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Wednesday, August 21, 2013

मिथिलामे पण्डिते बन्है छला रक्षा सूत्र

श्रावणी पूर्णिमा भाइ-बहिनक पवित्र प्रेमक प्रतीक पर्व रक्षाबन्धन किंवा राखीक रूपमे सगरो मनाओल जाइत अछि। देशक विभिन्न भागक संग मिथिलो एहि पर्वकेँ हर्षोल्लासक वातावरणमे मनबैत अछि। स्नान-पूजनसँ निवृत्त भऽ नव वस्त्र पहिरि बहिन अपना भाइ केर माथपर चानन लगबै छथि, हुनक आरती उतारै छथि आ रक्षासूत्र (राखी) बान्हि सदिखन अपन रक्षाक वचन लै छथि। भाइकेँ मिठाइ सेहो खोअबै छथि आ भाइ रक्षाक वचन दैत उपहार दै छथि। ई तँ अछि वर्त्तमान। कने अतीत दिस हुलकी मारू। ई जानि आश्चर्य लागत, हठात विश्वासे नञि होयत जे मिथिलामे पहिने मनाओल जाय वला रक्षाबन्धनक स्वरूप वर्त्तमानसँ मिसियो भरि मेल नञि खाइत अछि। मिथिलामे तँ ई भाइ-बहिनिक पाबनि कहियो रहबे ने कयल। मिथिलामे तँ भाइ-बहिनिक पाबनिक स्नेह-पर्व ‘भ्रातृ द्वितीया’ रहल अछि जे एखनो मनायल जाइत अछि। एकर अतिरिक्त ‘सामा’ सेहो एहि ठाम भाइ-बहिनिक पाबनि एहि ठाम मनायल जाइत अछि जाहिमे बहिन छठिक पारण दिनसँ सामा खेलाइ छथि आ कार्त्तिक पूर्णिमा दिन जखन सामाकेँ बिदा कयल जाइत अछि तखन भाइ सामाक डोलीकेँ कान्ह लगबै छथि, बहुत ठाम सामा तोड़ै छथि आ बहिन हुनक फाँड़ भरै छथि। एकर सत्यापन लेल इतिहास खँघारबा लेल बेसी पाछाँ जेबाक आवश्यकता नञि अछि। समाजमे एहन बहुत रास लोक भेटि जेता जिनक उमेर साठि-सत्तरि बरख छनि। कने हुनकासँ पूछि कऽ देखियौन जे जहिया नेना छला तहिया ओ अपना बहिनसँ राखी बन्हबेने छथि? एही उमेरक कोनो महिलासँ पूछि कऽ जाँचल जा सकैत अछि जे जेना एखन ई पाबनि मनाओल जाइत अछि तेना ओ अपना भाइकेँ राखी बन्हने छथि? उत्तर निश्चित रूपसँ नकारात्मक भेटत। एहि बयसक कोनो जाति-वर्गक मैथिल दू टूक कहता जे पहिने रक्षाबन्धनपर मिथिलामे बहिन अपना भाइकेँ राखी नञि बन्है छली। एहिसँ कमो उमेरक लोकक एहन उत्तर भेटि सकैत अछि। कतेको लोक ई कहि सकै छथि जे हुनका समयमे पण्डित-पुरहित बान्हथि, ओना बहिनो राखी बान्हब शुरू कऽ देने छली। यैह सत्य अछि। अपना ओहि ठाम पण्डिते-पुरहित रक्षासूत्र बान्हथि। हाल धरि रक्षाबन्धन दिन हाथमे रक्षासूत्र नेने यजमानकेँ बन्हबा लेल ठाम-ठाम पुरहित नजरि आबथि। एखनो ई परम्परा कतहु-कतहु चलैत अछि, मुदा आब नगण्य। अनुकरणक बिहाड़िमे अपन परम्पराकेँ हम सभ तेना उपेक्षित कऽ देलहुँ जे एखन बेसी दिन भेबो ने कयल अछि आ नवका पीढ़ीकेँ ई पतो नञि अछि जे रक्षाबन्धन एहि ठाम भाइ-बहिनिक पाबनि नञि छल। बहुत रास विद्वान एहि तथ्यकेँ लिपिबद्ध सेहो केने छथि। प्रसिद्ध पत्र ‘मिथिला मिहिर’ केर 1936 मे प्रकाशित ‘मिथिलांक’ मे ‘मिथिला में प्रचलित कुछ पर्व त्यौहार’ शीर्षक आलेखमे जीवानन्द ठाकुर लिखै छथि जे रक्षाबन्धनमे ब्राह्मण ‘येनबद्धो’ मंत्रसँ रक्षा (राखी) बन्है छथि। मैथिली भाषा-साहित्यक भीष्मपितामह कहल गेनिहार आचार्य सुरेन्द्र झा ‘सुमन’ अपन पोथी ‘मन पड़ैत अछि’ मे लिखने छथि जे सिनेमाक प्रभावेँ रक्षाबन्धन भाइ-बहिनिक पाबनि भऽ गेल। मैथिलीक शिखर-पुरुष पण्डित श्रीचन्द्रनाथ मिश्र ‘अमर’ अपन पोथी ‘अतीत मन्थन’ मे लिखै छथि ‘आइ रक्षा बन्धनक जे परिवर्त्तित स्वरूप देखि रहल छी से ‘पोरस’ नामक सिनेमा अयलाक बाद प्रचलित भेल, ई भाय-बहिनक पर्वक रूपमे मिथिलामे पसरि गेल।’ आनो-आन पोथीमे

बच्चीकेँ सेहो बान्हल  जाइ छल रक्षा-सूत्र 

श्रावणी पूर्णिमा दिन कुलदेवताकेँ रक्षा-सूत्र चढ़ाओल जानि आ पण्डित-पुरहित रक्षा-सूत्र लऽ घरसँ बिदा होथि आ यजमान सभक ओतऽ जा ‘येन बद्धो बली राजा दानवेन्द्रो महाबल: तेन त्वां प्रतिबध्नामि रक्षे मा चल माचल:’ मंत्रक संग घर-परिवारक सभ सदस्यकेँ रक्षा-सूत्र बान्हथि। बच्चीकेँ सेहो राखी बान्हल जाइनि। पुरुषक दहिना हाथमे आ बच्ची लोकनिक वामा हाथमे पण्डित रक्षा-सूत्र (राखी) बान्हथि। यजमान पण्डितकेँ दक्षिणा देथि। कतहु-कतहु बूढ़-पुरान लोक सेहो अपनासँ कम उमेरक लोककेँ रक्षा-सूत्र बान्हथि। एक गोटेकेँ कतेको पण्डित सेहो बान्हथि। खास कऽ सुखी-सम्पन्न लोक रक्षा-सूत्र बन्हेबा लेल श्रावणी पूर्णिमाकेँ दलानपर बैसथि आ पण्डित-पुरहित आबि-आबि रक्षा-सूत्र बान्हि दक्षिणा पाबथि। पण्डित श्रीचन्द्रनाथ मिश्र ‘अमर’ अपन पोथी ‘अतीत मन्थन’ मे महाराज रमेश्वर सिंहक प्रसंग लिखै छथि- ‘श्रावणी पूर्णिमा दिन महाराजाधिराज रमेश्वर सिंह रक्षाबन्धन पर्वक अवसरपर पूर्ण राजकीय वेषमे वर्त्तमान संस्कृत विश्वविद्यालयक सभाकक्ष आनन्दबागमे बैसैत छलाह, आगाँमे तीन टा चानीक बट्टामे टाका, अठन्नी आ चौअन्नी राखल रहैत छलनि।
अपन कुल पुरोहित, विद्यालयक अध्यापक लोकनि, छात्रगण, राजक ब्राह्मण कर्मचारी सब, शुभंकरपुर, सुन्दरपुर, रानीपुर, खराजपुर, मिर्जापुर, चतरिया, गहुमी आदि गामक ब्राह्मण सब राखी बन्हबाक हेतु अबैत छलथिन।
 दक्षिणामे पुरोहित, अध्यापक लोकनिकेँ एक टाका, ब्राह्मण सबकेँ अठन्नी, छात्र समुदाय आ दरिद्र सबकेँ चौअन्नी भेटैत छलनि।’ राखीसँ सम्बन्धित लोकगीत उपलब्ध नञि होयब सेहो एहि भावकेँ पुष्ट करैत अछि जे ई पाबनि मिथिलामे भाइ-बहिनक नञि छल। हँ, आइ अछि आ लोक हँसी-खुशी पवित्र भावसँ मिथिलोमे मनबै छथि।

मेधा-रक्षाक ओरियान

पहिने मिथिलामे जे रक्षाबन्धन मनाओल जाइ छल ओहिमे मेधाक रक्षाक वचन लेल जाइ छल। पहिने जे समाजमे जातीय व्यवस्था छल से एखुनका जकाँ नञि छल। पहिने समाजक ब्राह्मण वर्गक काज छल पढ़ब-पढ़ायब आ समाज-कल्याण लेल चिन्तन   मनन करब। स्वाभाविक रूपसँ जे समाजक कल्याण लेल चिन्तन-मनन करै छला तकरा प्रति समाजोक दायित्व बनै छल। प्राय: तेँ पण्डित-पुरहित द्वारा श्रावणी पूर्णिमापर रक्षा-सूत्र बन्हबाक विधान कयल गेल जे एहि मेधाक रक्षाक वचन दैत समाज अपन दायित्वक निर्वाह सेहो करय। रक्षाबन्धनक मंत्रमे यैह कहलो जाइत अछि। आइ ई भाव कतहु नञि अछि। मेधाक रक्षाक चिन्ता एतेक गम्भीरताक संग करबाक व्यवस्था तिरोहित भऽ गेल अछि।

