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Saturday, November 30, 2013

अतीत पर गर्व, वर्तमान पर पीड़ा

आंखि स्क्रीन पर टिकल छल। मोन बेर-बेर एकटा गप दोहरा रहल छल- काश! अगर संरक्षण भेल रहिते त आइ हमर पहचान किछु आओर हाइते। दरभंगा क प्रशासनिक व्यवस्था हो वा फेर सुन्दर सरपट सड़क पर दौड़ैत बग्गी वा रोल्स रॉयल क नाचैत पहिया, सपना सन लागि रहल इ हकीकत कोनो सपना स कम नहि अछि। दरभंगा क बेला पैलेस स्थित विशेश्वर सिंह सभागार मे अपन स्वर्णिम अतीत कए देख सब स्तब्ध छल। दरभंगा फिल्म क्लब क तत्वावधान मे आयोजित वाइव्रेन्ट दरभंगा नामक एहि कार्यक्रम मे 1931 स 1941 क बीच बनल किछु फिल्म क 12 गुना 10 क स्क्रीन पर प्रदर्शन भेल त सभागार कई दशक पाछु चल गेल। ब्लैक एंड ह्वाइट क संगहि रंगीन फिल्म सेहो देखबा लेल भेटल। इ जरूर से एतबा पुरान फिल्म आजुक एचडी सन स्पष्ट नहि छल, बावजूद ओ अपन सुहनगर इतिहास कए देखा देलक जे देखि उत्साह स शरीर क एक एक टा अंग मे कंपन भ गेल। समारोहक क पहिल प्रस्तुति 1941 मे बनल फिल्म छल।  इ संभवत: भारत क पहिल रंगीन वीडियो अछि। एहि मे तात्कालिक राजकुमार जीवेश्वर सिंह क उपनयन देखाओल गेल। एहि अवसर पर करीब 130टा राजा दरभंगाक पाहुन बनल छलाह। हुनका सब लेल दरभंगा विशेष विमान क व्यवस्था केने छल, जेकर गवाह दरभंगा क एयरपोर्ट आ इ फिल्म अछि। एहि मे दरभंगाक ओ शान देखबा लेल भेटल जे आब खिस्सा भ चुकल अछि।
दोसर फिल्म ओहि कार्यक्रमक छल जाहि मे शामिल हेबा लेल भारत क वायसराय विटोरी दरभंगा भ्रमण पर आयल छलाह। एहि फिल्म सबहक माध्यम स कईटा नव जानकारी सेहो सभागार मे बैसल लोक सब कए प्राप्त भेल। जेना जखन देश मे केवल दूटा एयरलाईन्स कंपनी होइत छल तखन दरभंगा क अपन एयरलाइन्स कंपनी छल, जेकरा लग दर्जन भरि जहाज छल। समारोह मे देखाउल गेल फिल्म सब मे विदेशी मेहमान सब लेल आयोजित खास पार्र्टी, महमान लेल विशेष अतिथिशाला यूरोपियन गेस्ट हाउस क सुंदरता, मधुबनी स्थित राजनगर किला (जे 1934 क भूकम्प मे खण्डहर भ गेल) सेहो दिखबा लेल भेटल। स्थानीय विधायक संजय सरावगी क कहब छल जे राजनगर क महल क खूबसूरती भारत क कोनो महल क खूबसूरती कए चुनौती द रहल छल। ओ महल कए देख पूरा सभागार वाह आ ओह स्वर उदघोष केलक। समारोह मे सिंहद्वार क खूबसूरती कए देख बहुत लोकक आंखि नोरा गेल। समारोह मे देखाउल गेल अन्य फिल्म मे रेलवे क स्पेशल सैलून दरभंगा क हेरायल धरोहरक टीस जगा देलक। एकटा फिल्म दरभंगाक कारोबारी चेहरा कए उजागर केलक। जाहि कालखंड मे लोक चीनी स अपरिचित छल ओहि समय मे दरभंगाक लोक लोहट मे आधुनिक मशीन युक्त चीनी मिल लगाकए नहि केवल लोक कए चीनी देलक बल्कि लोक कए रोजगार आ किसान कए नकदी फसल देलथि। 1903 मे स्थापित भारत क पहिल अत्याधुनिक चीनी मिल देखबा लेल बिहारक तत्कालीन राज्यपाल क भ्रमण देखबा लेल भेटल। लोहट पर आधारित एहि सिनेमा स दरभंगा क नेतृत्वकर्ता क दूरदर्र्शी व्यावसायिक सोच देखबा लेल भेटल। कार्यक्रम क अंतिम प्रस्तुति एकटा एहन सिनेमा छल ले दरभंगाक बदलल भूगोल कए देखा देलक। एकटा रील मे पोलो क अंतराष्ट्रीय मैच, त दोसर रील मे फुटबाल मैच। पोलो मैदान मे विदेशी खिलाडी आ भारतीय खिलाडी क बीच भ रहल मैच क दौरान दर्शक क भीड़ देख वीरान पड़ल पोलो मैदान सभागार मे खेल प्रेमी लेल उदासी क माहौल बना देलक। भारतीय फुटबाल संघ क नींव सेहो दरभंगा मे राखल गेल छल, जे एकटा फिल्म क प्रदर्शन स बुझबा लेल भेटल। आइ दरभंगा टा नहि पूरा देश इ बिसरि गेल अछि। संघ क पहिल अध्यक्ष विश्वेश्वर सिंह क नाम पर शुरू भेल कप बन्द भ गेल, जखनकि पहिल सचिव क नाम पर शुरू सन्तोष ट्रॉफी आइ तक आयोजित भ रहल अछि। समारोह मे राज परिवारक संग संग दरभंगा कए बनेबा मे जाहि परिवार सबहक योगदान रहल ओहि परिवार क वंशज सब कए विशेष रूप स आमंत्रित कैल गेल छल। मंच स कार्यक्रम क उद्घोषक आ सूत्रधार आशीष झा कहला जे एहि कार्यक्रम क उद्देश्य केवल इतिहास स साक्षात्कार नहि छल बल्कि वर्तमान कए सुंदर बनेबाक कोशिश सेहो अछि। इस अवसर नगर विधायक संजय सरावगी कहला जे अगर हम धरोहर कए निर्माण नहि क सकैत छी त कम स कम एहि धरोहर सब कए नष्ट करबाक काज सेहो नहि करि। ओ धरोहरक संग भ रहल उपेक्षा कए रेखांकित करैत एकरा शीघ्र बंद करबाक मांग केलथि। संस्कृत विश्वविद्यालय क कुलपति डॉ रामचंद्र झा कहला जे इ भूमि ज्ञान क केंद्र रहल अछि आ ओ दिन जरूर आउत जहिया इ भूमि फेर स ज्ञान क केंद्र बनत। एहि मौका पर कईटा गणमान्य लोेक उपस्थित छलथि। कार्यक्रम क आयोजक मिराज सिद्दिकी धन्यवाद ज्ञापन केलथि। दरभंगा लेल सामान्य कार्यक्रम स अलग भेल एहि कार्यक्रम कए देखि सभागार स निकलल एक एक टा दरभंगवी क चेहरा पर गौरवशाली अतीत क गर्व आ वर्तमान क पीड़ा क मिश्रण भाव साफ देखा रहल छल।

साभार : हमर अहि लेख के सम्पादित अंश ई-समाद.कॉम पर प्रकाशित अछि.  

Thursday, November 28, 2013

मूक रहितो फिल्म बाँचि रहल छल स्वर्णिम अतीत

‘वैवरेण्ट दरभंगा’ केलक अभिभूत

दरभंगा, 28 नवम्बर,  फिल्ममे हवाइ जहाज उड़ि रहल छल आ लोकक मन सिहा रहल छल। तहिया आइ सन संसाधन नञि छल आ दरभंगाक हवाइ अड्डासँ एक-दू नञि कतेको जहाज उड़ि रहल छल, उतरियो रहल छल। जे असलीहत छल से आइ सपना अछि। दरभंगावासी देखि रहल छला लक्ष्मीश्वर विलास, राजनगरक ऐतिहासिक आलीशान भवन, मन्दिर, हाथी आ घोड़ा, पोलो खेलाइत महाराज आ अंग्रेज लोकनिकेँ, फुटबालक राष्ट्रिय मैच आदि। भखरल वर्त्तमान दर्शककेँ हठात् स्वर्णिम अतीतपर विश्वास नञि जमऽ दऽ रहल छल, मुदा छल सत्य। ई सत्य गौरवशाली अतीतसँ सभक आँखिमे चमक भरि रहल छल तँ धरोहरिक उपेक्षा केर वर्त्तमान सभकेँ विषादसँ सेहो भरि रहल छल। फिल्म मूक रहितो बहुत किछु बाजि रहल छल। अवसर छल बृहस्पतिकेँ पीटीसीक ऐतिहासिक विशेश्वर सिंह सभागारमे दरभंगा फिल्म क्लब आ ई समाद दिससँ आयोजित ‘वेवरेण्ट दरभंगा’ केर। आइसँ 72 बरख पूर्वक रंगीन वीडियो केर माध्यमे वैभवशाली अतीत आ एहिमे समाजक सभ वर्गक सहभागितासँ परिचित करबैत वर्त्तमानकेँ सम्हारबा लेल जागरूकताक सनेस देनिहार एहि आयोजनमे फिटिन, बग्गी, लखमाणी परिवारक सहयोगेँ चिमनीसँ बहाराइत धूआँ, लोहट चिन्नी मिलक निरीक्षण, जीबी डेनवीक आगमन, जीवेश्वर सिंहक उपनयन, दरभंगा जंक्शनपर वायसराय लार्ड लेनलीथगो केर आगमन, प्रशासकीय व्यवस्था आदिक चित्र दर्शककेँ भाव-विभोर केलक। ओतहि दरभंगामे गठित इण्डियन फुटबॉल एसोसिएशनक बेला पैलेसमे भेल पहिल मैचसँ सेहो दर्शक परिचित भेला। एहि अवसरपर तेजकर झा आ सञ्चालन करैत ई समादक आशीष झा फिल्मक प्रसंग बहुत रास जनतब देलनि। संगहिँ एहिपर दुख प्रकट केलनि जे फुटबॉल एसोसिएशनक प्रथम अध्यक्ष राजकुमार विशेश्वर सिंहक नामपर शुरू भेल विश्वेश्वर कप बन्न भऽ गेल। ओ स्थानीय लक्ष्मीश्वर सिंह पब्लिक लाइबे्ररीमे पड़ल धूरा फाँकि रहल अछि ओतहि ओही एसोसिएशनक सचिव महाराजा सन्तोष सिंहक नामपर एखनो ट्राफी चलि रहल अछि। उपेक्षाक बादो किछु दिन पूर्व संस्कृत विविक भवनकेँ एक सर्वेमे 15 महलमे 15म स्थान भेटल जँ संरक्षित रहैत तँ कोना स्थान भेटैत?  एहि अवसरपर कासिंद संस्कृत विविक कुलपति डॉ. रामचन्द्र झा, नगर विधायक सञ्जय सरावगी, पूर्व मेयर ओमप्रकाश खेड़िया धरोहरिक सुरक्षा आ दरभंगाक विकास लेल समवेत प्रयासक बात कहलनि। ओतहि विजय बैरोलिया दरभंगामे पहिल बेर इजोत अनबा लेल अपन पूर्वज कृष्णा बैरोलियाक अवदानकेँ सार्वजनिक रूपसँ राखल जेबासँ अभिभूत छला। आयोजनमे मेराज सिद्दीकी, गौतम,  प्रभाकर झा आदिक सक्रिय सहयोग रहल।

Friday, November 15, 2013

दिल्ली में दू दिवसीय मिथिला महोत्सव काल्हिसँ

नई दिल्ली, अखिल भारतीय मिथिला संध केर तत्वाधान में आईसँ  राष्ट्रिय राजधानी दिल्ली के मावलंकर ऑडिटोरियम में  दू दिवसीय मिथिला महोत्सव मनाओल जायत। कार्यक्रम के उद्घाटन दिल्ली के मुख्यमंत्री शीला दीक्षित करती। विशेष अतिथि मैथिली -भोजपुरी अकादमी केर अध्यक्ष  अजित दुबे आ आम्रपाली ग्रुप के एमडी अनिल शर्मा रहता। पहिल दिनक कार्यक्रम केर पहिल सत्र में स्वतंत्रताक आन्दोलन मे मिथिलाक योगदान, मिथिला मे कीर्तन परम्परा, मैथिली पारम्परिक गीत मे सीता, मिथिलाक लोक संस्कृति, ज्योतिरीश्वर एवं विद्यापति कालीन सामाजिक स्थिति सन गंभीर विषय पर चर्चा होयत । जाहि में  गंगेश गुंजन,  महेंद्र मलंगिया, देवशंकर नवीन,  प्रदीप बिहारी आदि भाग लेतथि। साँझ चारि बजे स’ लोकनाट्य आ सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजनक कायल जायत जाहि मे रंगमंच बेगुसराय केर द्वारा नाटक,  जट – जटिन आ मधुबनी सँ आयल टीम केर द्वारा पमरिया नाच देखबाक सू अवसर दिल्ली वासी के भेटतन्हि। संगहि मैथिली केर प्रसिद्द गायक नंद जी, सुनील पवन, रश्मि दत्त, सियाराम झा सरस आदि केर गायन केर प्रस्तुति सेहो होयत।  
अगिला दिन 17 नवम्बर क’ हिन्दी भवन मे 12 बजे दिन स’ शुरु होयत मिथिला फिल्म महोत्सव । जाहि मे लगभग दस टा मैथिली वृत्तचित्र देखाओल जायत । संग संग एहि फिल्म पर विचार विमर्श सेहो चलैत रहत । 

Wednesday, November 13, 2013

उत्तिष्ठ-उत्तिष्ठ गोविन्द देवोत्थान एकादशी आइ

कार्त्तिक मासक शुक्ल पक्षक एकादशी तिथिकेँ देवोत्थान व्रत कयल जाइत अछि। मान्यता अछि जे आषाढ़ शुक्ल एकादशीकेँ भगवान शयन करै छथि आ भाद्र शुक्ल एकादशीकेँ करोट फेरै छथि। ओतहि कार्त्तिक शुक्ल एकादशीकेँ जगै छथि। एहि तीनू एकादशीकेँ फराक-फराक नामसँ सम्बोधित कयल जाइत अछि। जहिया भगवान सुतै छथि से हरिशयन एकादशी, जहिया करोट फेरै छथि से पार्श्व परिवर्त्तिनी-कर्माधर्मा एकादशी आ जहिया जगै छथि ओ देवोत्थान एकादशीक नामसँ प्रसिद्ध अछि। एहि सभ एकादशीमे व्रत कयल जाइत अछि।  
देवोत्थान एकादशीमे व्रत करबा लेल एकादशी द्वादशी युक्त ग्रहण करबाक चाही। जँ एकादशी तिथिमल रूपी हो तँ तथापि सैह ग्राह्य मानल गेल अछि। कहल गेल अछि जे तिथिक मान एक दिन 60 दण्ड हो तथा दोसर दिन उदय समयमे किछु काल हो तँ ओ तिथि मल कहल जाइत अछि जे व्रतमे त्याज्य थिक, मुदा एकादशीक तिथिमलो व्रतमे ग्राह्य थिक। हँ, दशमी विद्धा एकादशी व्रत दोषपूर्ण मानल गेल अछि। एकादशी व्रतक पूर्वक दिन अर्थात् दशमी आ परवर्ती दिवस अर्थात् द्वादशी दिन एकभुक्त करबाक विधान अछि-
दशम्यां नरशार्दूल! द्वादस्यामपि वैष्णव:।
सम्यग् व्रतफलं प्रेप्सुर्नकुर्यान्नशि भोजनम्।। 
देवात्थान एकादशी दिन मिथिलामे घरे-घरे लोक भगवानक पूजा-अर्चना करै छथि। जतऽ भगवानकेँ जगायल जाइ छनि ओतहि भगवतीकेँ घर करबाक पारम्परिक विधान सेहो होइत अछि। आङनमे तुलसी चौड़ा लग पिठारसँ गृहस्थीक यावन्तो वस्तुक अड़िपन दऽ सिन्दुर लगा एक गोट अष्टदल अरिपन देल जाइत अछि। ओहि अरिपनपर एक गोट पीढ़ी राखल जाइत अछि। ओहि पीढ़ीमे सिन्दुर-पिठार लगा ओकरा चारू कात कुशियार आदिसँ मण्डप बनाओल जाइत अछि। साँझमे तुलसीचौड़ा लग पूजाक यावन्तो सामान फूल, चानन, धूप, दीप नैवेद्य तिल, तुलसीक मज्जर, फूल, माला आदि व्यवस्थित कयल जाइत अछि। नैवेद्यमे सामयिक वस्तु अल्हुआ, सुथनी, सिंहार आदि सेहो रहैत अछि। पीढ़ीक चारू कोनपर दीप देल जाइत अछि। तुलसी चौड़ा आ गोसाउनिक घरमे दीप जरायल जाइत अछि। व्रती स्नानादि कऽ आसनपर बैसि पञ्चदेवताक पञ्चोपचार पूजा करै छथि आ विष्णुपूजा कऽ भगवानकेँ उठेबाक मंत्र पढ़ि हुनका जगबै छथि। नक्त व्रत केनिहार साँझमे फलहार करै छथि आ पूर्ण व्रती राति भरि उपासमे रहि प्रात: काल ब्राह्मण भोजन करा पारण करै छथि। ओहि मण्डपमे पूजा-अर्चना कऽ भगवानकेँ मंत्रक संग उठाओल जाइ छनि। 
भगवानकेँ उठेबाक मंत्र :
ऊँ ब्रह्मेन्द्र  रुद्रैरभिवन्द्यमानो  भवान  ऋषिर्वन्दितवन्दनीय:। 
प्राप्तां तवेयं किल कौमुदाख्या जागृष्व-जागृष्व च लोकनाथ।।
मेघागता   निर्मल   पूर्ण   चन्द्र:   शरद्यपुष्पाणि  मानोहराणि। 
अहं   ददानीति   च   पुण्यहेतोर्जागृष्व   च   लोकनाथ।। 
उत्तिष्ठोत्तिष्ठ गोविन्द! त्यज निद्रां जगत्पते। 
त्वया चोत्थीयमानेन उत्थितं भुवनत्रयम्।। 
एमहर साँझमे भगवतीकेँ घर करबाक पारम्परिक विध सेहो होइत अछि। तुलसी चौड़ा लगसँ गोसाउनक चिनुआर धरि पैरक छाप केर अरिपन देल जाइत अछि आ सिन्दुर-पिठार लागल अछिञ्जल भरल लोटासँ भगवतीकेँ घर करबाक विध पूरा कयल जाइत अछि। भगवानकेँ चढ़ाओल गेल प्रसादक वितरण अपना सर-कुटुम आ समाजक बीच कयल जाइत अछि। मिथिलामे कोनो पाबनि हो आ गीत नञि हो ई कोना भऽ सकैत अछि। बहुत ठाम भगवानक गीत-गायनक परम्परा सेहो अछि।

