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Sunday, September 15, 2013

नैतिकतासँ परिपूर्ण हो जनमानस

 दिल्लीक फास्ट ट्रैक कोर्ट द्वारा चारि गोट दुष्कर्मीकेँ फाँसीक सजाय सुनाओल जाइते सौँसे देशक संवेदना एक संग उजागर भऽ गेल। बेसी ठाम कहल गेल जे ई ऐतिहासिक निर्णय अछि। ईहो कहल गेल जे एहि सजायसँ दुष्कर्मक घटना कम होयत। आइसँ लगभग नओ मास पूर्व 16 दिसम्बर 2012 केँ बसमे एकगोट युवतीक संग भेल सामूहिक दुष्कर्म आ अन्तत: सिंगापुरमे 29 दिसम्बर 2012 केँ पीड़िताक मृत्युक घटना सौँसे देशकेँ उद्वेलित कऽ देने छल। समाजक कोनो एहन वर्ग नञि छल जे उद्वेलित नञि भेल हो। उचिते, एहन हेबाके चाही छल। एहि घटनाक आरोपी सभकेँ मृत्यु-दण्ड भेटबाक स्वागतो हेबाक चाही छल, जे भेल। कोर्टक निर्णयसँ समाजमे कठोर सन्देशो जायत। दुष्कर्मीकेँ एते डर तँ अवश्ये हेतै जे पकड़ल जेबापर मृत्यु-दण्डो भेटि सकैत अछि, मुदा विचारणीय अछि जे की एहीसँ दुष्कर्म सन घृणित काज रुकि जायत? कदापि नञि। मात्र कानून बनेबा भरिसँ काज चलऽ वला नञि अछि। अपना देशमे एहिसँ पहिनो तँ दुष्कर्मीकेँ मृत्यु-दण्ड देल गेल अछि। रंगा-बिल्ला सन राक्षसकेँ आ ओकर दुष्कृत्यकेँ चाहियो कऽ हमरा लोकनि बिसरि सकै छी? ओकरो मृत्यु-दण्ड देल गेल छल। की तकर बाद घटना रूकल? असलीहतमे ई दिन-प्रतिदिन बढ़ले गेल। दोसर बात अछि, एक घटनामे चारि गोटेकेँ फाँसी देबाक सजाय सुनाओल गेल अछि, जेँ मीडिया एहि दुष्कर्मकेँ जमि कऽ रखलक तेँ ने सगरो देशक नजरि एहिपर छल। देशमे प्रतिदिन एहि तरहक घटना तँ भैए रहल अछि। जाहि समय दिल्ली-दुष्कर्म काण्ड देश-विदेशमे चर्चित छल ताहू समयमे एहि तरहक घटना भऽ रहल छल। थोड़े बीचे तँ जेना ई व्याधिक रूप पकड़ि नेने छल। संक्रामक रोग जकाँ। चारू भरसँ एही तरहक समाचार आबि रहल छल। की हमरा लोकनिक संवेदना ओहि सभ बच्ची, किशोरी, युवती आ विवाहिता लोकनिसँ नञि जुड़बाक चाही जे दुष्कर्म सन यातना भोगलनि? हुनका सभक प्रति हमरा लोकनिक संवेदनशील किए ने भेलहुँ। एखनो समाचार पत्रमे नित्य कतहु ने कतहुसँ एहि तरहक घटना सोझाँ आबिए रहल अछि। आर तँ आर परिजन पर्यन्त द्वारा दुष्कर्मक घटना भऽ रहल अछि। कहल जाइत अछि जे देशमे जते दुष्कर्मक घटना होइत अछि ताहिमेसँ अधिकांश सोझाँ नञि अबैत अछि। जँ ओहो सभ सोझाँ आबय तखन केहन भयावह स्थिति होयत? दुष्कर्मक एहन पीड़िता सभकेँ कहिया न्याय भेटतनि? भेटबो करतनि की? हुनका सभकेँ न्याय भेटनि ताहि लेल हमरा लोकनि किए ने किछु करै छी? की मीडिया जाहि-जाहि घटनाकेँ उठायत ततबेसँ हमरा लोकनि सरोकार राखब? एहन बहुत रास प्रश्न अछि जे आइएसँ नञि बरखो-बरखसँ अनुत्तरित अछि। तहिना अनुत्तरित अछि जे एहि तरहक घटनाक स्थायी सामाधान लेल किए ने ठोस डेग उठाओल जाइत अछि? रोगक बदला रोगीक उपचार करबा दिस हमरा लोकनि किए अपनाकेँ केन्द्रित केने छी?

