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Thursday, August 1, 2013

‘झिझिर कोना’ खेलाइत मिथिला-मैथिली आन्दोलन

‘झिझिर कोना, झिझिर कोना, कोन कोना, सासु घर पुतहुआ कोना, धीयापुताक खेलक ई सांगीतिक समूह-स्वर हमर ध्यान अनचोके मिथिला-मैथिली आन्दोलनपर केन्द्रित कऽ दैत अछि। तहिना जखन कखनो मिथिला-मैथिली आन्दोलनपर विचार करै छी किंवा एकरा लगसँ हिआसै छी हमरा कानमे नेना-भुटकाक खेल ‘झिझिर कोना केर ई प्रश्नोत्तरी अनुगुञ्ति होबऽ लगैत अछि। दुनू एक-दोसराक पर्याय जकाँ बुझाइत अछि। दुनूमे अद्भुत समानता।  से उद्देश्य आ गतिविधि दुहू दृष्टिञेँ। बच्चा सभ ई खेल मनोरञ्जन आ समय बितेबा लेल खेलाइ छथि। कोनो काज नञि अछि तँ चलू ‘झिझिर कोना खेलि ली। नेना लोकनिमे बहुतोकेँ एकर लुतुक सेहो। आन खेल नञि रुचै छनि। घुरिफिरि कऽ यैह खेलता। एहने सन हाल मैथिली-मिथिला आन्दोलनोक देखबामे अबैत अछि।
    जेना ‘झिझिर कोना खेल कोनो कोठली आकि दलानक कोन भरि खेलल जाइत अछि तहिना आन्दोलनी सेहो निर्धारित कोनसँ बहरेबा लेल तैयार नञि। ‘झिझिर कोना मे होइत अछि ई जे चारि अथवा एहिसँ बेसी कोनसँ सटि कऽ नेना ठाढ़ रहै छथि। एक गोटा बीचमे ठाढ़ रहैत अछि। कोन धेने ठाढ़ बच्चा सभ एक-दोसरासँ स्थान बदलै छथि। एक कोनसँ दोसर कोन धरि पहुँचबासँ पहिने जँ बीचमे ठाढ़ नेना किनको छू देलक आकि खाली कोनो कोन धऽ लेलक तँ छुआ गेल आ कि स्थान पेबासँ वञ्चित रहि गेल खेलाड़ी बीचवला स्थानपर आबि जाइत छथि। स्थान-परिवर्तनसँ पहिने कोनमे ठाढ़ नेना सभ अपनामे प्रश्नोत्तरी करैत अछि। एक समूह पुछैत अछि ‘झिझिर कोना झिझिर कोना कोन कोना?’, दोसर समूह उत्तर दैत अछि ‘सासु घर पुतहुआ कोना, आ गौँ ताकि बीच वला खेलाड़ीसँ बचैत दौड़ि कऽ कोन बदलि लै छथि। ई खेल स्थान बदलियो कऽ खेलल जाइत अछि। आइ एक दलानपर तँ काल्हि दोसर घरमे। कहियो स्कूलपर तँ कहियो गामक मन्दिरपर। खेलाड़ियो निर्धारिते रहैछ। एक टोलक बच्चा एक ठाम। धोखा-धाखी कहियो कऽ आनो टोलसँ क्यौ ससरि कऽ आबि गेल तँ ओकरो सम्मिलित कऽ लेल गेल। वर्चस्वपर आघात किंवा आन कोनो कारणेँ जँ मतान्तर रहल तँ दोसर टोलवलाक ‘बायकाट कऽ देल गेल। कहियो कऽ अपना गोलमे एहि लेल वाकयुद्ध आ मल्लयुद्ध भऽ जाइत अछि आ फूट-फूट दू गोल भऽ गेल। एक गोलक खेलाड़ी दोसरामे गेल तँ ओहो बारि देल गेल।
   अपवादकेँ छोड़ि दी तँ मैथिली-मिथिलाक विकासक अभियानो ‘झिझिर कोना जकाँ चलि रहल अछि। जते गाम, जते टोल, तते गोल। खेलाड़िए जकाँ प्रतिस्पर्द्धी भावसँ भरल। एक-दोसराकेँ पछाड़बा लेल अपस्याँत। एहि फेरीमे जँ गोले भहरि जाय तँ तकरो चिन्ता नञि। एहू खेलक कोन निर्धारित अछि। दरभंगा-मधुबनीक एहन दलान बेसी अछि जाहि ठाम ई खेल बरोबरि चलैत अछि। स्थानीय तँ सहजहिँ बाहरोक अभियानी एही दिस बेसी धपायल। एमहर सहरसा दिस सेहो हुलकी मारल जा रहल अछि। दरभंगा, पटना आ कि राँचीक पैघ-छोट गोलक प्रभावी गतिविधिक परिधिमे समग्र मिथिला नञि अबैत अछि। खेलाड़ियो निर्धारित। दलान बदलि कऽ जँ आन नगर-महानगरक भेबो कयल तँ खेलाड़ी ओतबे, वैह जे पहिनेसँ गोलमे छथि। हँ, ओकरा जरूर साझी कऽ लेल जाइत अछि जाहि दलान आ कि कोठलीपर ई होइत अछि। खेल समाप्त भेलाक बाद साझी कयल गेनिहार धोखे-धाखी ताकल जाइ छथि।