साभार :  मिथिला आवाज़ मैथिली दैनिक समाचार में प्रकाशित 

Monday, November 11, 2013

आउ संकल्प ली आ बचाबी बहिन सामाकेँ

जँ भ्रूण हत्या करैत रहब, गर्भेमे कन्या-भू्रणकेँ चीन्हि ओकरा नष्ट करैत रहब तखन कोना होयत सामा-चकेवाक ई पर्व? जखन कन्याकेँ उकन्नन करैत रहब तँ भ्रातृ द्वितीया, सामा-चकेवा, रक्षाबन्धन आदि सभक उठाव भऽ जायत। बेटीक अभावमे बेटा सेहो नञि होयत। हमरा लोकनि लेल बहिन कते मंगलकामना करै छथि से रातिमे कने कान पाथि सुनी आ विचार करी, की हमरा लोकनि अपना बहिनक लेल किछु नञि कऽ सकै छी? की हुनक कल्याण-कामना हमरा सभक दायित्व नञि? आउ सामा-चकेवाक एहि पुनीत पर्वपर संकल्प ली जे लिंग परीक्षण कऽ कन्या-भ्रूण हत्यामे हमरा लोकनि रञ्चो मात्र लेल सहभागी नञि होयब। आन भायकेँ सेहो एहि लेल टोकि तँ सकिते छी। जँ एको गोट सामाकेँ धरतीपर एबाक अधिकारसँ वञ्चित करबाक कुत्सित प्रयास हमरा लोकनि रोकि लै छी तँ सत्ते अपन दायित्वक निर्वाह कऽ सकब आ अपना जीवनकेँ धन्य कऽ सकब। 


 रातिक नीरवतामे  बहिन लोकनिक समवेत स्वर पसरब शुरू भऽ गेल अछि। छठिक पारण केर रातिएसँ बहिन लोकनि एकठाम जमा भऽ सामा खेलब आरम्भ कऽ देलनि अछि। भाइ केर दीर्घ जीवन, हुनक सुयश, हुनक समग्र विकास, हुनक गुणक बखान करैत बहिन लोकनिक सामूहिक गीत-स्वर वातावरणमे मिसरी घोरि रहल अछि- ‘गाम के अधिकारी तोँहे बड़का भैया हो...।’
एकरा संगहिँ झरकाओल जा रहल अछि ‘चुगिला’ केर मुँह। बहिन लोकनि ‘साम-चक साम-चक अबिहऽ हे...’ केर संगहिँ माटिक बनाओल कुरूप चुगिला केर मुँह झौँसैत गाबि रहल छथि- ‘इण्डामे गरइ छपपट करै चुगिला केर बहुआ साँझे मरै।’
सगरो मिथिलामे सामा-चकेबा खेलबामे बहिन लोकनि जूटल छथि। से पहिल दिन अबोध बहिन सेहो सामा छूलनि तँ वयोवृद्धा बहिन सेहो। सभ अपन भाइ केर नाम लऽ हुनक कल्याण-कामनामे जुटल छथि। हालेमे जन्म लेनिहार भाइ होथि आ कि एहन वयोवृद्ध भाइ जिनका मुँहमे एगो गोट दाँत नञि बचल होनि सभक नाम गीतमे बहिन लोकनि लऽ रहल छथि। 

