञि भऽ जायत। एहि लेल आङनमे अष्टदल अरिपन देल जायत जाहिपर डाला राखल जायत। पुरहर-पातिल आ कलशक अरिपन सेहो देल जायत। ओहिपर तरमे धान दऽ आमक पल्लव युक्त कलश प्रतिष्ठित होयत। पातिलमे दीप जरैत रहत। मिथिलाक पाबनि बिनु गीतक कोना भऽ सकैत अछि? से मैथिल ललना सभक मधुर स्वर वातावरणमे घोरायत आ चुमाओनक विधि
पूरा होयत।  

सार महोदय बनता कनिञा

पत्नीक भ्राता अर्थात् ‘सार’ शब्द कानमे पड़िते ठोर विहुँसि पड़ैत अछि। आ जँ हुनका कनिञा बना वरक संग बैसेबाक बात हो तँ मुस्की बदलि जाइत अछि ठहाकामे। से कोजागराक राति नव विवाहित वरक आङन नाँघि मैथिलानीक समवेत हँसी-ठहाका सगरो वातावरणमे पसरैत रहैत अछि। कोजागरा पाबनिक समय धरि कनिञाक दुरागमन नञि भेल रहै छनि। विवाहक चारिमे दिन दुरागमन करेबाक परम्परा आरम्भ हेबाक बादो अधिकांश ठाम ई लगले नञि होइत अछि। से कनिञा रहै छथि अपना नैहरमे। जखन वरक चुमाओन होइ छनि तँ असकर कोना हेतनि, बहुत ठाम कनिञाक स्थानपर कलशकेँ मानि लेल जाइत अछि तँ बहुतो ठाम कनिञाक स्थानपर सार महोदयकेँ बैसाओल जाइ छनि। हँ ई देखल जाइत अछि जे सार कनिञासँ छोट होथि। हुनका संग चौल करैत तौनी ओढ़ा घोघ कऽ देल जाइ  छनि आ सामूहिक हँसी-मजाकसँ घर-आङनक पोर-पोर आनन्दक सागरमे उभचुभ करऽ लगैत अछि।

बँटायत पान मखान-बतासा

आङनमे चुमाओनक विधि आ लक्ष्मीक पूजनक बाद दलानपर हबगब तेज भऽ उठत। वरक सासुरसँ आयल मखान, पान आ बतासा समाजक बीच बाँटल जायत। बारिक एकाँएकी सभक बीच ई बँटता। एहिमे नेना-भुटकाक उछाह कने बेसी छिलकैत रहत। एक संग पचासो हाथ बारिक सोझाँ आयत आ ओ सभपर थोड़े मखान आ बतासा राखि देता। पानक बारिक पान राखि देता। एहि लेल साँझे गाम-टोलमे हकार देल जायत। लोक बेराबेरी ओहि सभ दलानपर पहुँचि पान-मखान-बतासा लेता जाहि ठाम कोजागरा मनायल जायत। रोम-रोम झकझक देखार केनिहार इजोरियामे बहुतो मखान-बतासा खायब आरम्भ करता जकर ‘कुरकुर-कुरकुर’ ध्वनि आ हकार पुरनिहारक पानसँ रङल ठोर-दाँत घरवैयाकेँ तृप्त करतनि। बहुतो ठाम-ठामसँ मखान-बतासा लऽ ओकर छोट-छोट पोटरी बनेता। एके बेर कते खेता? पोटरी बनेबाक क्रममे नेना-भुटका केर मखान-बतासा छिटेबो करत जे अगिला भोर धरि मुस्कियाइत ओहि दऽ गेनिहार बटोहीक स्वागत करत।
होयत लक्ष्मी पूजन आ रात्रि जागरणा
ओना तँ दीपावलीक   राति लक्ष्मी-गणेशक पूजा सगरो होइत अछि। मिथिलोमे दीयाबातीक राति लक्ष्मी-गणेश पूजल जाइ छथि, मुदा एहि ठाम कोजागराक राति लक्ष्मी पूजन प्रशस्त अछि। एहि लेल दुआरिसँ भगवती घर धरि अरिपन देल जायत। चिनुआरपर सेहो अरिपन होयत। ओहि ठाम जल भरल लोटामे आमक पल्लव राखल जायत आ भगवतीकेँ घर करबाक विधि परिवारक वरिष्ठ महिला करती। मान्यता अछि जे कोजागराक राति लक्ष्मी घरे-घर बुलै छथि आ देखै छथि जे के जागल अछि-
निशीथे वरदा लक्ष्मी: कोजागर्तीति भाषिणी।
तस्मै वित्तं प्रयच्छामि अक्षै: क्रीड़ां करोति य:।।
एहि मान्यताक अनुरूप बहुतो रास लोक राति भरि जागरण करै छथि। जिनका ओहि ठाम पाबनि रहै छनि हुनक समय तँ हकार पुरनिहार सभक मखान-बतासा-पानसँ स्वागतमे बीति जाइ छनि, आ जिनका ओहि ठाम पाबनि नञि छनि ओहो पचीसी आदि खेलैत जागरण करैत माता लक्ष्मीक स्वागतमे राति बितबै छथि।
देओर-भाउजक
बीच पचीसी
कोजागराक राति देओर-भाउजक बीच पचीसीक खेल चर्चित रहल अछि। एहि खेलमे देओर-भाउज राति
 बितबै छथि।
एहि बीच हुनक हास-परिहाससँ वातावरण सराबोर होइत रहैत अछि, मुदा आब ई अपवादे भेटैत अछि। कारण मिथिलाक गाम-घर आब अपना लोकक बिनु उदास रहैत अछि। भाउज कोनो महानगरमे अपन पति आ बाल-बच्चाक संग बिता रहल छथि तँ देओर कतहु आन ठाम रोजी-रोटी लेल अपस्याँत छथि। यैह कारण अछि जे पहिने कोजागराक राति जतऽ घर-घर देओर-भाउजक बीच पचीसीक खेल होइ छल से समटा कऽ ओहि घरमे रहि गेल अछि जाहिमे ई पाबनि मनायल जाइत अछि। सेहो विधि पुरौअलि मात्र।
कौमुदी महोत्सवोक आयोजन
नव विवाहित केर ओहि ठाम मनाओल जायवला कोजागरा केर अतिरिक्त एहि पाबनिकेँ विभिन्न संस्था आ संगठन कौमुदी महोत्सवक रूपमे सेहो
मनबैत अछि।
अनेको साहित्यिक संस्था एहि अवसरपर कवि-गोष्ठीक आयोजन करैत अछि तँ राष्टÑीय स्वयंसेवक संघ सेहो एहि महोत्सवपर सामूहिक पायस भोजनक ओरियान करैत अछि। कोजागराक राति चन्द्रमाक इजोरियाक संग अमृत बरसबाक मान्यताक अनुरूप खुजल अकासक नीचाँ मखानक खीर बनाओल जाइत अछि। ओकरा बिनु झाँपन देने राखल जाइत अछि आ सभ मिलि-बाँटि खाइ छथि। पाबनिक अवसरपर लोक सभ अपना घरोमे खीर बनबै छथि।
आउ मिथिलाक एहि प्रसिद्ध पाबनिमे हमरो लोकनि सम्मिलित होइ। लक्ष्मीसँ सम्पूर्ण मिथिलापर कृपा दृष्टिक आशीर्वाद माङी। चन्द्रमासँ मिथिलाक धरतीपर अमृत-कलश उझीलि एकर पोर-पोरकेँ रसमय बनेबाक अनुनय करी जाहिसँ लहलहा उठय सभ फसिल। चली नव विवाहितक दलानपर धरतीक चान फोँका मखानक संग बतासा आ पान पाबि ली।

साभार : अमलेन्दु शेखर पाठक के ई लेख मिथिला आवाज में प्रकाशित अछि 

Friday, September 27, 2013

हकन्न कानि रहल मिथिलाक ऐतिहासिक स्थल

विश्व पर्यटन दिवसपर विशेष - अमलेन्दु शेखर पाठक 

 इण्टरनेट युगमे पढ़ल-लिखल जानकार लोक समग्र मिथिलाक नहिञो तँ कमसँ कम अपना क्षेत्रक एहन स्थलक विस्तृत विवरण ओ चित्र विश्व भरिक इण्टरनेट उपयोग केनिहार धरि तँ पहुँचाए सकै छथि जे पर्यटनक केन्द्र बनि सकैछ। ई काज मिथिला-मैथिली सेवी-संगठन सेहो कऽ सकैत अछि। आउ विश्व पर्यटन दिवसपर संकल्प ली जे अपना क्षेत्रक ऐतिहासिक धरोहरिकेँ विश्वक मानचित्रपर स्थापित करबा लेल व्यवस्था धरि सेहो अपन बात पहुँचायब आ अपनो एहि दिशामे सधल आ ठोस सकारात्मक डेग उठायब। तखने एहि दिसवकेँ मिथिला लेल सार्थक मानल जा सकैत अछि। 


