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Friday, September 27, 2013

हकन्न कानि रहल मिथिलाक ऐतिहासिक स्थल

विश्व पर्यटन दिवसपर विशेष - अमलेन्दु शेखर पाठक 

 इण्टरनेट युगमे पढ़ल-लिखल जानकार लोक समग्र मिथिलाक नहिञो तँ कमसँ कम अपना क्षेत्रक एहन स्थलक विस्तृत विवरण ओ चित्र विश्व भरिक इण्टरनेट उपयोग केनिहार धरि तँ पहुँचाए सकै छथि जे पर्यटनक केन्द्र बनि सकैछ। ई काज मिथिला-मैथिली सेवी-संगठन सेहो कऽ सकैत अछि। आउ विश्व पर्यटन दिवसपर संकल्प ली जे अपना क्षेत्रक ऐतिहासिक धरोहरिकेँ विश्वक मानचित्रपर स्थापित करबा लेल व्यवस्था धरि सेहो अपन बात पहुँचायब आ अपनो एहि दिशामे सधल आ ठोस सकारात्मक डेग उठायब। तखने एहि दिसवकेँ मिथिला लेल सार्थक मानल जा सकैत अछि। 


जगत जननी जानकीक आविर्भाव स्थली मिथिलाक पवित्र भूमिपर जते डेग चलब ततेक ऐतिहासिक, पुरातात्त्विक आ धार्मिक स्थल भेटि जायत। ई पढ़बा-सुनबामे भने अतिशयोक्ति लगैत हो, मुदा जखन मिथिला क्षेत्रमे चारू भरि नजरि खिरायब तँ ई सहज लागत। एहि ठाम धार्मिक किंवा आध्यात्मिक स्थलक बहुतायत भेटत, तेँ ऐतिहासिक आ पुरातत्त्व स्थल एहिसँ कनेको कम नहि भेटत। धार्मिको स्थलमे अधिकांश अपनामे इतिहास आ पुरातात्त्विक महत्वकेँ समेटने अछि। जेम्हरे टहलि जाउ कने कान पाथि दियौ आ कनेको अँखिगर-चँकिगर होइ तँ ओहि ठामक सिहकैत बसात इतिहास-गाथा सुनबैत भेटि जायत। से प्राचीन मिथिला, माने ओहि मिथिलामे सेहो ई गुण भेटत जाहिमे ई नेपालक मिथिलाक संग छल आ वर्त्तमान मिथिलामे सेहो। एहि सभकेँ पर्यटन केन्द्रक रूपमे विकसित कऽ देशक, राज्यक आ मिथिला क्षेत्रक आर्थिक स्थितिकेँ तँ सुदृढ़ कयले जा सकैत अछि। आर्थिक स्थिति सबल होयत तँ आनो-आन तरहक विकास सहजे होइत चलि जायत। एकरा संगहिँ एक बेर फेरसँ मिथिला अपन विशिष्ट परिचय मन पाड़ैत विश्वक शिरो-मुकुट बनि सकैत अछि। पर्यटनक दृष्टिसँ मिथिलाक सुप्रिष्ठा आरो बढ़ि सकैत अछि। एहि ठाम एहन स्थलक कमी नञि अछि जे पर्यटन केन्द्र केर रूपमे विकसीत भऽ सकय, मुदा दुर्भाग्य अछि जे ई सभ ऐतिहासिक स्थल सभ अपन उपेक्षासँ हकन्न कानि रहल अछि।
मिथिलामे एखनो देश-विदेशसँ लोक अबै छथि। अबै छथि एहि ठामक अक्षर-ब्रह्म उपासक लोकनिक कीर्त्ति केर अवलोकन करबा लेल। मिथिलाक विद्वद् परम्परा हुनका एहि ठाम अनै छनि। शोध केर क्रममे अनेको विदेशी छात्र आ शिक्षक कामेश्वर सिंह दरभंगा संस्कृत विश्वविद्यालय, ललितनारायण मिथिला विश्वविद्यालय आ संस्कृत शोध संस्थानक धनी पुस्तकालयसँ सहयोग लेबा लेल अबै छथि। ओतहि मिथिला चित्रकलाक अवलोकन किंवा ओहिपर कोनो विशेष काज करबाक होइ छनि तँ मधुबनीक गाममे ई सभ नजरि अबै छथि। एहि हिसाबे मिथिलाक एहि क्षेत्रकेँ शैक्षिक पर्यटन केन्द्रक रूपमे विकसित कयल जा सकैत अछि। ओतहि मिथिलाक सभ जिलाक ऐतिहासिक स्थल सभकेँ विकसित कयल जा सकैत अछि। एहिमे दरभंगा केर  रामायणकालीन महर्षि गौतमक स्थान, अहल्यास्थान, भैरव बलिया, नवादाक हैहट्ट देवी मन्दिर, मकरन्दा भण्डारिसौँ केर वाणेश्वरी भगवतीक संग हायाघाटक सिमरदह, दरभंगा शहरक मिर्जापुर स्थित भगवती म्लेच्छमर्दिनी, राज परिसरक माधवेश्वर परिसर स्थित तारा आ श्यामा मन्दिर सहित अन्य देवी मन्दिर, राज किलाक भीतर अवस्थित कंकाली मन्दिर, कुश द्वारा स्थापित कुशेश्वरस्थान महादेव मन्दिर, जिला मुख्यालयसँ सटले पञ्चोभ गामक डीह, कवीश्वर चन्दा झाक जन्मस्थली पिण्डारुछ, बहेड़ीक हावीडीह, भरवाड़ाक गोनू झाक गाम, कुशेश्वरस्थानक पक्षी विहार आदि एहन स्थल अछि जाहि ठामक कण-कणमे मिथिलाक इतिहास बाजि रहल अछि।   
एही तरहेँ मधुबनी जिलाक महाकवि विद्यापतिक जन्मस्थली बिस्फी, कालिदासकेँ ज्ञान देनिहार उच्चैठक छिन्नमस्तिका भगवती, शिवनगरक गाण्डीवेश्वरस्थान, कपिलेश्वरस्थान, मङरौनी, बलिराजगढ़, वाचस्पति मिश्रक जन्मस्थली आ कवीश्वरचन्दा झाक सासुर अन्धराठाढ़ी, विदेश्वरस्थान, महरैल गाम लग भेल कन्दर्पीघाटक लड़ाइ केर ऐतिहासिक स्थल, मधेपुरक वाणेश्वर महादेव मन्दिर, गिरिजास्थान फुलहर, भ्रदकालीस्थान कोइलख, राजराजेश्वरी डोकहर, भुवनेश्वरीस्थान डोकहर, सौराठ सभा, उग्रनाथ महादेव भवानीपुर, राजनगरक प्रसिद्ध किला आ भूतनाथ मन्दिर, विशौल जतऽ सीता स्यंवरक समय राजा जनक महर्षि विश्वामित्रक विश्राम करबाक व्यवस्था केने छला, ठाढ़ी गाम लगक मदनेश्वर महादेव, आ कमलादित्य स्थान (परमेश्वरी मन्दिर), जमुथरिक गौरी-शंकर मन्दिर, परसा, झञ्झारपुरक सूर्यधाम, सीरध्वज जनकक पूर्वद्वारपर विराजमान शिलानाथ जे आब शिलानाथ गाममे छथि, एही क्षेत्रक ददरी, जगवनक विभाण्डकाश्रम जाहि ठाम विभाण्डक मुनिक कुटी छलनि,  जयनगर लग श्रीकूपेश्वर, कलना गामक श्रीकल्याणेश्वर  पचहीक श्रीचामुण्डास्थान, महादेव मठ लग शुक्रेश्वरी भगवती, बाबू बरही प्रखण्डक सड़रा-छजनाक बीच पाँचम-छठम शताब्दीक अवतारी पुरुष सलहेसक डीह, सरिसवक अयाची मिश्रक डीह, सिद्धदेश्वरी स्थान, सूर्य मूर्ति सवास सहित दर्जनो आरो एहन स्थल अछि जे पर्यटन स्थलक रूपमे विकसित हेबाक अर्हता रखैत अछि। 
तहिना समस्तीपुर जिलाक ओइनी जे मिथिलाक राजधानी रहल अछि आ जाहि ठाम महाकवि विद्यापतिक समय बितलनि आ अपन अधिकांश रचना ओ एही ठाम केलनि, ओइनी पहिल हिन्दी तिलस्म उपन्यास लेखक देवकी नन्दन खत्रीक जन्म भूमि हेबाक संग स्वाधीनता समरमे अपनाके होमि देनिहार खुदीराम बोससँ सेहो जुड़ल रहल अछि। एकरा अतिरिक्त पूसाक शिवसिंह डीह, महाकवि विद्यापतिक निर्वाण भूमि वाजितपुर विद्यापति नगर, मोरवाक खुदनेश्वरस्थान, पाण्डव लोकनिक अज्ञातवासक स्थल रहल पाँड डीह, मंगलगढ़, पटोरीक बाबा केवल स्थानमे अमर सिंह केर पूजन लेल देश-विदेशसँ लोक अबै छथि, महान दार्शनिक उदयनाचार्यक गाम करियन, जागेश्वरस्थान विभूतिपुर, मालीनगर शिवमन्दिर, धोली महादेव मन्दिर खानपुर, धमौनक निरञ्जन स्वामीक मन्दिर आ सन्त दरिया साहेबक आश्रम, मन्नीपुर भगवती स्थान, रोसड़ा टीसनसँ किछु पूबमे अवस्थित विधिस्थान जतऽ चतुरानन ब्रह्मा विराजमान रहला, शहरक थानेश्वरस्थान, मुसरीघरारीक भगवती स्थान सहित अनेको मन्दिर आदि अछि जे इतिहास-गीत गाबि रहल अछि। एकरा सभकेँ एक-दोसरसँ जोड़ि पर्यटन   केन्द्रक रूपमे विकसित करब सम्भव अछि। 