बदलैत स्वरूप झूस होइत भाव 

जेना-जेना युग बदलि रहल अछि, तहिना-तहिना राखीक स्वरूप सेहो बदलैत चलि गेल। पहिने एक पातर सूत्रक आगाँ तूरकेँ रंगि ओकर फुदना लगाओल राखी बनै छल। ई एखनो भेटैत अछि, मुदा बहुत तकबापर। जखन एकर ग्राहके नञि छथि तँ सभ तरि भेटत कोना? पहिने पटुआसँ सेहो ई बनाओल जाइ छल। एहि राखीक डोरमे बीच-बीचमे तूर अथवा पटुआकेँ विभिन्न रंगमे रंगि लगाओल रहै छल।
धीरे-धीरे पाबनिपर बजार आ प्रदर्शन हाबी होइत गेल। स्पञ्जक राखी बनऽ लागल। दू-तीने रंगक अथवा एके रंगक स्पञ्ज गोल रहै छल आ ओहिपर प्लास्टिक केर फूल, रक्षाबन्धन लिखल किंवा आन कोनो फोटो लागल रहै छल। कतेको गोटे ओहिपर सय-पचासक टाका लगा सेहो पहिरथि। फेर नग आदि राखी आयल। राखीक ई स्वरूप जेना-जेना बदलि रहल अछि तहिना-तहिना एकर पवित्र भाव सेहो झूस होइत जा रहल अछि। स्नेहपर प्रदर्शन आ बजार हाबी भऽ रहल अछि।

पेटी-बाकसमे  सेहो रक्षा सूत्र 

रक्षाबन्धनक संग लोक परम्परा सेहो जूटल। जन-सामान्यक मान्यता भऽ गेल जे ई रक्षा-सूत्र अछि आ ई जकरा बान्हल जायत तकर सुरक्षा होयत। एहि भावक आधारपर अपना ओहि ठाम मनुक्खे नञि निर्जीव वस्तु पर्यन्तकेँ रक्षा-सूत्र बन्हबाक परम्परा चलि पड़ल। लोक अपन घरक केबाड़क जिज्जिर, आब हेण्डिल, साइकिल, मोटरसाइकिल, पेटी, बाकस आदिमे रक्षा-सूत्र बान्हऽ लगला। अखनो कतहु-कतहु ई परम्परा चलि रहल अछि, मुदा आब हुकहुकीपर अछि। धीरे-धीरे ई समाप्ति दिस अग्रसर अछि।
स्वेच्छाचारितासँ भखरि रहल महत्व
पछिला किछु दशकसँ भारतीय पाबनि-तिहार मनेबामे स्वेच्छाचारिता निरन्तर बढ़ल जा रहल अछि। दुर्गापूजा हो वा रक्षाबन्धन, अधिकांश पाबनिक संग ई भऽ रहल अछि। कोनो देवी-देवताक मूर्त्ति स्थापित कऽ पूजा कयल जाइत अछि आ शास्त्रीय विधानकेँ कतिया मनमर्जी विसर्जन कयल जाइत अछि। तहिना रक्षाबन्धनक संग सेहो भऽ रहल अछि। कतिपय संस्था श्रावणी पूर्णिमासँ पहिने रक्षाबन्धन मना लैत अछि। तहिना पाबनि बीति जेबाक बादो ओकरा मनेबाक चलनि देखबामे अबैत अछि। मानल जा रहल अछि जे जानि-बूझि कऽ एना कयल जा रहल अछि जाहिसँ भारतीय परम्परा भखरि कऽ महत्वहीन भऽ जाय।

आउ मजगूत करी स्नेह-सूत्र 

रक्षाबन्धनक वर्त्तमान भने इतिहास कथा आ सिनेमाक देन हो, मुदा भाइ-बहिनक पवित्र प्रेमक रूपमे ई प्रतिष्ठित अछि। आउ एहि पाबनिकेँ एहिमे निहित रक्षाक पवित्र सन्देशक संग मनाबी। एखन जेना महिलामे माय-बहिनिक छवि देखबाक प्रवृत्ति समाप्त भऽ रहल अछि आ हुनका सभक संग मानवताकेँ लज्जित करऽवला घटना भऽ रहल छनि, ताहि समयमे एकर प्रासंगिता आरो बढ़ि गेल अछि। आउ पवित्र भावसँ मनाबी रक्षाबन्धन आ स्नेह-सूत्रकेँ
करी मजगूत।    

साभार :   -अमलेन्दु शेखर पाठक 

Wednesday, August 14, 2013

स्वाधीनता समरमे कलम-तरुआरि संग मिथिला

 
सांसारिक एवं आध्यात्मिक चेतनाक बीच अद्भुत सामञ्जस्य बनेनिहार महाराज विदेह जनकक मिथिला-भूमिक कोखिसँ जतऽ भगवती सीताक प्राकट्य भेल ओतहि अनेकश: विभूति भेला जे विद्या-वैभवक बलपर सम्पूर्ण विश्वमे अपन मातृभूमिक कीर्त्ति-पताका फहरेलनि। अपन विशिष्ट सांस्कृतिक परम्परा लेल बेछप परिचय स्थापित केनिहार मिथिला सदिखन शान्त मनसँ विद्या-व्यवसायमे लागल रहल। शब्द-ब्रह्मक संग शान्ति केर उपासना लेल मैथिल चर्चित रहला अछि। यैह यथार्थो अछि, मुदा एकर अर्थ ई कदापि नञि अछि जे मिथिलावासी डेरबूह रहला अछि। जखन कखनो बेर पड़ल मिथिलाक वीर-सपूत क्रान्ति-कालीक आराधनासँ कहियो डेग पाछाँ नञि केलनि। एहि ठामक तप:पूत आत्मबलिदान लेल प्रस्तुत रहला। हँ, समर-भूमि पर्यन्तमे अपन विवेक आ बुद्धिकेँ संग रखलनि। मिथिला जखन कखनो युद्ध लेल सन्नद्ध भेल अपन मेधोक उपयोग करैत रहल। क्रान्ति-पथपर बढ़ल तँ समवेत भऽ बढ़ल। वीर योद्धा लोकनि तँ मैदानमे अपन वीरताक प्रदर्शन लेल उतरबे केला, साहित्य-साधक लोकनि सेहो पाछाँ नञि रहला। समर-भूमिमे कलम आ तरुआरि एक संग अपन कमाल देखबैत रहल। भारतमाताक परतंत्रताक बेड़ी कटबा लेल सेहो मिथिला जखन समवेत भेल तँ एक दिस जतऽ अपन शोणितसँ राष्टÑ-देवताक चरण पखारबा लेल मैथिलक नम्मा पतियानी लागि गेल ओतहि साहित्यकार बन्धु सेहो अक्षर-अर्घ्य समर्पित केलनि। स्वतंत्रता-संग्रामक महायज्ञमे अपनाकेँ होमि देबा लेल उताहुल असंख्य मैथिल युवा जतऽ चन्द्रशेखर आजाद, सुभाष चन्द्र बोस, भगत सिंह, राजगुरु, सुखदेव, खुदीराम बोस, प्रफुल्ल चाकी आदिकेँ अपन आदर्श मानि बलिदानीक शृंखलामे जुटि गेला, ओतहि महात्मा गान्धीक अहिंसा आ असहयोग आन्दोलनक संग सेहो सम्पूर्ण समाज जुटि गेल। ओहि समय जेना मिथिलाक घर-घर आन्दोलनीक गढ़ बनि गेल। एक दिस युवा लोकनि रेल लाइन उखाड़बामे जुटला तँ टेलीफोनक तार काटल गेल, सड़क-पुल तोड़ल गेल, कोर्ट-कचहरीमे ताला लगायल गेल। डाकघर लूटल गेल आ अंगरेजी सरकारक अन्य सम्पत्तिकेँ व्यापक क्षति पहुँचायल गेल। एहि क्रममे कतेको ठाम गोली चलल आ सैकड़ो गोटे एहिमे मारल गेला। जखन 1857 केर विद्रोह भेल तँ ओ मिथिलामे देवघरक समीप रोहिणी गामसँ आरम्भ भेल जतऽ 12 जून 1957 केँ ओहि ठामक रेजीमेण्टक तीन सिपाही विद्रोह करैत लेफ्टिनेण्ट सर नारमन लेस्लीक गोली मारि हत्या कऽ देलनि। तीनूकेँ फाँसीक सजाय भेटलनि। एकर बाद भागलपुरक संग मिथिलाक आन-आन क्षेत्रमे विद्रोहक आगि पसरैत गेल आ मिथिलाक सपूत लोकनिक बीच जेना अपन जीवन-धन अर्पित करबाक प्रतिस्पर्द्धा आरम्भ भऽ गेल। एहि क्रममे बड़गामक रामदयाल सिंह, मुधोरापुरक छुट्टो उर्फ झगड़ू आदि फाँसीक फान चुमलनि तँ बड़गामक कदई साही, छोटू साही, कृष्णा साही, दर्शन शाही आदि कालापानीक सजाय पेलनि। एकर अतिरिक्त नत्थू शाही, शोभा शाही, बैजनाथ तिवारी, कित्तू शाही, छत्रधारी शाही तिलकू तिवारी आदि सेहो जहलक सजाय भोगलनि। ई मिथिलाक कोनो एक क्षेत्रक कथा नञि अछि। आन्दोलनीक ई पतियानी नम्मा होइत चलि गेल।
दरभंगाक पं. रामनन्दन मिश्र, डॉ. लक्ष्मण झा, जयनारायण झा विनीत, यदुनन्दन शर्मा, सूरज नारायण सिंह, हरिपुर गामक बलिदानी बालक द्वय शिव आ नारायण, कमलेश्वरी चरण सिन्हा, गोष्टो बनर्जी, दीनानाथ सिंह, जगदीश्वरी प्रसाद ओझा, ब्रजकिशोर प्रसाद, धरनीधर प्रसाद, रामनिहोरा सिंह, कुलानन्द वैदिक, डॉ. डी. एन. झा, गोपी बल्लभ दास, ब्रज बल्लभ दास, ओकील सुरेन्द्र प्रसाद, राजेन्द्र प्रसाद, राधिका प्रसाद, राजपति लाल, भरफोड़ीक रक्षा सिंह, नेउरक अवध सिंह आ राज प्रसाद सिंह आदि स्वाधीनता-समरमे अपनाकेँ झोँकि देलनि। स्वाधीनता आन्दोलनमे दरभंगा राज परिवारक अहम भूमिका रहल। राज परिवार आरम्भेसँ स्वाधीनता सेनानीकेँ सहयोग दैत रहला। बेर पड़ल तँ खुजि कऽ सेहो सामने आयल आ तत्कालीन काँग्रेसकेँ अधिवेशन लेल इलाहाबादमे भवन कीनि कऽ समर्पित कऽ देलक। दरभंगाकेँ महात्मा गान्धी, सुभाष चन्द्र बोस आदिक प्रत्यक्ष मार्ग-दर्शन भेटैत रहल जे पाथेय बनल।