जगत जननी जानकीक आविर्भाव स्थली मिथिलाक पवित्र भूमिपर जते डेग चलब ततेक ऐतिहासिक, पुरातात्त्विक आ धार्मिक स्थल भेटि जायत। ई पढ़बा-सुनबामे भने अतिशयोक्ति लगैत हो, मुदा जखन मिथिला क्षेत्रमे चारू भरि नजरि खिरायब तँ ई सहज लागत। एहि ठाम धार्मिक किंवा आध्यात्मिक स्थलक बहुतायत भेटत, तेँ ऐतिहासिक आ पुरातत्त्व स्थल एहिसँ कनेको कम नहि भेटत। धार्मिको स्थलमे अधिकांश अपनामे इतिहास आ पुरातात्त्विक महत्वकेँ समेटने अछि। जेम्हरे टहलि जाउ कने कान पाथि दियौ आ कनेको अँखिगर-चँकिगर होइ तँ ओहि ठामक सिहकैत बसात इतिहास-गाथा सुनबैत भेटि जायत। से प्राचीन मिथिला, माने ओहि मिथिलामे सेहो ई गुण भेटत जाहिमे ई नेपालक मिथिलाक संग छल आ वर्त्तमान मिथिलामे सेहो। एहि सभकेँ पर्यटन केन्द्रक रूपमे विकसित कऽ देशक, राज्यक आ मिथिला क्षेत्रक आर्थिक स्थितिकेँ तँ सुदृढ़ कयले जा सकैत अछि। आर्थिक स्थिति सबल होयत तँ आनो-आन तरहक विकास सहजे होइत चलि जायत। एकरा संगहिँ एक बेर फेरसँ मिथिला अपन विशिष्ट परिचय मन पाड़ैत विश्वक शिरो-मुकुट बनि सकैत अछि। पर्यटनक दृष्टिसँ मिथिलाक सुप्रिष्ठा आरो बढ़ि सकैत अछि। एहि ठाम एहन स्थलक कमी नञि अछि जे पर्यटन केन्द्र केर रूपमे विकसीत भऽ सकय, मुदा दुर्भाग्य अछि जे ई सभ ऐतिहासिक स्थल सभ अपन उपेक्षासँ हकन्न कानि रहल अछि।
मिथिलामे एखनो देश-विदेशसँ लोक अबै छथि। अबै छथि एहि ठामक अक्षर-ब्रह्म उपासक लोकनिक कीर्त्ति केर अवलोकन करबा लेल। मिथिलाक विद्वद् परम्परा हुनका एहि ठाम अनै छनि। शोध केर क्रममे अनेको विदेशी छात्र आ शिक्षक कामेश्वर सिंह दरभंगा संस्कृत विश्वविद्यालय, ललितनारायण मिथिला विश्वविद्यालय आ संस्कृत शोध संस्थानक धनी पुस्तकालयसँ सहयोग लेबा लेल अबै छथि। ओतहि मिथिला चित्रकलाक अवलोकन किंवा ओहिपर कोनो विशेष काज करबाक होइ छनि तँ मधुबनीक गाममे ई सभ नजरि अबै छथि। एहि हिसाबे मिथिलाक एहि क्षेत्रकेँ शैक्षिक पर्यटन केन्द्रक रूपमे विकसित कयल जा सकैत अछि। ओतहि मिथिलाक सभ जिलाक ऐतिहासिक स्थल सभकेँ विकसित कयल जा सकैत अछि। एहिमे दरभंगा केर  रामायणकालीन महर्षि गौतमक स्थान, अहल्यास्थान, भैरव बलिया, नवादाक हैहट्ट देवी मन्दिर, मकरन्दा भण्डारिसौँ केर वाणेश्वरी भगवतीक संग हायाघाटक सिमरदह, दरभंगा शहरक मिर्जापुर स्थित भगवती म्लेच्छमर्दिनी, राज परिसरक माधवेश्वर परिसर स्थित तारा आ श्यामा मन्दिर सहित अन्य देवी मन्दिर, राज किलाक भीतर अवस्थित कंकाली मन्दिर, कुश द्वारा स्थापित कुशेश्वरस्थान महादेव मन्दिर, जिला मुख्यालयसँ सटले पञ्चोभ गामक डीह, कवीश्वर चन्दा झाक जन्मस्थली पिण्डारुछ, बहेड़ीक हावीडीह, भरवाड़ाक गोनू झाक गाम, कुशेश्वरस्थानक पक्षी विहार आदि एहन स्थल अछि जाहि ठामक कण-कणमे मिथिलाक इतिहास बाजि रहल अछि।   
एही तरहेँ मधुबनी जिलाक महाकवि विद्यापतिक जन्मस्थली बिस्फी, कालिदासकेँ ज्ञान देनिहार उच्चैठक छिन्नमस्तिका भगवती, शिवनगरक गाण्डीवेश्वरस्थान, कपिलेश्वरस्थान, मङरौनी, बलिराजगढ़, वाचस्पति मिश्रक जन्मस्थली आ कवीश्वरचन्दा झाक सासुर अन्धराठाढ़ी, विदेश्वरस्थान, महरैल गाम लग भेल कन्दर्पीघाटक लड़ाइ केर ऐतिहासिक स्थल, मधेपुरक वाणेश्वर महादेव मन्दिर, गिरिजास्थान फुलहर, भ्रदकालीस्थान कोइलख, राजराजेश्वरी डोकहर, भुवनेश्वरीस्थान डोकहर, सौराठ सभा, उग्रनाथ महादेव भवानीपुर, राजनगरक प्रसिद्ध किला आ भूतनाथ मन्दिर, विशौल जतऽ सीता स्यंवरक समय राजा जनक महर्षि विश्वामित्रक विश्राम करबाक व्यवस्था केने छला, ठाढ़ी गाम लगक मदनेश्वर महादेव, आ कमलादित्य स्थान (परमेश्वरी मन्दिर), जमुथरिक गौरी-शंकर मन्दिर, परसा, झञ्झारपुरक सूर्यधाम, सीरध्वज जनकक पूर्वद्वारपर विराजमान शिलानाथ जे आब शिलानाथ गाममे छथि, एही क्षेत्रक ददरी, जगवनक विभाण्डकाश्रम जाहि ठाम विभाण्डक मुनिक कुटी छलनि,  जयनगर लग श्रीकूपेश्वर, कलना गामक श्रीकल्याणेश्वर  पचहीक श्रीचामुण्डास्थान, महादेव मठ लग शुक्रेश्वरी भगवती, बाबू बरही प्रखण्डक सड़रा-छजनाक बीच पाँचम-छठम शताब्दीक अवतारी पुरुष सलहेसक डीह, सरिसवक अयाची मिश्रक डीह, सिद्धदेश्वरी स्थान, सूर्य मूर्ति सवास सहित दर्जनो आरो एहन स्थल अछि जे पर्यटन स्थलक रूपमे विकसित हेबाक अर्हता रखैत अछि। 
तहिना समस्तीपुर जिलाक ओइनी जे मिथिलाक राजधानी रहल अछि आ जाहि ठाम महाकवि विद्यापतिक समय बितलनि आ अपन अधिकांश रचना ओ एही ठाम केलनि, ओइनी पहिल हिन्दी तिलस्म उपन्यास लेखक देवकी नन्दन खत्रीक जन्म भूमि हेबाक संग स्वाधीनता समरमे अपनाके होमि देनिहार खुदीराम बोससँ सेहो जुड़ल रहल अछि। एकरा अतिरिक्त पूसाक शिवसिंह डीह, महाकवि विद्यापतिक निर्वाण भूमि वाजितपुर विद्यापति नगर, मोरवाक खुदनेश्वरस्थान, पाण्डव लोकनिक अज्ञातवासक स्थल रहल पाँड डीह, मंगलगढ़, पटोरीक बाबा केवल स्थानमे अमर सिंह केर पूजन लेल देश-विदेशसँ लोक अबै छथि, महान दार्शनिक उदयनाचार्यक गाम करियन, जागेश्वरस्थान विभूतिपुर, मालीनगर शिवमन्दिर, धोली महादेव मन्दिर खानपुर, धमौनक निरञ्जन स्वामीक मन्दिर आ सन्त दरिया साहेबक आश्रम, मन्नीपुर भगवती स्थान, रोसड़ा टीसनसँ किछु पूबमे अवस्थित विधिस्थान जतऽ चतुरानन ब्रह्मा विराजमान रहला, शहरक थानेश्वरस्थान, मुसरीघरारीक भगवती स्थान सहित अनेको मन्दिर आदि अछि जे इतिहास-गीत गाबि रहल अछि। एकरा सभकेँ एक-दोसरसँ जोड़ि पर्यटन   केन्द्रक रूपमे विकसित करब सम्भव अछि। 
राष्टकवि रामधारी सिंह दिनकरक जन्मस्थली रहल बेगूसराय जिलाक नौलागढ़, जयमंगलागढ़, वीरपुर-बरियारपुर, शिव मन्दिर (गढ़पुरा), सिमरियाघाट, मुजफ्फरपुर केर खुदीराम बोस स्मारक, गरीबनाथ मन्दिर, कोठियाक मजार, दाता कम्मल शाहक मजार, शिरुकहीशिरफी काँटी, पूर्णिञा केर भगवती पूरनदेवीक मन्दिर, सिकलीगढ़, किशनगञ्ज केर चर्चित खगरा मेला, लखीसराय  केर श्रृंगी ऋषिक आश्रम, अशोकधाम, जलप्पा स्थान, गोविन्द स्थान रामपुर, पोखरामा, सहरसा जिला केर उग्रतारा स्थान महिषी, लक्ष्मीनाथ गोसाइँक कुटी वनगाम, मण्डन-भारती स्थान, कन्दाहाक सूर्यमन्दिर, मत्स्यगन्धा मन्दिर, उदाहीक दुर्गा मन्दिर, नौहट्टाक शिव मन्दिर, देवनवन शिवमन्दिर, कात्यायनी मन्दिर, मधेपुरा केर कारू खिरहरि स्थान, सिंहेश्वरस्थान, रामनगर काली मन्दिर, दौपदीक वसन्तपुर किला, माता सीताक प्राकट्य स्थली सीतामढ़ी केर जानकी मन्दिर, पुनौराधाम, हलेश्वरस्थान, चामुण्डा स्थान, शिवहर जिलाक द्रौपदीक जन्मस्थली मानल जायवला देवकुलीधाम, वैशाली जिला अन्तर्गत महनारमे गंगातटपर स्थित गणिनाथ गोविन्दक स्थान, बसाढ़, कटिहार केर लक्ष्मीपुरक गुरु तेगबहादुरक ऐतिहासिक गुरुद्वारा, पक्षी अभयारण्य गोगाविल झील, कल्याणी झील, बेलबा, बल्दीबाड़ी, शान्तिवट ओला फसीया, नवाबगञ्ज, दुभी-सूभी, मनिहारी, बल्दीबाड़ी आदि चर्चित स्थल रहल अछि आ सभक अपन ऐतिहासिक आ धार्मिक महत्व अछि। 