राष्टकवि रामधारी सिंह दिनकरक जन्मस्थली रहल बेगूसराय जिलाक नौलागढ़, जयमंगलागढ़, वीरपुर-बरियारपुर, शिव मन्दिर (गढ़पुरा), सिमरियाघाट, मुजफ्फरपुर केर खुदीराम बोस स्मारक, गरीबनाथ मन्दिर, कोठियाक मजार, दाता कम्मल शाहक मजार, शिरुकहीशिरफी काँटी, पूर्णिञा केर भगवती पूरनदेवीक मन्दिर, सिकलीगढ़, किशनगञ्ज केर चर्चित खगरा मेला, लखीसराय  केर श्रृंगी ऋषिक आश्रम, अशोकधाम, जलप्पा स्थान, गोविन्द स्थान रामपुर, पोखरामा, सहरसा जिला केर उग्रतारा स्थान महिषी, लक्ष्मीनाथ गोसाइँक कुटी वनगाम, मण्डन-भारती स्थान, कन्दाहाक सूर्यमन्दिर, मत्स्यगन्धा मन्दिर, उदाहीक दुर्गा मन्दिर, नौहट्टाक शिव मन्दिर, देवनवन शिवमन्दिर, कात्यायनी मन्दिर, मधेपुरा केर कारू खिरहरि स्थान, सिंहेश्वरस्थान, रामनगर काली मन्दिर, दौपदीक वसन्तपुर किला, माता सीताक प्राकट्य स्थली सीतामढ़ी केर जानकी मन्दिर, पुनौराधाम, हलेश्वरस्थान, चामुण्डा स्थान, शिवहर जिलाक द्रौपदीक जन्मस्थली मानल जायवला देवकुलीधाम, वैशाली जिला अन्तर्गत महनारमे गंगातटपर स्थित गणिनाथ गोविन्दक स्थान, बसाढ़, कटिहार केर लक्ष्मीपुरक गुरु तेगबहादुरक ऐतिहासिक गुरुद्वारा, पक्षी अभयारण्य गोगाविल झील, कल्याणी झील, बेलबा, बल्दीबाड़ी, शान्तिवट ओला फसीया, नवाबगञ्ज, दुभी-सूभी, मनिहारी, बल्दीबाड़ी आदि चर्चित स्थल रहल अछि आ सभक अपन ऐतिहासिक आ धार्मिक महत्व अछि। 
एही तरहेँ चम्पारण केर बेतिया राज, सोमेश्वर महादेव मन्दिर, सीता कुण्ड, चण्डीस्थान, हुसैनी जलविहार, गान्धी स्मारक, वाल्मीकि आश्रम, व्याघ्र परियोजना, देवघर स्थित बाबा बैद्यनाथ धामक संग त्रिकुट, नन्दन पहाड़, नौलखा मन्दिर, वासुकीनाथ मन्दिर, भागलपुर केर सुल्तानगञ्जमे गंगाक बीच अवस्थित बाबा अजगैबीनाथ, विक्रमशिलाक क्षेत्र, मन्दार पहाड़, कहलगामक ऋषि जाह्नुक स्थान, मनसा देवी मन्दिर, विषहरि स्थान, कुप्पाघाट, मुंगेरमे अवस्थित मीरकासिमक किला, माँ चण्डिाकस्थान कर्णक उन्टल कराह, पीरशाह मुफाक गुम्बज, शाह सूजा केर महल, लाबागढ़ीक ऋषि-कुण्ड आदिक कोण-कोणसँ इतिहास बजैत अछि।  
बहुत रास एहनो स्थल अछि जे एके नामसँ अनेक ठाम अवस्थित अछि। जेना देकुलीधाम, ई दरभंगा, समस्तीपुर आ शिवहर तीनू ठाम अछि आ तीनूकेँ ऐतिहासिक मानल जाइत अछि। एहिमे भैरवीस्थान केँ सेहो देखल जा सकैत अछि। ई  मन्दिर मिथिलामे दू ठाम अछि। पहिल मधुबनी जिलान्तर्गत कोठिया ग्रामसँ एक किमीपर अवस्थित अछि आ दोसर औराइ क्षेत्र सीतामढ़ी जिलामे अछि। तहिना महिषासुर मन्दिर अन्दामा, उमामहेश्वर महादेव मठ, लदहोक भगवान विष्णु केर मन्दिर, ज्योतिरीश्वरक जन्म स्थान पाली, विष्णु बरुआर सूर्य मन्दिर आदि अनेक ऐतिहासिक ओ पुरातात्त्विक स्थल मिथिलामे अछि। 
पोखरिक पेटमे इतिहास 
मिथिला क्षेत्रकेँ नदीक नैहर कहल जाइत अछि। एहि ठाम गंगा, कोसी, कमला, गण्डक, धेमुरा, त्रियुगा, बलान आदि सैकड़ो पैघ-छोट नदीक संग हजारोक संख्यामे विशाल पोखरि सभ सेहो अछि। एहि पोखरि सभमे सेहो इतिहास नुकायल अछि। ई समय-समयपर पुरातात्विक महत्वक मूर्त्ति आदि दैत रहल अछि। एखनो दैत अछि। ओतहि पोखरि खूनल जेबाक सेहो अपन इतिहास अछि। एकरा सभक इतिवृत्ति सेहो नव-नव तथ्यक जनतब दऽ सकैत अछि आ एहिमेसँ कतेको पर्यटक केर आकर्षणक केन्द्र बनि सकैत अछि। 
समवेत जनशक्तिक प्रयोजन 
ई सभ अछि बानगी भरि। एहन सैकड़ो अन्य महत्वपूर्ण स्थल अछि जे अचर्चित रहि गेल। एहि ठामक प्राय: मन्दिरमे पूज्य देवी-देवता कोनो ने कोनो समयमे कतहु खेत जोतैत काल तँ कतेको बेर माटि खुनैत काल किंवा पोखरिमे भेटला। कतेको ठाम पुरातात्विक महत्वक देवी-देवताक प्रस्तर-प्रतिमा कोनो मन्दिर परिसरक गाछ तर खुजल अकासक नीचा पड़ल छथि। मिथिला क्षेत्रमे जते डीह अछि सभक कोखिमे कोनो ने कोनो कालखण्डक इतिहास दबल पड़ल अछि। एकर सभक गहन अध्ययन, अनुसन्धान-अन्वेषणसँ इतिहासमे नव पन्ना के कहय नव अध्याय धरि जुटि सकैत अछि, मुदा एकरा उजागर के करत? ई यक्ष प्रश्न अछि। जखन धरतीपर विराजमान ऐतिहासिक स्थल सभकेँ स्वतंत्रताक 66 साल बादो पर्यटन केन्द्रक रूपमे विकसिति हेबा लेल मुँहतक्की अछि तखन धरतीक नीचाँ कुहरि रहल इतिहासक पीड़ाकेँ के कान-बात देत? एहि लेल चाही मिथिलाक समवेत जनशक्ति जे अपन जनप्रतिनिधिक माध्यमे व्यवस्थाकेँ बाध्य कऽ सकय जे पर्यटन केन्द्रक रूपमे जाहि कोनो स्थलमे सम्भावना अछि तकरा ओहि रूपमे विकसित कयल जाय। विश्वक पर्यटन-मानचित्रपर एहि सभ स्थलक आबि गेने जखन पर्यटक पहुँचता तँ ओ कतऽ रहता, की खेता, कोन ठामक वाहनपर यात्रा करता, निश्चित रूपसँ मिथिलाक आ ई क्षेत्रक पैघ आर्थिक आधार बनि सकत, मुदा ई मात्र सोचबा भरिसँ नञि होयत। एहि लेल दृढ़ संकल्पक प्रयोजन अछि। अन्यथा एहिना पर्यटन दिवस सभ साल अबैत रहत आ जाइत रहत। हमरा लोकनि बस पर्यटकीय दृष्टिसँ क्षेत्रक विकासक सपना टा गबैत रहि जायब। एकर गुण-गरिमाक कीर्त्तन टा करैत रहि जायब। 
हम अपनो डेग बढ़ाबी 
व्यवस्थाकेँ अपना क्षेत्रक ऐतिहासिक, पुरातात्त्विक ओ धार्मिक स्थलकेँ पर्यटन केन्द्रक रूपमे विकसित करबा लेल तँ अवश्ये कही, मुदा एहि लेल ओकरेपर ओठङने काज चलऽ वला नञि। एहि लेल अपनो डेग बढ़ेबाक प्रयोजन अछि। अपना क्षेत्रक महत्वपूर्ण स्थलक दर्शन लेल अपना ओहि ठाम एनिहार सर-कुटुम्बकेँ प्रेरित कऽ हम छोट सन सकारात्मक   प्रयास कऽ सकै छी। मन पड़ैत अछि असोमक गुवाहाटी केर बोकाखातक ओ कॉलेज जाहि ठाम साहित्य अकादेमी दिल्लीक संगोष्ठी आयोजित छल। ओहि ठाम लगभग दू सय छात्र-छात्रा बेराबेरी ई कहैत रहला जे ‘काजीरंगा’ अवश्य घूमि लेब। से ई नञि जे एक गोटे कहलनि तँ ओ सूनि रहल दोसर नञि कहता। एकाँएकी सभ कहलनि। आ अन्तत: शान्त पड़ल उत्कण्ठा तेना जागल जे ‘काजीरंगा’ देखने बिनु नञि रहि सकल रही। हमरा लोकनिकेँ स्वयं सेहो एहि ठामक सभ महत्वपूर्ण स्थलक पर्यटन तँ करी। जाहिसँ एहि सभक जानकारी आबऽ वला पीढ़ीक बीच बाँटि सकी। हमरा लोकनिकेँ सेहो स्वभाव विकसित करऽ पड़त। एकरा संग आजुक इण्टरनेट युगमे पढ़ल-लिखल जानकार लोक समग्र मिथिलाक नहिञो तँ कमसँ कम अपना क्षेत्रक एहन स्थलक विस्तृत विवरण ओ चित्र विश्व भरिक इण्टरनेट उपयोग केनिहार धरि तँ पहुँचाए सकै छथि जे पर्यटनक केन्द्र बनि सकैछ। ई काज मिथिला-मैथिली सेवी-संगठन सेहो कऽ सकैत अछि। 
आउ विश्व पर्यटन दिवसपर संकल्प ली जे अपना क्षेत्रक ऐतिहासिक धरोहरिकेँ विश्वक मानचित्रपर स्थापित करबा लेल व्यवस्था धरि सेहो अपन बात पहुँचायब आ अपनो एहि दिशामे सधल आ ठोस सकारात्मक डेग उठायब। तखने एहि दिसवकेँ मिथिला लेल सार्थक मानल जा सकैत अछि। 
आउ एक नजरि नेपालक ओहि मिथिलो दिस दी जे पर्यटनक दृष्टिसँ सजग अछि आ हमरा सभसँ बहुत आगाँ अछि।
एहिमे नेपालक जनकपुर स्थित माँ जानकी मन्दिर प्रमुख अछि जतऽ प्रतिवर्ष हजारो पर्यटक पहुँचै छथि। एहि ठाम धनुषा, खिरोइ नदी लग स्थित योगनिद्रास्थान, सखरा गाम स्थित कालिकास्थान श्रीजलेश्वर, श्रीक्षीरेश्वर, कुसुमा गामक याज्ञवल्क्याश्रम, श्री मिथिलेश्वर, हरिहरस्थान, वाल्मीक्याश्रम, कौशिकाश्रम, कामेश्वरनाथ महादेव मन्दिर आदि चर्चित स्थल रहल अछि। 