नेशनल स्कूल भरलक नव ऊर्जा 

स्वतंत्रता आन्दोलनकेँ नेशनल स्कूलक स्थापना नव ऊर्जासँ भरलक। दरभंगामे एकर स्थापना 1920 इ. मे भेल। ई स्थापित भेल छल सरकारी स्कूलकेँ त्यागनिहार छात्र लोकनिकेँ पढ़ेबा लेल, मुदा बादमे ई आन्दोलनीक गढ़ बनि गेल। ई नेपालक पूर्व प्रधानमंत्री मातृका प्रसाद कोइराला आ वी. पी. कोइरालाक संग ओहि समयक प्राय: सभ आन्दोलनीक आश्रयस्थल बनल। ई आपात कालमे समाजक चिन्तो करैत रहल, ओतहि बेर-विपतिमे ठाढ़ो होइत रहल। एहि ठाम 1932 केर 26 जनवरीकेँ राष्टÑीय ध्वज फहरेबाक घटना ककरा रक्तकेँ ओजसँ नञि भरि देत। ओहि दिन भीड़ जमा छल आ राष्टÑीय ध्वज फरायल जा रहल छल। तखने अंगरेजी सिपाही पहुँचि गेल आ कार्यक्रम स्थगित करबा लेल कहलक, मुदा आन्दोलनी नञि मानलनि। लाठी चार्ज भेल, मुदा 12 बरखक छात्र युगेश्वर प्रसाद सहित कतेको आन्दोलनी डटल रहला। एहिमे कतेको गोटे घायल भेल छला। मधुबनीमे चतुरनान दास आ समस्तीपुरक दलसिंहसरायमे वंशीधर मारवाड़ी नेशनल स्कूलक स्थापनाकेँ साकार केलनि। एकर अतिरिक्त हाजीपुर, सीतामढ़ी, बेतिया, मेहसी, भागलपुर, कटिहार, नसरगञ्जमे सेहो नेशनल स्कूल स्थापित भेल आ आन्दोलनक चिनगीकेँ प्रचण्ड ज्वाला बनबैत रहल।
मधुबनी : जयनगर थानाक घेराव कालमे छपराही गामक   लखन यादवक बलिदान भेलनि। डॉ. बैद्यनाथ मिश्र बेनीपट्टी थाना आ डाकघरमे आगि लगेलनि आ एहि क्रममे मुइला। ओतहि भोगेन्द्र झा, रामाकान्त झा, फखरू महतो, गणेशी ठाकुर, अकलू महतो लाइन उखबड़बा काल अंगरेजक गोलीसँ मुइला। एहिमे नथुनी साह गोलीक छर्रासँ घायल भेला। रामलखन मिश्र, बेनीपट्टीक डॉ. बैद्यनाथ झा, ठक्कन महतो आदि

 नेपालक जहल तोड़लक आजाद दस्ता 

स्वाधीनता आन्दोलनमे समस्तीपुरक ओकील गिरिवर प्रसाद, सत्यनारायण सिंह, कर्पूरी ठाकुर, यदुनन्दन सहाय, डॉ. देवकीनन्द झा, डॉ. शालिग्राम मिश्र, रघुनाथ प्रसाद सिंह, सत्यनारायण तिवारी, रामखेलावन भगत, यमुना सिंह, रामनिरीक्षण सिंह, रामदेव सिंह, रमानन्द ब्रह्मचारी, देवनारायण मण्डल, जागेश्वर पूर्वे, अवध बिहारी सिंह, विश्वनाथ सिंह, जागेश्वर महतो, उमानाथ शर्मा, हरिनन्दन ठाकुर प्रसाद शर्मा, महावीर सिंह, सियाशरण सिंह, वशिष्ठ नारायण सिंह, मुनीन्द्र शर्मा, डॉ. रामप्रकाश शर्मा, नन्दलाल शर्मा, विलायत सिंह, यमुना कार्यी, सुनीति देवी, मो. शीश, मुंशी मेहतर, रत्नेश्वरी प्रसाद सिंह, लक्ष्मण सिंह, रामचन्द्र प्रसाद सिंह, रामलखन प्रसाद सिंह, गया प्रसाद सिंह, लक्ष्मीनारायण राय, राम औतार सिंह, कमलनाथ ठाकुर, युगल कुँवर, डॉ. मुक्तेश्वर सिंह उर्फ मुक्खा सहनी, शत्रुघ्न शरण सिंह, महेन्द्र नारायण सिंह, शौकत अली आजाद, डॉ. वी. डी. शर्मा आदि स्वतंत्रता आन्दोलनमे तन-मन-धनसँ लागल रहला। एहि ठाम नन्द किशोर शर्मा निर्भय आ कर्पूरी ठाकुर 1939 सँ पूर्व व्यक्तिगत सत्याग्रह आरम्भ हेबासँ पहिने राज्य छात्र संघक अधिवेशन करेलनि। निर्भयजीकेँ विरोधमे भाषण करबापर एक बरखक सजाय भेल छलनि। ओमहर छात्र सभ थानापर तिरंगा फहरेलनि। बादमे रामचन्द्र सिंह, एकबाल सिंह, माधव सिंह, उमाकान्त सिंह, जगदीश पोद्दार आ चन्द्र प्रकाश गिरफ्तार भेला। केईएचई स्कूलक छात्र रमाकान्त झा रोसड़ा टीसनपर झण्डा फहरेलनि। सिंघिया थानापर झण्डा फहरेनिहार कुलदीप सिंहकेँ गोली मारि देल गेल। दलसिंहसराय थानापर झण्डा फहरेबा काल गोली चलल जाहिमे कतेको मरला आ घायल भेला। 15 अगस्त 1942 केँ ब्रिटिश सेनासँ भरल ट्रेन मुजफ्फरपुर जा रहल छल, ओहिमेसँ मशीनगनसँ जूलूसपर गोली दागल गेल जाहिमे केईएचई स्कूलक नवम कक्षाक छात्र रामलखन राय शहीद भेला। अगस्त क्रान्ति भर्त्सनापर  एसडीओ जबर्दस्ती छात्र-अभिभावक केर हस्ताक्षर लेलक। केईएचई स्कूल खूजल तँ छात्र सभ ओहि बण्डलकेँ जरेलनि। एहिमे छात्र धनेश्वर साह, शारदानन्द झा, बलभद्र नारायण सिंह, राजेन्द्र नारायण शर्मा आ कृष्ण चन्द्र प्रसाद सिंह राधेजी अभियुक्त बनायल गेला आ केस भेल। एहि ठाम आजाद दस्ता गठित भेल। ई हनुमाननगर (नेपाल) जहल तोड़ि जयप्रकाश नारायण आ डॉ. राममनोहर लोहिया आदिकेँ छोड़ेलक। एहि दस्तामे शारदानन्द झा, वशिष्ठ नारायण सिंह, भोला साह, हरेकृष्ण राय, बलदेव चौधरी, बालेश्वर प्रसाद सिंह, कर्पूरी ठाकुर, रामऔतार शर्मा, रघुनाथ प्रसाद सिंह, राजेन्द्र नारायण शर्मा, जगदीश पोद्दार, रामबुझावन सिंह आदि छला। वशिष्ठ नारायण सिंह दरभंगा जहल फानि बहरेला जाहिमे दरभंगा समाहरणालय केर लिपिक राम सरोवर शर्मा आ कृष्णचन्द्र राधे सहयोगी भेला। हिनका लोकनिक अतिरिक्त राम बुझावन सिंह, बाबूजी पाठक, ठक्कन चौधरी, राजेन्द्र नारायण शर्मा आदि निरन्तर आन्दोलनात्मक गतिविधि चलबैत रहला।