पद्मपुराणमे वर्णित अछि कथा 

ओना एकरा लोकपर्व कहि सम्बोधित कयल जाइत अछि, मुदा एकर सम्बन्ध पद्मपुरणाक कथासँ अछि। ओहिमे वर्णित अछि जे भगवान श्रीकृष्णकेँ जाम्वती नामक स्त्रीसँ एक पुत्र आ एक पुत्र छलथिन। पुत्रक नाम छलनि साम्ब आ पुत्री छलथिन सामा। सामा केर विवाह चारुवक्त्रसँ भेल छलनि जे जनकण्ठमे चकबा नामसँ विराजमान छथि। सामाकेँ वृन्दावनसँ अत्यधिक स्नेह छलनि। ओ नित्य वृन्दावन जाथि आ ओहि ठाम सप्तर्षि लोकनिक दर्शन करथि आ कथा-पुराण सुनि घुरि आबथि। एहि बातकेँ चूड़क (चुगिला) नोन-मिर्चाइ लगा श्रीकृष्णकेँ कहलथिन जे सामा चोरा-नुका कऽ वृन्दावन जाइ छथि। चूड़क तेना एहि बातकेँ रखलक जे श्रीकृष्ण क्रोधित भऽ गेला। ओ सामाकेँ श्राप दऽ देलथिन जे अहाँ चोरा-नुका कऽ वृन्दावन जाइ छी तँ पक्षी बनि जाउ आ वृन्दानवनमे वास करू। एहि शापसँ सामा पक्षी भऽ गेली। श्रीकृष्णक एहि श्रापसँ सामाक पति चारुवाक्त्र अत्यन्त दुखी भेला। ओ महादेवक तपस्या आरम्भ केलनि। महादेव प्रसन्न भऽ वरदान मङबा लेल कहलथिन तँ ओ कहलनि जे भगवान श्रीकृष्णक शापसँ हुनक प्रिया सामा पक्षी भऽ गेली अछि तेँ शिव हुनको पक्षी रूप देथि, जाहिसँ ओ वृन्दावनमे हुनका संग रहि सकथि। तखन महादेव हुनका चक्रवाक (चकवा) पक्षी बना देलथिन। ओ सामाक संग वृन्दावनमे रहऽ लगला। एमहर साम्ब ओहि समयमे बाहर छला जखन ई घटना भेल छल। घुमला तँ सभटा जतनब भेलनि जाहिसँ ओ अत्यन्त दुखी भेला। दुखी साम्ब बहिन-बहिनोइ केर उद्धार लेल श्रीकृष्णक आराधना आरम्भ केलनि। पिता श्रीकृष्ण हुनक तपश्चर्यासँ प्रसन्न भेलथिन आ वरदान मङबा लेल कहलथिन। तखन साम्ब अपन बहिन-बहिनोइ केर उद्धार लेल निवेदन केलथिन। एहिपर श्रीकृष्ण कहलथिन ‘कार्त्तिक मास हमर प्रिय अछि। तेँ कार्त्तिक मासक कृष्ण पक्षक पड़िवमे खढ़क वृन्दावन, सप्तर्षि, सामा, चकबा आ अहाँक माटिक मूर्त्ति बना नित्य पूजा करथि। गामक बाहर खेतमे ओकरा घुमावथि। माटिक चुगिला बनाबथि आ ओकर मुँह झरकाबथि। कार्त्तिक पूर्णिमाकेँ मूर्त्ति सभक विसर्जन करथि आ भायकेँ मधुर आदि भोजन कराबथि। तखन सामा शाप मुक्त हेती। ’भगवान श्रीकृष्णक निर्देशक आलोकमे साम्ब अपना देश भरिमे स्त्रीगण लोकनिसँ कार्त्तिक मासमे सामा केर पूजन करेलनि जाहिसँ सामा आ चक्रवाक शाप मुक्त भेला। सामा अपना भाइकेँ आशीर्वाद दैत कहलथिन जे कार्त्तिक मासमे जे कोनो बहिन सप्तर्षिक संग हुनक भाय साम्ब आ हुनक पूजन करती तिनका हुनके सन भाय प्राप्त हेथिन आ ओ सोहाग आ सन्तानसँ भरल-पुरल रहती। पद्मपुरणाक एही कथाक आधारपर सामा-चकेवाक खेल कार्त्तिक मासमे पूर्णिमा धरि बहिन लोकनि पूरा मनोयोगसँ करै छथि। एहि कथानकमे इहो जनश्रुति जुड़ल अछि जे चूड़क वृन्दावनमे आगि लगा सामा आ चक्रवाककेँ डाहबाक प्रयास केलक, मुदा तेहन बरखा भेल जे ओ किछु नञि बिगाड़ि सकल। भाय साम्ब आ बहिन सामाक स्नेहकेँ अपना जीवनमे साकार करबाक अभिलाषासँ बहिन लोकनि आइयो सामा-चकेवाक खेलमे जुटल छथि। बहुत रास बहिन लोकनि अपने हाथे माटिक सामा बनेलनि अछि तँ अधिकांश कुम्भकार द्वारा विभिन्न रंगसँ ढेउरल आकर्षक सामा-चकेबाक मूर्त्ति कीनि हिनक पूजनमे जुटल छथि। सामा-चकेवा संग झाँझी कूकुर, सप्तर्षि, सतभैया चिड़ै, खुरुचि भैया, बाटो बहिन आदि बनाओल गेल अछि। एकरा संगहिँ नव खढ़, सण्ठी आदिसँ वृन्दावन आ पटुआ केर दाढ़ी-मोछक संग चुगिला बनाओल गेल अछि। नित्य रातिमे भोजन-छाजनसँ निश्चिन्त भऽ बहिन लोकनि सामाक डाला माथपर लऽ गामक चौबटिया अथवा कोनो खेतमे जुटै छथि। एकठाम सभ सामा रखै छथि आ एक-दोसराक हाथमे सामा दैत ओरा फेरैत वातावरणमे गीतक मधु-स्वर घोरै छथि- ‘साम फेरलो ने जाय...।’ एहिमे गामक धी-बेटीक सहभागिता तँ अछिए, गामक पुतहु लोकनि सहो जुटल छथि। पुतहु बेसी दूर खेते-खेते नै जेती तेँ घरो लग सामा-चकेवा खेलल जा रहल अछि। एहि लेल बहिन लोकनि नैहर आयल छथि तँ गामक कतेको पुत्रवधू अपना नैहर गेल छथि।

हँसीसँ सरावोर होइत अछि राति 

सामा-चकेवाक खेलक क्रममे ननदि-भाउजक परिहासपर राति सेहो मुसुकि उठैत अछि। ओतहि जखन बहिन लोकनि वृन्दावन जरा ओकरा मिझबैत गबै छथि ‘वृन्दावनमे आगि लागल क्यौ ने मिझाबय हे...’ तँ भाय-बहिनक स्नेहसँ अभिभूतो होइत अछि। बहिन लोकनि जखन चुगिलाक मुँह झरकबैत ओकर अकल्याणक   कामना करै छथि ‘धान-धान-धान भैया कोठी धान, भुस्सा-भुस्सा-भुस्सा चुगिला कोठी भुस्सा’, ‘चुगिला करय चुगलपन बिलैया बाजय म्याउँ धऽ ला चुगिलाकेँ फाँसी देउँ’ तँ वातावरण बहिन लोकनिक समवेत हँसीसँ सराबोर भऽ उठैत अछि। आनन्दपूर्ण एहि प्रक्रियाक बाद सामाक डाला लऽ बहिन लोकनि घर घुरि जाइ छथि। सामाक डालाकेँ शीतेमे राखल जाइ छनि। 


पूर्णिमाकेँ डोलीपर बिदा हेती सामा 

सामा-चकेवाक ई खेल पूर्णिमासँ एक दिन पूर्व धरि चलत। पूर्णिमाकेँ भाइ केरा केर थम केर डोली बनेता। ओहिपर सामा राखल जेती। जेना बेटी-धी केर विदागरी होइ छनि तेना हुनक खोँइछ भरल जेतनि। चूड़ा-दहीक भोग लगतनि। भाय डोलीकेँ कान्ह लगा पोखरि किंवा कोनो धारक कात धरि पहुँचेता। ओहि ठाम मूर्त्तिक विजर्सजन होयत। कतेको ठाम मूर्त्तिकेँ भाय तोड़ै छथि आ ओकरा खेत आदिमे माटिक तर गाड़ि देल जाइत अछि। एकर बाद बहिन मुरही, बतासा, लड्डू आदिसँ अपना भाइ केर फाँड़ भरती। एकरा संगहिँ भाय-बहिनक एहि मुधर प्रेमक पर्व सामा-चकेवाक समापन होयत। 

बहिन रहती तखन ने सामा 

हमरा लोकनि भाय-बहिनक एहि स्नेहिल पर्वमे तँ समवेत छीहे। बहिन लोकनिक अपना गीतमे हमरा सभक नामोल्लेख करैत हमरा सभक कल्याण-कामना कैए रहल छथि। हमरा लोकनि सामाक विसर्जनमे तँ सहभागी हेबे करब, मुदा जे वर्त्तमान जा रहल अछि ताहिमे सामा-चकेवाक ई पर्व एहिना चलैत रहत? हमरा लोकनिकेँ जेना बेटी-बहिनसँ अभाँछ भेल जा रहल अछि तेनामे तँ ई पाबनिए समाप्त भऽ जायत। जी हँ, एही तरहेँ जँ भ्रूण हत्या करैत रहब, गर्भेमे कन्या-भू्रणकेँ चीन्हि ओकरा नष्ट करैत रहब तखन कोना होयत सामा-चकेवाक ई पर्व? जखन कन्याकेँ उकन्नन करैत रहब तँ भ्रातृ द्वितीया, सामा-चकेवा, रक्षाबन्धन आदि सभक उठाव भऽ जायत। बेटीक अभावमे बेटा सेहो नञि होयत। हमरा लोकनि लेल बहिन कते मंगलकामना करै छथि से रातिमे कने कान पाथि सुनी आ विचार करी, की हमरा लोकनि अपना बहिनक लेल किछु नञि कऽ सकै छी? की हुनक कल्याण-कामना हमरा सभक दायित्व नञि? आउ सामा-चकेवाक एहि पुनीत पर्वपर संकल्प ली जे लिंग परीक्षण कऽ कन्या-भ्रूण हत्यामे हमरा लोकनि रञ्चो मात्र लेल सहभागी 
नञि होयब। आन भायकेँ सेहो एहि लेल टोकि तँ सकिते छी। जँ एको गोट सामाकेँ धरतीपर एबाक अधिकारसँ वञ्चित करबाक कुत्सित प्रयास हमरा लोकनि रोकि लै छी तँ सत्ते अपन दायित्वक निर्वाह कऽ सकब आ अपना जीवनकेँ धन्य कऽ सकब। एहि प्रयासेक बलपर बहिनक अशेष शुभकामनाक अधिकारी होयब। नञि तँ सामा-चकेवाक ई पावन अवसर इतिहास गाथा बनि जायत। सभ बरख बहिन लोकनि जे हमरा लोकनिक मन-प्राण अपन आशीर्वादसँ जुड़बै छथि ताहि लेल लालायित रहि जायब। आबऽ वला पीढ़ी जखन संकटापन्न होयत आ बेटीक अभावमे बेटा पायब सेहो सम्भव नञि होयत तखन भने हमरा लोकनिक भौतिक काया नञि रहत, मुदा आत्मा सीदित होइत रहत कारण ओहि परिस्थितिकेँ भोगनिहार एहि दोष लेल हमरे सभकेँ दुर्वचन कहत। आउ सामा-चकेवाक पर्वपर अपना भीतर केर पिशुन प्रवृत्ति, किंवा चुगिला सन व्याप्त अधलाह विचारकेँ समाप्त करबाक संगहिँ ली सामाकेँ बचेबाक संकल्प।

साभार : अमलेन्दु शेखर पाठक के ई लेख मिथिला आवाज़ मैथिलि दैनिक समाचार पत्र में प्रकाशित अछि.  

