"अपन भाषाक अखवार " मिथिला आवाज " पढवाक लेल क्लिक करू www.mithilaawaz.org E mail - sonumaithil@gmail.com Mobile-9709069099 & amp; 8010844191

Tuesday, August 13, 2013

राष्ट्रकेँ एकसूत्रमे बन्हनिहार अद्वितीय गीत "वन्देमातरम् "

भने जन-गण-मन आ वन्देमातरम् केर दर्जा लगभग समान अछि, मुदा जहाँ धरि चर्चित रहबाक बात अछि तँ वन्देमातरम् केर जवाब नञि अछि। अपन जन्मक 140 बरखक क्रममे ई गीत पहिने अंग्रेज शासकक समयमे प्रतिबन्धित रहल आ काँग्रेस द्वारा 1905 मे राष्ट्र गीतक रूपमे स्वीकार कयल जेबाक बादसँ एहिसँ सम्बन्धित चर्चा आ वाद-विवाद कहियो नञि थम्हल। सभ आपत्ति आ चुनौतीक  बादो जँ ई गीत स्वाधीनता आन्दोलनमे सम्पूर्ण राष्ट्रकेँ भावात्मक दृष्टिसँ एकजुट करबामे अद्वितीय भूमिका निमालक आ भारतीय गणतंत्रक सर्वाधिक महत्वपूर्ण प्रतीकमे गनल गेल तँ मानऽ पड़त जे एहिमे किछु तँ बात अछि। मोहम्मद अली जिन्ना, सैयद अली इमामक अतिरिक्त कतेको इतिहासकार, विद्वान, राजनीतिज्ञक विरोधक बादो हिन्दू-मुस्लिम स्वाधीनता सेनानी आ बलिदानी लोकनिक ठोर वन्देमातरम् केर उच्चारण करैत नञि थाकल तँ ई कोनो सामान्य युद्धक घोष नञि भऽ सकैत अछि। एहि गीतमे अन्तर्निहित धार्मिक पूर्वाग्रह आ  तथाकथित हिन्दुत्ववादी झुकावक बादो जँ महात्मा गान्धी, सुभाष चन्द्र बोस, जवाहरलाल नेहरू, डॉ. राजेन्द्र प्रसाद, मौलाना अबुल कलाम आजाद, आचार्य नरेन्द्र देव, रफी अहमद किदवइ, मैडम बीकाएजी कामा, अरविन्द घोष, लाला लाजपतराय आ मौलाना अहमद अली सन असन्दिग्ध रूपसँ धर्मनिरपेक्ष नेता जँ एकरा पक्षमे ठाढ़ भेला तँ अवश्य एकर कोनो पैघ कारण रहल होयत। अवसरवादी राजनीतिज्ञ लोकनिक कतेको प्रहारकेँ सहैत तथा धार्मिक व्याख्याकार लोकनिक आपत्तिक सामना करैत जँ ई सय बरखसँ भारतीय राष्ट्रीय स्वाभिमानक प्रतीक बनल अछि तँ मानऽ पड़त जे ई असामान्य रूपसँ कालजयी रचना अछि। संस्कृत सन अपेक्षाकृत कठिन भाषामे लिखल हेबाक बादो वन्देमातरम् केर  उच्चारण आइ सेहो कतेको भारतीयकेँ राष्ट्र प्रेममे सरोबोर करबाक क्षमता रखैत अछि। भने ओ देशक कोनो भागमे किए ने रहैत होथि। ई गीत भारतीय स्वाधीनता आन्दोलनक इतिहासक अभिन्न अंग अछि। आ एकरा निकालि देल जाय तँ स्वाधीनताक लड़ाइ केर कथा नीरस आ अप्रामाणिक भऽ जायत। वन्देमातरम् केर पंक्तिमे भारतीय राष्ट्रवादक गाम्भीर्य तँ नुकायले अछि, राष्ट्रक प्रति असीम समर्पणक सेहो अनन्य अभिव्यक्ति देखबा लेल भेटैत अछि। एहन समर्पण आ एहन आस्था जकरा बदलामे कोनो तरहक आकांक्षा नञि अछि, जे पूर्ण रूपे ँ बिना शर्त आ स्वत: स्फूर्त अछि। ठीक तहिना जेना एक गोट मायके ँ नेनाक प्रति होइत अछि। वन्देमातरम्मे अभिव्यक्तिक ई अथाह गम्भीरता सम्भवत: माय आ नेनाक बिम्बक कारणे ँ प्रकट भेल अछि। माय केर प्रति सम्मान, ओकर सपना पूर्ण करबाक आकांक्षा, ओकर स्वाभिमानक रक्षाक उत्कट इच्छा आ ओहिसँ भेटल निरन्तर, निस्सीम प्रेमक प्रति आभारक अभिव्यक्तिमे किछुओ असामान्य या आडम्बर युक्त नञि भऽ सकैत अछि। वन्देमातरम्मे बंकिम चन्द्र चटर्जी माता काली आ दुर्गाक बिम्बक प्रयोग करैत मातृभूमि लेल एहि कारणे ँ स्वाभाविक भावक शब्द देलनि अछि। भऽ सकैत अछि जे वन्देमातरम् केर स्थानपर कतेको अन्य रचना सेहो भारतीय स्वाधीनता संग्रामक समयमे एही तरहेँ गाओल जाइत हो आ सम्भवत: ओहो एतेक श्रद्धा आ सम्मानक संग-संग राष्ट्रीय प्रतीकक बीच प्रतिष्ठित कयल जाइत आ सम्भवत: ओकर उच्चारण सेहो हमरा लोकनिक हृदयमे स्वदेश प्रेमक वैह अथाह धारा बहबैत। एहि शब्दक साहित्यिक, सांस्कृतिक आ सामाजिक महत्व अछि, इतिहास एकरा महत्वपूर्ण आ प्रिय बनेलक अछि। स्वाधीनता आन्दोलन आ भारतीय राष्ट्रीय अस्मिताक प्रतीकक रूपमे वन्देमातरम् हमरा लोकनि लेल सभसँ पैघ सम्मानक पात्र अछि। एकर शब्द किछु आर रहैत तैयो एकर महत्व आ प्रभावमे कोनो कमी आबऽ वला नञि छल। वन्देमातरम् हमरा लोकनिक राष्ट्र गीत अछि आ यैह एक गोट वास्तविकता अछि। ईहो किनकोसँ नुकायल नञि अछि जे एकर किछु भागपर अन्य समुदायके ँ आपत्ति अछि आ हुनका लोकनिक अपन आधार अछि जकरा पूरापूरी नकारब असलीहतसँ दूर पड़ायब होयत। स्वयं जवाहर लाल नेहरू आ गुरुदेव रवीन्द्र नाथ टैगोर ई बात मानि चुकल छथि। ओना ईहो असलीहत अछि जे एहि गीतक स्थान क ोनो आर गीत नञि लऽ सकैत अछि कारण शब्द भने कतेक ो आकर्षक गढ़ि लेल जाय, इतिहास नञि गढ़ल जा सकैत अछि।
एहि बातमे कोनो सन्देह नञि अछि जे वन्देमातरम् एक गोट गीत हेबाक बादो स्वाधीनता संग्रामक नारा बनि गेल छल। ई नारा क्रान्तिकारी लोकनिक भारत माताक जय, जय हिन्द, अंग्रेज भारत छोड़ आदि नाराक तुलनामे बेसी नम्मा कालखण्ड धरि, बेसी विस्तृत भूभागपर तथा बेसी व्यापक अर्थमे देखल गेल। स्वाधीनता संग्राममे भाग लेबऽ वला फराक-फराक विचारधाराक  लोक एकरा अपनेने छला। काँग्रेस एकरा राष्ट्र गीतक दर्जा देलक, हिन्दुत्ववादी शक्ति सेहो एकरा घोषवाक्यक रूपमे स्वीकार केलक आ क्रान्तिकारी लोकनि युद्धघोषक रूप दऽ देलनि। एतेक धरि जे मोहम्मद अली जिन्ना सन मुस्लिम नेताकेँ सेहो बीसम शताब्दीक तेसर दशक धरि एहिपर कोनो आपत्ति नञि भेलनि। ओ तँ बादमे जिन्ना मुस्लमानपर अपन प्रभाव मजगूत करबा लेल आ काँग्रेसकेँ एक गोट हिन्दुवादी पार्टीक रूपमे प्रचारित करबाक प्रयासक अन्तर्गत कहलनि जे काँग्रेससँ तखने बात करता जखन ओ वन्देमातरम्केँ त्यागि देत।
कहल जाइत अछि जे महात्मा गान्धी वन्देमातरम्केँ राष्ट्र गान बनेबाक पक्षधर छला। जुलाइ 1939 मे ओ ‘हरिजन’ मे लिखने छला जे एहि गीतक स्रोत किछु रहल हो, कोना आ कहिया एहि गीतक रचना कयल गेल, ई जनने बिनु एतेक निश्चित रूपसँ कहल जा सकैत अछि जे विभाजनक दिनमे बंगालक मुसलमान आ हिन्दू समुदायक बीच एक गोट अत्यन्त प्रभावशाली   युद्धघोष बनि गेल छल। ई एक गोट साम्राज्यवाद विरोधी उद्घोष छल। गान्धीजी ईहो कहलनि जे जँ क्यौ एकरा अपन धार्मिक मान्यताक प्रतिकूल बुझैत अछि तँ ओक रा एहि गीतक गायन करबा लेल विवश नञि कयल जेबाक चाही।