खलबला उठल कोसी 
आ पवित्र गंगा 
भारत राष्टÑकेँ अंगरेजक दासतासँ मुक्त करेबामे गण्डकी, कमला, बलानक संग कोसीक पानि सेहो खौलि उठल। सहरसा, मधेपुरा, सुपौलक संग गंगाक किनारपर बसल मुंगेर आ भागलपुर सेहो अपनाकेँ एहि आन्दोलनमे पूरापूरी समर्पित कऽ देलक। कोसी क्षेत्रक  बाबू रामबहादुर सिंह, पं. छेदी झा, बाबू लक्ष्मी सिंह, जटाशंकर चौधरी, पं. सूयनर््ाारायण झा आदिक नाम स्वर्णाक्षरमे अंकित अछि। एकाढ़ गामक धीरो राय केर मृत्यु भागलपुर जहलमे भेलनि।
मधेपुराक चुल्हाइ यादव भागलपुर जहलमे मुइला। गढ़िया-बलहा गामक कालेश्वर मण्डल सहरसामे गोलीसँ मारल गेला। एही गामक नीरो मण्डल, नूनूलाल मण्डल, पं. बलभद्र मिश्र, रमेश झा, गणेश झा, महादेव मण्डल, शोभाकान्त मिश्र, बनगामक हरिकान्त एवं पुलकित कामति सहरसा टीसनपर अंग्रेजक गोलीसँ मारल गेला। चैनपुरक भोला ठाकुरकेँ सहरसा गोशाला लग गोली मारि देल गेलनि। नरियार गामक केदारनाथ तिवारी, उदाकिशुनगञ्जक बाजा साह, बलुआ बजारक प. राजेन्द्र मिश्र, ललित नारायण मिश्र, गढ़ियाक रमेश झा, पचगछियाक बाबू रामबहादुर सिंह, बनगामक पं. छेदी झा द्विजवर, रानीपट्टी गामक शिवनन्दन प्रसाद मण्डल, परसरमा गामक गंगा प्रसाद सिंह, मधेपुराक मो. कुदरुतुल्ला, बैद्यनाथधर मजुमदार उर्फ खोखाबाबू,  बिहराक रतिलाल मिश्र, सहरसा सुलिन्दाबादक चित्रनारायण शर्मा, परड़ीक सूर्यनारायण झा, सुपौलक कर्णपुर केर चन्द्रकिशोर पाठक, पटोरी पचगछियाक राजेन्द्र लाल दास, जटाशंकर चौधरी, गणतगञ्जक खूबलाल महतो आ हिनक पत्नी लक्ष्मी देवी आदिक अवदानकेँ कहियो नञि बिसरल जा सकैत अछि। विदेशी वस्त्र जरेबामे आ दोकानपर पिकेटिंग केनिहारमे रामफल सिंह, सोनाइ मण्डल, बोतल हजरा, ईश्वर मण्डल, जोहर मण्डल, झण्डा फहरेनिहारमे हंसराज पैकरा, सिताइ सन्त, अशर्फी साह, रामप्रसाद मण्डल, रामेश्वर झा, अशर्फी मेहता, मनोहरपट्टी गामक कामता प्रसाद, भूषण प्रसाद गुप्ता, भुवनेश्वर प्रसाद वर्मा, लक्ष्मण लाल दास, जनेश्वर   ठाकुर, विश्वनाथ प्रसाद सिंह, बैकुण्ठ प्रसाद सिंह, शालिग्राम प्रसाद सिंह, जयबल्लभ सिंह, सियाराम, चतुरानन्द मिश्र, गणेशपुर गामक श्रीकान्त मिश्र, विद्याधर झा, कोरियापट्टीक विश्वनाथ प्रसाद सिंह, बैकुण्ठ प्रसाद सिंह, परसारीक किन्नू यादव, वाजितपुरक उग्रनारायण सिंह, जदियाक भब्बी यादव, बभनगामाक विश्वनाथ झा, सुशासन गामक कमलेश्वरी मण्डल, मुरलीगञ्जक वेणी प्रसाद मण्डल, अमीरमल चम्पा लाल, सोहनलाल बैद्य, गंगापुरक सत्यनारायण मण्डल, मधेपुरा सरोपट्टीक कार्त्तिक प्रसाद सिंह, भेलाहीक सृष्टि नारायण यादव आदि स्वाधीनता सेनानी मातृभूमिकेँ अंगरेजक चाङुरसँ मुक्त करेबामे दिन-राति एक केने रहला। तिलकपुर गामक सियाराम सिंहक नेतृत्वमे सियाराम दल गठित भेल। सोनवर्षामे सियाराम दल आ पुलिसमे संघर्ष भेल। एहिमे सरदार नित्यानन्द सिंह, भागलपुर खरहियाक अर्जुन सिंह, बिहपुर झण्डापुरक फौदी मण्डल, सोनवर्षाक लड्डू शर्मा, कालूचक विसपुरिया कालूचक केर रामावतार झा, सोनवर्षाक सीताराम मण्डल आ खुशरू मण्डल तथा खरिक कठैलाक निर्मल झा मारल गेला।
एकर नेतृत्वकर्त्ता पार्थ ब्रह्मचारी, चिन्तामणि मिश्र, रामखेलावन सिंह, रामावतार राय आदि दलमे छला। एहि ठाम परशुराम दल आ महेन्द्र गोपक दल सेहो सक्रिय छल। एकर अतिरिक्त भागलपुरक केशवदास चौधरी, सीतामढ़ीक बाबू नवाब सिंह, यमुना सिंह, पूर्णिञाक लक्ष्मीनारायण सुधांशु, लेफ्टिनेण्ट केदारनाथ चौधरी, रवि रञ्जन बाबू, कन्हैया लाल, कटिहारक सत्यदेव शुक्ल, खगड़ियाक माड़र गामक बलिदानी प्रभु नारायण आ धन्ना-माधव, आदि स्वतंत्रता-संग्राममे जुटल रहला। मुजफ्फरपुर तँ जेना आन्दोलनीक गढ़े छल। नरम बा गरम दुहू दलक ई केन्द्र जकाँ छल। खुदीराम बोस आ प्रफुल्ल चाकी किंग्स फोर्ड केर हत्या लेल ओकरा वाहनपर जखन बम फेकलनि तँ युवक नव उछाहसँ भरि उठला।
ओना एहि घटनामे फोर्ड बचि गेल आ दू गोट महिला मारल गेली, तथापि बम काण्ड खुदीरामकेँ युवा-हृदय सम्राट बना देलक। समस्तीपुरक ओइनीमे हुनक पकड़ल जायब आ फाँसीपर चढ़ा देल जायब आन्दोलनीक संकल्पकेँ आरो मजगूत केलक। मुजफ्फरपुरक राय बहादुर द्वारिकानाथ, रामप्रसाद, रामनारायण तिवारी, अयोध्या सिंह, महंथ रामकृष्ण दास, रामप्रीत पाण्डेय, केदार सिंह, ध्वजा बाबू आदि स्वाधीन भारतक सपना साकार करबा लेल कण्टकाकीर्ण पथकेँ अंगीकार केलनि। तत्कालीन मुजफ्फरपुरक नगरपालिका अध्यक्ष खाँ बहादुर महबूब हुसैन आदिक सक्रियता इतिहास रचलक।  

गान्धीजीकेँ ‘महात्मा’ केर उपाधि अर्पित केलक मिथिला 


स्वाधीनता समरमे महात्मा गान्धीक अवदानक समक्ष सम्पूर्ण राष्टÑ नतमस्तक अछि। गान्धीजीक सफलतामे मिथिलाक बड़ बेसी योगदान रहल। ओ मिथिलामे अपन आन्दोलनक सूत्रपात मोतिहारीसँ केलनि आ तकर बाद हुनका संग जन समुद्र उमड़ि गेल। गान्धीजी मिथिलामे स्वतंत्रता आन्दोलनक बहि रहल बसातकेँ अन्हर-बिहाड़िमे बदलि देलनि। एकर बाद समग्र मिथिला असहयोग आन्दोलन, नोन सत्याग्रह आदिमे जूटि गेल। हुनक एहि अवदानकेँ मिथिला गम्भीरतासँ लेलक आ हुनका ‘महात्मा’ उपाधिसँ विभूषित केलक। हालेमे मैथिलीमे प्रकाशित गान्धीजीक पोथी ‘मंगल प्रभात’ केर अनुवाद पोथीमे डॉ. रामदेव झा एहि तथ्यकेँ उद्घाटित केलनि अछि। ओ 21 अप्रील 1917 सँ लऽ 24 नवम्बर 1917 केर बीच तत्कालीन प्रसिद्ध पत्रिका ‘मिथिला मिहिर’ मे गान्धीजीक आन्दोलनसँ सम्बन्धित आठ गोट समाचारक शीर्षक केर उल्लेख केलनि अछि जाहिमे गान्धीजीकेँ ‘महात्मा गान्धी’, ‘महात्मा कर्मवीर गान्धी’ कहल गेलनि। डॉ. रामदेव झाक मानब छनि जे गान्धीजीकेँ 21 अप्रील 1917 सँ पूर्व ‘महात्मा गान्धी’ कहल गेल होनि एहन प्रमाण नञि भेटैत अछि जे स्पष्ट करैत अछि जे गान्धीजीकेँ ‘महात्मा’ उपाधि मिथिला अर्पित केलकनि। चम्पारणक भूमि स्वाधीनता आन्दोलनक दृष्टिञे बड़ उर्वर रहल अछि। एहि ठामक राजकुमार शुक्ल, गोरख प्रसाद, रघुनाथ लाल, प्रजापति मिश्र, रामकुमार मिश्र, पवन कुमार मिश्र, खेम्हर राय, रामजी साह, प्यारेलालजी, काली कुमार मिश्र, ध्रुव नारायण त्रिपाठी, कमलनाथ तिवारी, विभूति मिश्र, विपिन बिहारी वर्मा, गणेश राय, राजाजी झा, लक्ष्मी नारायण झा, वंशी राउत, गुलाली, हरेकृष्ण झा, राजा ओझा, पशुपतिनाथ झा आदि आन्दोलनक ज्वालामे अपनाकेँ समर्पित कऽ इतिहास रचलनि।

लेखनी उगिलैत रहल आगि 

स्वतंत्रता आन्दोलनमे साहित्यकार लोकनिक लेखनी आगि उगिलैत रहल। आधुनिक मैथिली साहित्यक जनक कवीश्वर चन्दा झा ‘समय केहन भेल घोर हे शिव’, ‘न्यायक भवन कचहरी नाम, सभ अन्याय भरल तेहि ठाम’, साहित्यरत्नाकर मुंसी रघुनन्दन दास अपन कविता ‘देश दशा’, यदुनाथ झा यदुवर ‘भारत सुषमा’, ‘कामना’, पं. छेदी झा मधुप ‘चरखा चौमासा’, ‘जयति स्वदेश’, कविवर सीतराम झा ‘स्वदेश महिमा’ आदिसँ समाजकेँ स्वतंत्रता लेल चलि रहल आन्दोलनसँ जुटबाक प्रेरणा देबाक संग एहिमे लागल सेनानीक उत्साहवर्द्धन करैत रहला। ओमहर पं. रामनन्दन मिश्र मगन आश्रमसँ पत्रिका प्रकाशित कऽ अक्षर-आन्दोलन चलबैत रहला। कतेको जिलासँ विद्रोही पत्रिका प्रकाशित होइत रहल।
मिथिलाक स्वतंत्रता आन्दोलनक ई झलकी मात्र अछि। असंख्य लोक बलिदानी भेला। आइ हमरा लोकनि 67म स्वतंत्रता दिवस मना रहल छी। एहि सभ आत्मबलिदानी वीर-सपूतकेँ शत-शत नमन करैत एक बेर एहू दिस विचार आवश्यक जे की आइ देशक जे परिस्थिति अछि ताही लेल ई सभ अपनाकेँ होमि देलनि? की अंगरेजक दासतासँ मुक्त   भारत एहि सभ रणवीरक आकांक्षा-अभिलाषाक पूर्त्ति कऽ रहल अछि? की हमरा लोकनि अपन अवदानसँ हिनका सभक तर्पण करब?

साभार : अमलेंदु शेखर पाठक के इ लेख "मिथिला आवाज" मैथिली दैनिक समाचार पत्र केर 15 अगस्त केर अंक में प्रकाशित अछि. 

Tuesday, August 13, 2013

विश्वक सभसँ दोसर लोकप्रिय गीत "वन्देमातरम"


राष्ट्रगीत वन्देमातरमक शताब्दी बरखमे भलहि एकरा लऽ कऽ राजनीतिक विवाद आ आरोप-प्रत्यारोपक क्रम पसरल हो, मुदा ई मधुर गीत विश्वक दोसर सभसँ लोकप्रिय गीतमे सम्मिलित भऽ चुकल अछि। बीबीसी विश्वक दस गोट शीर्ष लोकप्रिय गीतक सम्बन्धमे 155 देशक इण्टरनेटपर एकटा सर्वे करौलक, जाहिमे लाखो लोक अपन विचार देलनि। एकर परिणामक मोताबिक ‘वन्दे मातरम्’ केँ दुनिञाक दोसर सभसँ लोकप्रिय गीत कहल गेल। पहिल नम्बरपर आयरलैंडक राष्ट्रगीत ‘ए नेशन वन्स अगेन ' रहल। बात बेसी पुरान नञि अछि। ई सर्वे बीबीसी अपन 70म वर्षगांठपर 2002 मे करौने छल आ एकर परिणामक घोेषणा 21 दिसम्बर 2002केँ कएल गेल। ओना जे बात बीबीसी एकर लोकप्रियताक बारेमे इण्टरनेटक माध्यमसँ साबित केलक, तकर भविष्यवाणी एहि अमर गीतक रचियता बंकिमचन्द चटर्जी सय बरख पहिने कऽ देने छला। एहि गीतक दुरूह संस्कृत आ बांगला शब्दकेँ लऽ कऽ जखन हुनक मित्र आ हुनक बेटी तक आलोचना केलनि तखन ओ कहने छला-हम शायत एकर लोकप्रियता देखबाक लेल जीवित रही वा नञि रही, मुदा ई बात निश्चय जे प्रत्येक भारतवासी एकरा वेद मंत्र जकाँ गाओल करता। सात सितम्बरकेँ ‘वन्दे मातरम’ देशभरिक शिक्षण संस्थामे गाओल जायत, जकरा लऽ कऽ राजनीतिक खिच्चातानी सेहो शुरू भऽ गेल अछि। मुदा सियासी पैमानासँ हटि कऽ देखब तँ  1875 मे एहि गीतक रचनाक बादेसँ एकर प्रसिद्धि भेल। कविवर रवीन्द्रनाथ ठाकुरसँ लऽ आजुक समयक एआर रहमान तक असंख्य गायक आ संंंगीतज्ञ वंदे मातरम अपन-अपन अन्दाजमे गाबि अपन नाम गौरवान्वित केलनि। कोलकाताक समीप एकटा छोट सन गाम नैहाटीमे बंकिम नवमीक दिन 7 नवम्बर 1875केँ एकहि बैसकमे एहि अमर गीतक रचना कएने  छला। बादमे ई गीत बंकिमक प्रसिद्ध उपन्यास ‘आनन्द मठ’ मे स्थान पाबि गेल। एकर प्रकाशन विभिन्न कड़ीमे बंगदर्शन पत्रिकामे 1880 सँ 1882 केर बीच भेल। भारतीय राष्ट्रीय काँग्रेसक 1896क अधिवेशनमे ‘वन्दे मातरम’ गुरुदेव रवीन्द्र नाथ ठाकुर गओने छला।  अंग्रेजक विरोध वन्दे मातरमक नाराक असरि केर कहानी भिन्न अछि,मुदा लोकप्रियताक रूपमे देखी तँ ई गीत फिल्म आ संगीतज्ञ घरानामे बहुत तेजीसँ प्रवेश कऽ गेल। संत तुकाराम आश्रममे प्रसिद्ध भजन गायक विष्णुपत पगणिस 1928मे राग सारंगमे वंदे मातरमकेँ गगनभेदी आवाजमे  गाबि कऽ एकटा रेकर्ड तैयार करौलनि आ एकर बाद1935मे प्रसिद्ध लोक गायक केशवराव भोले राग देशकरमे एहि गीतकेँ  गाबि एकरा भारतीय जनताक सभसँ पसिन प्रार्थना बना देल। संगीतज्ञ उस्ताद कृ ष्णराव एकर राग कफी तथा राग झिंझोटीमे रचना कएल। आजादीक बाद फिल्म ‘अमर आशा’ मे वन्दे  मातरम गाओल गेल, मुदाएहि फिल्मक रेकार्ड नञि कराओल गेल छल आ ओ फिल्म सहो उपलब्ध नञि अछि । फेर बंगला फिल्म आन्दोलनक लेल मन्ना डे , पारूल घोष,सुधा मल्होत्रा आ शैलेश कुमार सेहो वन्दे मातरमकेँ आवाज देलनि। अगिला बरख 1952मे जखन आनन्द मठ फिल्म बनल तँ ओहिमे वन्दे मातरम  रहबाके छल। प्रसिद्ध गायक हेमन्त कुमार ‘महाबिप्लवी अरविन्दो’ फिल्ममे आरतीक शैलीमे गौलनि, जकर लय आइयो लोक गुनगुनाइत अछि । फिल्म ‘लीडर'मे दिलीप कुमारपर ई गीत फिल्माओल गेल आ 1997मे श्याम बेनेगलक फिल्म ‘मेकिंग आफ महात्मा' मे उषा उथुप वन्दे मातरम गाओल। फिल्ममे वन्दे मातरम गीतक गूंज  हेबाक सिलसिला अन्तहीन अछि आ आजुक पीढ़ी तँ एआर रहमानकेँ मुख्य रूपसँ एहि लेल पसिन करैत अछि जे ओ माँ तुझे सलाम कहि वन्दे मातरमकेँ आधुनिक
संगीतमे बान्हल।

राष्ट्रकेँ एकसूत्रमे बन्हनिहार अद्वितीय गीत "वन्देमातरम् "