स्थायी निदान नैतिक शिक्षा

दुष्कर्मक घटनापर रोक लेल कानून बनाओल जा रहल अछि, मुदा कानून बनेबे भरिसँ काज चलऽ वला रहैत तँ देश भ्रष्टचारमे आकण्ठ नञि डूबल रहैत। दहेज प्रथाक कहिया ने सराध भऽ गेल रहितै। दहेज लेल कोनो नव विवाहिताकेँ जिबिते नञि डाहल जाइत। एहन बहुत रास उदाहरण देल जा सकैत अछि जाहि लेल कानून बनल अछि, कठोर सजायक प्रावधान अछि, तथापि एकर स्थायी निदान नञि भऽ रहल अछि। प्रयोजन अछि समाजकेँ सद्मार्गपर लऽ जेबा लेल रोगक उपचार कयल जेबाक। एखन रोगीक उपचार करबामे हम सभ जुटल छी आ एहीसँ सन्तुष्ट भऽ रहल छी। बूझि रहल छी जे एकरा समाप्त कऽ देल। दुष्कर्मक घटनामे चारि गोटेकेँ फाँसकी सजाय भेटबाकेँ आ महिलाक संग आपराधिक घटना लेल कानून बना जँ यैह बुझै छी तँ हमरा लोकनि अपनाकेँ फुसिया रहल छी। बात पुरनायत आ आयल-गेल भऽ जायत। जँ एहि तरहक रोगक चिकित्साक स्थायी समाधान चाहै छी तँ एहि लेल रोगक ओहि कारणकेँ ताकऽ पड़त जे मूलमे अछि। से अछि नैतिक पतन। कहियो कोनो कार्यालयमे काज हेबापर जँ कर्मीकेँ दस-बीस टाका क्यौ देबऽ चाहै छला तँ ओ हाथ जोड़ि लै छल आ कहै छल ‘नञि-नञि एना नञि करू, बाल-बच्चा वला छी, घूस-पेंच लेब तँ बाल-बच्चापर पड़ि जायत’, माने नैतिकता ओकरा ओ राशि लेबासँ रोकै छल। आइ परिस्थिति सर्वथा उनटि गेल अछि, आइ ओही कार्यालयक कर्मी कहैत अछि ‘किछु दियौ बाल-बच्चा वला छियै, कहाँसँ पढ़ेबे-लिखेबै, सुदुक दरमाहासँ काज नञि ने चलै छै महगीमे।’ नेनपनेसँ रटायल जाइ छल-
मातृवत    परदारेषु    परद्रव्येषु  लोष्ठवत।
आत्मवत सर्वभूतेषु य: पश्यति स: पण्डित:।।
अर्थात् दोसराक स्त्रीकेँ माताक समान, दोसराक धनकेँ ढेपा सन आ अपने सन सभकेँ देखनिहार पण्डित थिका।
तहिना-
अष्टादश पुराणेषु  व्यासस्य वचनद्वयम्।
परोपकाराय पुण्याय, पापाय परपीडनम् ।।
अर्थात् अठारहो पुराणमे व्यासक दुइए टा वचन छनि जे दोसराक उपकार करब पुण्य थिक आ दोसराकेँ पीड़ा पहुँचायब पाप।
एहि तरहक नीति-वचनक असरि काँच मानसिकतापर होइ छल। जेना-जेना नेनाक बौद्धिक विकास होइ छल तहिना-तहिना नैतिक शिक्षाक स्तरो बढ़ै छल। नैतिकताक पाठ मात्र घोखबा लेल नञि होइ छल नेना-किशोरकेँ ओकरा आत्मसात करबा लेल प्रेरित कयल जाइ छल। आइ हमरा लोकनि एहि बाटकेँ छोड़ि चुकल छी। प्राचीन सभ परिभाषा आ मान्यताकेँ उनटि देबा लेल प्रयासरत छी। कहल जाइ छल-
विद्या ददाति विनयम विनयाद्याति पात्रताम्।
पात्रत्वात्धनमाप्नोति धनात धर्म: तत: सुखम्।।
अर्थात् विद्या ओ थिक जे   विनयशीलता दैछ आ ओहिसँ पात्रता अबैत अछि, पात्रताक संग अर्जित धन लऽ धर्म केने सुख होइत अछि। आजुक सन्दर्भमे जँ एहि परिभाषापर विचार करी तँ सयमे निनानबे गोटे डिग्रीधारी लग विद्या नञि छनि कारण ओ विनयशील नञि छथि। तकर अर्थ भेल जे पात्रताक अभाव सेहो अछि। आ जे पात्र नञि होयत तकरासँ नैतिकताक अपेक्षा कऽ सकै छी की? आब एहि नीति वचन सभक सन्दर्भमे वर्त्तमान समस्याकेँ देखी। की लोक जँ हृदयसँ दोसराक स्त्रीकेँ अपन माय जकाँ मानय तँ दुष्कर्म सन घटना होयत? कदापि नञि। कमसँ कम एहन स्थिति तँ नहिञे ने रहत जेना आइ मानव अपन मूल धर्मकेँ छोड़ि पशु बनि गेल अछि। जे पुण्य-पापक चिन्ता करत से दानवी कृत्य नञि कऽ सकैत अछि। जे आनक धनकेँ ढेपा बूझत से भ्रष्टाचारी भैए ने सकैत अछि। जे विनयशील होयत से घृणित काज कैए ने सकैत अछि। तेँ प्रयोजन अछि नैतिक पतनशीलताक रोगकेँ चीन्हि उपचार कयल जाय जाहिसँ शरीरपर दाग भने रहि जाय, घाव अवश्य छूटि जायत।