Wednesday, November 6, 2013

इतिहास रचबा लेल बिदा भेल मंगलयान

अन्तरिक्ष विज्ञानक दुनिञामे अपन देश इतिहास रचबा दिस मंगलकेँ ‘मंगलयान’ केर सधल डेग बढ़ेलक अछि। ‘मंगलयान’मंगलकेँ लाल ग्रह लेल विदा भऽ गेल। पीएसएलभी रॉकेटसँ दुपहरियामे ठीक 2 बाजि कऽ 38 मिनटपर श्रीहरिकोटासँ ई उड़ल। नैनो कार सन ई रॉकेट एहि मंगलयानकेँ अंतरिक्षमे छोेड़ि देत जाहिठाम ई कि छु दिन पृथ्वीक चारू भर चक्कर लगेबाक बाद नओ मासक कठिन यात्रापर मंगल ग्रह दिस बढ़ि जायत। सम्पूर्ण देशक नजरि भारतक एहि मिशन मंगलयानपर टिकल अछि। लोकक मंगलमय भविष्य लेल भारतीय मंगलयान 25 करोड़ किलोमीटरक यात्रा पूरा करबा लेल विदा भेल अछि आ अपना लक्ष्य दिस निरन्तर बढ़ल जा रहल अछि। मंगल आ मार्स ग्रीक युद्धक देवताक नामपर एहि ग्रहक नाम राखल अछि। एहि ग्रहकेँ पृथ्वी के र सभसँ लगीचक भाय कहल जाइत अछि। ई ग्रह लाल आ गहींर कत्थी सन देखाइत अछि संगहि रहस्य आ रोमाञ्चसँ परिपूर्ण अछि।
तय करत 25-40 करोड़ किमीटरक यात्रा
मंगल ग्रह लग पहुँचत भारतक मंगलयान। अंतरिक्षक अत्यन्त कठिन, ओझरायल आ खतरनाक यात्रापर लगभग 25 करोड़सँ 40 करोड़ किलोमीटर धरिक यात्रा तय कऽ मंगलयान मंगल ग्रहकेँ लगसँ देखत, सूँघत आ वातावरणक स्वाद लेबाक प्रयास सेहो करत। ओहिठाम ई जीवन देखत, जीवनक अवशेष ताकत आ उजरल-उपटल ओहिठामक वातावरणक गणना करत ई छोट भीम। एहि मंगलयानकेँ छोट भीम नाम देल गेल अछि। टाटा नैनो कार सन आकार आ 1350 किलो ओजनवला एहि यानकेँ किछु वैज्ञानिक छोटका भीमक नामसँ सेहो बजबै छथि। ई मंगलक चारू भरि फेरा लगाओत। पीएसएलभी रॉकेट एखन धरि फराक-फराक उपग्रहकेँ पृथ्वीक कक्षामे स्थापित कऽ चुकल अछि आ एहिमे पारंगत भऽ गेल अछि। पीएसएलभीक ई 25म उड़ान अछि। श्रीहरिकोटाक सतीश धवन स्पेस सेण्टरमे ठाढ़ 15 महल मकान सन 44.4 मीटर ऊँच, लगभग 50 हाथीक ओजन जतबा 320 टन ओजन, पीएसएलभी विश्वस्त आ परखल रॉकेट अछि। मंगल 5 नवम्बर 13 केँ ठीक 2.38 बजे ई रॉके ट छूटल जे लगभग 40 मिनट धरि उड़बाक बाद बेरा-बेरी रॉकेटक चारू चरण फराक होइत गेल। अंतरिक्षमे पहुँचिते अंतिम चरण दू हिस्सामे बँटि जायत आ मंगलयान बाहर निकसि जायत। एकरा बाद 6 बेर मंगलयान अपन रॉकेट दागि ओकरा पृथ्वीक विशेष कक्षामे आनत। लगभग 20-25 दिन धरि मंगलयान पृथ्वीक प्रदक्षिणा कऽ आस्ते-आस्ते पृथ्वीसँ दूर होइत जायत आ एकाएक पृथ्वीक गुरूत्वाकर्षणसँ हटि कऽ डीप स्पेस दिस तीव्र गतीसँ बढ़त जकरा सोझे-सोझ मंगल दिस मोड़ि देल जायत। ई लगभग 25 करोड़ किलोमीटरक दूरी धरि जायत। एहिठाम पृथ्वीपरसँ एहि यानपर नजरि रखबा लेल आ एकरासँ बात करबा लेल, निर्देश देबा लेल विशेष व्यवस्था कयल गेल अछि। अण्डमान निकोबार द्वीप समूहमे पोर्ट ब्लेयरमे अन्तरिक्ष टैÑकिंग स्टेशन बनल अछि। एकरा अतिरिक्त बैंगलुरु लग बायलालूमे इसरो केर विशेष टीसन अछि जाहिठाम लगभग 32 फीटक भीमकाय डिश अछि। एहि यानपर नजरि रखबा लेल प्रशान्त महासागरमे शिपिंग कॉर्पोरेशन आॅफ इण्डियाक दू गोट जहाज एससीआइ नालन्दा आ एससीआइ यमुना समुद्रमे मोस्तैद अछि।

एहि यानक विशेषता
एहि यान लेल अंतरिक्षमे 25 करोड़ कि लोमीटर केर यात्रा सुलभ नञि अछि। एहि क्रममे मंगलयानकेँ सौर विकिरणक खतरा सेहो रहत। एकरा बहुत कम आ बहुत बेसी तापमानसँ जेबा काल अपन उपकरणकेँ बचाबऽ सेहो पड़त। एतबे नञि डीप स्पेसमे कनिञे चूकि गेलापर अन्त-अन्त धरि कोनो यान बौआ सकैत अछि। ओना एहिसँ बचबाक इन्तजाम वैज्ञानिक ओना कऽ चुकल छथि।
1- पूरा मंगलयानकेँ गोल्डेन कलरक कवरसँ लपेटल गेल अछि। ई कवर खास कऽ कम्मलक काज करत जे ओकरा गरमी आ जाड़ दुनूसँ बचाओत।
2- डीप स्पेसमे अबिते सौर विकिरण आ सूर्यक अल्ट्रावायलेट कि रणसँ इलेक्ट्रॉनिक उपकरणकेँ खराब हेबाक खतरा बढ़ि जाइत अछि ई कौभर एहूसँ बचाओत।
3- अपन दिशासँ नञि भटकय एहि लेल एहिमे एक टा नञि दू-दू स्टार सेंसर उपकरण लगाओल गेल अछि। एहिसँ पहिने चन्द्रमा दिस गेल चन्द्रयानमे स्टार सेंसरमे खराबी आबि गेल छल। इसरो द्वारा एहि गलतीकेँ सुधारि लेल गेल अछि।
4- पृथ्वीसँ सम्पर्क सधबा लेल धरतीसँ आबऽवला कमजोर सिग्नल पकड़बा लेल मंगलयानमे पैघ डिश लगाओल गेल अछि।
अगिला बरख 24 सितम्बरकेँ पहुँचत मंगलक कक्षा धरि
एहि यानमे अपन 800 किलोग्राम इन्धन अछि। लगभग 25 किलोमीटरक नम्मा यात्राक क्रममे इन्धन बचायब आ मंगल लग पहुँचबापर लगभग 9 माससँ सूतल ओकर मुख्य इञ्जनके ँ दोबारा चलायब इसरोक वैज्ञानिक लेल सभसँ पैघ चुनौती रहतनि। एहि लेल एहि यानमे 2 विशेष कम्प्यूटर लगाओल गेल अछि। यानमे कोनो असुविधा हेबापर कम्प्यूटर स्वयं निर्णय लेबामे आ मंगलयान केर बाट दुरुस्त करबामे सक्षम अछि। पृथ्वीक कक्षासँ निकसि लगभग 9 मासक यात्राक बाद मंगलयान 24 सितम्बर 2014 केँ मंगल ग्रहक कक्षामे पहुँचि जायत आ रॉकेटमे फायर कऽ एकरा मंगलक ओहि अण्डाकार कक्षा दिस आनल जायत जाहिठाम मंगलक धरतीसँ ओकर कमसँ कम दूरी रहत।
कमसँ कम 365 किलोमीटर आ बेसीसँ बेसी 80,000 किलोमीटरक दूरी रहबाक उमेद अछि। ई अगिला छओ मास धरि एहि ग्रहक रहस्यके ँ सोझरेबाक प्रयास करत। मंगलयानमे अपना देशमे बनाओल गेल पाँच गोट विशेष उपकरण लागल अछि। ई सभ उपकरण सोलर पैनलसँ बनल बिजलीसँ चलत। आखिर   ओहिठाम उतरने बिनु जीवनक संकेत कोना ताकत? मंगलयानपर लागल मीथेन सेंसर पहिल बेर कोनो मार्स मिशन एहन उपकरण लऽ कऽ जा रहल अछि। जे मंगलक वातावरण आ सतहमे मीथेनक उपस्थितिक पता लगाओत। मीथेन माने जीवनक चिह्न। एकर अतिरिक्त एहि यानपर 360 डिग्री धरि फोटो घीचबा लेल विशेष कैमरा लागल अछि। मंगलयानपर थर्मल सेंसर सेहो लागल अछि जे मंगल ग्रहक ठण्ढा हिस्सामे अत्यन्त गर्म हिस्साके ँ चिन्हबाक प्रयास करत जाहिसँ ई बुझल जा सकय जे आखिर एहि ग्रहपर मौसम एतबा तेजीसँ कोना बदलैत अछि।
एहि यानसँ मंगल ग्रहक फोटो, वातावरणसँ जुड़ल आँकड़ा सहित वैज्ञानिक ई उमेद करता जे चन्द्रयान जाहि तरहे ँ चन्द्रमापर पानि ताकि लेलक ठीक ओहिना किनसाइत मंगलयान एहि ग्रहसँ जुड़ल किछु पैघ राज फोलि सकय। प्राय: मीथेनक खोज कऽ सकय जे जीवनक पहिल संकेत मानल जा सकैत अछि, मुदा एहि यानसँ पृथ्वीपर बैसल वैज्ञानिककेँ सम्पर्क साधब सुलभ नञि हेतनि। मंगलक कक्षामे पहुँचबाक बाद मंगलयान धरि पृथ्वीसँ सन्देश पहुँचबामे 20 मिनट लागत आ यानके ँ जबाव देबामे सेहो 20 मिनट लागत। एकर माने मंगलयानक हालचाल बुझबा लेल लगभग 40 मिनट धरिबाट देखऽ पड़त।

साभार : मिथिला आवाज़ मैथिली दैनिक समाचार में प्रकाशित 

Friday, November 1, 2013

आउ आइसँ मनाबी सुखरात्रि


ज्योति पर्व दीयाबाती केर फलक बड़ पैघ अछि। अपना देशमे बहुत रास पाबनि मनाओल जाइत अछि, मुदा सभक फलक राष्ट्रिय स्तरक नञि होइत अछि। बहुत रास पाबनि क्षेत्रीय स्तरपर सेहो मनाओल जाइत अछि, जेना छठि। ई समग्र देशमे नञि मनाओल जाइत अछि, मुदा दीयाबाती तेहन पाबनि अछि जे देशक बहुलांश भागमे तँ लोक मनबिते छथि, विदेशोमे भारतीय लोक एकरा पूर्ण आनन्द आ उल्लासक संग मनबै छथि। ‘दीप’ आ ‘अवली’, संस्कृतक एहि दू शब्दक मेलसँ ‘दीपावली’ शब्द बनल अछि जकरा मिथिलामे अपना सभ दीयाबाती कहि सम्बोधित करै छी। दीप शब्दक संग ‘अवली’ शब्द जोड़ल गेल अछि जकर अर्थ होइत अछि ‘पंक्ति’। माने दीपक पंक्ति किंवा शृंखला भेल दीपावली वा दीयाबाती। ई अन्हारसँ प्रकाश दिस गमनक पर्व अछि। एकर आरम्भ धनतेरससँ भऽ जाइत अछि, जकरा मिथिलामे सुखरात्रि किंवा सुखराति कहल जाइत अछि। सुखरातिक पहिल दिन धनतेरस, दोसर दिन यम दीपावली, तेसर दिन दीपावालीक संग लक्ष्मी-गणेश आ माता कालीक पूजन, चारिम दिन गोवर्द्धन पूजाक संग अन्नकूट आ पाँचम दिन भातृ द्वितीयाक संग भगवान चित्रगुप्तक पूजा होइत अछि।

धन्वन्तरि पूजा आ धनतेरस


सुखरातिक पहिल दिनकेँ धनतेरसक  रूपमे मनाओल जाइत अछि। कार्तिक कृष्ण पक्षक त्रयोदशी तिथिकेँ भगवान धन्वन्तरिक पूजन होइत अछि। मान्यता अछि जे एही दिन भगवान धन्वन्तरिक जन्म भेल छलनि। तेँ एहि तिथिकेँ धनतेरसक नामसँ जानल जाइत अछि। धनतेरस दिन चानी किनबाक परम्परा अछि। एकर कारण मानल जाइत अछि जे चानी चन्द्रमाक प्रतीक होइत अछि जे शीतलता प्रदान करैत अछि। एहि शीतलतासँ मनकेँ सन्तोष रूपी धन प्राप्त होइत अछि। जकरा लग सन्तोष अछि सैह तँ सभसँ बेसी सुखी अछि। तेँ बहुत रास लोक धनतेरस दिन चानीक सिक्का वा कोनो गहना आदि किनै छथि। ईहो मान्यता अछि जे धनतेरस दिन कीनल गेल धातु धन-सम्पदा बढ़बैत अछि। अपना एहि ठाम लोक धनतेरसकेँ कोनो ने कोनो धातु अवश्य किनै छथि। बहुत रास लोक स्वर्णाभूषण सेहो किनै छथि। तँ बहुतो लोक टीवी, फ्रिज आदि इलेक्ट्रॉनिक्सक समान किनै छथि। एहि सभमे बासन बेसी लोक किनै छथि आ दीयाबातीक राति लक्ष्मी-गणेश पूजनक समय एहि नव बासनक उपयोग करैत देवीसँ धन-धान्यसँ परिपूर्ण हेबाक कामना करै छथि। लोग धनतेरसे  दिन दीयाबातीक राति पूजन लेल लक्ष्मी-गणेशक मूर्त्ति सेहो कीनि लै छथि। ओतहि भगवान धन्वन्तरिक पूजन सेहो कयल जाइत अछि।