भने जन-गण-मन आ वन्देमातरम् केर दर्जा लगभग समान अछि, मुदा जहाँ धरि चर्चित रहबाक बात अछि तँ वन्देमातरम् केर जवाब नञि अछि। अपन जन्मक 140 बरखक क्रममे ई गीत पहिने अंग्रेज शासकक समयमे प्रतिबन्धित रहल आ काँग्रेस द्वारा 1905 मे राष्ट्र गीतक रूपमे स्वीकार कयल जेबाक बादसँ एहिसँ सम्बन्धित चर्चा आ वाद-विवाद कहियो नञि थम्हल। सभ आपत्ति आ चुनौतीक  बादो जँ ई गीत स्वाधीनता आन्दोलनमे सम्पूर्ण राष्ट्रकेँ भावात्मक दृष्टिसँ एकजुट करबामे अद्वितीय भूमिका निमालक आ भारतीय गणतंत्रक सर्वाधिक महत्वपूर्ण प्रतीकमे गनल गेल तँ मानऽ पड़त जे एहिमे किछु तँ बात अछि। मोहम्मद अली जिन्ना, सैयद अली इमामक अतिरिक्त कतेको इतिहासकार, विद्वान, राजनीतिज्ञक विरोधक बादो हिन्दू-मुस्लिम स्वाधीनता सेनानी आ बलिदानी लोकनिक ठोर वन्देमातरम् केर उच्चारण करैत नञि थाकल तँ ई कोनो सामान्य युद्धक घोष नञि भऽ सकैत अछि। एहि गीतमे अन्तर्निहित धार्मिक पूर्वाग्रह आ  तथाकथित हिन्दुत्ववादी झुकावक बादो जँ महात्मा गान्धी, सुभाष चन्द्र बोस, जवाहरलाल नेहरू, डॉ. राजेन्द्र प्रसाद, मौलाना अबुल कलाम आजाद, आचार्य नरेन्द्र देव, रफी अहमद किदवइ, मैडम बीकाएजी कामा, अरविन्द घोष, लाला लाजपतराय आ मौलाना अहमद अली सन असन्दिग्ध रूपसँ धर्मनिरपेक्ष नेता जँ एकरा पक्षमे ठाढ़ भेला तँ अवश्य एकर कोनो पैघ कारण रहल होयत। अवसरवादी राजनीतिज्ञ लोकनिक कतेको प्रहारकेँ सहैत तथा धार्मिक व्याख्याकार लोकनिक आपत्तिक सामना करैत जँ ई सय बरखसँ भारतीय राष्ट्रीय स्वाभिमानक प्रतीक बनल अछि तँ मानऽ पड़त जे ई असामान्य रूपसँ कालजयी रचना अछि। संस्कृत सन अपेक्षाकृत कठिन भाषामे लिखल हेबाक बादो वन्देमातरम् केर  उच्चारण आइ सेहो कतेको भारतीयकेँ राष्ट्र प्रेममे सरोबोर करबाक क्षमता रखैत अछि। भने ओ देशक कोनो भागमे किए ने रहैत होथि। ई गीत भारतीय स्वाधीनता आन्दोलनक इतिहासक अभिन्न अंग अछि। आ एकरा निकालि देल जाय तँ स्वाधीनताक लड़ाइ केर कथा नीरस आ अप्रामाणिक भऽ जायत। वन्देमातरम् केर पंक्तिमे भारतीय राष्ट्रवादक गाम्भीर्य तँ नुकायले अछि, राष्ट्रक प्रति असीम समर्पणक सेहो अनन्य अभिव्यक्ति देखबा लेल भेटैत अछि। एहन समर्पण आ एहन आस्था जकरा बदलामे कोनो तरहक आकांक्षा नञि अछि, जे पूर्ण रूपे ँ बिना शर्त आ स्वत: स्फूर्त अछि। ठीक तहिना जेना एक गोट मायके ँ नेनाक प्रति होइत अछि। वन्देमातरम्मे अभिव्यक्तिक ई अथाह गम्भीरता सम्भवत: माय आ नेनाक बिम्बक कारणे ँ प्रकट भेल अछि। माय केर प्रति सम्मान, ओकर सपना पूर्ण करबाक आकांक्षा, ओकर स्वाभिमानक रक्षाक उत्कट इच्छा आ ओहिसँ भेटल निरन्तर, निस्सीम प्रेमक प्रति आभारक अभिव्यक्तिमे किछुओ असामान्य या आडम्बर युक्त नञि भऽ सकैत अछि। वन्देमातरम्मे बंकिम चन्द्र चटर्जी माता काली आ दुर्गाक बिम्बक प्रयोग करैत मातृभूमि लेल एहि कारणे ँ स्वाभाविक भावक शब्द देलनि अछि। भऽ सकैत अछि जे वन्देमातरम् केर स्थानपर कतेको अन्य रचना सेहो भारतीय स्वाधीनता संग्रामक समयमे एही तरहेँ गाओल जाइत हो आ सम्भवत: ओहो एतेक श्रद्धा आ सम्मानक संग-संग राष्ट्रीय प्रतीकक बीच प्रतिष्ठित कयल जाइत आ सम्भवत: ओकर उच्चारण सेहो हमरा लोकनिक हृदयमे स्वदेश प्रेमक वैह अथाह धारा बहबैत। एहि शब्दक साहित्यिक, सांस्कृतिक आ सामाजिक महत्व अछि, इतिहास एकरा महत्वपूर्ण आ प्रिय बनेलक अछि। स्वाधीनता आन्दोलन आ भारतीय राष्ट्रीय अस्मिताक प्रतीकक रूपमे वन्देमातरम् हमरा लोकनि लेल सभसँ पैघ सम्मानक पात्र अछि। एकर शब्द किछु आर रहैत तैयो एकर महत्व आ प्रभावमे कोनो कमी आबऽ वला नञि छल। वन्देमातरम् हमरा लोकनिक राष्ट्र गीत अछि आ यैह एक गोट वास्तविकता अछि। ईहो किनकोसँ नुकायल नञि अछि जे एकर किछु भागपर अन्य समुदायके ँ आपत्ति अछि आ हुनका लोकनिक अपन आधार अछि जकरा पूरापूरी नकारब असलीहतसँ दूर पड़ायब होयत। स्वयं जवाहर लाल नेहरू आ गुरुदेव रवीन्द्र नाथ टैगोर ई बात मानि चुकल छथि। ओना ईहो असलीहत अछि जे एहि गीतक स्थान क ोनो आर गीत नञि लऽ सकैत अछि कारण शब्द भने कतेक ो आकर्षक गढ़ि लेल जाय, इतिहास नञि गढ़ल जा सकैत अछि।
एहि बातमे कोनो सन्देह नञि अछि जे वन्देमातरम् एक गोट गीत हेबाक बादो स्वाधीनता संग्रामक नारा बनि गेल छल। ई नारा क्रान्तिकारी लोकनिक भारत माताक जय, जय हिन्द, अंग्रेज भारत छोड़ आदि नाराक तुलनामे बेसी नम्मा कालखण्ड धरि, बेसी विस्तृत भूभागपर तथा बेसी व्यापक अर्थमे देखल गेल। स्वाधीनता संग्राममे भाग लेबऽ वला फराक-फराक विचारधाराक  लोक एकरा अपनेने छला। काँग्रेस एकरा राष्ट्र गीतक दर्जा देलक, हिन्दुत्ववादी शक्ति सेहो एकरा घोषवाक्यक रूपमे स्वीकार केलक आ क्रान्तिकारी लोकनि युद्धघोषक रूप दऽ देलनि। एतेक धरि जे मोहम्मद अली जिन्ना सन मुस्लिम नेताकेँ सेहो बीसम शताब्दीक तेसर दशक धरि एहिपर कोनो आपत्ति नञि भेलनि। ओ तँ बादमे जिन्ना मुस्लमानपर अपन प्रभाव मजगूत करबा लेल आ काँग्रेसकेँ एक गोट हिन्दुवादी पार्टीक रूपमे प्रचारित करबाक प्रयासक अन्तर्गत कहलनि जे काँग्रेससँ तखने बात करता जखन ओ वन्देमातरम्केँ त्यागि देत।
कहल जाइत अछि जे महात्मा गान्धी वन्देमातरम्केँ राष्ट्र गान बनेबाक पक्षधर छला। जुलाइ 1939 मे ओ ‘हरिजन’ मे लिखने छला जे एहि गीतक स्रोत किछु रहल हो, कोना आ कहिया एहि गीतक रचना कयल गेल, ई जनने बिनु एतेक निश्चित रूपसँ कहल जा सकैत अछि जे विभाजनक दिनमे बंगालक मुसलमान आ हिन्दू समुदायक बीच एक गोट अत्यन्त प्रभावशाली   युद्धघोष बनि गेल छल। ई एक गोट साम्राज्यवाद विरोधी उद्घोष छल। गान्धीजी ईहो कहलनि जे जँ क्यौ एकरा अपन धार्मिक मान्यताक प्रतिकूल बुझैत अछि तँ ओक रा एहि गीतक गायन करबा लेल विवश नञि कयल जेबाक चाही।
कलकत्तामे आयोजित काँग्रेस कार्यसमितिक बैसारमे पास कयल गेल प्रस्तावमे सेहो एहि बातके ँ रेखांकित कयल गेल छल। कार्यसमिति कहने छल जे एहि गीतके ँ ओकर मूल पोथी आनन्द मठसँ फराक कऽ कऽ देखल जेबाक चाही। प्रस्तावमे कहल गेल अछि जे एहि गीतक शब्द सम्पूर्ण भारतमे आ विशेष रूपसँ बंगालमे ब्रिटिश साम्राज्यवादक विरुद्ध संघर्षमे लोक सभकेँ तागति देने छल आ हुनका लोकनिकेँ प्रेरित केने छल। ई गीत अभिवादनक ढंगमे सेहो बदलि गेल अछि जे  सदिखन स्वतंत्रता लेल कयल गेल संघर्षक स्मरण देयबैत रहत। काँग्रेस 1937 मे सुभाष चन्द्र बोस, जवाहर लाल नेहरू, मौलाना अबुल कलाम आजाद आ आचार्य नरेन्द्र देवक समितिक गठन वन्देमातरम् केर सन्दर्भमे मुसलमान सभक आपत्तिक अध्ययन आ समाधान करबा लेल कयल
गेल छल।
समिति मुसलमानक किछु आपत्तिकेँ उचित मानैत कहने छल जे एहि गीतक आरम्भिक अन्तराकेँ मात्र राष्ट्र गीतक रूपमे गाओल जाय कारण एहिमे किछु आपत्तिजनक नञि अछि।
25 अगस्त 1948 के ँ संविधान सभाकेँ सम्बोधित करैत पण्डित जवाहर लाल नेहरू जन-गण-मनकेँ राष्ट्रगान बनेबाक निर्णयक घोषणा केने छला। तखन ओ वन्देमातरम् आ जन-गण-मन केर बीच उपजायल जा रहल विवादपर क्षोभ प्रकट करैत वन्देमातरम् केर महत्वपर प्रकाश देने छला जे ई दुर्भाग्यपूर्ण अछि जे एहि गीतक बीच विभेद करैत किछु दलील देल जा
रहल अछि।
वन्देमातरम् तँ स्पष्ट रूपसँ आ निर्विवाद रूपसँ भारतक प्रधान राष्ट्रीय गीत अछि, जकर महान ऐतिहासिक परम्परा अछि आ जे स्वाधीनताक लड़ाइसँ अभिन्न रूपसँ जुड़ल अछि। एकर ई दर्जा सदिखन बनल रहत आ कोनो आन गीत एकर स्थान नञि लऽ सकैत अछि।
बंकिम चन्द्र चटर्जी 1876 मे वन्देमातरम् केर  रचना केलनि। बादमे 1882 मे ओ एकरा अपन उपन्यास आनन्द मठमे सम्मिलित केलनि। प्रसंगवश ईहो कहि दी जे किछु लोकक तर्क अछि जे आनन्द मठमे मुसलमानक सन्दर्भमे कयल गेल टिप्पणी असलीहतमे अंग्रेजक विरुद्ध प्रच्छन्न रूपसँ कयल गेल टिप्पणी छल, कारण ओहि समय अंग्रेजक विरुद्ध सोझे किछु कहब असम्भव छल। गुरुदेव रवीन्द्र नाथ टैगोर एहि गीतक संगीत देने छला आ 1896 मे पहिल बेर ओ कलकत्तामे काँग्रेसक 12म अधिवेशनमे एकरा गेने छला। फेर 1905 मे गुरुदेवक भतीजी सरला देवी चौधरानी बनारसक काँग्रेसक अधिवेशनमे एकरा गेलनि। 7 सितम्बर 1905 केँ काँग्रेस एकरा राष्ट्र गीत घोषित केलक। 1907 मे  स्टुटगार्ट (जर्मनी) मे मैडम कामा अन्तर्राष्ट्रीय समाजवादी काँग्रेसमे भारतक राष्ट्रीय ध्वज फहरेने छली ओकरा मध्यमे वन्देमातरम्
लिखल छल।
अरविन्द घोष आ लाला लाजपतराय अपन अखबारक नाम वन्देमातरम् रखने छला। फेर 1927 मे शहीद अशफाक उल्लाह खान वन्देमातरम् केर जय घोष करैत फाँसीपर झूलि गेला। 1950 मे संविधान सभाक अध्यक्ष आ प्रथम राष्ट्रपति डॉ. राजेन्द्र प्रसाद ई कहि सम्पूर्ण विवाद समाप्त कऽ देलनि जे वन्देमातरम् केर दर्जा जन-गण-मनसँ कम नञि अछि।
वन्देमातरम् भारतक स्वाधीनताक इतिहासक एक गोट महत्वपूर्ण पक्ष अछि। एहि महान गीतके ँ  ओ सम्मान आ दर्जा भेटबाक चाही जकर ई पत्र अछि। एकर शब्द आ पृष्ठभूमिक सन्दर्भमे वर्त्तमान आपत्तिक बादो एहन करब सम्भव नञि अछि, जँ हम एकर शब्दावलीक बदला एकर प्रतीकात्मक महत्वकेँ बुझी। सभ समुदाय एक गोट महत्वपूर्ण राष्ट्रीय प्रतीकक रूपमे एकरा पूर्ण सम्मान प्रदान करी, ओना लोकक धार्मिक भावनाक ध्यान रखैत एकरा किनकोपर थोपल नञि जाय, सम्भवत: यैह एहि सम्बन्धित विवादक सर्वमान्य समाधान भऽ सकैत अछि। 