एही तरहेँ चम्पारण केर बेतिया राज, सोमेश्वर महादेव मन्दिर, सीता कुण्ड, चण्डीस्थान, हुसैनी जलविहार, गान्धी स्मारक, वाल्मीकि आश्रम, व्याघ्र परियोजना, देवघर स्थित बाबा बैद्यनाथ धामक संग त्रिकुट, नन्दन पहाड़, नौलखा मन्दिर, वासुकीनाथ मन्दिर, भागलपुर केर सुल्तानगञ्जमे गंगाक बीच अवस्थित बाबा अजगैबीनाथ, विक्रमशिलाक क्षेत्र, मन्दार पहाड़, कहलगामक ऋषि जाह्नुक स्थान, मनसा देवी मन्दिर, विषहरि स्थान, कुप्पाघाट, मुंगेरमे अवस्थित मीरकासिमक किला, माँ चण्डिाकस्थान कर्णक उन्टल कराह, पीरशाह मुफाक गुम्बज, शाह सूजा केर महल, लाबागढ़ीक ऋषि-कुण्ड आदिक कोण-कोणसँ इतिहास बजैत अछि।  
बहुत रास एहनो स्थल अछि जे एके नामसँ अनेक ठाम अवस्थित अछि। जेना देकुलीधाम, ई दरभंगा, समस्तीपुर आ शिवहर तीनू ठाम अछि आ तीनूकेँ ऐतिहासिक मानल जाइत अछि। एहिमे भैरवीस्थान केँ सेहो देखल जा सकैत अछि। ई  मन्दिर मिथिलामे दू ठाम अछि। पहिल मधुबनी जिलान्तर्गत कोठिया ग्रामसँ एक किमीपर अवस्थित अछि आ दोसर औराइ क्षेत्र सीतामढ़ी जिलामे अछि। तहिना महिषासुर मन्दिर अन्दामा, उमामहेश्वर महादेव मठ, लदहोक भगवान विष्णु केर मन्दिर, ज्योतिरीश्वरक जन्म स्थान पाली, विष्णु बरुआर सूर्य मन्दिर आदि अनेक ऐतिहासिक ओ पुरातात्त्विक स्थल मिथिलामे अछि। 
पोखरिक पेटमे इतिहास 
मिथिला क्षेत्रकेँ नदीक नैहर कहल जाइत अछि। एहि ठाम गंगा, कोसी, कमला, गण्डक, धेमुरा, त्रियुगा, बलान आदि सैकड़ो पैघ-छोट नदीक संग हजारोक संख्यामे विशाल पोखरि सभ सेहो अछि। एहि पोखरि सभमे सेहो इतिहास नुकायल अछि। ई समय-समयपर पुरातात्विक महत्वक मूर्त्ति आदि दैत रहल अछि। एखनो दैत अछि। ओतहि पोखरि खूनल जेबाक सेहो अपन इतिहास अछि। एकरा सभक इतिवृत्ति सेहो नव-नव तथ्यक जनतब दऽ सकैत अछि आ एहिमेसँ कतेको पर्यटक केर आकर्षणक केन्द्र बनि सकैत अछि। 
समवेत जनशक्तिक प्रयोजन 
ई सभ अछि बानगी भरि। एहन सैकड़ो अन्य महत्वपूर्ण स्थल अछि जे अचर्चित रहि गेल। एहि ठामक प्राय: मन्दिरमे पूज्य देवी-देवता कोनो ने कोनो समयमे कतहु खेत जोतैत काल तँ कतेको बेर माटि खुनैत काल किंवा पोखरिमे भेटला। कतेको ठाम पुरातात्विक महत्वक देवी-देवताक प्रस्तर-प्रतिमा कोनो मन्दिर परिसरक गाछ तर खुजल अकासक नीचा पड़ल छथि। मिथिला क्षेत्रमे जते डीह अछि सभक कोखिमे कोनो ने कोनो कालखण्डक इतिहास दबल पड़ल अछि। एकर सभक गहन अध्ययन, अनुसन्धान-अन्वेषणसँ इतिहासमे नव पन्ना के कहय नव अध्याय धरि जुटि सकैत अछि, मुदा एकरा उजागर के करत? ई यक्ष प्रश्न अछि। जखन धरतीपर विराजमान ऐतिहासिक स्थल सभकेँ स्वतंत्रताक 66 साल बादो पर्यटन केन्द्रक रूपमे विकसिति हेबा लेल मुँहतक्की अछि तखन धरतीक नीचाँ कुहरि रहल इतिहासक पीड़ाकेँ के कान-बात देत? एहि लेल चाही मिथिलाक समवेत जनशक्ति जे अपन जनप्रतिनिधिक माध्यमे व्यवस्थाकेँ बाध्य कऽ सकय जे पर्यटन केन्द्रक रूपमे जाहि कोनो स्थलमे सम्भावना अछि तकरा ओहि रूपमे विकसित कयल जाय। विश्वक पर्यटन-मानचित्रपर एहि सभ स्थलक आबि गेने जखन पर्यटक पहुँचता तँ ओ कतऽ रहता, की खेता, कोन ठामक वाहनपर यात्रा करता, निश्चित रूपसँ मिथिलाक आ ई क्षेत्रक पैघ आर्थिक आधार बनि सकत, मुदा ई मात्र सोचबा भरिसँ नञि होयत। एहि लेल दृढ़ संकल्पक प्रयोजन अछि। अन्यथा एहिना पर्यटन दिवस सभ साल अबैत रहत आ जाइत रहत। हमरा लोकनि बस पर्यटकीय दृष्टिसँ क्षेत्रक विकासक सपना टा गबैत रहि जायब। एकर गुण-गरिमाक कीर्त्तन टा करैत रहि जायब। 
हम अपनो डेग बढ़ाबी 
व्यवस्थाकेँ अपना क्षेत्रक ऐतिहासिक, पुरातात्त्विक ओ धार्मिक स्थलकेँ पर्यटन केन्द्रक रूपमे विकसित करबा लेल तँ अवश्ये कही, मुदा एहि लेल ओकरेपर ओठङने काज चलऽ वला नञि। एहि लेल अपनो डेग बढ़ेबाक प्रयोजन अछि। अपना क्षेत्रक महत्वपूर्ण स्थलक दर्शन लेल अपना ओहि ठाम एनिहार सर-कुटुम्बकेँ प्रेरित कऽ हम छोट सन सकारात्मक   प्रयास कऽ सकै छी। मन पड़ैत अछि असोमक गुवाहाटी केर बोकाखातक ओ कॉलेज जाहि ठाम साहित्य अकादेमी दिल्लीक संगोष्ठी आयोजित छल। ओहि ठाम लगभग दू सय छात्र-छात्रा बेराबेरी ई कहैत रहला जे ‘काजीरंगा’ अवश्य घूमि लेब। से ई नञि जे एक गोटे कहलनि तँ ओ सूनि रहल दोसर नञि कहता। एकाँएकी सभ कहलनि। आ अन्तत: शान्त पड़ल उत्कण्ठा तेना जागल जे ‘काजीरंगा’ देखने बिनु नञि रहि सकल रही। हमरा लोकनिकेँ स्वयं सेहो एहि ठामक सभ महत्वपूर्ण स्थलक पर्यटन तँ करी। जाहिसँ एहि सभक जानकारी आबऽ वला पीढ़ीक बीच बाँटि सकी। हमरा लोकनिकेँ सेहो स्वभाव विकसित करऽ पड़त। एकरा संग आजुक इण्टरनेट युगमे पढ़ल-लिखल जानकार लोक समग्र मिथिलाक नहिञो तँ कमसँ कम अपना क्षेत्रक एहन स्थलक विस्तृत विवरण ओ चित्र विश्व भरिक इण्टरनेट उपयोग केनिहार धरि तँ पहुँचाए सकै छथि जे पर्यटनक केन्द्र बनि सकैछ। ई काज मिथिला-मैथिली सेवी-संगठन सेहो कऽ सकैत अछि। 
आउ विश्व पर्यटन दिवसपर संकल्प ली जे अपना क्षेत्रक ऐतिहासिक धरोहरिकेँ विश्वक मानचित्रपर स्थापित करबा लेल व्यवस्था धरि सेहो अपन बात पहुँचायब आ अपनो एहि दिशामे सधल आ ठोस सकारात्मक डेग उठायब। तखने एहि दिसवकेँ मिथिला लेल सार्थक मानल जा सकैत अछि। 
आउ एक नजरि नेपालक ओहि मिथिलो दिस दी जे पर्यटनक दृष्टिसँ सजग अछि आ हमरा सभसँ बहुत आगाँ अछि।
एहिमे नेपालक जनकपुर स्थित माँ जानकी मन्दिर प्रमुख अछि जतऽ प्रतिवर्ष हजारो पर्यटक पहुँचै छथि। एहि ठाम धनुषा, खिरोइ नदी लग स्थित योगनिद्रास्थान, सखरा गाम स्थित कालिकास्थान श्रीजलेश्वर, श्रीक्षीरेश्वर, कुसुमा गामक याज्ञवल्क्याश्रम, श्री मिथिलेश्वर, हरिहरस्थान, वाल्मीक्याश्रम, कौशिकाश्रम, कामेश्वरनाथ महादेव मन्दिर आदि चर्चित स्थल रहल अछि। 

 साभार : मिथिला आवाज मैथिली दैनिक समाचार पत्र के 27 सितम्बर के अंक में प्रकाशित 

Wednesday, September 18, 2013

सुख-समृद्धि दै छथि भगवान अनन्त

अनन्तरूपेण विभर्षि पृथ्वीमनन्त लक्ष्मीं विद्धासि तुष्ट:।
अनन्त भोगान्  प्रददासि  तुष्टोह्यनन्तमोक्षं पुरुषे प्रहृष्ट:।।
अनन्तरूप धारण कऽ पृथ्वीक चराचर जीवक भरण-पोषण केनिहार, प्रसन्न हेबापर अनन्त लक्ष्मीकेँ प्रदान कऽ अनन्त सुख, ऐश्वर्य, भोगकेँ प्रदान केनिहार आ अन्तमे मोक्ष देनिहार अनन्त स्वरूप भगवान श्री अनन्तक पूजा अनन्त कालसँ होइत आबि रहल अछि। भविष्योत्तर पुराणमे कहले गेल अछि-
संसारसागरगुहासु सुखं विहर्तुं, वाज्छन्ति ये कुरुकुलोद्भव शुद्धसत्वा:।
संपूज्य  च  त्रिभुवनेशमनन्तदेवं, वद्धन्ति  दक्षिण  करे वरडोरकन्ते।।
अर्थात् एहि संसार-सागरमे जे सुख-समृद्धिपूर्वक रहऽ चाहै छथि से चौदह ग्रन्थि (गेँठ)सँ युक्त अनन्तक डोरकेँ बन्है छथि। भाद्र शुक्ल चतुर्दशीकेँ ई पूजन होइत अछि। ई चतुर्दशी उदयव्यापिनी अवश्य हो। पक्षधर मिश्र ‘तिथिचन्द्रिका’मे कहै छथि-
अनन्तस्य व्रते राजन् घटिकैका चतुर्दशी ।
उदये घटिकार्द्धं वा सैव ग्राह्या महाफला।।
अर्थात् जाहि दिन उदयकालसँ एक घण्टा वा आधो घण्टा धरि चतुर्दशी हो, ताही दिन पूजा करी।
एहि पूजामे प्रात: स्नानादि नित्यकृत्यसँ निवृत्त भऽ, सर्वतोभद्र बना ताहिपर कलश-स्थापन कऽ कुशक अनन्त भगवानक प्रतिमा बना राखल जाइत अछि। पिठारसँ अष्टदल अरिपन लीखि अनन्तक पूजन होइत अछि। एहिमे 14 प्रकारक पकमान, 14 प्रकारक फल, फूल ओ नाना प्रकारक नैवेद्यक डाली लऽ टोल भरिक स्त्रीगण वा गाम भरिक स्त्रीगण एकट्ठा होइ छथि आ डालीकेँ एकठाम सजा कऽ राखल जाइत अछि। तदन्तर पूजा होइत अछि। पूजा समात्पिक उपरान्त पुरान डोरकेँ फोलि ताहि संग नवीन 14 गेँठ युक्त अनन्तकेँ गायक दूधसँ भरल बासनमे मथल जाइत अछि।
मथबा काल विधि अछि जे एक व्यक्ति पुछै छथि- की मथै छी?
पूजा केनिहार उत्तर दै छथि- समुद्र।
पुन: प्रश्न होइत अछि- की तकै छी?
पूजा केनिहार उत्तर दै छथि- अनन्त।
पुन: प्रश्न होइत अछि- भेटला?
उत्तर- भेटला। ई कहैत पूजा केनिहार अनन्तक डोरकेँ दूधसँ बहार कऽ माथमे स्पर्श करै छथि। पूजनक उपरान्त पुरुष दहिना हाथमे आ स्त्रीगण वामा हाथमे अनन्तक डोर बन्है छथि। एहि पूजाक संकल्प 14 वर्ष धरिक होइत अछि। किछु लोक जीवन पर्यन्त करै छथि।
अनन्त पूजाक कथा भविष पुराणमे कहल गेल अछि- पाण्डव जखन अत्यन्त दु:खी भेल वनमे उद्विग्न भऽ गेला तँ युधिष्ठिर कृष्ण भगवानकेँ पुछलथिन- हे भगवन! कोनो एहन उपाय कहल जाय जे करबासँ मनुष्यकेँ मनोवाञ्छित फलक प्राप्ति हो। ताहिपर श्रीकृष्ण कहलथिन- पृथ्वीपर स्त्री-पुरुषकेँ कयल सभ पापक मुक्ति अनन्त व्रतसँ होइत अछि। अनन्त डोर बन्हबाक मंत्र अछि-
अनन्त संसार महासमुद्रे, मग्नान् समभ्युद्धर वासुदेव।
अनन्तरूपे विनियोजयस्व, अनन्तरूपाय नमो नमस्ते।।
युधिष्ठिर द्वारा ई जिज्ञासा करबापर जे कहिया आ के पहिल-पहिल अनन्तक पूजन केलनि आ एकर की पुण्य आ फल भेल, पुन: श्रीकृष्ण कहलथिन- सतयुगमे सुमन्तु नामक एक ब्राह्मण ‘दीक्षा’ नामक भृगुपत्नीसँ विवाह केलनि। दीक्षाकेँ शीला नामक कन्या भेलनि। किछु दिनक उपरान्त समन्तुक पत्नी दीक्षाक देहान्त भऽ गेलनि। सुमन्तु पुन: धर्मपुत्रक बेटी ‘कर्कशा’ सँ विवाह केलनि। पुत्री शीला माता-पिताक सेवा करैत रहली। शीलाकेँ युवावस्थामे प्रवेश करैत देखि सुमन्तु कौटिल्य नामक ब्राह्मणसँ विवाह करा देलथिन। विवाहक उपरान्त सुमन्तु अपन पत्नी कर्कशाकेँ कहलथिन जे जमायकेँ किछु धन दान दऽ बिदा करू, मुदा कर्कशा जेहने नाम तेहने गुण। क्रोधेँ लहलह करैत घरमे जे कैञ्चा-कौड़ी छलनि से पेटीमे लऽ कऽ नैहर पड़ा गेली। सुमन्तु सातुक बटखर्चा बान्हि बेटी-जमायकेँ बिदा केलनि। कौटिल्य अपन पत्नीक संग यात्रा केलनि। बाटमे भूख लगलनि तँ दुनू प्राणी एकटा पोखरिक कातमे जलपान करबाक हेतु गेला। ओतऽ शीलाक नजरि पड़लनि, बहुत रास स्त्रीगण सभ एकठ्ठा भऽ लाल-पीयर नूआ पहिरि भगवानक पूजा कऽ रहल छली। जिज्ञासावश शीला हुनका लोकनिकेँ पुछथिन जे ई केहन व्रत थिकै? सभ स्त्रीगण शीलाकेँ कहलथिन जे ई अनन्तक पूजा थिक। एहि व्रतमे बिना अन्न-जल ग्रहण केने नाना प्रकारक पकमान, फल, फूल, नैवेद्य आदिसँ पीताम्बर विष्णुक पूजन होइ छनि। हुनका आगूमे लाल-पीयर 14 गेँठ वला डोर राखल जाइत अछि। पूजाक उपरान्त ई अनन्तक डोर स्त्री वाम हाथमे आ पुरुष दहिनामे बन्है छथि जाहिसँ जीवनमे सतत् सुख-समृद्धि होइत अछि। एहि तरहेँ 14 वर्ष धरि जे ई पूजन करै छथि हुनकर सभ कामनाक पूर्त्ति होइ छनि। ई सुनि शीला स्त्रीगण सभक संग व्रतमे रहि यथाविधि पूजा केलनि आ अनन्तक डोर बन्हलनि। पुन: संगमे राखल जे बटखर्चा छलनि ताहिमेसँ आधा ब्राह्मणकेँ दान दऽ कऽ घर आबि गेली। अनन्त व्रतक प्रभावसँ किछुए दिनमे धन-धान्य आ अपार सम्पत्तिक स्वामिनी बनि गेली। हुनक पति कौटिल्य एक दिन पत्नीक बाँहिमे डोर बान्हल देखि धन मदान्ध भेल कहलथिन- ई की बन्हने छी? ई कहैत अनन्तक डोर तोड़ि कऽ आगिमे फेकि देलथिन। एहिसँ अनन्त भगवान कुपित भऽ गेला। हुनक कोपसँ अनायास चोर-डकैत द्वारा धन-सम्पत्तिक हरण कऽ लेल गेलनि। घर-समाज सर्वत्र कलह उत्पन्न भऽ गेलनि आ ओ परम दरिद्र भऽ गेला। कौटिल्यक पत्नी कहलथिन- अनन्त भगवानक कोपक ई प्रतिफल थिक। कौटिल्य व्याकुल भेल वने-वन यत्र-तत्र अनन्त-दर्शन हेतु बताह जकाँ गाछ-वृक्षसँ पता पूछऽ लगला आ अन्तमे प्राण-त्याग करबा लेल उद्यत भऽ गेला। ई देखि अनन्त स्वरूप   भगवान विष्णु वृद्ध ब्राह्मणक रूप धारण कऽ सम्मुख उपस्थित भेलथिन आ अपन चतुभुर्ज रूपमे कौटिल्यकेँ दर्शन देलथिन। कौटिल्य अनेकानेक स्तुतिसँ भगवानकेँ प्रसन्न केलनि। भगवान पुन: अनन्त व्रत आ पूजाक उपदेश देलथिन। भगवानक आज्ञासँ 14 वर्ष धरि कौटिल्य अनन्तक पूजा केलनि आ समस्त सांसारिक ऐश्वर्यक भोग करैत अन्तमे स्वर्गारोहण केलनि। एहि कथाक भविष्य पुराणमे आरो विस्तारसँ वर्णन अछि।