संस्कृतक चरणमे चाही शरण 

नैतिक पतनशीलतापर विराम लेल संस्कृतक शरणमे देशकेँ लऽ जायब परमावश्यक अछि। कारण संस्कृत एहि नैतिक शिक्षाक अथाह सागर अछि। एही भाषामे भारतक आत्मा बसैत अछि। जते ई उचित-अनुचित, न्याय-अन्याय, पुण्य-पाप, सत्कर्म-दुष्कर्मक प्रसंग मार्ग-दर्शन करैत अछि तते आन कोनो भाषा नञि। भाषाक संग संस्कृति चलैत अछि। संस्कृतक संग भारतक संस्कृति अपन मूल अर्थमे चलैत अछि। एकर प्रचार-प्रसार सकल समस्याक निदान कऽ सकैत अछि, मुदा दुर्भाग्यसँ वर्त्तमान ओहि संस्कृतकेँ लतिएने-कतिएने अछि जे वैज्ञानिक विकासक आधार बनि रहल अछि, जे कर्म ज्ञान दैत अछि, जे सिखबैत अछि जे धन महत्वपूर्ण अछि, मुदा ओहूसँ महत्वपूर्ण अछि मानव जीवन, जे पढ़बैत अछि जे भौतिक सुख क्षणभंगुर अछि, जे बाट देखबैत अछि जे नित्य दिस बढ़ू अनित्य दिस नञि, मुदा जेना-जेना कथित विकास भऽ रहल अछि तहिना-तहिना वर्त्तमान संस्कृत दिससँ मुँह मोड़ि रहल अछि। जाहि भाषाक बलपर भारतकेँ विश्व गुरुक सिंहासन भेटल से उपेक्षित अछि। जाहि गुण-गरिमा लेल भारत विश्वमे जानल-चीन्हल जाइत रहल अछि तकर मूल संस्कृतेमे अछि, मुदा पाश्चात्यक प्रति आकर्षणक कारणेँ संस्कृतमे वर्णित तथ्य खिस्सा-पिहानी लगैत अछि आ पाश्चात्य जखन ‘गाड पार्टिकल’ तकबाक बात करैत अछि तँ ओहिपर विश्वास होइत अछि, जखन कि संस्कृत आरम्भेसँ एकर उद्घोष करैत रहल अछि। की अपन स्वर्णिम अतीतपर अविश्वास करब, ओकरा अनुपयोगी बुझबे विकास थिक?