 साभार : मिथिला आवाज मैथिली दैनिक समाचार पत्र के 27 सितम्बर के अंक में प्रकाशित 

Wednesday, September 18, 2013

सुख-समृद्धि दै छथि भगवान अनन्त

अनन्तरूपेण विभर्षि पृथ्वीमनन्त लक्ष्मीं विद्धासि तुष्ट:।
अनन्त भोगान्  प्रददासि  तुष्टोह्यनन्तमोक्षं पुरुषे प्रहृष्ट:।।
अनन्तरूप धारण कऽ पृथ्वीक चराचर जीवक भरण-पोषण केनिहार, प्रसन्न हेबापर अनन्त लक्ष्मीकेँ प्रदान कऽ अनन्त सुख, ऐश्वर्य, भोगकेँ प्रदान केनिहार आ अन्तमे मोक्ष देनिहार अनन्त स्वरूप भगवान श्री अनन्तक पूजा अनन्त कालसँ होइत आबि रहल अछि। भविष्योत्तर पुराणमे कहले गेल अछि-
संसारसागरगुहासु सुखं विहर्तुं, वाज्छन्ति ये कुरुकुलोद्भव शुद्धसत्वा:।
संपूज्य  च  त्रिभुवनेशमनन्तदेवं, वद्धन्ति  दक्षिण  करे वरडोरकन्ते।।
अर्थात् एहि संसार-सागरमे जे सुख-समृद्धिपूर्वक रहऽ चाहै छथि से चौदह ग्रन्थि (गेँठ)सँ युक्त अनन्तक डोरकेँ बन्है छथि। भाद्र शुक्ल चतुर्दशीकेँ ई पूजन होइत अछि। ई चतुर्दशी उदयव्यापिनी अवश्य हो। पक्षधर मिश्र ‘तिथिचन्द्रिका’मे कहै छथि-
अनन्तस्य व्रते राजन् घटिकैका चतुर्दशी ।
उदये घटिकार्द्धं वा सैव ग्राह्या महाफला।।
अर्थात् जाहि दिन उदयकालसँ एक घण्टा वा आधो घण्टा धरि चतुर्दशी हो, ताही दिन पूजा करी।
एहि पूजामे प्रात: स्नानादि नित्यकृत्यसँ निवृत्त भऽ, सर्वतोभद्र बना ताहिपर कलश-स्थापन कऽ कुशक अनन्त भगवानक प्रतिमा बना राखल जाइत अछि। पिठारसँ अष्टदल अरिपन लीखि अनन्तक पूजन होइत अछि। एहिमे 14 प्रकारक पकमान, 14 प्रकारक फल, फूल ओ नाना प्रकारक नैवेद्यक डाली लऽ टोल भरिक स्त्रीगण वा गाम भरिक स्त्रीगण एकट्ठा होइ छथि आ डालीकेँ एकठाम सजा कऽ राखल जाइत अछि। तदन्तर पूजा होइत अछि। पूजा समात्पिक उपरान्त पुरान डोरकेँ फोलि ताहि संग नवीन 14 गेँठ युक्त अनन्तकेँ गायक दूधसँ भरल बासनमे मथल जाइत अछि।
मथबा काल विधि अछि जे एक व्यक्ति पुछै छथि- की मथै छी?
पूजा केनिहार उत्तर दै छथि- समुद्र।
पुन: प्रश्न होइत अछि- की तकै छी?
पूजा केनिहार उत्तर दै छथि- अनन्त।
पुन: प्रश्न होइत अछि- भेटला?
उत्तर- भेटला। ई कहैत पूजा केनिहार अनन्तक डोरकेँ दूधसँ बहार कऽ माथमे स्पर्श करै छथि। पूजनक उपरान्त पुरुष दहिना हाथमे आ स्त्रीगण वामा हाथमे अनन्तक डोर बन्है छथि। एहि पूजाक संकल्प 14 वर्ष धरिक होइत अछि। किछु लोक जीवन पर्यन्त करै छथि।
अनन्त पूजाक कथा भविष पुराणमे कहल गेल अछि- पाण्डव जखन अत्यन्त दु:खी भेल वनमे उद्विग्न भऽ गेला तँ युधिष्ठिर कृष्ण भगवानकेँ पुछलथिन- हे भगवन! कोनो एहन उपाय कहल जाय जे करबासँ मनुष्यकेँ मनोवाञ्छित फलक प्राप्ति हो। ताहिपर श्रीकृष्ण कहलथिन- पृथ्वीपर स्त्री-पुरुषकेँ कयल सभ पापक मुक्ति अनन्त व्रतसँ होइत अछि। अनन्त डोर बन्हबाक मंत्र अछि-
अनन्त संसार महासमुद्रे, मग्नान् समभ्युद्धर वासुदेव।
अनन्तरूपे विनियोजयस्व, अनन्तरूपाय नमो नमस्ते।।
युधिष्ठिर द्वारा ई जिज्ञासा करबापर जे कहिया आ के पहिल-पहिल अनन्तक पूजन केलनि आ एकर की पुण्य आ फल भेल, पुन: श्रीकृष्ण कहलथिन- सतयुगमे सुमन्तु नामक एक ब्राह्मण ‘दीक्षा’ नामक भृगुपत्नीसँ विवाह केलनि। दीक्षाकेँ शीला नामक कन्या भेलनि। किछु दिनक उपरान्त समन्तुक पत्नी दीक्षाक देहान्त भऽ गेलनि। सुमन्तु पुन: धर्मपुत्रक बेटी ‘कर्कशा’ सँ विवाह केलनि। पुत्री शीला माता-पिताक सेवा करैत रहली। शीलाकेँ युवावस्थामे प्रवेश करैत देखि सुमन्तु कौटिल्य नामक ब्राह्मणसँ विवाह करा देलथिन। विवाहक उपरान्त सुमन्तु अपन पत्नी कर्कशाकेँ कहलथिन जे जमायकेँ किछु धन दान दऽ बिदा करू, मुदा कर्कशा जेहने नाम तेहने गुण। क्रोधेँ लहलह करैत घरमे जे कैञ्चा-कौड़ी छलनि से पेटीमे लऽ कऽ नैहर पड़ा गेली। सुमन्तु सातुक बटखर्चा बान्हि बेटी-जमायकेँ बिदा केलनि। कौटिल्य अपन पत्नीक संग यात्रा केलनि। बाटमे भूख लगलनि तँ दुनू प्राणी एकटा पोखरिक कातमे जलपान करबाक हेतु गेला। ओतऽ शीलाक नजरि पड़लनि, बहुत रास स्त्रीगण सभ एकठ्ठा भऽ लाल-पीयर नूआ पहिरि भगवानक पूजा कऽ रहल छली। जिज्ञासावश शीला हुनका लोकनिकेँ पुछथिन जे ई केहन व्रत थिकै? सभ स्त्रीगण शीलाकेँ कहलथिन जे ई अनन्तक पूजा थिक। एहि व्रतमे बिना अन्न-जल ग्रहण केने नाना प्रकारक पकमान, फल, फूल, नैवेद्य आदिसँ पीताम्बर विष्णुक पूजन होइ छनि। हुनका आगूमे लाल-पीयर 14 गेँठ वला डोर राखल जाइत अछि। पूजाक उपरान्त ई अनन्तक डोर स्त्री वाम हाथमे आ पुरुष दहिनामे बन्है छथि जाहिसँ जीवनमे सतत् सुख-समृद्धि होइत अछि। एहि तरहेँ 14 वर्ष धरि जे ई पूजन करै छथि हुनकर सभ कामनाक पूर्त्ति होइ छनि। ई सुनि शीला स्त्रीगण सभक संग व्रतमे रहि यथाविधि पूजा केलनि आ अनन्तक डोर बन्हलनि। पुन: संगमे राखल जे बटखर्चा छलनि ताहिमेसँ आधा ब्राह्मणकेँ दान दऽ कऽ घर आबि गेली। अनन्त व्रतक प्रभावसँ किछुए दिनमे धन-धान्य आ अपार सम्पत्तिक स्वामिनी बनि गेली। हुनक पति कौटिल्य एक दिन पत्नीक बाँहिमे डोर बान्हल देखि धन मदान्ध भेल कहलथिन- ई की बन्हने छी? ई कहैत अनन्तक डोर तोड़ि कऽ आगिमे फेकि देलथिन। एहिसँ अनन्त भगवान कुपित भऽ गेला। हुनक कोपसँ अनायास चोर-डकैत द्वारा धन-सम्पत्तिक हरण कऽ लेल गेलनि। घर-समाज सर्वत्र कलह उत्पन्न भऽ गेलनि आ ओ परम दरिद्र भऽ गेला। कौटिल्यक पत्नी कहलथिन- अनन्त भगवानक कोपक ई प्रतिफल थिक। कौटिल्य व्याकुल भेल वने-वन यत्र-तत्र अनन्त-दर्शन हेतु बताह जकाँ गाछ-वृक्षसँ पता पूछऽ लगला आ अन्तमे प्राण-त्याग करबा लेल उद्यत भऽ गेला। ई देखि अनन्त स्वरूप   भगवान विष्णु वृद्ध ब्राह्मणक रूप धारण कऽ सम्मुख उपस्थित भेलथिन आ अपन चतुभुर्ज रूपमे कौटिल्यकेँ दर्शन देलथिन। कौटिल्य अनेकानेक स्तुतिसँ भगवानकेँ प्रसन्न केलनि। भगवान पुन: अनन्त व्रत आ पूजाक उपदेश देलथिन। भगवानक आज्ञासँ 14 वर्ष धरि कौटिल्य अनन्तक पूजा केलनि आ समस्त सांसारिक ऐश्वर्यक भोग करैत अन्तमे स्वर्गारोहण केलनि। एहि कथाक भविष्य पुराणमे आरो विस्तारसँ वर्णन अछि।