एना करी भगवान अनन्तक पूजन

 पूजाक ओरियान : पूजाक स्थानकेँ पवित्रपूर्वक नीपि, पिठारसँ अष्टदल अरिपन लिखि ओहिमे सिन्दुर लगा ओहिपर एकटा आमक पल्लव देल कलश राखी। कलशमे सिन्दुर-पिठार लागल रहय। पूजाक लेल अनन्तक संग डालीमे सामयिक फलक संग-संग पकमान आदि राखी। तखन पूजा केनिहार हाथमे जल लऽ शुचि मन्त्र पढ़थि-ऊँ अपवित्र: पवित्रो वा सर्वावस्थां गतोपि वा।य: स्मरेत पुण्डरीकाक्ष: स बाह्याभ्यन्तर: शुचि:।।मंत्र पढ़बाक बाद हाथक जल यावन्तो पूजा सामिग्री के शिक्त करैत अपना शरीरपर सेहो छीटी। सूर्यादि पंचदेवताक पूजा :  हाथमे अक्षत लऽ ऊँ सूर्यादि पंचदेवता इहागच्छ इहतिष्ठ। हाथक अक्षत पातपर राखि अर्घामे जल लऽ- एतानि पाद्यार्घाचमनीय स्रानीय पुनराचमनीय सूर्यादि पंचदेवताभ्यो नम:। जल चढ़ा फूलमे चानन लऽ- इंदमनु लेपनंसूर्यादि पंचदेवताभ्यो नम:। अक्षत- इदमक्षतं सूर्यादि पंचदेवताभ्यो नम:। फूल- एतानि पुष्पानि सूर्यादि पंचदेवताभ्यो नम:। दूबि- इदं दुर्बादलं सूर्यादि पंचदेवताभ्यो नम:। विल्वपत्र- इदं विल्वपत्रं सूर्यादि पंचदेवताभ्यो नम:। अर्घामे जल लऽ- एतानि धूप-दीप ताम्बूल यथाभाग नानाविधि नैवेद्यानि सूर्यादि पंचदेवताभ्यो नम:। पुन: अर्घामे जल लऽ- इदमाचमनीयं ऊँ सूर्यादि पंचदेवतभ्यो नम:। तखन एकटा फूल लऽ - एष पुष्पांजलि ऊँ सूर्यादि पंचदेवताभ्यो नम:। तहन हाथमे तेकुशा तिल जल लऽ संकल्प :- ऊँ अद्य भाद्रमासीय शुक्लपक्षीय चतुर्दश्याम तिथौ अमुकशर्माहं (अपन  नाम ली) परमानन्त प्रीतिपूर्वकैहिक वहुगोधनधान्य रत्नादिमत्त्व- कल्पान्तस्थायि पुनर्वसु नक्षत्र यवन कामया अनन्त व्रत महंकरिष्ये। ई संकल्प कऽ पूजा आरम्भ करी। पीढ़ीपर कमलक जे अरिपन ताहिपर देल जे कलश ताहिमे कुशक अनन्त महाराज बना ओकरा जनउसँ लपेटि कऽ राखि दी। तहन हाथमे तिल लऽ- ऊँ मनोजूतिर्जुषतामाज्यस्य वृहस्पतिर्यज्ञमिमन्तनोत्वरिष्टं यज्ञं समिमं दधातु विश्वेदवास इह मादयन्तामोम्प्रतिष्ठ। ऊँ भगवन अनन्त इह सुप्रतिष्ठतो भव। हाथक तिल ओहि कुशक बनल अनन्तपर चढ़ा हुनका प्रतिष्ठित कऽ हाथमे फूल लऽ दुनू हाथ जोड़ि कऽ - फणासप्तान्वितं देवं चतुर्वाहुं किरीटिनम्। नवाम्रपल्लवाभांस पिंगलस्मश्रुलोचनम्। पिताम्बरंधरं देव शंखचक्रगदाधरम्। कराग्रे दक्षिणे शंखं तपस्यप्यश: करे। चक्रमूद्धवे तथा वामे गदातस्याप्यध: करे। दधानं पद्मं सर्वलोकेशं सर्वाभरणभूषितम्। क्षीराबिधमध्ये श्रीमन्तमनन्तं चन्तयेद्धरिम्। ई पढ़ि हाथक फूल चढ़ा दियनि। पुन: अक्षत लऽ - ऊँ आगच्छानन्तदेवेश तेजो राशे जगत्पते। क्रियमाणां मया पूजां गृहाण सुरसत्तम। ऊँ  अनन्त इहागच्छ इहतिष्ठेत्यावाह्य। हाथक अक्षत पातपर धऽ अर्घामे जल लऽ - ऊँ गंगा च यमुनाचैव नर्मदा च सरस्वती। ताप्तीपयोष्णी रेवा ताभ्य: स्रानार्थ माहृतम। एतानि पाद्यार्घाचमनीय स्रानीय पुनराचमनीय ऊँ अनन्ताय नम:। वस्र- इदं पीतवस्रं वृहस्पति दैवतम् ऊँ अनन्ताय नम:। यज्ञोपवीत - इमे सोत्तरीय यज्ञोपवीते वृहस्पति दैवतम् ऊँ अनन्ताय नम:। चानन- इदमनु लेपनम वृहस्पति दैवतम् ऊँ अनन्ताय नम:। तिल जौ- एते यवतिला वृहस्पति दैवतम् ऊँ अनन्ताय नम:। फूल- एतानि पुष्पानि वृहस्पति दैवतम् ऊँ अनन्ताय नम:। माला- इदं पुष्पमाल्यं वृहस्पति दैवतम् ऊँ अनन्ताय नम:। दूबि- इदं दुर्वादलं वृहस्पति दैवतम् ऊँ अनन्ताय नम:। तुलसी- इदं तुलसी पत्रम् वृहस्पति दैवतम् ऊँ अनन्ताय नम:। जल लऽ एतानि गन्ध-पुष्प धूप-दीप ताम्बूल नानाविधि नेवैद्यानि वृहस्पति दैवतम् ऊँ अनन्ताय नम:। जल लऽ- इदमाचमनीयं वृहस्पति दैवतम् ऊँ अनन्ताय नम:। एकटा फूल- एष पुष्पाञ्जलि ऊँ अनन्ताय नम:।तखन बलभद्रक पूजा : हाथमे अक्षत लऽ - ऊँ भूर्भूव: स्व: बलभद्र इहागच्छ इहतिष्ठेत्यावाह्य। अर्घामे जल लऽ- एतानि पाद्यार्घाचमनीय स्रानीय पुनराचमनीय ऊँ बलभद्राय नम:। चानन-इदमनु लेपनम् ऊँ बलभद्राय नम:। तिल- एते तिला: ऊँ बलभद्राय नम:। फूल- एतानि पुष्पाणि ऊँ बलभद्राय नम:। माला- इदं पुष्पमाल्यम ऊँ बलभद्राय नम:्। दूबि- इदं दूर्वादलं ऊँ बलभद्राय नम:। अर्घामे जल लऽ- एतानि गन्ध-पुष्प धूप-दीप ताम्बूल यथाभाग नानाविध नैवेद्यानि ऊँ बलभद्राय नम:। जल लऽ- इदमाचमनीय ऊँ बलभद्राय नम:। एकटा फूल लऽ- एष पुष्पाञ्जलि ऊँ बलभद्राय नम:। सुमन्तक पूजा : हाथमे अक्षत लऽ - ऊँ भूर्भूव: स्व: सुमन्त इहागच्छ इहतिष्ठेत्यावाह्य। अर्घामे जल लऽ- एतानि पाद्यार्घाचमीनय स्रानीय पुनराचमनीय ऊँ सुमन्ते नम:। चानन- इदमनु लेपनम् ऊँ सुमन्तवे नम:। अक्षत- इदमक्षतं ऊँ सुमन्तवे नम:। फूल- एतानि पुष्पानि ऊँ सुमन्तवे नम:। दूबि- इदं दूर्वादलं ऊँ सुमन्तवे नम:। अर्घामे जल लऽ - एतानि गन्ध-पुष्प धूप-दीप ताम्बूल यथाभाग नानाविधि नैवेद्यानि ऊँ सुमन्तवे नम:। जल- इदमाचनीय ऊँ सुमन्तवे नम:। एकटा फूल लऽ- एष पुष्पाञ्जलि सुमन्तवे नम:।