यैह थिक विकास? 

विकासक सन्दर्भमे विचार करै छी तँ मन पड़ैत अछि एक गोट पत्रकार मित्रक कथन। एक बेर एक गोट पत्रकार मित्र दरभंगा आयल छला। ओ कहलनि जे किछु छात्रा सभसँ बात कऽ रिपोट बनाउ। हुनकर सभक फोटो सेहो लऽ लेब। दोसर दिन पुछलनि तँ कहलियनि जे छात्रा सभ ओहि विषयपर बातो करबा लेल तैयार नञि भेली। फोटो तँ एकदम्मे ने घिचेलनि। पत्रकार मित्र दुखी होइत कहलनि- ‘एखन ई शहर विकास नञि केलक अछि। हमरा ओहि ठाम चलू छात्रा आ युवती लोकनिकेँ जेना कहबनि तेना फोटो घिचा लेती। एक गोटेकेँ कहबनि तँ समस्या भऽ जायत। तराउपरी होबऽ लागत। अखन दरभंगा सभकेँ विकास करबामे समय लगतै।’ ई कहैत ओ अपन टी शर्टकेँ दुनू बाँहिपर नीचा ससारैत कहने छला- ‘एना फोटो घिचा लेत। जेना कहबै तेना घिचा लेत।’ ओ मुसुकैत अपना संग आयल मित्र दिस तकने छला आ ओहो समर्थन केलनि। हम आश्चर्यचकित रहि गेल रही जे की यैह विकास थिक जाहिसँ दरभंगा वञ्चित अछि? मनमे आयल छल जे जँ यैह विकास अछि तँ भने हमरा सभ पछुआयल छी। ई प्रकरण तँ बानगी भरि अछि। सगरो देशमे देह-यष्टिक प्रदर्शनकेँ विकास बूझल जा रहल अछि। हमरा लोकनि आँखि मूनि पाश्चात्यक अनुकरण कऽ रहल छी। पहिरन-ओढ़न आ विचार पर्यन्तमे। वस्त्रक उपयोग शरीरक झँपबा लेल होइ छल, आइ उनटि गेल अछि। आइ वस्त्रक उपयोग प्रदर्शन लेल होइत अछि। अंग-प्रदर्शन फैशनक नामपर सर्व स्वीकार्य भऽ गेल अछि। से तेना जे कहियो नायिकाक नग्न पीठ केर फोटो टीभीपर आबि जाइ छल तँ एक संग बैसल पैघ आ छोट अपन नजरि दोसर दिस कऽ लै छला जेना ओ देखिए ने रहल होथि, आइ ‘बिकनी गर्ल’ केँ बाप-बेटा, भाइ-बहिन संग-संग देखि रहल छथि। पहिने कहल जाइ छल ‘आप रुचि भोजन पर रुचि सिङार’, आइ पर रुचि भोजन आ आप रुचि सिङार भऽ गेल अछि। एहि ठाम प्रश्न उठि सकैछ जे की महिलाक विकास नञि हेबाक चाही, अवश्य हेबाक चाही, मुदा ओ वास्तविक विकास हो। आचार-विचारक विकास हो। शिक्षाक विकास हो। हुनक मानसिक-बौद्धिक विकास हो। विकासक नामपर महिलाकेँ वस्तु बना देबाक पाश्चात्य मानसिकतासँ हुनक केहन विकास भऽ रहल अछि से सभक सोझाँ अछि। विकासक बोल दऽ हुनका जेना-जेना आगाँ बढ़ेबाक बात भऽ रहल अछि, तहिना-तहिना ओ असुरक्षित भेल जा रहल छथि। हुनकापर सर्वत्र प्रताड़ना भऽ रहल छनि। ‘नारयस्तु यत्र पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता’ केर भावना खेलौड़ भऽ गेल अछि। जे विचार देवताक अस्तित्वे ने मानत से नारीक पूजाक बात कोना करत? हमरा लोकनि विकासक नामपर देशकेँ विदेशमे बदलने जा रहल छी तखन तदनुकूलेने परिणाम बहार होयत?

व्यवस्थो बदलय मानसिकता 

वर्त्तमान परिवेश लेल सरकारो दोषी अछि। ओ शराबक दोकान धुरझाड़ फोलि लोककेँ शराब पीबासँ होबऽ वला नोकसानक उपदेश दैत अछि। सिगरेट फैक्ट्रीकेँ लाइसेंस दैत अछि आ ओहिपर ‘स्वास्थ्य लेल   हानिकारक’ हेबाक वाक्य लीखबा अपन कर्त्तव्यक इतिश्री कऽ लैत अछि। ई केहन हास्यास्पद अछि जे एचआइवीसँ बचेबा लेल नैतिक रूपसँ युवा पीढ़ीकेँ मजगूत नञि कऽ निशुल्क निरोधक मशीन लगा एहिसँ बचाव केर प्रयास होइत अछि। की सुरक्षित सम्बन्ध लेल ई प्रेरित करब नञि मानल जायत? की एहिसँ नीक ई नञि होइत जे सामाजिक मान्यताक प्रतिकूल आचरण करबासँ रोकबा लेल कोनो ठोस उपाय कयल जाइत? युवा पीढ़ीकेँ नैतिक बलसँ परिपूर्ण कयल जाइत? मुदा ई हो कोना, जखन व्यवस्थो भारतीय परम्परा, संस्कृतिक प्रति रञ्च मात्रो आग्रही नञि रहि गेल हो।

जागऽ पड़त समाजकेँ 

सत्य पूछल जाय तँ नैतिकताक पतनपर अंकुश लेल समाजकेँ इमनदारीसँ जागऽ पड़त। जाबत सामाजिक जागरण नञि होयत एहि सभ समस्याक स्थायी समाधान मात्र कानून बनेबासँ कदापि नञि होयत। दुष्कर्मी, भ्रष्टचारी आदि सेहो तँ एही समाजक किनको भाइ, भतीजा वा आन कोनो सम्बन्धी होइ छथि। जँ समाज जागि जाय आ अपन सन्ततिमे नैतिक गुण भरबा लेल संकल्पित हो तँ व्याप्त सकल कुकृत्यक निदान सहजतासँ भऽ सकत। सभ क्षेत्रमे समाजेसँ तँ लोक जाइ छथि। ओ राजनीतिक क्षेत्र हो, प्रशासनिक क्षेत्र हो, व्यावसायिक क्षेत्र हो वा आन कोनो क्षेत्र, सभ ठाम नीक-अधलाह कर्म केनिहार तँ समाजेक क्यौ ने क्यौ होइ छथि। समाज अपन बेटी-धीक चिन्ता करत तखने मानवता गर्वसँ अपन माथ ऊँच कऽ चलि सकत। नञि तँ एहिना माथ झूकल रहत। की झूकल माथ मात्र ओकरे होइत अछि जे कुकृत्य करैत अछि, ओकरा संग ओकर समाजक माथ नञि झुकैत अछि? आउ जागी आ सुन्दर-स्वच्छ समाजक निर्माण लेल बेटा-बेटी दुनूकेँ रटाबी ‘मातृवत परदारेषु....।’

मिथिला आवाज मैथिली दैनिक समाचार पत्र केर 15.09.2013 के रविवासरीय अंक में प्रकाशित

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