एना करी भगवान अनन्तक पूजन

 पूजाक ओरियान : पूजाक स्थानकेँ पवित्रपूर्वक नीपि, पिठारसँ अष्टदल अरिपन लिखि ओहिमे सिन्दुर लगा ओहिपर एकटा आमक पल्लव देल कलश राखी। कलशमे सिन्दुर-पिठार लागल रहय। पूजाक लेल अनन्तक संग डालीमे सामयिक फलक संग-संग पकमान आदि राखी। तखन पूजा केनिहार हाथमे जल लऽ शुचि मन्त्र पढ़थि-ऊँ अपवित्र: पवित्रो वा सर्वावस्थां गतोपि वा।य: स्मरेत पुण्डरीकाक्ष: स बाह्याभ्यन्तर: शुचि:।।मंत्र पढ़बाक बाद हाथक जल यावन्तो पूजा सामिग्री के शिक्त करैत अपना शरीरपर सेहो छीटी। सूर्यादि पंचदेवताक पूजा :  हाथमे अक्षत लऽ ऊँ सूर्यादि पंचदेवता इहागच्छ इहतिष्ठ। हाथक अक्षत पातपर राखि अर्घामे जल लऽ- एतानि पाद्यार्घाचमनीय स्रानीय पुनराचमनीय सूर्यादि पंचदेवताभ्यो नम:। जल चढ़ा फूलमे चानन लऽ- इंदमनु लेपनंसूर्यादि पंचदेवताभ्यो नम:। अक्षत- इदमक्षतं सूर्यादि पंचदेवताभ्यो नम:। फूल- एतानि पुष्पानि सूर्यादि पंचदेवताभ्यो नम:। दूबि- इदं दुर्बादलं सूर्यादि पंचदेवताभ्यो नम:। विल्वपत्र- इदं विल्वपत्रं सूर्यादि पंचदेवताभ्यो नम:। अर्घामे जल लऽ- एतानि धूप-दीप ताम्बूल यथाभाग नानाविधि नैवेद्यानि सूर्यादि पंचदेवताभ्यो नम:। पुन: अर्घामे जल लऽ- इदमाचमनीयं ऊँ सूर्यादि पंचदेवतभ्यो नम:। तखन एकटा फूल लऽ - एष पुष्पांजलि ऊँ सूर्यादि पंचदेवताभ्यो नम:। तहन हाथमे तेकुशा तिल जल लऽ संकल्प :- ऊँ अद्य भाद्रमासीय शुक्लपक्षीय चतुर्दश्याम तिथौ अमुकशर्माहं (अपन  नाम ली) परमानन्त प्रीतिपूर्वकैहिक वहुगोधनधान्य रत्नादिमत्त्व- कल्पान्तस्थायि पुनर्वसु नक्षत्र यवन कामया अनन्त व्रत महंकरिष्ये। ई संकल्प कऽ पूजा आरम्भ करी। पीढ़ीपर कमलक जे अरिपन ताहिपर देल जे कलश ताहिमे कुशक अनन्त महाराज बना ओकरा जनउसँ लपेटि कऽ राखि दी। तहन हाथमे तिल लऽ- ऊँ मनोजूतिर्जुषतामाज्यस्य वृहस्पतिर्यज्ञमिमन्तनोत्वरिष्टं यज्ञं समिमं दधातु विश्वेदवास इह मादयन्तामोम्प्रतिष्ठ। ऊँ भगवन अनन्त इह सुप्रतिष्ठतो भव। हाथक तिल ओहि कुशक बनल अनन्तपर चढ़ा हुनका प्रतिष्ठित कऽ हाथमे फूल लऽ दुनू हाथ जोड़ि कऽ - फणासप्तान्वितं देवं चतुर्वाहुं किरीटिनम्। नवाम्रपल्लवाभांस पिंगलस्मश्रुलोचनम्। पिताम्बरंधरं देव शंखचक्रगदाधरम्। कराग्रे दक्षिणे शंखं तपस्यप्यश: करे। चक्रमूद्धवे तथा वामे गदातस्याप्यध: करे। दधानं पद्मं सर्वलोकेशं सर्वाभरणभूषितम्। क्षीराबिधमध्ये श्रीमन्तमनन्तं चन्तयेद्धरिम्। ई पढ़ि हाथक फूल चढ़ा दियनि। पुन: अक्षत लऽ - ऊँ आगच्छानन्तदेवेश तेजो राशे जगत्पते। क्रियमाणां मया पूजां गृहाण सुरसत्तम। ऊँ  अनन्त इहागच्छ इहतिष्ठेत्यावाह्य। हाथक अक्षत पातपर धऽ अर्घामे जल लऽ - ऊँ गंगा च यमुनाचैव नर्मदा च सरस्वती। ताप्तीपयोष्णी रेवा ताभ्य: स्रानार्थ माहृतम। एतानि पाद्यार्घाचमनीय स्रानीय पुनराचमनीय ऊँ अनन्ताय नम:। वस्र- इदं पीतवस्रं वृहस्पति दैवतम् ऊँ अनन्ताय नम:। यज्ञोपवीत - इमे सोत्तरीय यज्ञोपवीते वृहस्पति दैवतम् ऊँ अनन्ताय नम:। चानन- इदमनु लेपनम वृहस्पति दैवतम् ऊँ अनन्ताय नम:। तिल जौ- एते यवतिला वृहस्पति दैवतम् ऊँ अनन्ताय नम:। फूल- एतानि पुष्पानि वृहस्पति दैवतम् ऊँ अनन्ताय नम:। माला- इदं पुष्पमाल्यं वृहस्पति दैवतम् ऊँ अनन्ताय नम:। दूबि- इदं दुर्वादलं वृहस्पति दैवतम् ऊँ अनन्ताय नम:। तुलसी- इदं तुलसी पत्रम् वृहस्पति दैवतम् ऊँ अनन्ताय नम:। जल लऽ एतानि गन्ध-पुष्प धूप-दीप ताम्बूल नानाविधि नेवैद्यानि वृहस्पति दैवतम् ऊँ अनन्ताय नम:। जल लऽ- इदमाचमनीयं वृहस्पति दैवतम् ऊँ अनन्ताय नम:। एकटा फूल- एष पुष्पाञ्जलि ऊँ अनन्ताय नम:।तखन बलभद्रक पूजा : हाथमे अक्षत लऽ - ऊँ भूर्भूव: स्व: बलभद्र इहागच्छ इहतिष्ठेत्यावाह्य। अर्घामे जल लऽ- एतानि पाद्यार्घाचमनीय स्रानीय पुनराचमनीय ऊँ बलभद्राय नम:। चानन-इदमनु लेपनम् ऊँ बलभद्राय नम:। तिल- एते तिला: ऊँ बलभद्राय नम:। फूल- एतानि पुष्पाणि ऊँ बलभद्राय नम:। माला- इदं पुष्पमाल्यम ऊँ बलभद्राय नम:्। दूबि- इदं दूर्वादलं ऊँ बलभद्राय नम:। अर्घामे जल लऽ- एतानि गन्ध-पुष्प धूप-दीप ताम्बूल यथाभाग नानाविध नैवेद्यानि ऊँ बलभद्राय नम:। जल लऽ- इदमाचमनीय ऊँ बलभद्राय नम:। एकटा फूल लऽ- एष पुष्पाञ्जलि ऊँ बलभद्राय नम:। सुमन्तक पूजा : हाथमे अक्षत लऽ - ऊँ भूर्भूव: स्व: सुमन्त इहागच्छ इहतिष्ठेत्यावाह्य। अर्घामे जल लऽ- एतानि पाद्यार्घाचमीनय स्रानीय पुनराचमनीय ऊँ सुमन्ते नम:। चानन- इदमनु लेपनम् ऊँ सुमन्तवे नम:। अक्षत- इदमक्षतं ऊँ सुमन्तवे नम:। फूल- एतानि पुष्पानि ऊँ सुमन्तवे नम:। दूबि- इदं दूर्वादलं ऊँ सुमन्तवे नम:। अर्घामे जल लऽ - एतानि गन्ध-पुष्प धूप-दीप ताम्बूल यथाभाग नानाविधि नैवेद्यानि ऊँ सुमन्तवे नम:। जल- इदमाचनीय ऊँ सुमन्तवे नम:। एकटा फूल लऽ- एष पुष्पाञ्जलि सुमन्तवे नम:।एही तरहेँ दीक्षा पूजन, इन्द्रादि दशादिक्पाल, नवग्रह केर पूजन करी। एही तरहेँ हृषीकेशोसि। ऊँ पद्मनाभोसि। ऊँ माधवोसि। ऊँ बैकुण्ठोसि। ऊँ श्री धरोसि। ऊँ त्रिविक्रमोसि। ऊँ मधुसूदनोसि। ऊँ वामनोसि। ऊँ केशवोसि। ऊँ नारायणोऽसि। ऊँ दामोदरसि। ऊँ गोविन्दोसि केर उच्चारण करैत पञ्चोपचार पूजा कऽ प्रदिक्षणा कऽ प्रार्थना करी। तखन पुराने अनन्तक डोर स्पर्श कऽ पढ़ी - ऊँ सव्वंत्सरकृतां पूजां संपाद्य विधिवन्मम्। व्रजे दानी सुरश्रेष्ठ ह्यनन्त फलदायक।। न्यूनातिरिक्तानि परिस्फुटानि यानीह कर्माणि मया कृतानि। सर्वाणि चैतानि मम क्षमस्व प्रयाहि तुष्ट: पुनरागमाय। एहि तरहेँ पुरान डोरक विर्सजन कऽ फुलही बासनमे गायक दूध दऽ ओहिमे नव अनन्त डोरा राखि पुरान डोरा लऽ मथल जाइछ। मथनिहारकेँ पुछल जाइछ- की   मथै छी? पूजक केर उत्तर- क्षीर समुद्र। प्रश्न- की तकै छी? उत्तर- अनन्त भगवान। प्रश्न- भेटला? उत्तर- हँ। तहन स्वस्ति प्राप्त कऽ अनन्तकेँ उठाय माथमे सटा प्रणाम कऽ विर्सजन करी। तथा नव डोराकेँ प्रणाम करी आ मन्त्रक संग अनन्त बान्ही। 

