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Thursday, April 12, 2012

शिक्षा आब हर बच्चा के मौलिक अधिकार

देश की शीर्ष अदालत आई शिक्षा का अधिकार कानून 2009 के संवैधानिक वैधता के बरकरार रखलक, जाहिमे देशभर के सरकारी आ गैर सहायता प्राप्त निजी स्कूल में गरीब के 25 प्रतिशत निशुल्क सीटें समान रूप स भेटत।

मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति एस एच कपाड़िया, न्यायमूर्ति के एस राधाकृष्णन आ न्यायामूर्ति स्वतंत्र कुमार के पीठ बहुमत के आधार पर कहला कि कानून सरकारी आ गैर सहायता प्राप्त निजी स्कूल में समान रूप स लागू होयत । केवल गैर सहायता प्राप्त निजी अल्पसंख्यक स्कूल अहि के दायरा स बाहर रहत।

न्यायमूर्ति राधाकृष्णन अहि स असहमति जतावैत कहला कि ई कानून ओही गैर सहायता प्राप्त निजी स्कूल आ अल्पसंख्यक संस्थान पर लागू नहीं होयत जे सरकार स कोनो सहायता या अनुदान हासिल नहीं करैत अछि।

शीर्ष अदालत ई स्पष्ट केलक कि ओकर फैसला तुरंत प्रभावी होयत। एकर मदलब भेल कि कानून बनई के बाद स पूर्व में भेल दाखिल पर ई फैसला लागू नहीं होयत। दोसर शब्दों में शीर्ष अदालत कहलक कि अहि फैसला के प्रभाव पिछला तारीख स नहीं बल्कि अहि के बाद स होयत।

शीर्ष न्यायालय के तीन सदस्यीय पीठ पिछला वर्ष तीन अगस्त क गैर सहायता प्राप्त निजी संस्थान द्वारा दाखिल याचिका पर अपन फैसला सुरक्षित रखलक। अहि याचिका में कहल गेल छल की शिक्षा के अधिकार कानून निजी शैक्षणिक संस्थान के अनुच्छेद 19 [।] [जी] के अंतर्गत गेल अधिकार के उल्लंघन करैत अछि, जाहिमे निजी प्रबंधक के सरकार के दखल के बिना अपन संस्थान चलावई की स्वायतत्ता प्रदान गेल अछी।

मामला में लंबा समय तक चलल जिरह के दौरान केंद्र कानून के पक्ष में दलील दैत कहलक कि एकर उद्देश्य समाज के सामाजिक आ आर्थिक रूप स पिछड़ल वर्ग के जीवन स्तर में सुधार अनवाक अछि।

ई कानून संविधान मेंच्अनुच्छेद 21 [ए] के प्रावधान के जरिए तैयार कायल गेला, जे कहैत अछि कि सरकार छह स 14 वर्ष के आयु के सभ्च्ी बच्चा के निशुल्क आ अनिवार्य शिक्षा प्रदान करत ।

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