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Tuesday, June 2, 2009

मिथिला दर्शन हकासल छी: कन्हिया झा

मिथिला दर्शन हकासल छी पियासल छी
मिथिला दर्शन के आशल छी!
मदारी छी भिखारी छी मिथिला दर्शन लेल पागल छी!!
देखब पावन सीता केर धामतहन जायब
विद्यापति गामचरण रखबा स पहिनहि हम माथ माटी में साटब
जतय आयल छला शंकर बनय विद्यापति के चाकरकिछु दूर और जायब हमजायब उच्चैठ देवी हम जतय कालीदास के देवी वरदान दय विलीन भेली पूजब हुनकर ओही प्रतिमा के करब सुमिरन ओही महिमा के देखब वाचस्पति नगरी केकरब गुणगान पगरी के जतय के रीति अछि सबदीन "साग खाई बरु जीबन काटब नई झुक देब पगरी केअतिथि देवो भव हम सबदीनजपिते रहब अई कथनी के"हकार कोजगरा के पूरब पान मखान लए क घुरबसामा चकेबा चौठी चंदा ब्रत करब हम छैठ केसप्ता बिप्ताक कथा सुनि क ध्यान करब गुरुदेब के जायब राघोपुर एक बेर हम करब दर्शन ओहि धरती केजतय विद्याधर जनम लेलाजिनक कामेश्वर सिंह छला चेला देखब मिथिला केर पेंटिंग जकर गुणगान चाहू दिशजखन घुरी आबय लगाब हम एक टुक माटिक लायब संगनित उठी माथ स साटबकरब सुमिरण ओहि मिथिला के विसरब ने मिथिला दर्शन के

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