डॉ विद्याधर मिश्र
विभागाध्यक्ष स्नातकोत्तर व्याकरण विभाग
कासिंद संस्कृत विश्वविद्यालय
साभार : मिथिला आवाज मैथिली दैनिक समाचार पत्र में प्रकाशित इ लेख


Sunday, September 15, 2013

नैतिकतासँ परिपूर्ण हो जनमानस

 दिल्लीक फास्ट ट्रैक कोर्ट द्वारा चारि गोट दुष्कर्मीकेँ फाँसीक सजाय सुनाओल जाइते सौँसे देशक संवेदना एक संग उजागर भऽ गेल। बेसी ठाम कहल गेल जे ई ऐतिहासिक निर्णय अछि। ईहो कहल गेल जे एहि सजायसँ दुष्कर्मक घटना कम होयत। आइसँ लगभग नओ मास पूर्व 16 दिसम्बर 2012 केँ बसमे एकगोट युवतीक संग भेल सामूहिक दुष्कर्म आ अन्तत: सिंगापुरमे 29 दिसम्बर 2012 केँ पीड़िताक मृत्युक घटना सौँसे देशकेँ उद्वेलित कऽ देने छल। समाजक कोनो एहन वर्ग नञि छल जे उद्वेलित नञि भेल हो। उचिते, एहन हेबाके चाही छल। एहि घटनाक आरोपी सभकेँ मृत्यु-दण्ड भेटबाक स्वागतो हेबाक चाही छल, जे भेल। कोर्टक निर्णयसँ समाजमे कठोर सन्देशो जायत। दुष्कर्मीकेँ एते डर तँ अवश्ये हेतै जे पकड़ल जेबापर मृत्यु-दण्डो भेटि सकैत अछि, मुदा विचारणीय अछि जे की एहीसँ दुष्कर्म सन घृणित काज रुकि जायत? कदापि नञि। मात्र कानून बनेबा भरिसँ काज चलऽ वला नञि अछि। अपना देशमे एहिसँ पहिनो तँ दुष्कर्मीकेँ मृत्यु-दण्ड देल गेल अछि। रंगा-बिल्ला सन राक्षसकेँ आ ओकर दुष्कृत्यकेँ चाहियो कऽ हमरा लोकनि बिसरि सकै छी? ओकरो मृत्यु-दण्ड देल गेल छल। की तकर बाद घटना रूकल? असलीहतमे ई दिन-प्रतिदिन बढ़ले गेल। दोसर बात अछि, एक घटनामे चारि गोटेकेँ फाँसी देबाक सजाय सुनाओल गेल अछि, जेँ मीडिया एहि दुष्कर्मकेँ जमि कऽ रखलक तेँ ने सगरो देशक नजरि एहिपर छल। देशमे प्रतिदिन एहि तरहक घटना तँ भैए रहल अछि। जाहि समय दिल्ली-दुष्कर्म काण्ड देश-विदेशमे चर्चित छल ताहू समयमे एहि तरहक घटना भऽ रहल छल। थोड़े बीचे तँ जेना ई व्याधिक रूप पकड़ि नेने छल। संक्रामक रोग जकाँ। चारू भरसँ एही तरहक समाचार आबि रहल छल। की हमरा लोकनिक संवेदना ओहि सभ बच्ची, किशोरी, युवती आ विवाहिता लोकनिसँ नञि जुड़बाक चाही जे दुष्कर्म सन यातना भोगलनि? हुनका सभक प्रति हमरा लोकनिक संवेदनशील किए ने भेलहुँ। एखनो समाचार पत्रमे नित्य कतहु ने कतहुसँ एहि तरहक घटना सोझाँ आबिए रहल अछि। आर तँ आर परिजन पर्यन्त द्वारा दुष्कर्मक घटना भऽ रहल अछि। कहल जाइत अछि जे देशमे जते दुष्कर्मक घटना होइत अछि ताहिमेसँ अधिकांश सोझाँ नञि अबैत अछि। जँ ओहो सभ सोझाँ आबय तखन केहन भयावह स्थिति होयत? दुष्कर्मक एहन पीड़िता सभकेँ कहिया न्याय भेटतनि? भेटबो करतनि की? हुनका सभकेँ न्याय भेटनि ताहि लेल हमरा लोकनि किए ने किछु करै छी? की मीडिया जाहि-जाहि घटनाकेँ उठायत ततबेसँ हमरा लोकनि सरोकार राखब? एहन बहुत रास प्रश्न अछि जे आइएसँ नञि बरखो-बरखसँ अनुत्तरित अछि। तहिना अनुत्तरित अछि जे एहि तरहक घटनाक स्थायी सामाधान लेल किए ने ठोस डेग उठाओल जाइत अछि? रोगक बदला रोगीक उपचार करबा दिस हमरा लोकनि किए अपनाकेँ केन्द्रित केने छी?

स्थायी निदान नैतिक शिक्षा

दुष्कर्मक घटनापर रोक लेल कानून बनाओल जा रहल अछि, मुदा कानून बनेबे भरिसँ काज चलऽ वला रहैत तँ देश भ्रष्टचारमे आकण्ठ नञि डूबल रहैत। दहेज प्रथाक कहिया ने सराध भऽ गेल रहितै। दहेज लेल कोनो नव विवाहिताकेँ जिबिते नञि डाहल जाइत। एहन बहुत रास उदाहरण देल जा सकैत अछि जाहि लेल कानून बनल अछि, कठोर सजायक प्रावधान अछि, तथापि एकर स्थायी निदान नञि भऽ रहल अछि। प्रयोजन अछि समाजकेँ सद्मार्गपर लऽ जेबा लेल रोगक उपचार कयल जेबाक। एखन रोगीक उपचार करबामे हम सभ जुटल छी आ एहीसँ सन्तुष्ट भऽ रहल छी। बूझि रहल छी जे एकरा समाप्त कऽ देल। दुष्कर्मक घटनामे चारि गोटेकेँ फाँसकी सजाय भेटबाकेँ आ महिलाक संग आपराधिक घटना लेल कानून बना जँ यैह बुझै छी तँ हमरा लोकनि अपनाकेँ फुसिया रहल छी। बात पुरनायत आ आयल-गेल भऽ जायत। जँ एहि तरहक रोगक चिकित्साक स्थायी समाधान चाहै छी तँ एहि लेल रोगक ओहि कारणकेँ ताकऽ पड़त जे मूलमे अछि। से अछि नैतिक पतन। कहियो कोनो कार्यालयमे काज हेबापर जँ कर्मीकेँ दस-बीस टाका क्यौ देबऽ चाहै छला तँ ओ हाथ जोड़ि लै छल आ कहै छल ‘नञि-नञि एना नञि करू, बाल-बच्चा वला छी, घूस-पेंच लेब तँ बाल-बच्चापर पड़ि जायत’, माने नैतिकता ओकरा ओ राशि लेबासँ रोकै छल। आइ परिस्थिति सर्वथा उनटि गेल अछि, आइ ओही कार्यालयक कर्मी कहैत अछि ‘किछु दियौ बाल-बच्चा वला छियै, कहाँसँ पढ़ेबे-लिखेबै, सुदुक दरमाहासँ काज नञि ने चलै छै महगीमे।’ नेनपनेसँ रटायल जाइ छल-
मातृवत    परदारेषु    परद्रव्येषु  लोष्ठवत।
आत्मवत सर्वभूतेषु य: पश्यति स: पण्डित:।।
अर्थात् दोसराक स्त्रीकेँ माताक समान, दोसराक धनकेँ ढेपा सन आ अपने सन सभकेँ देखनिहार पण्डित थिका।
तहिना-
अष्टादश पुराणेषु  व्यासस्य वचनद्वयम्।
परोपकाराय पुण्याय, पापाय परपीडनम् ।।
अर्थात् अठारहो पुराणमे व्यासक दुइए टा वचन छनि जे दोसराक उपकार करब पुण्य थिक आ दोसराकेँ पीड़ा पहुँचायब पाप।
एहि तरहक नीति-वचनक असरि काँच मानसिकतापर होइ छल। जेना-जेना नेनाक बौद्धिक विकास होइ छल तहिना-तहिना नैतिक शिक्षाक स्तरो बढ़ै छल। नैतिकताक पाठ मात्र घोखबा लेल नञि होइ छल नेना-किशोरकेँ ओकरा आत्मसात करबा लेल प्रेरित कयल जाइ छल। आइ हमरा लोकनि एहि बाटकेँ छोड़ि चुकल छी। प्राचीन सभ परिभाषा आ मान्यताकेँ उनटि देबा लेल प्रयासरत छी। कहल जाइ छल-
विद्या ददाति विनयम विनयाद्याति पात्रताम्।
पात्रत्वात्धनमाप्नोति धनात धर्म: तत: सुखम्।।
अर्थात् विद्या ओ थिक जे   विनयशीलता दैछ आ ओहिसँ पात्रता अबैत अछि, पात्रताक संग अर्जित धन लऽ धर्म केने सुख होइत अछि। आजुक सन्दर्भमे जँ एहि परिभाषापर विचार करी तँ सयमे निनानबे गोटे डिग्रीधारी लग विद्या नञि छनि कारण ओ विनयशील नञि छथि। तकर अर्थ भेल जे पात्रताक अभाव सेहो अछि। आ जे पात्र नञि होयत तकरासँ नैतिकताक अपेक्षा कऽ सकै छी की? आब एहि नीति वचन सभक सन्दर्भमे वर्त्तमान समस्याकेँ देखी। की लोक जँ हृदयसँ दोसराक स्त्रीकेँ अपन माय जकाँ मानय तँ दुष्कर्म सन घटना होयत? कदापि नञि। कमसँ कम एहन स्थिति तँ नहिञे ने रहत जेना आइ मानव अपन मूल धर्मकेँ छोड़ि पशु बनि गेल अछि। जे पुण्य-पापक चिन्ता करत से दानवी कृत्य नञि कऽ सकैत अछि। जे आनक धनकेँ ढेपा बूझत से भ्रष्टाचारी भैए ने सकैत अछि। जे विनयशील होयत से घृणित काज कैए ने सकैत अछि। तेँ प्रयोजन अछि नैतिक पतनशीलताक रोगकेँ चीन्हि उपचार कयल जाय जाहिसँ शरीरपर दाग भने रहि जाय, घाव अवश्य छूटि जायत।

संस्कृतक चरणमे चाही शरण 

नैतिक पतनशीलतापर विराम लेल संस्कृतक शरणमे देशकेँ लऽ जायब परमावश्यक अछि। कारण संस्कृत एहि नैतिक शिक्षाक अथाह सागर अछि। एही भाषामे भारतक आत्मा बसैत अछि। जते ई उचित-अनुचित, न्याय-अन्याय, पुण्य-पाप, सत्कर्म-दुष्कर्मक प्रसंग मार्ग-दर्शन करैत अछि तते आन कोनो भाषा नञि। भाषाक संग संस्कृति चलैत अछि। संस्कृतक संग भारतक संस्कृति अपन मूल अर्थमे चलैत अछि। एकर प्रचार-प्रसार सकल समस्याक निदान कऽ सकैत अछि, मुदा दुर्भाग्यसँ वर्त्तमान ओहि संस्कृतकेँ लतिएने-कतिएने अछि जे वैज्ञानिक विकासक आधार बनि रहल अछि, जे कर्म ज्ञान दैत अछि, जे सिखबैत अछि जे धन महत्वपूर्ण अछि, मुदा ओहूसँ महत्वपूर्ण अछि मानव जीवन, जे पढ़बैत अछि जे भौतिक सुख क्षणभंगुर अछि, जे बाट देखबैत अछि जे नित्य दिस बढ़ू अनित्य दिस नञि, मुदा जेना-जेना कथित विकास भऽ रहल अछि तहिना-तहिना वर्त्तमान संस्कृत दिससँ मुँह मोड़ि रहल अछि। जाहि भाषाक बलपर भारतकेँ विश्व गुरुक सिंहासन भेटल से उपेक्षित अछि। जाहि गुण-गरिमा लेल भारत विश्वमे जानल-चीन्हल जाइत रहल अछि तकर मूल संस्कृतेमे अछि, मुदा पाश्चात्यक प्रति आकर्षणक कारणेँ संस्कृतमे वर्णित तथ्य खिस्सा-पिहानी लगैत अछि आ पाश्चात्य जखन ‘गाड पार्टिकल’ तकबाक बात करैत अछि तँ ओहिपर विश्वास होइत अछि, जखन कि संस्कृत आरम्भेसँ एकर उद्घोष करैत रहल अछि। की अपन स्वर्णिम अतीतपर अविश्वास करब, ओकरा अनुपयोगी बुझबे विकास थिक?

यैह थिक विकास? 