कलकत्तामे आयोजित काँग्रेस कार्यसमितिक बैसारमे पास कयल गेल प्रस्तावमे सेहो एहि बातके ँ रेखांकित कयल गेल छल। कार्यसमिति कहने छल जे एहि गीतके ँ ओकर मूल पोथी आनन्द मठसँ फराक कऽ कऽ देखल जेबाक चाही। प्रस्तावमे कहल गेल अछि जे एहि गीतक शब्द सम्पूर्ण भारतमे आ विशेष रूपसँ बंगालमे ब्रिटिश साम्राज्यवादक विरुद्ध संघर्षमे लोक सभकेँ तागति देने छल आ हुनका लोकनिकेँ प्रेरित केने छल। ई गीत अभिवादनक ढंगमे सेहो बदलि गेल अछि जे  सदिखन स्वतंत्रता लेल कयल गेल संघर्षक स्मरण देयबैत रहत। काँग्रेस 1937 मे सुभाष चन्द्र बोस, जवाहर लाल नेहरू, मौलाना अबुल कलाम आजाद आ आचार्य नरेन्द्र देवक समितिक गठन वन्देमातरम् केर सन्दर्भमे मुसलमान सभक आपत्तिक अध्ययन आ समाधान करबा लेल कयल
गेल छल।
समिति मुसलमानक किछु आपत्तिकेँ उचित मानैत कहने छल जे एहि गीतक आरम्भिक अन्तराकेँ मात्र राष्ट्र गीतक रूपमे गाओल जाय कारण एहिमे किछु आपत्तिजनक नञि अछि।
25 अगस्त 1948 के ँ संविधान सभाकेँ सम्बोधित करैत पण्डित जवाहर लाल नेहरू जन-गण-मनकेँ राष्ट्रगान बनेबाक निर्णयक घोषणा केने छला। तखन ओ वन्देमातरम् आ जन-गण-मन केर बीच उपजायल जा रहल विवादपर क्षोभ प्रकट करैत वन्देमातरम् केर महत्वपर प्रकाश देने छला जे ई दुर्भाग्यपूर्ण अछि जे एहि गीतक बीच विभेद करैत किछु दलील देल जा
रहल अछि।
वन्देमातरम् तँ स्पष्ट रूपसँ आ निर्विवाद रूपसँ भारतक प्रधान राष्ट्रीय गीत अछि, जकर महान ऐतिहासिक परम्परा अछि आ जे स्वाधीनताक लड़ाइसँ अभिन्न रूपसँ जुड़ल अछि। एकर ई दर्जा सदिखन बनल रहत आ कोनो आन गीत एकर स्थान नञि लऽ सकैत अछि।
बंकिम चन्द्र चटर्जी 1876 मे वन्देमातरम् केर  रचना केलनि। बादमे 1882 मे ओ एकरा अपन उपन्यास आनन्द मठमे सम्मिलित केलनि। प्रसंगवश ईहो कहि दी जे किछु लोकक तर्क अछि जे आनन्द मठमे मुसलमानक सन्दर्भमे कयल गेल टिप्पणी असलीहतमे अंग्रेजक विरुद्ध प्रच्छन्न रूपसँ कयल गेल टिप्पणी छल, कारण ओहि समय अंग्रेजक विरुद्ध सोझे किछु कहब असम्भव छल। गुरुदेव रवीन्द्र नाथ टैगोर एहि गीतक संगीत देने छला आ 1896 मे पहिल बेर ओ कलकत्तामे काँग्रेसक 12म अधिवेशनमे एकरा गेने छला। फेर 1905 मे गुरुदेवक भतीजी सरला देवी चौधरानी बनारसक काँग्रेसक अधिवेशनमे एकरा गेलनि। 7 सितम्बर 1905 केँ काँग्रेस एकरा राष्ट्र गीत घोषित केलक। 1907 मे  स्टुटगार्ट (जर्मनी) मे मैडम कामा अन्तर्राष्ट्रीय समाजवादी काँग्रेसमे भारतक राष्ट्रीय ध्वज फहरेने छली ओकरा मध्यमे वन्देमातरम्
लिखल छल।
अरविन्द घोष आ लाला लाजपतराय अपन अखबारक नाम वन्देमातरम् रखने छला। फेर 1927 मे शहीद अशफाक उल्लाह खान वन्देमातरम् केर जय घोष करैत फाँसीपर झूलि गेला। 1950 मे संविधान सभाक अध्यक्ष आ प्रथम राष्ट्रपति डॉ. राजेन्द्र प्रसाद ई कहि सम्पूर्ण विवाद समाप्त कऽ देलनि जे वन्देमातरम् केर दर्जा जन-गण-मनसँ कम नञि अछि।
वन्देमातरम् भारतक स्वाधीनताक इतिहासक एक गोट महत्वपूर्ण पक्ष अछि। एहि महान गीतके ँ  ओ सम्मान आ दर्जा भेटबाक चाही जकर ई पत्र अछि। एकर शब्द आ पृष्ठभूमिक सन्दर्भमे वर्त्तमान आपत्तिक बादो एहन करब सम्भव नञि अछि, जँ हम एकर शब्दावलीक बदला एकर प्रतीकात्मक महत्वकेँ बुझी। सभ समुदाय एक गोट महत्वपूर्ण राष्ट्रीय प्रतीकक रूपमे एकरा पूर्ण सम्मान प्रदान करी, ओना लोकक धार्मिक भावनाक ध्यान रखैत एकरा किनकोपर थोपल नञि जाय, सम्भवत: यैह एहि सम्बन्धित विवादक सर्वमान्य समाधान भऽ सकैत अछि। 

No comments: