निकटवर्ती देश नेपाल स निकलक सहरसा, सुपौल आ मधेपुरा जिला में तबाही मचाव वाली कोसी नदी के बाढ़ नहीं सिर्फ अहि इलाके के आर्थिक धरोहर व सामाजिक संरचना के बिगाड़ का अछि बल्कि आब अहि क्षेत्र में पर्यावरण संतुलन को बनावे वाला जीव व वनस्पति सेहो विलुप्त भ रहल अछी हैं। कोसी नदी के अनवरत धारा बदले, मिट्टी के कटाव आ हर साल बालू की मात्रा बढई स प्राकृतिक इकोसिस्टम नष्ट भ रहल अछि अहि कारण पहिलहे कतेक जीव-जंतु आ मछलियां भ गेल अछी।
वनस्पति विज्ञान के प्राध्यापक डा. अंजनी सिन्हा कहैत छैथ की अहि इलाका में औषधीय महत्व के सैकड़ों वनस्पति पायल जीत चल । शक्तिवर्द्धक महत्व वाला अश्वगंधा, ब्रेन टानिक के रूप में इस्तेमाल होवा वाला ब्रम्ही, उच्च रक्त चाप कम करे वाला सर्पगंधा, प्रसूति टानिक सतावर, काली खांसी आ श्वास रोग के इलाज में उपयोग होवा वाला गिलोय, रक्त वर्द्धक पुनर्नवा, कैंसर रोधी सदाबहार, गठियारोधी सुरंजन, गर्भ निरोधक कपास, आँख के पुतली प्रसारक बैलाडोना आ चर्मरोग के इलाज में प्रयुक्त होवा वाला घी कंवार जेहेन वनस्पित जे इंसानों क जीवनक आधार होइत छल,अहि ठाम खूब भेटैत छल। अहि क लेल दूर दूर स लोक सब अहि ठाम आबैत छलैथ, परंतु आब इ जड़ी- बूटियां खोजलो स नै भेटैत अछी । वनस्पति आ जीव विज्ञान के जानकार के मानव छैन कि अहि वनस्पतियों के कम भेला स अहिपर आश्रित जीव प्रजातियों के संख्या सेहो घटल अछी। बर्बाद भेल वनस्पितयों के कारण ओही पर आश्रित जंगली सुअर, नीलगाय, खिखिर, नकार, शाही आ खरगोश लुप्तप्राय भ चुकल अछी।
अहि क्षेत्र में 122 किस्म के मछलि पायल जाय छल । परंतु हर वर्ष आवे वाला बाढ़ कंडवाल, फोकचा, राजवाम, सुसुक कंचल, लाल कतरा, सुही चंदा, केसिरा चंदा, सावन खड़िका, ठुनका, पतासी, गुथल नगरा, कोसवती, अन्नाई सन मछलि के सेहो अपना संग वाहा का ला गेल। इ सब नाम मात्र एक टा खिस्सा बनी का रही गेल अछी। अगर एतय बचल जीव और वनस्पतियों के संरक्षण प्रदान नहीं कल गेल त आबे बाला समय में इ मात्र इतिहास के एक टा वास्तु रही जायत।
2 comments:
bhai lekhan t bhaut sundar ai parntu kani Sampadan ke jarurt ai
kiyak ta ai men bahut ras maithli sabd ke jagah HINDI sabd ai jena
MACHLIYAN ke Maithli men MACH kih sakith chiya
on neek ai bahut neek
uttam nai sarwotam........
bahut bahut dhanyabad bhai
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