Thursday, August 1, 2013

मधुश्रावणी : माधुर्य संग गम्भीर चिन्तनो

मिथिलाक वातावरण संगीतमय भऽ उठल अछि। नव विवाहितका महापर्व मधुश्रावणी जे शुरू भऽ गेल अछि। मधुश्रावणी जकरा मिथिलाक गामघरमे मोसरामनी सेहो कहल जाइछ अपन नामक अनुकूल मधु-रससँ सराबोर अछि। अन्तिम दिन पतिक संग मोसरमनी पुजबाक बाद हुनका हाथे तेसर बेर सिन्दूरदानक विधि नव विवाहिता लोकनिकेँ एक बेर फेर पुलकित कऽ देतनि। एहन पाबनि संगीत विहीन कोना होयत जखन मिथिलाक कोनो पाबनि-तिहार कि संस्कार बिना गीतक नञि होइत अछि। से गितगाइन सभ नव विवाहिताक आङनमे जूटि वातावरणमे अपन मनोहारी सामूहिक स्वर घोरब शुरू कऽ देलनि अछि। पबनैतिनक आङनमे भोर होइते हबगब आरम्भ भऽ गेल अछि पूजा आरम्भ होइते सभ विधिक गीत बेराबेरी भऽ रहल अछि।विनती  सुनियौ हे  महरानीहम  सभ शरणमे ठाढ़, अक्षत  चानन  अहाँकेँ  चढ़ायब, आरती  उतारब नासँ गोसाउनिकेँ गोहरायल जाइत अछि, तँसाओन मास नागपञ्चमी भेल, बिसहरि गहवर सोहाओन भेलगीतसँ बसहरिक अभ्यर्थना भऽ रहल अछि। ओतहिपहिरि ओढ़िय कनिञा सुहबे पाबनि पूजऽ बैसली हे, हे शुभ पावनि दिनमेकेर माध्यमे पर्वक उछाह प्रकट होइत अछि। पूजन होइत-होइत दुपहर भऽ जाइत अछि तकर बाद सोलहो शृंगार केने नव विवाहिताक टोली केर समवेत स्वर वातावरणमे अनुगुञ्जित भऽ उठैत अछिलालहि बन फूल लोढ़ब फुल तोड़बहे सिन्दुर भरल सोहाग, बालमु संग गौरी पूजब।गहना-गुड़ियासँ लदल नव विवाहिताक लोकनिक पदचापसँ उठैत रुन-झुन स्वर वातावरणकेँ अलौकिक बना रहल अछि। सभ फूल लोढ़बा लेल बहरेली अछि। फूल लोढ़बा लेल, तोड़बा लेल नञि। माने साँझ धरि जे फूल मौलायब आरम्भ भऽ गेल अछि, झरि जेबा योग्य भऽ रहल अछि, तुइबा लेल प्रस्तुत अछि तकर सञ्चय करबा लेल। अधिकांश फूल भोरमे फुलाइत अछि से साँझ धरि लोढ़बे योग्य रहि जाइत अछि। ओकरा सभकेँ चुनि कऽ अपन डाला भरैत नव विवाहिताक सासुरसँ आयल भार-दोरक बात, पतिक चर्चा, परिहास हँसीक बोर दैत नव विवाहितामेसँ क्यौ फेर उठा दै छथि बटगमनी मिथिलाक संस्कृति ओहिमे बिहुँसऽ लगैत अछि। आनन्द मग्न नव विवाहिताकेँ अन्तिम दिन टेमी दगबाक परम्पराक रोमाञ्चो छनि। पानक पातसँ पति आँखि मुनता टेमी दगबाक विधि होयत। चर्चामे विधि सेहो अछि लुकझुक होइत-होइत सभ अपन डाला फूल-पातसँ भरि घुरै छथि तँ साँझक गीत आरम्भ भऽ जाइत अछिकोन घर साँझ सँझाय गेल कोने घर दीप जरु रे, बाबू कोने सिर कल्याण भेल लक्ष्मी दहिन भेल रे...
कहबाक तात्पर्य जे सगरो उछाहे उछाह अछि, मुदा एहि महापर्वमे एतबे धरि नञि अछि। अपना भीतरमे अनेक महत्वपूर्ण महत्वपूर्ण तथ्य समेटने अछि। एकर महत्ताकेँ एहीसँ बूझल जा सकैत अछि जे साहित्योमे अपन स्थान बनेलक। डॉ. शैलेन्द्र मोहन झाक उपन्यासमधुश्रावणीमैथिली साहित्यमे आइयो अपन विशिष्ट स्थान रखैत अछि। ओना एहि पोथी सन दुखान्त मधुश्रावणी पाबनि नञि अछि। अपना अन्तसमे मधुरताक संग बहुत रास चिन्तन सहेजि रखने अछि। आने पाबनि जकाँ एकर सामाजिक सरोकार तँ अछिए नव विवाहिताकेँ गाहर्स्थ्य जीवनक योग्य बनेबाक काज सेहो करैत अछि। से व्यावहारिक मनोवैज्ञानिक दुहू स्तरपर।

गृहस्थ जीवन लेल दैछ मार्ग-निर्देश

मिथिलाक नव विवाहिताक पाबनि मधुश्रावणी आस्था श्रद्धासँ गहीँर धरि जुड़ल अछि। नव विवेहते नञि अपितु मिथिलाक कतेको विवाहिता आजीवन एहि पाबनिकेँ मनबै छथि। हँ, नव विवाहिता एकरा साओन कृष्ण पक्षक पञ्चमीसँ साओन शुक्ल पक्ष तृतीया धरि मनबै छथि जिनका वैवाहिक जीवनमे पहिल बेर पाबनि अबै छनि आन-आन विवाहिता अन्तिम दिन उपास रखै छथि कि एकसञ्झा करै छथि अनोन खाइ छथि। नव विवाहिताकेँ मोसरामनी पुजेबामे नित्य बढ़ि-चढ़ि कऽ भाग लै छथि। हुनक उछाह देखिते बनैत अछि। तँ अछि श्रद्धा-विश्वासक हाल। एकर दोसर पक्ष सेहो अछि। नव विवाहिता गृहस्थ जीवनमे प्रवेश करै छथि तँ हुनका गृहस्थीक गाड़ी गुड़केबा लेल आवश्यक जनतब सेहो चाही। मधुश्रावणी एहिमे मेहक काज करैत अछि। एहि पाबनिमे पबनैतिनकेँ सभ दिन फराक-फराक निर्धारित कथा सुनाओल जाइ छनि जे गाहर्स्थ्य जीवनसँ कोनो ने कोनो रूपमे जुड़ल रहैत अछि। मिथिलामे सभसँ नीक शिव-पार्वतीकेँ नीक दम्पती गेलनि अछि। हुनकासँ जुड़ल अनेक कथा पबनैतिनकेँ सुनाओल जाइ छनि। एकर अतिरिक्त मंगला गौरी, पृथ्वीक जन्म, समदु्र मन्थन, सती, पतिव्रता, गंगा, गौरीक जन्म, काम दहन, गौरीक तपस्या, गौरीक बियाह, मैनाक मोह भंग, कार्त्तिकेय, गणेश, लीलीक जन्म, विदाइक भार, गौरिक भागिन पुरिबा-पछबा, पतिव्रता सुकन्या, गौरीक ननदि आदिक कथा सुनै छथि। एहि कथा सभमे जतऽ शास्त्रीयताक पुट रहैत अछि ओतहि दाम्पत्य जीवनमे केहन आचार-विचार हेबाक चाही, एकर की लाभ होइत अछि विमरीत गति अपनेने की हानि होइत अछि, विवाहक बाद नव सम्बन्ध ननदि, भागिन आदिसँ सेहो हुनका परिचित कराओल जाइ छनि। कथा सभ नव-नव सम्बन्धक बीच समन्वय बनेबाक गृहस्थीकेँ सुचारु रूपसँ चलेबाक मानसिकता तैयार करैत अछि।

सासुरवास लेल मनोवैज्ञानिक तैयारी

मधुश्रावणी ओना तँ आने पाबनि जकाँ नजरि अबैत अछि, मुदा एकर महत्व एहि दृष्टिञे बढ़ि जाइछ जे ओहि नव विवाहिता लेल अछि जे अपन ओहि घर-परिवारकेँ छोड़ि अपन सासुर जेती जाहि ठाम बालपनसँ लऽ युवावस्था धरि बितेलनि। जाहि गामक माटि-पानिमे खेलेली। माता-पिता, भाय-बहिन, काका-काकी, सखी-बहिनपा, अपना गामक चिन्हार खेत-खरिहान, गाछी-बिरछी, पोखरि-झाँखरि सभकेँ त्यागि ओहि गाम जेती जाहि ठाम हुनक परिचित पति मात्र हेथिन। बड़सँ बड़ देओरकेँ चिन्हैत हेती। अपरिचित सासु-ससुर, ननदि-नन्दोसि, देयादनी, भैंसुर, देयोर आदिक बीच हुनका अपन गृहस्थी बसेबाक छनि। मधुश्रावणी नव विवाहिताकेँ सासुरवास लेल मनोवैज्ञानिक रूपसँ तैयार सेहो करैत अछि। एहिमे नव विवाहिता लेल विधान कयल गेल अछि जे अछि जे भरि पाबनि सासुरेसँ आयल अन्न, फल, दूध, पूजन सामग्री, वस्त्र आदिक उपयोग करती। परिणाम होइत अछि जे नव विवाहिता अपन नैहरमे रहितो ओहि ठामक किछु उपयोग नञि करै छथि। काल्हि धरि जाहि नैहरक सभ किछु उपयोग करैत रहली ताहिसँ लगातार 14 दिन कटल रहब सेहो नैहरमे रहिते हुनकापर मनोवैज्ञानिक असरि जरूर बनबैत हेतनि। एहिसँ मानसिकता अवश्य बनैत होयत जे आब हुनक अपन घर नैहर नञि छनि। नैहरक बदला सासुरकेँ अपन घर मानबा दिस प्रेरित करबाक पाबनि पहिल सीढ़ी बनैत अछि। तहिना सासुरक आर्थिक स्थितिसँ अवगत भऽ तदनुकूल अपनाकेँ तैयार करबाक अवसर सेहो नव विवाहिताकेँ दैत अछि। पाबनि लेल कनिञाकेँ पठाओल जायवला मधुश्रावणीक भारक ओरियान प्राय: वास्तविक आर्थिक स्थितिसँ थोड़े बढ़िएक कऽ कयल जाइत अछि। एहि पाबनिमे कनिञाक संग हुनक माय नैहरक आन स्त्रीगण परिजन लेल वस्त्र सेहो पठाओल जाइत अछि। एहिसँ अनुमान कयल जा सकैछ जे कनिञाक सासुरक केहन भोजन पहिरन-ओढ़न छनि। नव विवाहिताकेँ अवसर दैत अछि जे आयल भारसँ कम कऽ अपना सासुरक आर्थिक स्थितिकेँ आँकथि ओहिमे अपन सामञ्जस्य लेल तैयार होथि।

पर्यावरणसँ बढ़बैछ निकटता

ओना तँ सभ पाबनि प्रकृतिएपर आधारित होइत अछि। जखन-जखन प्राकृतिक परिवर्त्तन होइत अछि कोनो ने कोनो पाबनि अवश्य मनाओल जाइत अछि, मुदा नव विवाहिताक महापर्व मधुश्रावणी एहन पाबनि अछि जे पबनैतिनकेँ सोझे प्रकृतिसँ जोड़ैत अछि। ओकरा प्रकृतिक लग अनैत अछि सन्देश दैत अछि जे पर्यावरणक लेल सभ गाछ-बिरिछ अनिवार्य उपयोगी अछि। एहि पाबनिमे पबनैतिन रोज साँझमे फूल लोढ़ै छथि। फूलक संग विभिन्न गाछक पात सेहो जमा करै छथि। ताहिमे बेली, चमेली, ओड़हुल, गुलाब, कनैल, अपराजिता आदिक फूल जाही, जूही, बाँस, मेहदी, लताम, औरा, अनार, अकौन आदिक पात होइत अछि। एहि सभसँ डाला भरि पबनैतिन नित्य साँझमे घर घुरै छथि एही फूल-पातसँ अगिला दिन भोरमे पूजन होइत अछि। एहि पाबनिमे बासिए फूल-पातसँ पूजाक विधान अछि। फूल लोढ़बा काल तँ नव विवाहिताक बीच गाछ-पातक नाम ओकर उपयोगिताक चर्च होइते अछि, कोन फूल-पात पूजाक उपयोगमे आयत नञि ताहिपर एक-दोसरसँ तँ विमर्श होइते अछि, बूढ़-पुरान सेहो एहि सम्बन्धमे नवका पीढ़ीकेँ जानकारी दैत रहला अछि।ई क्रम पहिल दिन मौना पञ्चमीसँ लऽ अन्तिम दिन धरि चलैत अछि। पातो तोड़बाक विधान ताहि समयमे राखल गेल अछि जखन बरखा होइत रहैत अछि। पाबनि साओन मासमे होइत अछि एहि समयमे गाछसँ पात हटेने ओकर क्षति नञि होइत अछि।

साँप पर्यन्त केर रक्षाक मानसिकता

पर्यावरणमे साँप सन विषधर केर सेहो महत्वपूर्ण स्थान अछि। आधुनिक विज्ञानो एकरा स्वीकार करैत अछि। से कतेको अनुसन्धानक बाद, मुदा मिथिला अदौसँ एकरा जनने अछि। मात्र जनबे ने केलक, अपितु साँप सन जीव पर्यन्तक रक्षा लेल एकर विधान मधुश्रावणीक संग केलक। नव विवाहिता तिथिक हिसाबे लगातार 14 दिन धरि बिसहरि केर पूजन करै छथि। नाग-नागिनसँ सम्बन्धित अनेक कथा सुनै छथि जे आगामी जीवनक पाथेय बनैत अछि। अक्षय अहिबातक कामना संग होबऽ वला एहि पाबनिकेँ महिलेसँ ताहूमे नव विवाहितासँ जोड़बाक पाछाँ कारण सेहो अछि। विधान प्राय: एहि दुआरे कयल गेल जे ओहि नव विवाहिताक जीवनमे पहिल बेर पाबनि अबैत अछि भावी माता होइ छथि। जँ माय पर्यावरणक संरक्षा-सुरक्षा केर संग सर्प सन जीवक प्रति संवेदनशील हेती तँ अपना सन्तानमे सेहो एकर संवेदना भरि सकती। यैह कारणो अछि जे मिथिला क्षेत्रक महिला तँ धार्मिक-आध्यात्मिक होइते छथि, हुनकासँ कनेको कम पुरुष नञि होइ छथि। तेँ अन्धानुकरणक अन्हर-बौखीक बादो एखनो मिथिलाक अधिकांश लोक अपन सांस्कृतिक परम्पराक प्रति ममत्व रखै छथि। ओना धीरे-धीरे एहूमे घून लागब शुरू अछि।

महिलाक पौरोहित्य सशक्तिकरणक आधार

सगरो दुनिञामे महिला सशक्तिकरणक अनघोल अछि। सभ तरि एके रंग बात जे महिलाकेँ कतिया कऽ राखि देल गेल। हुनका विकास नञि करऽ देल गेल। अपनो ओहि ठाम यैह हाल, मुदा मिथिलाक स्थिति अतीतमे देश-दुनिञाक आन क्षेत्रसँ सर्वथा भिन्न रहल अछि। सत्य जे पुरुष समाज जकाँ अपनो ओहि ठाम महिला लोकनिक समाजक सभ क्षेत्रमे सक्रिय नञि रहली, मुदा विद्याक क्षेत्रमे एहन नञि रहल। ज्ञानार्जनक अधिकार प्राचीन कालेसँ मैथिलानीकेँ रहलनि। तेँ ने मिथिला पुत्री गार्गी एतहि भेल छली जे राजा जनक ओहि ठाम ब्रह्मज्ञानी लोकनिक सभामे सम्मिलित होइत छली। शास्त्रार्थ करै छली। से की बिना पढ़ने-लिखने? तहिना सुलभा, सुनयना, मैत्रेयी, भारती, लखिमा आदि रहली। तहिना महिलाकेँ पौरोहित्यक अधिकार सेहो छलनि। आइयो छनि। मधुश्रावणी पाबनिमे आइयो महिलाकेँ पौरोहित्य करबैत देखल जा सकैत अछि। महिला पुरहित होइ छथि टोल-समाजक कोनो बूढ़-पुरान दादी, काकी, पीसी आदि जे प्रतिदिन नव विवाहिता पबनैतिनकेँ मोसरामनी पुजबै छथि सभ दिन लेल निर्धारित फराक-फराक कथा कहै छथि। अन्तिम दिन हुनका दक्षिणामे नव नूआ आदि सेहो भेटै छनि। आर तँ आर गाम-घरमे हुनकापण्डीजीकहि सम्बोधित सेहो कयल जाइ छनि। कतेको गाममे आइयो मोसरामनी पुजनिहारि नव विवाहिता सभक बीच फूल लोढ़बा काल संवाद सुनल जा सकैत अछिगे बहिना तोहर पण्डीजी के छथुन, हमर तँ अपने बड़की मैञा छथि?’ उत्तरमे कोनो काकी, कोनो दीदी, कोनो गामवालीक नाम कहल जाइत अछि। व्यवस्था लौकिक अछि। माने शास्त्रीय लौकिक दुहू दृष्टिञे मिथिला अपन मातृ शक्तिकेँ यथोचित सम्मान दैत रहल अछि। परम्परा नव विवाहिताक महापर्व मोसरामनीमे एखनो विद्यमान अछि।

मातृभाषाक प्रति बनबैछ संवेदनशील


नव विवाहिताक पाबनि मधुश्रावणी मिथिलाक मातृभाषा मैथिलीक प्रति सेहो संवेदनशील बनबैत अछि। एहि पाबनिमे सभटा कथा मैथिलीमे होइत अछि। फूल लोढ़बा काल, पूजा काल बिसहरि, गोसाउनि, मधुश्रावणी आदिक गीत तँ मैथिलीमे होइते अछि एहिमे जे पाँच गोट विशेष लौकिक मंत्रक विधान कयल गेल अछि जकरा बीनी कहल गेल अछि। व्रती पूरा आस्थासँ प्रतिदिन सुनै छथि- ‘जहियासँ भेल नाग मनारे। बिसहरि खसली शम्भु-भड़ारे...’, ‘गोसाउनि दान बड़ि, सोहाग बड़ि, आधा साओन....’, ‘गोसाउनि दाइकेँ एक ढक छियनि, पुरिबा-पछबा बसात छियनि..’, ‘बीनी बूनल झारि कोन, बीनी उठल पहिल कोन...’ दीप दिपहरा जाथु धरा, मोती मानिक भरथु घरा...कतेक ठाम गौरी, बिसहरि, बैरसी, चनाइ नाग, कुसुमावती, पिंगला, लीली नाग, शतभागिनि, गोसाउनि, नाग, साठि आदिक पूजा पूर्णत: मैथिलीमे होइत अछि तँ कतेको ठाम पूजन संस्कृतमे लौकिक विधान बीनी आदि मैथिली आदिमे होइछ। माने शास्त्रीयता लौकिकताक समन्वय रहैछ।

प्रस्तुति : अमलेन्दु शेखर पाठक