यम दीपावली 

सुखरातिक दोसर दिन यम दीपावली मनाओल जाइत अछि। पौराणिक कथा अछि जे एही दिन भगवान कृष्ण दैत्य नरकासुर केर संहार केने छला आ सोलह हजार एक सौ कन्याकेँ नरकासुर केर बन्दी गृहसँ मुक्त केने छला। बहुत रास ठाम एहि दिन सूर्योदयसँ पहिने उठि तेल लगा आ पानिमे चिरचिरीक पात दऽ ओहिसँ स्नान करै छथि आ एकर बाद विष्णु मन्दिर वा कृष्ण मन्दिरमे जा भगवानक दर्शन करै छथि। मान्यता अछि जे एहिसँ सभ पाप नष्ट भऽ जाइत अछि। अपना ओहि ठाम मिथिलामे एकरा यम दीपावलीक नामसँ मनाओल जाइत अछि। एहि दिन घरक छोटसँ छोट आ पैघसँ पैघ सभ वस्तुकेँ साफ कयल जाइत अछि। एते धरि जे लालटेन आदिक बाती पर्यन्तकेँ साफ कयल जाइछ। घरक सभ गन्दगी बाहर कऽ देल जाइत अछि आ पहिल साँझ गोआक ढेरीपर गोबरसँ बनल दीप लेसि राखि देल जाइत अछि। एकरा यम दीप कहल जाइत अछि। उल्लेखनीय अछि जे पहिने जहिया माल-जाल बेस संख्यामे पोसल जाइत छल आ खेतमे खादक बदला गोबरसँ तैयार गोआ पटाओल जाइ छल तहिया एकर बड़ महत्त्व छल आ ईहो बढ़ि समृद्धिक प्रतीक बनय तकर आकांक्षा कयल जाइ छल। दोसर जे गोआ सन उपेक्षित ढेरी पर्यन्तकेँ प्रकाशित करबाक भाव एहिमे भरल छल। एखनो माता-बहिन लोकनि प्रतीक रूपमे एकरा मनबै छथि। गोआक ढेरीपर एखनो दीप जरा यम दीपावली मनाओल जाइत अछि। ओना नव चलनसारिमे एकरा छोटका दीपावाली सेहो कहल जाय लागल अछि जे ने शास्त्रीय अछि आ ने पारम्परिक।

दीयाबाती आ काली पूजा 

सुखरातिक तेसर दिन मनाओल जाइत अछि दीपावली। एहि दिन लोक अपना घर-प्रतिष्ठानकेँ दीपसँ सजबै छथि। चारू कात दीपक टेमी मुसुकैत अन्हारकेँ खेहारैत अछि। अपना ओहि ठाम माटिक दीप जरेबाक परम्परा रहल अछि, मुदा आधुनिकताक बिहाड़िमे लोक एकरा स्थानपर बिजली-बत्तीक सजावटि करै छथि। मात्र भगवान लग माटिक दीप जराओल जाइत अछि। बजारमे तँ यैह होइत अछि। आब गामो-घरमे लोक माटिक दीपसँ धीरे-धीरे परहेज करैत जा रहला अछि। तथापि शहरक तुलनामे गाममे एखनो माटिक दीप बहुतायतमे देखबामे अबैत अछि। अधिकांश लोक मटियातेलक डिबिया सेहो जरबै छथि, तँ बहुतो मोमबत्ती जरा पाबनिक खानापूर्त्ति करै छथि। पहिने तँ लोक घी केर दीप जरबै छला। महगीक समयमे आब ई सम्भव नञि अछि। तथापि एकरा स्थानपर करू तेल किंवा तीसी तेलक उपयोग कयल जेबाक चाही जे गोट-पगड़े दृष्टिगोचर होइत अछि। नेना-भुटका आ युवा वर्ग फटक्का फोड़ि आनन्दोल्लास मनबै छथि। पाबनिमे आनन्द मनायब तँ उचिते थिक, मुदा हमरा लोकनिकेँ पर्यावरणक प्रदूषण केर सेहो चिन्ता-चिन्तन करबाक चाही। ईहो ध्यान रखबाक चाही जे हमर प्रसन्नता कोनो पड़ोसिया, बूढ़, अस्वस्थ लोक लेल कष्टक कारण नञि बनय। ककरो कोनो क्षति नञि पहुँचय। दीयाबातीक राति लक्ष्मी-गणेश आ भगवतीक कालीक पूजन सेहो होइत अछि। अपना ओहि ठाम लक्ष्मी पूजा तँ कोजागराक राति करबाक परम्परा रहल अछि, मुदा   दीयाबातीक राति लक्ष्मीक संग गणेशक पूजन सेहो होइ छनि। खास कऽ व्यापारी वर्ग लेल एकर विशेष महत्त्व अछि। एहि दिनसँ व्यापारी वर्ग अपन नव खाता सेहो आरम्भ करै छथि। लोक घरोमे लक्ष्मी-गणेशक मूर्त्ति केर पूजन करै छथि आ बरख भरि ओकरा राखि नित्य पूजन होइ छनि। पछिला बरखक मूर्त्ति दीयाबातीक प्रात विसर्जित कयल जाइत अछि। दीयाबातीक रातिएमे माता कालीक पूजन सेहो होइ छनि। जिनक कुलदेवी माता काली छथिन हुनका ओहि ठाम विशेष पूजन तँ होइते अछि, काली मन्दिर सभमे सेहो विशेष पूजा-अर्चना कयल जाइत छनि। ठाम-ठाम भगवतीक कालीक मूर्त्ति प्रतिष्ठित कऽ सार्वजनिक पूजन सेहो होइत अछि। अगिला दिन हुनक मूर्त्तिकेँ विधि पूर्वक पूजनक उपरान्त विसर्जन कऽ जलमे प्रगवाहित कयल जाइत अछि।

गोवर्द्धन पूजा आ अन्नकूट

सुखरातिक चारिम दिन गोवर्द्धन पूजा होइत अछि। अपना ओहि ठामक परम्परामे माल-जाल पर्यन्तक ध्यान राखल जाइत अछि। एहि दिन अन्नकूट सेहो होइत अछि। अपना ओहि ठाम गायकेँ तँ पूजनीय मानले गेल अछि। शास्त्रक अनुसार गाय गंगा नदीक समान पवित्र होइत अछि। गायकेँ माता लक्ष्मीक रूप सेहो मानल जाइत अछि। तेँ गायक पूजन तँ एहि दिन होइते अछि, बड़द, महीँस, बकरी आदिक पूजन सेहो होइत अछि। एहि दिन सभ माल-जालकेँ पवित्रता पूर्वक स्नान कराओल जाइत अछि। सिंह आ खुरमे तेल लगाओल जाइत अछि। नीक-निकुत भोजन कराओल जाइत अछि। ओकरासँ कोनो काज नञि लेल जाइत अछि। एते धरि जे बड़द आदिक चुमाओन कऽ ओकरा पान सेहो खुआओल जाइत अछि। रस्सी बदलल जाइत अछि। सौँसे देहपर रंग लगाओल जाइत अछि। कते ठाम माल-जालक पाबनिमे हुड़ियाहा केर खेल सेहो होइत अछि। गौशालामे सेहो ई पर्व उमंग आ उल्लासक संग मनाओल जाइत अछि। कहल जाइत अछि जे भगवान श्रीकृष्ण ब्रजवासी लोकनिकेँ इन्द्रक कोपसँ होबऽवला मूसलधार वर्षासँ बचेबा लेल गोवर्द्धन पहाड़केँ अपन कनगुरिया आङुरपर उठा कऽ रखने छला।  ओहि पहाड़क तर सभ गोप आ गोपिका आश्रय लेलनि। एही पौराणिक घटनाक प्रतीक रूपमे ई पाबनि मनाओल जाइत अछि। बहुत ठाम अन्नकूट सेहो मनाओल जाइत अछि। भगवानक आगाँ सैकड़ो प्रकारक पकमान राखि हुनका भोग लगाओल जाइ छनि।

भ्रातृद्वितीया आ चित्रगुप्त पूजा 

सुखरातिक अन्तिम पाँचम दिन भाय-बहिनक पवित्र प्रेमक प्रतीक पर्व भ्रातृद्वितीया मनाओल जाइत अछि। कार्तिक मासक शुक्ल पक्षक द्वितीया तिथिकेँ मनाओल जायवला एहि पाबनिमे बहिन भाइकेँ नोतै छथि। ठाँव-अरिपन कयल स्थानपर अरिपन कयल पीढ़ी राखि ओहिपर भाइकेँ बैसाओल जाइत अछि। आगाँमे मटकूरमे पानि, पान, अँकुरी, द्रव्य, कुम्हरक फूल राखल रहैत अछि। भाइ अपन आँजुर बहिनक आगाँ रखै छथि। बहिन भाइकेँ पिठार आ सिन्दूरक तिलक लगबै छथि। फेर हाथपर पिठार आ सिन्दूर लगा मटकूरसँ पान, अँकुरी आदि बहार कऽ भायक हाथपर राखि ओकरा जलसँ धोइत मटकूरमे खसबैत बहिल हुनक दीर्घ जीवनक कामना करै छथि। ई क्रम तीन बेर होइत अछि। एकर बाद बहिन अँकुरी खोआ भाइकेँ अपना ओहि ठाम भोजन सेहो करबै छथि। बहुत ठाम एहि दिन बहिन लोकनि सामूहिक रूपसँ बजरी कुटबाक परम्पराक निर्वाह करै छथि। ई मिथिलाक परम्परा नञि अछि, मुदा मिथिलोमे एकर नीक चलनसारि भऽ गेल अछि। बहिन सभ बजरी कुटबाक बाद अपना भाइ केर प्रसंग अशुभ बाजि जीहमे रेगुनीक काँट गड़ा पश्चाताप करैत भाइ केर मंगलकामना करै छथि। एमहर एही दिन चित्रगुप्त पूजा सेहो होइत अछि। मिथिलाक कायस्थ समाज एहि दिन भगवान चित्रगुप्तक पूजन करै छथि। एहि दिन ओ सभ कलम-दवात पूजा-स्थलपर रखै छथि आ लिखबा-पढ़बासँ परहेज करै छथि। अनेक ठाम सार्वजनिक रूपसँ भगवान चित्रगुप्तक भव्य प्रतिमा स्थापित कऽ पूजन होइत अछि। एहि अवसरपर सांस्कृतिक कार्यक्रमक संग कायस्थ समाजक प्रतिभावान नेना लोकनिकेँ पुरस्कृत सेहो कयल जाइत अछि। कहबा लेल तँ ई कायस्थ समाजक धार्मिक उत्सव अछि, मुदा एहिमे समग्र समाज समवेत
होइत अछि। भगवानक दर्शन करबाक लेल तँ पहुँचिते छथि, बहुतो ठाम आयोजनमे सक्रिय सहभागिता सेहो रहैत अछि। पूजनक अगिला दिन मूर्त्ति विसर्जनक संग चित्रगुप्त पूजाक समापन होइत अछि।एकरा संगहिँ सम्पन्न होइत अछि मिथिलाक सुखराति किंवा सुखरात्रि। एकरा लगले आरम्भ भऽ जाइत अछि सूर्याेपासनाक महापर्व छठि केर तैयारी। एहि बेर शुक्र 1 नवम्बरसँ आरम्भ भऽ रहल अछि सुखराति। आउ हमरो लोकनि एहिमे समवेत होइ आ समग्र मिथिला धन-धान्यसँ परिपूर्ण हो आ सभ तरि सुखे सुख हो तकर मंगलकामना करी।

साभार : मिथिला आवाज़ मैथिली दैनिक समाचार पत्र में प्रकाशित  

होयत भगवान धन्वन्तरिक पूजन


धनतेरस पाबनिक ओरियान भऽ चुकल अछि। लोक धूप-दीप कीनि घर आनि लेने छथि। धनतेरस पाबनिकेँ ब्रह्माण्डक पहिल चिकित्सक  धन्वन्तरीक स्मरणमे मनायल जाइत अछि, किएक तँ वस्तुत: सभसँ पैघ धन स्वास्थ्य होइत अछि। मुदा प्रश्न इहो उठैत अछि जे जखन शरीरे सभसँ पैघ धन होइत अछि तँ कोनो ने कोनो दबाई खेबक चाही नञि कि धातुक बर्तन खरीदक चाही।
कहल जाइत अछि जे आश्विन मासक तेरहम दिन समुद्र मन्थनक दौरान ब्रह्माण्डक पहिल चिकित्सक भगवान धन्वन्तरी हाथमे अमृत कलश लऽ प्रकट भेल छला। एहन मानल जा रहल अछि जे आजुक दिन धातु घर अनबासँ ओहि संग अमृतक अंश सेहो घर आबि जाइत अछि आ नीक स्वास्थ्यक गारण्टी भेटि जाइत अछि। तेँ  धनतेरस दिन दबाइ नञि बर्तन कीनल जाइत अछि। किएक तँ दबाइसँ रोगक तात्कालिक समाधान होइत अछि जखन कि अमृत घर अनबासँ  रोग भागि जाइत अछि। कतेको लोककेँ  एहि सभ तरहक बातपर विश्वास नञि होइत अछि, मुदा भागलपुर स्थित मन्दार पर्वतपर देखल जा सकैत अछि जे समुद्र मन्थन काल भेल रस्सी चेह्न आइ धरि विद्यमान अछि।
 धनतेरसक सन्दर्भमे एकटा किंवदन्ती कहल जाइत अछि जे  राजा हिमाकेँ एकटा सोलह बरखक पुत्र छल। जे जन्म कुण्डलीक हिसाबेँ अल्पायु छला। जिनक  मृत्यु विवाहक चारिम दिनक बाद साँप कटबासँ  हेबाक छल।
मुदा विवाहक चारिम दिन राजकुमारक पत्नी राजकुमारकेँ कथा- कहानी, गीत सुना भरि राति सुतय नञि देलनि। संगहि राजकुमारक चारू कात दीप प्रज्ज्वलित कऽ देलनि आ शयण कक्षक बाहर सोन-चानीक सिक्काक ढ़ेरी लगा देलनि।
विधिक विधानक मोताबिक नीयत समयपर नागिनक रूपमे यमदूत एला, मुदा सोन-चानीक चमकबा कारणेँ नागिनक आँखि चोन्धिया गेल आ ओ आगाँ नञि बढ़ि ओतहि बैसि गेल। किएक तँ वैज्ञानिक तथ्य अछि जे साँप बहुत बेसी तेज रोशनीमे नञि देखि पबैत अछि। आ एहि तरहेँ राजकुमारक पत्नी अपन चलाकी आ कार्य कुशलतासँ ओहि मनहूस घड़ीकेँ टारि अपन पतिकेँ बचा लेलनि।  तेँ आजुक राति यमदीपदान केर रूपमे मनायल जाइत अछि आ भरि राति दीप जरा बाहर राखि देल जाइत अछि।
कारोबारीक लेल एहि
पाबनिक अछि विशेष महत्त्व
 कातिक मासक कृष्ण पक्षक त्रयोदशीसँ धनतेरसक पूजाक संगहि दियाबाती शुरू भऽ जाइत अछि। कारोबार केनिहारक लेल एहि पाबनिक बहुत बेसी महत्व अछि। लोकक मानब अछि जे एहि दिन लक्ष्मीक पूजासँ सुख-समृद्धि, खुशी आ सफलता भेटैछ। कहल जाइत अछि जे धनक मतलब समृद्धि आ तेरसक मतलब तेरहम होइत अछि। एहि पूजाक संग दियाबाती शुरू भऽ जाइत अछि। घर, कार्यालय, दोकान प्रतिष्ठान सभ ठामक सफाइ कयल जाइत अछि आ इजोत, फूल, रंगोलीसँ सजायल जाइत अछि। कतेको लोक घरक दुआरिपर चावलक चिक्कससँ रंगोली सजबै छथि आ लक्ष्मीक स्वागत ओरियानमे लागि जाइत छथि। एहि अवसरपर रंगोलीसँ घरक भीतर धरि लक्ष्मीक छोट-छोट पैरक चिन्ह बनायल जाइत अछि। सन्ध्याकाल 13 टा दीप जरा लक्ष्मी पूजा कयल जाइत अछि। मानल जाइत अछि जे एहि दिन लक्ष्मी पूजा करबासँ समृद्धि, खुशी आ सफलता भेटैत अछि। कहल जाइत अछि जे कारोबारीक लेल ई दिन खास महत्व रखैत अछि। एहि दिन बेसी लोक वस्तु कीनैत छथि, जाहिसँ साल भरिक कमसँ कम 40 सँ 50 फीसदी व्यवसाय भऽ जाइत अछि। बनिञा-महाजनकेँ एहि दिनक बहुत प्रतीक्षा रहैत अछि। बजारमे भोरहिसँ सोन-चानी, बर्तन कीनबा लेल चहल-पहल शुरू भऽ जाइत अछि। भूमि, कार, निवेश आ नव उद्योगक लेल सेहो आजुक दिनकेँ शुभ मानल जाइत अछि। दक्षिण भारतमे एहि पाबनिक अवसरिपर गायकेँ  खूब सजायल जाइत अछि आ ओकर पूजा कयल जाइत अछि। गायकेँ लक्ष्मीक अवतार मानल जाइत अछि। उत्तर भारतमे बेसी लोग द्रव्य-जात कीनबापर जोर दै छथि। नव बर्तन आ गहनासँ लक्ष्मी पूजा करैत छथि।

साभार : मिथिला आवाज़ मैथिली दैनिक समाचार पत्र में प्रकाशित