विकासक सन्दर्भमे विचार करै छी तँ मन पड़ैत अछि एक गोट पत्रकार मित्रक कथन। एक बेर एक गोट पत्रकार मित्र दरभंगा आयल छला। ओ कहलनि जे किछु छात्रा सभसँ बात कऽ रिपोट बनाउ। हुनकर सभक फोटो सेहो लऽ लेब। दोसर दिन पुछलनि तँ कहलियनि जे छात्रा सभ ओहि विषयपर बातो करबा लेल तैयार नञि भेली। फोटो तँ एकदम्मे ने घिचेलनि। पत्रकार मित्र दुखी होइत कहलनि- ‘एखन ई शहर विकास नञि केलक अछि। हमरा ओहि ठाम चलू छात्रा आ युवती लोकनिकेँ जेना कहबनि तेना फोटो घिचा लेती। एक गोटेकेँ कहबनि तँ समस्या भऽ जायत। तराउपरी होबऽ लागत। अखन दरभंगा सभकेँ विकास करबामे समय लगतै।’ ई कहैत ओ अपन टी शर्टकेँ दुनू बाँहिपर नीचा ससारैत कहने छला- ‘एना फोटो घिचा लेत। जेना कहबै तेना घिचा लेत।’ ओ मुसुकैत अपना संग आयल मित्र दिस तकने छला आ ओहो समर्थन केलनि। हम आश्चर्यचकित रहि गेल रही जे की यैह विकास थिक जाहिसँ दरभंगा वञ्चित अछि? मनमे आयल छल जे जँ यैह विकास अछि तँ भने हमरा सभ पछुआयल छी। ई प्रकरण तँ बानगी भरि अछि। सगरो देशमे देह-यष्टिक प्रदर्शनकेँ विकास बूझल जा रहल अछि। हमरा लोकनि आँखि मूनि पाश्चात्यक अनुकरण कऽ रहल छी। पहिरन-ओढ़न आ विचार पर्यन्तमे। वस्त्रक उपयोग शरीरक झँपबा लेल होइ छल, आइ उनटि गेल अछि। आइ वस्त्रक उपयोग प्रदर्शन लेल होइत अछि। अंग-प्रदर्शन फैशनक नामपर सर्व स्वीकार्य भऽ गेल अछि। से तेना जे कहियो नायिकाक नग्न पीठ केर फोटो टीभीपर आबि जाइ छल तँ एक संग बैसल पैघ आ छोट अपन नजरि दोसर दिस कऽ लै छला जेना ओ देखिए ने रहल होथि, आइ ‘बिकनी गर्ल’ केँ बाप-बेटा, भाइ-बहिन संग-संग देखि रहल छथि। पहिने कहल जाइ छल ‘आप रुचि भोजन पर रुचि सिङार’, आइ पर रुचि भोजन आ आप रुचि सिङार भऽ गेल अछि। एहि ठाम प्रश्न उठि सकैछ जे की महिलाक विकास नञि हेबाक चाही, अवश्य हेबाक चाही, मुदा ओ वास्तविक विकास हो। आचार-विचारक विकास हो। शिक्षाक विकास हो। हुनक मानसिक-बौद्धिक विकास हो। विकासक नामपर महिलाकेँ वस्तु बना देबाक पाश्चात्य मानसिकतासँ हुनक केहन विकास भऽ रहल अछि से सभक सोझाँ अछि। विकासक बोल दऽ हुनका जेना-जेना आगाँ बढ़ेबाक बात भऽ रहल अछि, तहिना-तहिना ओ असुरक्षित भेल जा रहल छथि। हुनकापर सर्वत्र प्रताड़ना भऽ रहल छनि। ‘नारयस्तु यत्र पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता’ केर भावना खेलौड़ भऽ गेल अछि। जे विचार देवताक अस्तित्वे ने मानत से नारीक पूजाक बात कोना करत? हमरा लोकनि विकासक नामपर देशकेँ विदेशमे बदलने जा रहल छी तखन तदनुकूलेने परिणाम बहार होयत?

व्यवस्थो बदलय मानसिकता 

वर्त्तमान परिवेश लेल सरकारो दोषी अछि। ओ शराबक दोकान धुरझाड़ फोलि लोककेँ शराब पीबासँ होबऽ वला नोकसानक उपदेश दैत अछि। सिगरेट फैक्ट्रीकेँ लाइसेंस दैत अछि आ ओहिपर ‘स्वास्थ्य लेल   हानिकारक’ हेबाक वाक्य लीखबा अपन कर्त्तव्यक इतिश्री कऽ लैत अछि। ई केहन हास्यास्पद अछि जे एचआइवीसँ बचेबा लेल नैतिक रूपसँ युवा पीढ़ीकेँ मजगूत नञि कऽ निशुल्क निरोधक मशीन लगा एहिसँ बचाव केर प्रयास होइत अछि। की सुरक्षित सम्बन्ध लेल ई प्रेरित करब नञि मानल जायत? की एहिसँ नीक ई नञि होइत जे सामाजिक मान्यताक प्रतिकूल आचरण करबासँ रोकबा लेल कोनो ठोस उपाय कयल जाइत? युवा पीढ़ीकेँ नैतिक बलसँ परिपूर्ण कयल जाइत? मुदा ई हो कोना, जखन व्यवस्थो भारतीय परम्परा, संस्कृतिक प्रति रञ्च मात्रो आग्रही नञि रहि गेल हो।

जागऽ पड़त समाजकेँ 

सत्य पूछल जाय तँ नैतिकताक पतनपर अंकुश लेल समाजकेँ इमनदारीसँ जागऽ पड़त। जाबत सामाजिक जागरण नञि होयत एहि सभ समस्याक स्थायी समाधान मात्र कानून बनेबासँ कदापि नञि होयत। दुष्कर्मी, भ्रष्टचारी आदि सेहो तँ एही समाजक किनको भाइ, भतीजा वा आन कोनो सम्बन्धी होइ छथि। जँ समाज जागि जाय आ अपन सन्ततिमे नैतिक गुण भरबा लेल संकल्पित हो तँ व्याप्त सकल कुकृत्यक निदान सहजतासँ भऽ सकत। सभ क्षेत्रमे समाजेसँ तँ लोक जाइ छथि। ओ राजनीतिक क्षेत्र हो, प्रशासनिक क्षेत्र हो, व्यावसायिक क्षेत्र हो वा आन कोनो क्षेत्र, सभ ठाम नीक-अधलाह कर्म केनिहार तँ समाजेक क्यौ ने क्यौ होइ छथि। समाज अपन बेटी-धीक चिन्ता करत तखने मानवता गर्वसँ अपन माथ ऊँच कऽ चलि सकत। नञि तँ एहिना माथ झूकल रहत। की झूकल माथ मात्र ओकरे होइत अछि जे कुकृत्य करैत अछि, ओकरा संग ओकर समाजक माथ नञि झुकैत अछि? आउ जागी आ सुन्दर-स्वच्छ समाजक निर्माण लेल बेटा-बेटी दुनूकेँ रटाबी ‘मातृवत परदारेषु....।’

मिथिला आवाज मैथिली दैनिक समाचार पत्र केर 15.09.2013 के रविवासरीय अंक में प्रकाशित

Sunday, September 8, 2013

कलंकसँ उबारै छथि चौठी चान : चौरचनपर विशेष

चतुर्थी सूर्यास्तक बाद अढ़ाइ घण्टा धरिक, लेल जाइछ। जँ तिथि दू दिन एहि समयमे पड़य तँ अगिला दिन व्रत ओ पूजा हो। भरि दिन व्रत कऽ साँझखन आङनमे पिठारसँ अरिपन देल जाइछ। गोलाकार चन्द्र मण्डलपर केराक भालरि (पात) दऽ ओहिपर पकमान, मधुर, पायस आदि राखी। मुकुट सहित चन्द्रमाक मुँहक अरिपनपर केराक भालरि दऽ रोहिणी सहित चतुर्थी चन्द्रक पूजा उज्जर फूल (भेँट, कुन्द, तगर आदि) सँ पच्छिम मुहेँ करी। परिवारक सदस्यक संख्यामे पकमान युक्त डाली आ दहीक छाँछीकेँ अरिपनपर राखी। केराक घौर, दीप युक्त कुड़वार (माटिक कलश), लावन आदिकेँ अरिपनपर राखी। एक-एक डाली, दही, केराक घौर उठाऽ ‘सिंह: प्रसेन...’ मंत्रक संग ‘दधिशंखतुषाराभम्...’ मन्त्र पढ़ि समर्पित करी। प्रत्येक व्यक्ति एक-एक फल हाथमे लऽ ओहि मन्त्रसँ चन्द्रमाक दर्शन कऽ प्रणाम करी। एहि दिन भिनसरेसँ स्त्रीगण सभ पकमानक सामग्री जुटेबामे लागि जाइ छथि। दुपहरमे पूड़ी, ठकुआ, पिड़ुकिया, मालपूआ आदि बनेबामे व्यस्त रहै छथि। कुशी अमावस्येसँ दहीक जोगाड़, डाली-छाँछीक व्यवस्था करै छथि।

