सिविल सेवा परीक्षा में भारतक भाषा के दरकिनार कय अंग्रेजीक वर्चस्व कायम करैक संघ लोक सेवा आयोगक फैसला पर देश में बहुत
कड़ा प्रतिक्रिया भेल। संसद सेहो अहि पर
अपन नाराजगी व्यक्त केलक जाहिमे लगभग सब दलक सांसद शामिल छला। आ अंततः राज्यमंत्री वी नारायणसामी इ कहलैनी कि अहि पर
कोनो समाधान निकलइ तक
आयोगक नव अधिसूचना लागू नहीं कायल
जायत। आ अहि अधिसूचना पर
अमल फिलहाल नहीं
कायल जायत। मुदा भारतीय भाषा के कात आ अंग्रेजीक वर्चस्व बढ़ावईक इ
कोनो अकेला मामला नहीं अछि। आब सवाल इ
अछि कि संघ लोक सेवा आयोगक परीक्षाक नियम में
भेल बदलावक फैसला खाली आयोगक छल,
वा अहिक पाछा सरकारक कोनो मंशा सेहो छल? भारतीय प्रशासनिक आ अन्य केंद्रीय सेवा में भर्तीक खातिर होई
वाला परीक्षा स संबंधित नव अधिसूचना
के ल क विवाद अहि
लेल ठाढ भेल किएक त अहिमें अंग्रेजी के
सौ अंक निर्धारित कय देल गेला आ ई सेहो तय कय देल गेल कि अंग्रेजी में भेटई वाला अंक योग्यताक निर्धारण में जोड़ल
जायत। जहैनी की अखन अंग्रेजीक परीक्षा में
मात्र पास टा
करबाक रहैत छई। एतबे नहीं, कोनो भारतीय भाषाक दसवीं तक के ज्ञानक अनिवार्यता के नव अधिसूचना में हटा देल गेला।
सपष्ट अछि की ई बदलाव अगर लागू भ
जायत त प्रशासनिक सेवा में भर्तीक लेल अंग्रेजीक अहमियत बहुत बढ़ी जायत,
आ ओहो भारतीय भाषाक कीमत पर। संघ लोक सेवा आयोगक परीक्षाक नियम में फेरबदल सुझावईक लेल 2011 में आयोगक पूर्व अध्यक्ष अरुण एस निगावेकरक अध्यक्षता में समिति गठित भेल
छल। मुदा निगावेकरक कहब अछि कि ओ कोनो भाषा-विशेष के पक्ष में नहीं,
सिर्फ एक ऐहेन परीक्षा पद्धतिक सिफारिश केने
छला जाहिमे परीक्षार्थीक प्रभावशाली तरीके सं संवाद करईक क्षमताक आकलन भय सकय, भले ओ
संवाद कोनो भाषा में हुए। फेर अंग्रेजीक अनावश्यक रूप सं प्राथमिकता
दई के फैसला ककरा कहला पर भेल? दू साल पहिले आयोगक प्रारंभिक परीक्षा में एप्टिट्यूड टेस्टक नाम पर अंग्रेजीक ज्ञान अनिवार्य कय
देल गेल छल। संसद में अहि पर सेहो सवाल उठवाक चाहि छल। बहरहाल, ई नीक गप्प अछि की आयोगक विवादित अधिसूचना पर संसद में भेल बहस अंग्रेजी बनाम हिंदीक रूप नहीं लेलक;
गैर-हिंदी भाषी राज्य,
एतय तक कि एक समय हिंदी-विरोधक झंडा उठा
चुकल तमिलनाडुक सांसद सेहो जोर-शोर स अधिसूचना के वापस लईक मांग केला। जयललिता पहिनहे केंद्र के पत्र लिख क विरोध जता चुकल
छाईथ।
पर ई बहस आयोगक परीक्षाओं तक सीमित नहीं रहबाक चाहि। अंग्रेजीक वर्चस्व बढ़ी रहल अछि आ संगही सब भारतक भाषाक उपेक्षा सेहो बढ़ी रहल
अछि। किछ राज्य के छोड़ क उच्च न्यायालय में भारतीय भाषा में बहसक इजाजत नहीं अछि। फैसला अंग्रेजी में लिखल
जाईत अछि। अंग्रेजीक बोलबाला न्यायपालिका स ल क प्रशासन आ
शिक्षा तक,
हर तरफ नजर आवैत
अछि। प्राथमिक शिक्षा तक के माध्यम काफी पैघ स्तर पर अंग्रेजी भ गेला। की
दुनियाक कोनो और लोकतांत्रिक देश में लोग के भाषाक
मामला में एतेक अधिकार-विहीन कायल
गेला? सब पार्टियां सुशासनक बात करैत
अछि आ सामाजिक न्यायक सेहो। मुदा ओ शासन-प्रशासनक अंग्रेजीपरस्ती आ भाषा के लिहाज स होई
वाला अन्याय पर चुप छाईथ।
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