   एमहर जखन खेलक बीचमे ठाढ़ खेलाड़ीकेँ देखै छी तँ ई बदलैत भेटै छथि। कहियो कऽ बीचमे ठाढ़ सामान्य मैथिल जनता भेटै छथि जे निर्विकार ठाढ़ छथि। मूकदर्शक टा बनल। हुनका जेना एहि खेलमे कोनो रुचिए नञि होनि। ने ककरो छूबाक प्रयास आ ने खाली कोन धरबाक उत्कण्ठा। कोन धऽ झिझिर कोना खेलाइत आन्दोलनीकेँ सेहो एकर फिकिर नञि जे बीच वलाक गतिविधिक बिना खेल अधखरू अछि। ओ अपने मगन भेल सुर मिलेबामे मस्त ‘झिझिर कोना झिझिर कोना कोन कोना, सासु घर पुतहुआ कोना। कहियो कऽ बीचमे ठाढ़ मिथिला आ मैथिली नजरि अबै छथि जिनका देखि अनुमान होइत अछि जे ओ अपन सन्तानकेँ ‘झिझिर कोना खेलाइत देखि प्राय: ई सोचैत रहै छथि जे हुनके लेल प्रयास कऽ रहल बाल-बच्चा हुनकासँ छुएबाक डरेँ किए पड़ा रहल अछि? हुनका कोनो कोन किए ने धरऽ दऽ रहल छनि। हुनके नामपर आयोजन करैत अछि, हुनके गुणगानमे समय बितबैत अछि, हुनके विकासक लेल जान उपछि देबाक घोषणा करैत अछि आ आयोजनक उपलब्धिक प्रसंग चिन्तन करबाक पलखतियो ने बहार करैत अछि। सभ सन्तान हुनका नामपर एकठाम बैसबासँ कन्छी कटैत अछि। अपवादकेँ छोड़ि प्राय: लोक स्वयंभू नेता बनबाक जोगारमे बेहाल अछि। आन्दोलनकेँ लक्ष्य धरि पहुँचेबाक घोषणाकेँ मूर्त्तरूप देबाक प्रति क्यौ साकांक्ष नञि अछि। से जँ नञि तँ अपन गतिविधिकेँ माटिसँ ने जोड़ैत? एकर बीज धरतीमे ने रोपैत? कोनो आन गाछक साँङह जकाँ उपयोग कऽ आन्दोलनकेँ अमरलत्ती जकाँ नञि ने चतरऽ-पसरऽ दैत? ‘मिथिला-मैथिली तखन आर सीदित भऽ उठै छथि जखन अपना नामपर लोककेँ जमा कऽ अभियानी द्वारा ओकर अपना रुचि-रसक अनुरूप बात-व्यवस्था देखै छथि। सभकेँ समेटि कऽ अपना पक्षमे ठाढ़ केनिहारक प्रतीक्षा ‘मिथिला-मैथिली अनन्त कालसँ करैत ‘झिझिर कोना केर खेल देखि रहली अछि। हमरा कानमे एक कविक ई पाँती सुना पड़ैत अछि-
  ‘भाषा नेता चिन्तित गुरुपद पयबा लय
     साहित्यकार युग नायक कहबयबा लय
    अनका नीचाँ धकियबामे लागल अछि
    अथवा अपना विज्ञापनमे पागल   अछि
   आ जखन ‘झिझिर कोना मे कोनो आन गोलक  अभियानी, खेलाड़ी सन बीचमे नजरि अबै छथि तखन खेल-भावनेपर आघात शुरू भऽ जाइत अछि। कोनमे ठाढ़ खेलाड़ी कोन बदलबे लेल तैयार ने जे कहीँ धोखोसँ बीचवला ने कोन धऽ लेअए। एहि डरेँ एके कोनमे ठाढ़ भेल जपैत रहै छथि ‘झिझिर कोना झिझिर कोना कोन कोना, सासु घर पुतहुआ कोना। बीचो वला ककरो छू कऽ सराबऽ लेल तैयार नञि, ओ सदिखन कोन धरबाक ब्योँतमे। एक गोल जँ दोसर टोल गेल तँ ओहि ठामक लोककेँ भड़केबाक जोगारमे लागल-भीड़ल। परिणाम ओहि टोलसँ पहिने पहुँचल गोलक खेल भऽ गेल गोल। एक गोट गोल दलान बदलि पहुँचल दिल्ली, मुम्बइ, नेपाल तँ दोसर गोआ, हैदराबाद, आगरा। प्रवासी मैथिल आ मिथिला-मैथिली संस्थामेसँ अधिकांश ताबते सक्रिय-सजग जाबत अपना धरतीसँ टीम आबि ‘झिझिर कोना खेलायल। गौआँ-घरुआकेँ एहिसँ कोनो माने-मतलबे ने। साकांक्ष लोक एतबेसँ सन्तोष करैत जे खेलमे भने समय नष्ट भऽ रहल हो, कमसँ कम खेलेनिहारक स्वास्थ्य लाभ तँ भैए रहल छै। आर नञि किछु तँ खेलक माध्यमे मिथिलाक सुगन्धि तँ पसरैत अछि। मैथिलीक बोल तँ अनुगुञ्जित होइत अछि। एहू खेलपर विराम लगा देल जाएत तँ मैथिलीक दू टा पाँतियो कतऽ सुनब? आ तेँ सगरो अनघोल अछि- ‘झिझिर कोना झिझिर कोना कोन कोना, सासु घर पुतहुआ कोना।

प्रस्तुति : अमलेन्दु शेखर पाठक

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