भादव मासक शुक्ल पक्षक चतुर्थी (चौठ) तिथिमे साँझखन चौठचन्द्रक पूजा होइत अछि जकरा लोक चौरचन पाबनि कहै छथि। एहि समय चन्द्रमा कनी काल रहि डूबि जाइ छथि आ बरसातक कारण मेघ रहबापर तँ दुर्लभे रहै छथि। एहि दुर्लभताक कारणेँ लोकमे प्रचलित अछि जे कोनो व्यक्तिकेँ बहुत दिनपर देखबापर कहै छथि जे अहाँ तँ ‘अलख चान’ (अलक्ष्य चान) भऽ गेलहुँ। कतहु एकरे ईहो कहल जाइत अछि जे अहाँ ‘चौठी चान’ भऽ गेल छी।
पुराणमे प्रसिद्ध अछि जे चन्द्रमाकेँ एहि दिन कलंक लागल छलनि। तेँ एहि समयमे हुनक दर्शनकेँ दोषावह मानल जाइछ। मान्यता अछि जे एहि समयक चन्द्रमाक दर्शन करबापर फूसिक कलंक लगैत अछि। एहि दोषक निवारण करबाक लेल ‘सिंह: प्रसेन’ वला मन्त्रक पाठ कयल जाइत अछि।
ई मिथिलासँ भिन्न प्रान्तक व्यवहार थिक। मिथिलामे भादवक इजोरियाक चौठमे मिथ्या कलंक नञि लागय ताहि हेतु रोहिणी सहित चतुर्थी चन्द्रक पूजा होइछ। एकर कथा स्कन्द पुराणमे अछि- श्रीकृष्ण भगवानकेँ एक बेर मिथ्या कलंक लागि गेलनि जे ओ प्रसेन नामक यादवकेँ मारि ‘स्यमन्तक’ नामक मणि लऽ नुका कऽ रखने छथि, जखन कि ओ एहन काज नञि केने छला। ओ प्रसेनकेँ ताकऽ वन गेला तँ ओतऽ ओकर मृत शरीरकेँ देखलनि। ओतऽ एक गुफाक भीतर गेला तँ एक दाइ (बच्चा खेलेनिहारि) केर हाथमे मणि देखलनि। ओ बच्चाकेँ कहि रहल छल- सिंह प्रसेनकेँ मारलक, ओहि सिंहकेँ जाम्बवान् मारलनि, तेँ हे सुकुमार (जाम्बावनक पुत्र)! अहाँ जुनि कानू, ई स्यमन्तक मणि अहीँक थिक-

‘सिंह: प्रसेनमवधीत्, सिंहो जाम्बवता हत:।
सुकुमारक! मा रोदी:, तव एष स्यमन्तक:।।’

यैह वाक्य श्रीकृष्णकेँ कलंकसँ मुक्त केलकनि। तेँ एहि श्लोककेँ पढ़ि चौरचनमे चन्द्रमाकेँ देखबासँ लोक कलंक मुक्त होइ छथि। जाम्बवान् हुनका मणिक संग जाम्बवती कन्या सेहो देलनि। श्रीकृष्ण घर आबि ओ मणि सत्राजित्केँ दऽ कलंक मुक्त भेला, परञ्च शतधन्वा नामक यादव  सत्राजित्केँ मारि मणि लऽ अक्रूरकेँ दऽ घोड़ापर चढ़ि भागल। अक्रूर मणि लऽ चुपचाप काशी चलि गेल आ श्रीकृष्ण ओ बलराम मणिक हेतु शतधन्वाकेँ खेहारलनि। बाटमे श्रीकृष्ण ओकरा मारलनि, मुदा मणि नञि भेटलनि। बलदेवकेँ कृष्णपर अविश्वास भेलनि जे ई मणि नुका कऽ फूसि बजै छथि। पुन: श्रीकृष्णकेँ कलंक लगलनि। तखन ब्रह्माक उपदेशसँ चौरचन पूजा कऽ कलंक मुक्त भेला।
ईहो कथा अछि जे एक बेर गणेश भगवानकेँ देखि चन्द्रमा हँसि देलथिन। एहिपर ओ चन्द्रमाकेँ सराप देलथिन जे अहाँकेँ देखबासँ लोक कलंकी होयत। तखन चन्द्रमा भादव शुक्ल चतुर्थीमे गणेशक पूजा केलनि। ओ प्रसन्न भऽ कहलथिन- अहाँ निष्पाप छी। जे व्यक्ति भादव शुक्ल चतुर्थीकेँ अहाँक  पूजा कऽ ‘सिंह प्रसेन...’ मन्त्रसँ अहाँक दर्शन करत तकरा मिथ्या कलंक नञि लगतै ओकर सभ मनोरथ पुरतै।
ई चतुर्थी सूर्यास्तक बाद अढ़ाइ घण्टा धरिक, लेल जाइछ। जँ तिथि दू दिन एहि समयमे पड़य तँ अगिला दिन व्रत ओ पूजा हो। भरि दिन व्रत कऽ साँझखन आङनमे पिठारसँ अरिपन देल जाइछ। गोलाकार चन्द्र मण्डलपर केराक भालरि (पात) दऽ ओहिपर पकमान, मधुर, पायस आदि राखी। मुकुट सहित चन्द्रमाक मुँहक अरिपनपर केराक भालरि दऽ रोहिणी सहित चतुर्थी चन्द्रक पूजा उज्जर फूल (भेँट, कुन्द, तगर आदि) सँ पच्छिम मुहेँ करी। परिवारक सदस्यक संख्यामे पकमान युक्त डाली आ दहीक छाँछीकेँ अरिपनपर राखी। केराक घौर, दीप युक्त कुड़वार (माटिक कलश), लावन आदिकेँ अरिपनपर राखी। एक-एक डाली, दही, केराक घौर उठाऽ ‘सिंह: प्रसेन....’ मंत्रक संग                ‘दधिशंखतुषाराभम्...’ मन्त्र पढ़ि समर्पित करी। प्रत्येक व्यक्ति एक-एक फल हाथमे लऽ ओहि मन्त्रसँ चन्द्रमाक दर्शन कऽ प्रणाम करी। दक्षिणा उत्सर्ग कऽ प्रसाद ग्रहण करी। चन्द्रमण्डलपर राखल प्रसादकेँ उपस्थित पुरुषवर्ग ओकर चारू भर गोलाकार पंक्तिबद्ध कऽ पातपर फराक-फराक भोजन कऽ ओही ठाम खाधि खूनि गाड़ि दी एकरा मड़र भाङब कहै छैक। बहुत ठाम पातपर राखल पायसक बीचो-बीच चानी अथवा सोनाक बनल वस्तुसँ चीरि माड़र भङबाक परम्परा सेहो अछि। पूजाक स्थानमे पूजाक निर्माल आदिकेँ गाड़ि दी।
एहि दिन भिनसरेसँ स्त्रीगण सभ पकमानक सामग्री जुटेबामे लागि जाइ छथि। दुपहरमे पूड़ी, ठकुआ, पिड़ुकिया, मालपूआ आदि बनेबामे व्यस्त रहै छथि। कुशी अमावस्येसँ दहीक जोगाड़, डाली-छाँछीक व्यवस्था करै छथि।
एहि पाबनिक उल्लेख रुद्रधर कृत वर्षकृत्य (1400 इ.), महेश ठाकुरक तिथितत्त्वचिन्तामणि (1560 इ.), अमृतनाथक कृत्यसारसमुच्चय (1800 इ.) इत्यादिमे अछि। एकर प्रचलन पहिने कम छल, मुदा 1600 इ.मे राजा हेमांगद ठाकुर एकर प्रचार सम्पूर्ण मिथिलाक घर-घरमे करा देलनि। सरकारी ‘कर’ नञि देबाक कारण ओ दिल्लीमे जहल भोगै छला। ओतऽ क्रमश: हजार वर्षक ग्रहण लगबाक सूची ‘ग्रहणमाला’ नामसँ बनेलनि। बादशाह हिनक गणितक परीक्षा केलनि। हेमांगद ठाकुर चन्द्रमासँ प्रार्थना केलनि जे हमर समयक अनुसार ग्रहण लगबापर जँ हम कर मुक्त होयब तँ सम्पूर्ण तिरहुतमे अहाँक पूजा धूमधामसँ करायब। सैह भेल। तेँ अपन राज्य आबि ढोलहो देया चौरचन मनबेलनि। एहिना 1800 इ.मे हरिनगरक पं. चन्द्रदत्त झा ‘भक्तमाला’ मे लिखै छथि जे हुनक माय चन्द्रमाक पूजा कऽ पुत्र प्राप्त केलनि, तेँ हिनक नाम चन्द्रदत्त पड़ल। चन्द्रमाक आराधनासँ बहुतो व्यक्तिक कामना पूर्ण भेलनि अछि। मिथिलाक विशेष पर्व चौरचन अपनामे एहि ठामक संस्कृति केर अनेक बिन्दुकेँ समेटने अछि।
चन्द्रमा प्रणाम मन्त्र-

‘दधि-शंख-तुषाराभं,   क्षीरोदार्णव-संभवम्।
नमामि शशिनं भक्त्या, शंभोर्मुकुटभूषणम्।।’

अर्थात् दही, शंख ओ बर्फक समान स्वच्छ, क्षीर सागरसँ उत्पन्न चन्द्रमा (शशि) केँ भक्तिसँ प्रमाण करैत छी जे महादेवक मुकुटक भूषण थिका।

पं. श्री शशिनाथ झा
स्नातकोत्तर व्याकरण विभाग
कासिंद संस्कृत विवि, दरभंगा

साभार : मिथिला आवाज दैनिक समाचार पत्र