एही तरहेँ दीक्षा पूजन, इन्द्रादि दशादिक्पाल, नवग्रह केर पूजन करी। एही तरहेँ हृषीकेशोसि। ऊँ पद्मनाभोसि। ऊँ माधवोसि। ऊँ बैकुण्ठोसि। ऊँ श्री धरोसि। ऊँ त्रिविक्रमोसि। ऊँ मधुसूदनोसि। ऊँ वामनोसि। ऊँ केशवोसि। ऊँ नारायणोऽसि। ऊँ दामोदरसि। ऊँ गोविन्दोसि केर उच्चारण करैत पञ्चोपचार पूजा कऽ प्रदिक्षणा कऽ प्रार्थना करी। तखन पुराने अनन्तक डोर स्पर्श कऽ पढ़ी - ऊँ सव्वंत्सरकृतां पूजां संपाद्य विधिवन्मम्। व्रजे दानी सुरश्रेष्ठ ह्यनन्त फलदायक।। न्यूनातिरिक्तानि परिस्फुटानि यानीह कर्माणि मया कृतानि। सर्वाणि चैतानि मम क्षमस्व प्रयाहि तुष्ट: पुनरागमाय। एहि तरहेँ पुरान डोरक विर्सजन कऽ फुलही बासनमे गायक दूध दऽ ओहिमे नव अनन्त डोरा राखि पुरान डोरा लऽ मथल जाइछ। मथनिहारकेँ पुछल जाइछ- की   मथै छी? पूजक केर उत्तर- क्षीर समुद्र। प्रश्न- की तकै छी? उत्तर- अनन्त भगवान। प्रश्न- भेटला? उत्तर- हँ। तहन स्वस्ति प्राप्त कऽ अनन्तकेँ उठाय माथमे सटा प्रणाम कऽ विर्सजन करी। तथा नव डोराकेँ प्रणाम करी आ मन्त्रक संग अनन्त बान्ही। 

डॉ विद्याधर मिश्र
विभागाध्यक्ष स्नातकोत्तर व्याकरण विभाग
कासिंद संस्कृत विश्वविद्यालय
साभार : मिथिला आवाज मैथिली दैनिक समाचार पत्र में प्रकाशित इ लेख


Sunday, September 15, 2013

नैतिकतासँ परिपूर्ण हो जनमानस

 दिल्लीक फास्ट ट्रैक कोर्ट द्वारा चारि गोट दुष्कर्मीकेँ फाँसीक सजाय सुनाओल जाइते सौँसे देशक संवेदना एक संग उजागर भऽ गेल। बेसी ठाम कहल गेल जे ई ऐतिहासिक निर्णय अछि। ईहो कहल गेल जे एहि सजायसँ दुष्कर्मक घटना कम होयत। आइसँ लगभग नओ मास पूर्व 16 दिसम्बर 2012 केँ बसमे एकगोट युवतीक संग भेल सामूहिक दुष्कर्म आ अन्तत: सिंगापुरमे 29 दिसम्बर 2012 केँ पीड़िताक मृत्युक घटना सौँसे देशकेँ उद्वेलित कऽ देने छल। समाजक कोनो एहन वर्ग नञि छल जे उद्वेलित नञि भेल हो। उचिते, एहन हेबाके चाही छल। एहि घटनाक आरोपी सभकेँ मृत्यु-दण्ड भेटबाक स्वागतो हेबाक चाही छल, जे भेल। कोर्टक निर्णयसँ समाजमे कठोर सन्देशो जायत। दुष्कर्मीकेँ एते डर तँ अवश्ये हेतै जे पकड़ल जेबापर मृत्यु-दण्डो भेटि सकैत अछि, मुदा विचारणीय अछि जे की एहीसँ दुष्कर्म सन घृणित काज रुकि जायत? कदापि नञि। मात्र कानून बनेबा भरिसँ काज चलऽ वला नञि अछि। अपना देशमे एहिसँ पहिनो तँ दुष्कर्मीकेँ मृत्यु-दण्ड देल गेल अछि। रंगा-बिल्ला सन राक्षसकेँ आ ओकर दुष्कृत्यकेँ चाहियो कऽ हमरा लोकनि बिसरि सकै छी? ओकरो मृत्यु-दण्ड देल गेल छल। की तकर बाद घटना रूकल? असलीहतमे ई दिन-प्रतिदिन बढ़ले गेल। दोसर बात अछि, एक घटनामे चारि गोटेकेँ फाँसी देबाक सजाय सुनाओल गेल अछि, जेँ मीडिया एहि दुष्कर्मकेँ जमि कऽ रखलक तेँ ने सगरो देशक नजरि एहिपर छल। देशमे प्रतिदिन एहि तरहक घटना तँ भैए रहल अछि। जाहि समय दिल्ली-दुष्कर्म काण्ड देश-विदेशमे चर्चित छल ताहू समयमे एहि तरहक घटना भऽ रहल छल। थोड़े बीचे तँ जेना ई व्याधिक रूप पकड़ि नेने छल। संक्रामक रोग जकाँ। चारू भरसँ एही तरहक समाचार आबि रहल छल। की हमरा लोकनिक संवेदना ओहि सभ बच्ची, किशोरी, युवती आ विवाहिता लोकनिसँ नञि जुड़बाक चाही जे दुष्कर्म सन यातना भोगलनि? हुनका सभक प्रति हमरा लोकनिक संवेदनशील किए ने भेलहुँ। एखनो समाचार पत्रमे नित्य कतहु ने कतहुसँ एहि तरहक घटना सोझाँ आबिए रहल अछि। आर तँ आर परिजन पर्यन्त द्वारा दुष्कर्मक घटना भऽ रहल अछि। कहल जाइत अछि जे देशमे जते दुष्कर्मक घटना होइत अछि ताहिमेसँ अधिकांश सोझाँ नञि अबैत अछि। जँ ओहो सभ सोझाँ आबय तखन केहन भयावह स्थिति होयत? दुष्कर्मक एहन पीड़िता सभकेँ कहिया न्याय भेटतनि? भेटबो करतनि की? हुनका सभकेँ न्याय भेटनि ताहि लेल हमरा लोकनि किए ने किछु करै छी? की मीडिया जाहि-जाहि घटनाकेँ उठायत ततबेसँ हमरा लोकनि सरोकार राखब? एहन बहुत रास प्रश्न अछि जे आइएसँ नञि बरखो-बरखसँ अनुत्तरित अछि। तहिना अनुत्तरित अछि जे एहि तरहक घटनाक स्थायी सामाधान लेल किए ने ठोस डेग उठाओल जाइत अछि? रोगक बदला रोगीक उपचार करबा दिस हमरा लोकनि किए अपनाकेँ केन्द्रित केने छी?

स्थायी निदान नैतिक शिक्षा

दुष्कर्मक घटनापर रोक लेल कानून बनाओल जा रहल अछि, मुदा कानून बनेबे भरिसँ काज चलऽ वला रहैत तँ देश भ्रष्टचारमे आकण्ठ नञि डूबल रहैत। दहेज प्रथाक कहिया ने सराध भऽ गेल रहितै। दहेज लेल कोनो नव विवाहिताकेँ जिबिते नञि डाहल जाइत। एहन बहुत रास उदाहरण देल जा सकैत अछि जाहि लेल कानून बनल अछि, कठोर सजायक प्रावधान अछि, तथापि एकर स्थायी निदान नञि भऽ रहल अछि। प्रयोजन अछि समाजकेँ सद्मार्गपर लऽ जेबा लेल रोगक उपचार कयल जेबाक। एखन रोगीक उपचार करबामे हम सभ जुटल छी आ एहीसँ सन्तुष्ट भऽ रहल छी। बूझि रहल छी जे एकरा समाप्त कऽ देल। दुष्कर्मक घटनामे चारि गोटेकेँ फाँसकी सजाय भेटबाकेँ आ महिलाक संग आपराधिक घटना लेल कानून बना जँ यैह बुझै छी तँ हमरा लोकनि अपनाकेँ फुसिया रहल छी। बात पुरनायत आ आयल-गेल भऽ जायत। जँ एहि तरहक रोगक चिकित्साक स्थायी समाधान चाहै छी तँ एहि लेल रोगक ओहि कारणकेँ ताकऽ पड़त जे मूलमे अछि। से अछि नैतिक पतन। कहियो कोनो कार्यालयमे काज हेबापर जँ कर्मीकेँ दस-बीस टाका क्यौ देबऽ चाहै छला तँ ओ हाथ जोड़ि लै छल आ कहै छल ‘नञि-नञि एना नञि करू, बाल-बच्चा वला छी, घूस-पेंच लेब तँ बाल-बच्चापर पड़ि जायत’, माने नैतिकता ओकरा ओ राशि लेबासँ रोकै छल। आइ परिस्थिति सर्वथा उनटि गेल अछि, आइ ओही कार्यालयक कर्मी कहैत अछि ‘किछु दियौ बाल-बच्चा वला छियै, कहाँसँ पढ़ेबे-लिखेबै, सुदुक दरमाहासँ काज नञि ने चलै छै महगीमे।’ नेनपनेसँ रटायल जाइ छल-
मातृवत    परदारेषु    परद्रव्येषु  लोष्ठवत।
आत्मवत सर्वभूतेषु य: पश्यति स: पण्डित:।।
अर्थात् दोसराक स्त्रीकेँ माताक समान, दोसराक धनकेँ ढेपा सन आ अपने सन सभकेँ देखनिहार पण्डित थिका।
तहिना-
अष्टादश पुराणेषु  व्यासस्य वचनद्वयम्।
परोपकाराय पुण्याय, पापाय परपीडनम् ।।
अर्थात् अठारहो पुराणमे व्यासक दुइए टा वचन छनि जे दोसराक उपकार करब पुण्य थिक आ दोसराकेँ पीड़ा पहुँचायब पाप।
एहि तरहक नीति-वचनक असरि काँच मानसिकतापर होइ छल। जेना-जेना नेनाक बौद्धिक विकास होइ छल तहिना-तहिना नैतिक शिक्षाक स्तरो बढ़ै छल। नैतिकताक पाठ मात्र घोखबा लेल नञि होइ छल नेना-किशोरकेँ ओकरा आत्मसात करबा लेल प्रेरित कयल जाइ छल। आइ हमरा लोकनि एहि बाटकेँ छोड़ि चुकल छी। प्राचीन सभ परिभाषा आ मान्यताकेँ उनटि देबा लेल प्रयासरत छी। कहल जाइ छल-
विद्या ददाति विनयम विनयाद्याति पात्रताम्।
पात्रत्वात्धनमाप्नोति धनात धर्म: तत: सुखम्।।
अर्थात् विद्या ओ थिक जे   विनयशीलता दैछ आ ओहिसँ पात्रता अबैत अछि, पात्रताक संग अर्जित धन लऽ धर्म केने सुख होइत अछि। आजुक सन्दर्भमे जँ एहि परिभाषापर विचार करी तँ सयमे निनानबे गोटे डिग्रीधारी लग विद्या नञि छनि कारण ओ विनयशील नञि छथि। तकर अर्थ भेल जे पात्रताक अभाव सेहो अछि। आ जे पात्र नञि होयत तकरासँ नैतिकताक अपेक्षा कऽ सकै छी की? आब एहि नीति वचन सभक सन्दर्भमे वर्त्तमान समस्याकेँ देखी। की लोक जँ हृदयसँ दोसराक स्त्रीकेँ अपन माय जकाँ मानय तँ दुष्कर्म सन घटना होयत? कदापि नञि। कमसँ कम एहन स्थिति तँ नहिञे ने रहत जेना आइ मानव अपन मूल धर्मकेँ छोड़ि पशु बनि गेल अछि। जे पुण्य-पापक चिन्ता करत से दानवी कृत्य नञि कऽ सकैत अछि। जे आनक धनकेँ ढेपा बूझत से भ्रष्टाचारी भैए ने सकैत अछि। जे विनयशील होयत से घृणित काज कैए ने सकैत अछि। तेँ प्रयोजन अछि नैतिक पतनशीलताक रोगकेँ चीन्हि उपचार कयल जाय जाहिसँ शरीरपर दाग भने रहि जाय, घाव अवश्य छूटि जायत।

संस्कृतक चरणमे चाही शरण 

नैतिक पतनशीलतापर विराम लेल संस्कृतक शरणमे देशकेँ लऽ जायब परमावश्यक अछि। कारण संस्कृत एहि नैतिक शिक्षाक अथाह सागर अछि। एही भाषामे भारतक आत्मा बसैत अछि। जते ई उचित-अनुचित, न्याय-अन्याय, पुण्य-पाप, सत्कर्म-दुष्कर्मक प्रसंग मार्ग-दर्शन करैत अछि तते आन कोनो भाषा नञि। भाषाक संग संस्कृति चलैत अछि। संस्कृतक संग भारतक संस्कृति अपन मूल अर्थमे चलैत अछि। एकर प्रचार-प्रसार सकल समस्याक निदान कऽ सकैत अछि, मुदा दुर्भाग्यसँ वर्त्तमान ओहि संस्कृतकेँ लतिएने-कतिएने अछि जे वैज्ञानिक विकासक आधार बनि रहल अछि, जे कर्म ज्ञान दैत अछि, जे सिखबैत अछि जे धन महत्वपूर्ण अछि, मुदा ओहूसँ महत्वपूर्ण अछि मानव जीवन, जे पढ़बैत अछि जे भौतिक सुख क्षणभंगुर अछि, जे बाट देखबैत अछि जे नित्य दिस बढ़ू अनित्य दिस नञि, मुदा जेना-जेना कथित विकास भऽ रहल अछि तहिना-तहिना वर्त्तमान संस्कृत दिससँ मुँह मोड़ि रहल अछि। जाहि भाषाक बलपर भारतकेँ विश्व गुरुक सिंहासन भेटल से उपेक्षित अछि। जाहि गुण-गरिमा लेल भारत विश्वमे जानल-चीन्हल जाइत रहल अछि तकर मूल संस्कृतेमे अछि, मुदा पाश्चात्यक प्रति आकर्षणक कारणेँ संस्कृतमे वर्णित तथ्य खिस्सा-पिहानी लगैत अछि आ पाश्चात्य जखन ‘गाड पार्टिकल’ तकबाक बात करैत अछि तँ ओहिपर विश्वास होइत अछि, जखन कि संस्कृत आरम्भेसँ एकर उद्घोष करैत रहल अछि। की अपन स्वर्णिम अतीतपर अविश्वास करब, ओकरा अनुपयोगी बुझबे विकास थिक?

यैह थिक विकास? 

विकासक सन्दर्भमे विचार करै छी तँ मन पड़ैत अछि एक गोट पत्रकार मित्रक कथन। एक बेर एक गोट पत्रकार मित्र दरभंगा आयल छला। ओ कहलनि जे किछु छात्रा सभसँ बात कऽ रिपोट बनाउ। हुनकर सभक फोटो सेहो लऽ लेब। दोसर दिन पुछलनि तँ कहलियनि जे छात्रा सभ ओहि विषयपर बातो करबा लेल तैयार नञि भेली। फोटो तँ एकदम्मे ने घिचेलनि। पत्रकार मित्र दुखी होइत कहलनि- ‘एखन ई शहर विकास नञि केलक अछि। हमरा ओहि ठाम चलू छात्रा आ युवती लोकनिकेँ जेना कहबनि तेना फोटो घिचा लेती। एक गोटेकेँ कहबनि तँ समस्या भऽ जायत। तराउपरी होबऽ लागत। अखन दरभंगा सभकेँ विकास करबामे समय लगतै।’ ई कहैत ओ अपन टी शर्टकेँ दुनू बाँहिपर नीचा ससारैत कहने छला- ‘एना फोटो घिचा लेत। जेना कहबै तेना घिचा लेत।’ ओ मुसुकैत अपना संग आयल मित्र दिस तकने छला आ ओहो समर्थन केलनि। हम आश्चर्यचकित रहि गेल रही जे की यैह विकास थिक जाहिसँ दरभंगा वञ्चित अछि? मनमे आयल छल जे जँ यैह विकास अछि तँ भने हमरा सभ पछुआयल छी। ई प्रकरण तँ बानगी भरि अछि। सगरो देशमे देह-यष्टिक प्रदर्शनकेँ विकास बूझल जा रहल अछि। हमरा लोकनि आँखि मूनि पाश्चात्यक अनुकरण कऽ रहल छी। पहिरन-ओढ़न आ विचार पर्यन्तमे। वस्त्रक उपयोग शरीरक झँपबा लेल होइ छल, आइ उनटि गेल अछि। आइ वस्त्रक उपयोग प्रदर्शन लेल होइत अछि। अंग-प्रदर्शन फैशनक नामपर सर्व स्वीकार्य भऽ गेल अछि। से तेना जे कहियो नायिकाक नग्न पीठ केर फोटो टीभीपर आबि जाइ छल तँ एक संग बैसल पैघ आ छोट अपन नजरि दोसर दिस कऽ लै छला जेना ओ देखिए ने रहल होथि, आइ ‘बिकनी गर्ल’ केँ बाप-बेटा, भाइ-बहिन संग-संग देखि रहल छथि। पहिने कहल जाइ छल ‘आप रुचि भोजन पर रुचि सिङार’, आइ पर रुचि भोजन आ आप रुचि सिङार भऽ गेल अछि। एहि ठाम प्रश्न उठि सकैछ जे की महिलाक विकास नञि हेबाक चाही, अवश्य हेबाक चाही, मुदा ओ वास्तविक विकास हो। आचार-विचारक विकास हो। शिक्षाक विकास हो। हुनक मानसिक-बौद्धिक विकास हो। विकासक नामपर महिलाकेँ वस्तु बना देबाक पाश्चात्य मानसिकतासँ हुनक केहन विकास भऽ रहल अछि से सभक सोझाँ अछि। विकासक बोल दऽ हुनका जेना-जेना आगाँ बढ़ेबाक बात भऽ रहल अछि, तहिना-तहिना ओ असुरक्षित भेल जा रहल छथि। हुनकापर सर्वत्र प्रताड़ना भऽ रहल छनि। ‘नारयस्तु यत्र पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता’ केर भावना खेलौड़ भऽ गेल अछि। जे विचार देवताक अस्तित्वे ने मानत से नारीक पूजाक बात कोना करत? हमरा लोकनि विकासक नामपर देशकेँ विदेशमे बदलने जा रहल छी तखन तदनुकूलेने परिणाम बहार होयत?

व्यवस्थो बदलय मानसिकता 

वर्त्तमान परिवेश लेल सरकारो दोषी अछि। ओ शराबक दोकान धुरझाड़ फोलि लोककेँ शराब पीबासँ होबऽ वला नोकसानक उपदेश दैत अछि। सिगरेट फैक्ट्रीकेँ लाइसेंस दैत अछि आ ओहिपर ‘स्वास्थ्य लेल   हानिकारक’ हेबाक वाक्य लीखबा अपन कर्त्तव्यक इतिश्री कऽ लैत अछि। ई केहन हास्यास्पद अछि जे एचआइवीसँ बचेबा लेल नैतिक रूपसँ युवा पीढ़ीकेँ मजगूत नञि कऽ निशुल्क निरोधक मशीन लगा एहिसँ बचाव केर प्रयास होइत अछि। की सुरक्षित सम्बन्ध लेल ई प्रेरित करब नञि मानल जायत? की एहिसँ नीक ई नञि होइत जे सामाजिक मान्यताक प्रतिकूल आचरण करबासँ रोकबा लेल कोनो ठोस उपाय कयल जाइत? युवा पीढ़ीकेँ नैतिक बलसँ परिपूर्ण कयल जाइत? मुदा ई हो कोना, जखन व्यवस्थो भारतीय परम्परा, संस्कृतिक प्रति रञ्च मात्रो आग्रही नञि रहि गेल हो।

जागऽ पड़त समाजकेँ 

सत्य पूछल जाय तँ नैतिकताक पतनपर अंकुश लेल समाजकेँ इमनदारीसँ जागऽ पड़त। जाबत सामाजिक जागरण नञि होयत एहि सभ समस्याक स्थायी समाधान मात्र कानून बनेबासँ कदापि नञि होयत। दुष्कर्मी, भ्रष्टचारी आदि सेहो तँ एही समाजक किनको भाइ, भतीजा वा आन कोनो सम्बन्धी होइ छथि। जँ समाज जागि जाय आ अपन सन्ततिमे नैतिक गुण भरबा लेल संकल्पित हो तँ व्याप्त सकल कुकृत्यक निदान सहजतासँ भऽ सकत। सभ क्षेत्रमे समाजेसँ तँ लोक जाइ छथि। ओ राजनीतिक क्षेत्र हो, प्रशासनिक क्षेत्र हो, व्यावसायिक क्षेत्र हो वा आन कोनो क्षेत्र, सभ ठाम नीक-अधलाह कर्म केनिहार तँ समाजेक क्यौ ने क्यौ होइ छथि। समाज अपन बेटी-धीक चिन्ता करत तखने मानवता गर्वसँ अपन माथ ऊँच कऽ चलि सकत। नञि तँ एहिना माथ झूकल रहत। की झूकल माथ मात्र ओकरे होइत अछि जे कुकृत्य करैत अछि, ओकरा संग ओकर समाजक माथ नञि झुकैत अछि? आउ जागी आ सुन्दर-स्वच्छ समाजक निर्माण लेल बेटा-बेटी दुनूकेँ रटाबी ‘मातृवत परदारेषु....।’

मिथिला आवाज मैथिली दैनिक समाचार पत्र केर 15.09.2013 के रविवासरीय अंक में प्रकाशित